ओटोवान ग्वेरिक की जीवनी | otto von guericke experiment | Otto von Guericke vacuum pump
ओटोवान ग्वेरिक एक प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री, इंजीनियर और दार्शनिक थे । इन्होंने वायुपम्प का आविष्कार किया । इस पम्प की सहायता से उन्होंने निर्वात (Vacuum) तथा जल में और सांस लेने में वायु के महत्त्व का अध्ययन किया ।
ओटोवान ग्वेरिक का जन्म
ओटोवान ग्वेरिक का जन्म एक धनी परिवार में २० नवंबर १६०२ को मगडेवर्ग साइक्सोनी (जर्मनी) मे हुआ था तथा शिक्षा लिपजिग (Leipzig) विश्वविद्यालय में हुई थी |
ओटोवान ग्वेरिक की शिक्षा
सन् १६०२ में ज़ेना विश्वविद्यालय में इन्होंने कानून का अध्ययन किया और सन् १६२३ में लीडन विश्वविद्यालय में उन्होंने गणित और यांत्रिकी का अध्ययन किया ।
ओटोवान ग्वेरिक के कार्य
सन् १६३१ में वे स्वीडन के गुस्तावस-II (Gustavus-II) की सेना में इंजीनियर नियुक्त हुए । सन् १६४६ से १६८१ तक वे मगडेवर्ग के मेयर पद पर और ब्रेन्डनबर्ग के मजिस्ट्रेट पद पर आसीन रहे ।
सन् १६१८ में जर्मनी में एक भयंकर युद्ध छिड़ गया, जो लगभग ३० वर्ष तक चला । ओटोवान ग्वेरिक ने इस युद्ध में अपना बहुत योगदान दिया । वे गणित तथा यांत्रिकी के एक कुशल इंजीनियर बन गए । फिर भी युद्ध में उनके पक्ष की पराजय हो गई । शत्रु ने मगडेवर्ग पर कब्जा कर लिया और नगर को बुरी तरह नष्ट कर दिया । उस युद्ध में लगभग ३०,००० व्यक्ति मारे गये । सौभाग्यवश ग्वेरिक मौत से बच गए । बाद में उन्होंने नगर का पुनः निर्माण करने में बहुत मदद की और उन्हें नगर का मेयर बना दिया गया । इस पद को वे ३५ वर्षों तक सम्भाले रहे ।
मेयर के जिम्मेदार पद पर होने के नाते वे बहुत ही व्यस्त रहते थे । लेकिन विशेष रुचि होने के कारण वे वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए कुछ न कुछ समय निकाल ही लेते थे । उन्होंने कहीं अरस्तू (Aristotle) का यह कथन कि सिद्धांत पूर्ण निर्वात असंभव है, पढ़ा था । उन्हें यह कथन एक चुनौती के रूप में दिखाई दिया । उन्हें पता था कि गैलीलियो यह सिद्ध कर चुके हैं कि वायु में भार होता है । वे टौरिसेली द्वारा वायुदाबमापी पर किए गए प्रयोगों से भलीभांति परिचित थे । इन सब अनुभवों के आधार पर सन् 1650 में निर्वात पैदा करने के लिए उन्होंने एक वायुपम्प का आविष्कार किया । इस पम्प से काफी ऊंची सीमा तक निर्वात पैदा हो जाता था । उन्होंने इस पम्प को कुछ दूसरे प्रयोगों के लिए भी प्रयोग किया ।
उन्होंने यह सिद्ध करके दिखाया कि किसी निर्वात कक्ष में बजने वाली घंटी की ध्वनि बाहर सुनाई नहीं देती है । इस तथ्य से उन्होंने यह सिद्ध किया कि प्रकाश तो निर्वात से होकर गुजर सकता है लेकिन ध्वनि निर्वात से होकर नहीं गुजर सकती । उन्होंने यह भी प्रदर्शित किया कि निर्वात में मोमबत्ती नहीं जल सकती और जीवित जानवर भी कुछ ही देर में मर जाते हैं ।
ओटोवान ग्वेरिक ने कई प्रकार की निर्वात मशीनें भी बनाई । उन्होंने तांबे के दो अर्धगोले बनाए जो एक दूसरे के साथ फिट होकर एक पूर्ण गोले का निर्माण करते थे । इनको मगडेबर्ग के अर्धगोलों के नाम से जाना जाता है । इन गोलों की सहायता से ओटोवान ग्वेरिक ने रेजन्सबर्ग में बादशाह फर्डीनद्र-III के सामने निर्वात की विशाल शक्ति का प्रदर्शन किया ।
ग्वेरिक ने तांबे से बने दोनों अर्धगोलकों को एक दूसरे के साथ लगाया जिससे कि चौदह इंच व्यास की एक बड़ी गेंद बन गई । इस गोले को वायुरुद्ध बनाने के लिए उन्होंने एक चमड़े का छल्ला लिया । जिसे तारपीन में बने मोम के घोल में डुबाकर अर्धगोलों के जोड़ वाले स्थान पर चिपका दिया । थोड़ी ही देर में तारपीन उड़ गया और चमड़े का छल्ला दोनों अर्धगोलकों के साथ चिपक गया । एक अर्धगोले में लगी धोंकनी को निर्वात पम्प से जोड़ दिया गया और गोले के अंदर की वायु को बाहर निकाल दिया गया । गोले में निर्वात पैदा करने के बाद आठ घोड़े एक अर्धगोले पर और आठ घोड़े दूसरे अर्धगोले पर जोत दिए गए और उन्हें एक दूसरे की विपरीत दिशा में हांका गया । घोड़ों ने खूब खींचा तानी की लेकिन वे इन दोनों अर्धगोलों को एक दूसरे से अलग न कर सके । अन्त में घोड़ों ने अपनी सारी शक्ति लगा दी तब वे गोलों को अलग कर सके । जब वे गोले अलग हुए तो सारे दरबारी घबरा गए क्योंकि गोलों के अलग होने पर भारी धमाके की आवाज हुई । वास्तव में यह आवाज रिक्त स्थान में एकदम वायु के प्रवेश के कारण हुई थी ।
जब राजा ने यह देखा कि वायुदाब के कारण इन अर्धगोलों को अलग करना इतना कठिन था तब ओटोवान ने उन्हें अलग करने की सरल विधि बताई । उन्होंने घोड़ों को खोल दिया और दोनों अर्धगोलों को पहले की भांति जोड़ कर उनके बीच की हवा पम्प द्वारा निकाल दी । इन्हें अलग करने के लिए उन्होंने एक गोले पर लगी टोंटी घुमा दी जिससे गोलों में वायु तेजी से प्रवेश कर गई और गोले आसानी से एक दूसरे से अलग हो गए ।
इसके बाद उन्होंने बड़े गोलों से इसी प्रदर्शन को दोहराया । इनके चारों ओर इतना अधिक वायुदाब था कि चौबीस घोड़े भी इन्हें अलग न कर पाये । तभी ओटोवान ग्वेरिक ने टोंटी घुमाई और वे गोले एक दूसरे से अलग हो गए । इन प्रयोगों से वायुदाब के विशाल बल का प्रदर्शन हो गया ।
सन् १६६३ में इन्होंने एक ऐसा जनरेटर बनाया, जो स्थिर विद्युत पैदा करता था । यह जनरेटर गंधक से बनाया गया था, जिसे घुमाने पर घर्षण द्वारा विद्युत पैदा होती थी । कई वर्षों बाद सन् १६७२ में ओटोवान ग्वेरिक ने इस बात का पता लगाया कि गंधक की गेंद पर पैदा होने वाली विद्युत उसकी सतह पर एक चमक पैदा करती है । यह चमक विद्युत प्रतिदीप्ति (Electro Luminescene) कहलाती है । इस प्रकार ओटोवान ग्वेरिक पहले व्यक्ति थे जिन्होंने विद्युत प्रतिदीप्ति को देखा ।
ओटोवान ग्वेरिक की मृत्यु
ओटोवान ग्वेरिक ने खगोलशास्त्र का भी अध्ययन किया और बताया कि धूमकेतू (Comets) नियमित रूप से अंतरिक्ष में अपने स्थान की ओर वापस आते हैं । जब वे अस्सी वर्ष के थे तो पदमुक्त होकर वे हेमबर्ग में वापिस चले गए और वहीं सन् ११ मई १६८६ में इस महान वैज्ञानिक का देहान्त हो गया ।