अकबर – Akbar
भारत में अनेक ऐसे राजा और सम्राट हुए, जिन्होंने अपने समय में राज्य का खूब विस्तार
किया। शत्रुओं उनकी शक्ति और बल
से कांपते थे | नौकर चाकर और
दरबारी हाथ बांधे खड़े रहते थे। पर उनकी मृत्यु के बाद न कोई आदर सम्मान हुआ और ना उन्हें किसी ने याद रखा।
लेकिन अशोक और अकबर ऐसे सम्राट हुए हैं, जिनका नाम लोग
आज भी आदर और सम्मान से लेते हैं और उन्हें महान कहते हैं।
अकबर के पिता हुमायूं का राज छीन गया था और वह किसी राजा से
सहायता पाने के लिए इधर-उधर भागे फिर रहे थे | इसी दौड़ धूप में वहां अमरकोट के राणा विरसाल के
पास गए। वही सिंध के
रेगिस्तान में २३ नवंबर १५४२ को अकबर का जन्म
हुआ। हुमायूं के पास थोड़ी सी कस्तूरी थी उसे अपने संगीत साथियों में बांटते हुए
उसने कहा अगर मैं दिल्ली का बादशाह होता तो इस मुबारक घड़ी में हीरे जवाहरात
लुटाता। इस समय मेरे पास यही है। आप लोग यही लीजिए और बच्चे को आशीर्वाद दीजिए।
आशा है कि एक दिन इस लड़के का यश कस्तूरी की खुशबू की तरह सारी दुनिया में फैलेगा।
गद्दी वापस लेने में असमर्थ होकर हुमायूं हिंदुस्तान छोड़कर
ईरान चला गया और वहां के शाह तहमास्प ने उसे चौदह हजार सैनिकों की सेना दी। इस सेना
की सहायता से हुमायूं ने अपने भाइयों कामरान, हिंदाल और
अस्करी से युद्ध किया और उनसे काबुल और कंधार जीते ।
जब वह अपने भाइयों से जीत चुका तो हुमायूं को मालूम हुआ की शेरशाह के
बेटे-पोते दिल्ली के तख्त के लिए आपस में लड़ झगड़ रहे हैं। यह अच्छा अवसर था।
उसने हिंदुस्तान पर चढ़ाई कर दी। फरवरी १५५५ में उसने सिकंदर सूर से लाहौर जीता और
जुलाई में आगरा और दिल्ली पर भी कब्जा कर लिया। लेकिन अभी वह संभलने भी न पाया था
कि २४ जनवरी १५५६ को दिल्ली में अपने पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरकर वह मर गया।
अकबर उस समय बैरम खां के साथ पंजाब में था और १४ फरवरी १५५६ को सम्राट घोषित किया गया।
अकबर उस समय १३ साल का बालक था। शत्रु इस स्थिति में कहा चूकने वाले थे। आदिल शाह सूर के सुयोग्य
सेनापति और मंत्री हेमू ने मुगल गवर्नर तार्दी बेग को हराकर दिल्ली और आगरा पर
कब्जा कर लिया और हेमचंद्र विक्रमादित्य के नाम से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा।
जिसके हाथ में दिल्ली होती थी, वही हिंदुस्तान
को सम्राट कहलाता था। इसीलिए अकबर और बैरम खा ने हेमू से लड़ने की ठानी। वे पंजाब
से पानीपत पहुंचे और वही दोनों ओर की सेनाओं का
मुकाबला हुआ। पहले तो हेमू की सेना जीत रही थी लेकिन अकस्मात एक तीर हेमू की आंख
में लगा। तीर लगते ही वह मूर्छित होकर गिर पड़ा। इस पर हेमू की सेना भाग खड़ी हुई
और मुगलों की जीत हो गई।
हेमू पकड़ा गया और बैरम खां उसे जंजीरों में बांधकर अकबर के
सामने लाया और बोला “बादशाह सलामत ! आप की यह पहली फतह है। दुश्मन का सर अपनी
तलवार से कलम कीजिए और इस फतह का जश्न मनाइए।“
लेकिन अकबर ने हंसकर कहा “हारे और बंधे हुए दुश्मन का सिर
काटना कोई बहादुरी नहीं। हमारी तलवार यह काम नहीं करेगी ।इसे ले जाओ।“
कहते हैं कि फिर बैरम खां ने अपने हाथ से हेमू का सिर काट
दिया लेकिन जब लोगों ने अकबर की बातें सुनी तो उसकी बड़ी प्रशंसा की।
दिल्ली और आगरा पर फिर मुगल सेना का कब्जा हो गया और अकबर
हिंदुस्तान का बादशाह बना। बादशाह, अकबर था लेकिन
राज्य की सारी शक्ति बैरम खां के हाथ में थी। वह स्याह सफेद जो चाहे करता था
क्योंकि वह हुमायूं का पुराना वफादार सेनापति था। उसने मुगल राज्य की नींव पक्की
करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी । उसने अकबर को
गद्दी पर बैठाया ,पानीपत की लड़ाई जीती और
राज्य के विरोधियों और शत्रुओं को बड़े साहस से पराजित किया । लेकिन वह धीरे-धीरे
इतना उद्दंड हो गया किसने नौजवान बादशाह के हुक्म की परवाह करना भी छोड़ दिया।
अकबर को यह बात बहुत अखरी । १८ साल का हो गया था और राज्य की बागडोर खुद संभालना
चाहता था। अतएव उसने बैरम खां को अपने पास बुलाया और कहा – “बाबा हम पर और मुगल राज्य पर आपके बड़े एहसान
हैं। हम न उन्हें भुला सकते हैं और ना उनका बदला दे सकते हैं। मगर अब आप बूढ़े हो
गए हैं। सल्तनत का काम हम खुद संभाल लेंगे। आराम करें और हमारा ख्याल है मक्का
शरीफ जाकर हज कर आए।“
बैरम खां चुप हो गया और हज के लिए चल पड़ा लेकिन दिल्ली से
थोड़ी दूर जाकर उसने बगावत कर दी। अकबर उसकी नियत को समझता था। सेना उसका पीछा करने
के लिए तैयार थी। बैरम खान को जालंधर के निकट हरा दिया गया और पकड़कर अकबर के
सामने लाया गया। अकबर को अपने अध्यापक और संरक्षक की सेवाएं याद थी। वह बड़ी
नम्रता से बोला – “ बाबा ! हमने कहा था कि हम अब बच्चे नहीं, जवान है और
हिंदुस्तान के बादशाह हैं, मगर आपको हमारी बात का यकीन नहीं आया। हम अपने बाबा को कोई सजा नहीं देंगे। अब आपको
मालूम हो गया की अकबर सल्तनत को संभाल सकता है। इसीलिए इत्मीनान से हज पर जाइए।
वहां आपका यह कसूर भी माफ हो जाएगा।“
जनवरी १५६१ में जब बैरम खान
मक्का जा रहा था, तो एक लोहानी अफगान
ने मार्ग में उसकी हत्या कर दी। अफगान ने अपने पिता का बदला लिया था, जो पहले बैरम खां के हाथ से मारा गया था।
अकबर ने सल्तनत की बागडोर संभाली। जो सरदार कल तक बैरम खान
के विरुद्ध बादशाह के काम करते थे, वही मनमानी करने
लगे। उनका ख्याल था कि यह कल का छोकरा क्या राज करेगा। मगर अकबर सब समझता था और
स्वतंत्र रूप से राज करने का निश्चय कर चुका था। मनमानी करने वाले सरदारों का नेता
अब आदम खां था। अकबर को विवश होकर उसे भी अपने रास्ते से हटाना पड़ा। अकबर अनपढ़
था लेकिन अनुभव से उसने बहुत कुछ सीखा था और वह नई सूझबूझ के साथ राज्य काम चलाना
चाहता था।
हिंदुस्तान बहुत से छोटे-छोटे राज्य में बटा हुआ था। एक तरफ
सुरमा सरदार थे, जो दिल्ली के
तख्त पर दांत लगाए हुए थे और दूसरी और राजपूत राजा थे, जो अपनी वीरता और साहस के लिए प्रसिद्ध थे।
अकबर ने विद्रोहियों को दबाने के लिए अपनी सेना का संगठन दृढ़ किया। फिर उसने देखा
कि अगर राजपूतों को अपने साथ मिला लिया जाए तो मुगल राज्य की नींव हमेशा के लिए
मजबूत हो सकती हैं। वह कई साल तक बराबर लड़ता रहा। उसने गुजरात, मेवाड़ और
काठियावाड़ आदि को जीता। फिर राजपूतों से संबंध स्थापित कर उन्हें अपने दरबार में
उच्च पद दिए और उन्हें जिम्मेदारी से काम सौंपे। राजा मानसिंह उनका खास दरबारी था।
धीरे-धीरे सभी राजपूत अकबर के अधीन हो गए सिर्फ चित्तौड़ के उदयसिंह और राणा
प्रताप ने मुगल सत्ता को नहीं माना। अकबर ने राजपूतों की सहायता से लड़ाइयां जीती
और देश में एकता स्थापित की।
देश में शांति और एकता स्थापित करने के अलावा अकबर ने सुधार
और निर्माण की ओर भी ध्यान दिया। वह जानता था कि भारत एक महान देश है। उसकी परंपरा
और संस्कृति महान हैं। हिंदुस्तान के अधिकांश निवासी हिंदू हैं। उनके रहन-सहन का
अपना ढंग है और अपने रीति-रिवाज हैं। अगर मुगलों को इस देश में जमकर राज करना है, तो उन्हें इस देश की परंपरा और संस्कृति को
अपनाना होगा और जनता के रीति-रिवाजों का सम्मान करके लोगों के दिलों को जीतना
होगा। इस उद्देश्य से अकबर ने यहां के बहुत से रीति-रिवाजों को अपनाया।
फिर धर्मों के कारण आपस में होड़ चलती रहती थी, अकबर उसे भी कम करना चाहता था। वह खुद अनपढ़
था। उसका बचपन का पढ़ने का समय काबुल में बीता था क्योंकि हुमायूं उन दिनों वही रह
कर फिर से दिल्ली जीतने की योजनाएं बना रहा था। अकबर की तबीयत कबूतरों और कुत्तों
के साथ खेलने में लगती थी। दिल्ली आने पर भी उसके ये शौक बने रहे। चीतो से लेकर
हिरण तक का शिकार करता। घोड़ों और हाथियों की दौड़ उसे बहुत पसंद थी। किसी के काबू
में ना आने वाले हाथी को वश में करने के लिए वह जानबूझकर खतरा मोल लेता था। लेकिन
निरक्षर होने का मतलब यह नहीं था कि वह अज्ञानी था। उसकी स्मरण शक्ति बहुत तीव्र
थी। वह सुन-सुनकर अपने ज्ञान में वृद्धि करता रहता था। कितने ही कवियों की कविताएं
उसे याद थी। अपने समय की सभी प्रसिद्ध किताबों को उसने पढ़वाकर सुना था। जहां तक
धार्मिक ग्रंथों का संबंध है सब धर्मों की अच्छी-अच्छी पुस्तकें भी वह सुना करता
था। विभिन्न धर्मों की प्रमुख नेताओं को बुलाकर उनकी बहसे से करवाता था और खुद भी
उनमें भाग लेता था। महाभारत को सुनने के बाद वह उसका अनुवाद कराने के लिए अधीर हो
उठा। धार्मिक बहसों के लिए फतेहपुर सीकरी में एक खास स्थान इबादत खाना बनाया गया
था।
धर्म और संस्कृति के मामलों में सलाह देने के लिए अकबर के
खास सलाहकार दो भाई अबुल फजल और फैजी थे। जो बहसे होती थी वे लिख ली जाती थी। बाद
में अकबर उन पर विचार किया करता था। जब यह बहसे सुनते-सुनते अकबर को धर्मों के
बारे में काफी ज्ञान प्राप्त हो गया तो उसमें एक दिन फैजी से कहा – “हम चाहते हैं
कि सब मजहब की अच्छी बातें लेकर एक नया मजहब कायम किया जाए।“
अबुल फजल – “खयाल तो अच्छा है। लेकिन बादशाह सलामत क्या लोग
इसे मान लेंगे।“ अकबर – “कोई जबरदस्ती थोड़े ही हैं जिसका जी चाहे माने और जिसका
जी चाहे ना माने। इससे फायदा यह होगा कि आपस में झगड़े कम होंगे और लोगों को सब
धर्मों की अच्छी बातें एक ही मजहब में मिल जाएगी।“
इस विचार से अकबर ने “दीन इलाही” मजहब चलाया, जिसमें सभी धर्मों की अच्छी बातें शामिल थी और
हिंदू धर्म से भी बहुत सी बातें ली गई थी। अकबर सूरज की पूजा करता था और अपने महल
के झरोखे में बैठकर जनता को दर्शन दिया करता था।
अकबर के जमाने में दीन-ए-इलाही दरबारी मजहब बन गया लेकिन
बाद में नहीं चल सका। इसका एक लाभ यह हुआ कि इससे पहले बादशाह राजनीतिक नेता होता
था धार्मिक नेता उलेमा होते थे और राजकाज में उनका का दखल होता था। लेकिन इसके बाद
अकबर खुद धार्मिक नेता बन गया और उलेमा का असर सदा के लिए कम हो गया। फतेहपुर
सीकरी के इमाम को हटाकर अकबर ने अपने नाम से खुतबा पढ़ाना शुरू किया और घोषित कर
दिया कि धार्मिक झगड़ों का अंतिम निर्णय अब बादशाह खुद किया करेगा। इससे उलेमा
बहुत चिढ़े लेकिन किसी का कुछ वश न चल सका।
जिस प्रकार अकबर धर्म में सब धर्मों की अच्छी-अच्छी बातें
लेने के पक्ष में था उसी प्रकार कला और साहित्य में भी सब अच्छी बातों को मिला
लेने के हक में था । अकबर ने अनेक संस्कृत ग्रंथों का अनुवाद कराया। उसने अपने
दरबार में अनेक चित्रकारों को भी स्थान दिया, जिनमें हिंदू
चित्रकारों की संख्या मुसलमान चित्रकारों से अधिक थी। उसने फतेहपुर सीकरी में जो इमारत बनवाई, वह बहुत ही सुंदर है। कारण यह है कि जहां हिंदू
मंदिरों की शानदार और गंभीर शैली को अपनाया गया है वहां उनमें ईरानी कला की
विशेषताएं भी शामिल है। दिल्ली में हुमायूं का मकबरा इसी नमूने पर बना है। उनमें
ईरानी कला का बहुत असर है। लेकिन नीचे का नक्शा हिंदुस्तानी हैं और सफेद संगमरमर
भी हिंदुस्तानी ढंग से लगाया गया हैं।
बड़ी-बड़ी इमारतों के अलावा अकबर ने बहुत से किले, बुर्ज, सराये, स्कूल, तालाब और कुएं बनाएं।
इनसे पता चलता है कि उसने देश की संस्कृति और रीति-रिवाजों को कहां तक अपना लिया
था। वह सचमुच हिंदुओं और राजपूतों के दिल जीतने में सफल हुआ। अकबर बड़ा गुण-ग्राही
था और बहुत से गुणी जन और विद्वान उस के दरबार में जमा थे। उसके नौ रत्नों में
अबुल फजल, फैजी, राजा मानसिंह, राजा बीरबल, राजा टोडरमल और
तानसेन बहुत प्रसिद्ध है।
इन नौ रत्नो द्वारा अकबर ने
बहुत से ऐसे काम कराएं, जिनसे देश की हर
तरह से उन्नति हुई। मानसिंह वीर योद्धा थे, उसने बहुत सी
लड़ाइयां जीतकर देश में एकता और शांति स्थापित करने में सहायता दी। राजा टोडरमल की
सहायता से अकबर ने भूमि संबंधी कानून बनाया जिससे कृषि की उन्नति हुई। अबुल फजल और
फैजी न सिर्फ योद्धा थे बल्कि फारसी और संस्कृत के विद्वान भी थे। धर्म और
संस्कृति के मामलों में अकबर को सलाह देते थे। तानसेन प्रसिद्ध गेवैया थे । भारतीय संगीत में उसका स्थान बहुत ऊंचा है और
उसकी राग रागिनीया बहुत मशहूर हैं। बीरबल जहां राजकाज की समस्याएं सुलझाने में
चतुर था, वहां बड़ा ही विनोद
प्रिय भी था। अकबर और बीरबल के बहुत से चुटकुले प्रसिद्ध हैं।
इतनी विद्वानों को एक जगह जुटाना और उनसे उनकी योग्यता के
अनुसार काम लेना अकबर का ही काम था। इससे देश की आर्थिक राजनीतिक और सांस्कृतिक
उन्नति हुई। इसी उन्नति के कारण अकबर महान कहलाते हैं।
अकबर मझोले कद का बहुत मजबूत शरीर वाला व्यक्ति था। उसका
व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली और आकर्षक था। सादगी इतनी थी कि तख्त के आगे सबके
साथ फर्श पर बैठ जाता और कभी-कभी मिस्त्रीयो की तरह खुद भी काम में जुट जाता।
साधारण लोगों की मामूली भेटों को खुशी के साथ स्वीकार कर लेता पर अमीरों के कीमती
नजरानो की ओर आंख उठाकर भी ना देखता। भोजन दिन में एक बार ही करता, लेकिन फलों का खूब शौकीन था। भारत में तंबाकू
पीने वाला पहला बादशाह अकबर ही था। तंबाकू को पुर्तगाली यहां लाए थे। अकबर पहले
मुगलों की पोशाक पहनता था पर फिर लंबी चौबंदी उसके ऊपर कमरबंद और राजपूतों की पगड़ी
पहने लगा। बाद के मुगल बादशाहो ने भी इसी पोशाक को
अपनाया।
अकबर की मृत्यु १७ अक्टूबर १६०५ को हुई। उसके बाद उसका बेटा
सलीम जहांगीर के नाम से गद्दी पर बैठा।
अशोक के बाद देश में सबसे उज्जवल अकबर ही दिखाई दिया। वह
सच्चे अर्थों में राष्ट्रभक्त और राष्ट्र का उन्नायक था। अकबर में दूर तक सोचने की
अद्भुत शक्ति थी। अकबर से पहले देश में समय-समय पर खून की नदियां बहती थी। एक ही
देश में रहते हुए भी उसके निवासी एक दूसरे पर विश्वास ना करते थे। अकबर की नीतियों
के कारण उसके बाद भी लंबे समय तक भारत में सुख शांति का युग चलता रहा। वह चाहता था
कि हिंदुओं और मुसलमानों दोनों की संस्कृति साहित्य संगीत कला और ज्ञान विज्ञान का
सब लोगों में समान रूप से आदर हो। अकबर ने यहां तक कहा कि हिंदू और मुसलमानों की
मिलकर एक भारतीय जाति बन जाए। वह देश के सांस्कृतिक पैगंबर था।