कंबन | Kamban

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कंबन Kamban

आप गोस्वामी तुलसीदास के बारे में सुन चुके होंगे। गोस्वामी
तुलसीदास ने हिंदी में रामायण लिखी थी। दक्षिण भारत में भी कंबन नामक एक कवि हुए
जिन्होंने तमिल भाषा में रामायण लिखी।

कंबन का जन्म दक्षिण भारत में तमिलनाडु के चोल राज्य में
तिरुवलुंदुर नामक गांव में हुआ। कंबन का समय १२
वीं शताब्दी माना
जाता है। कुछ विद्वान ऐसा भी कहते हैं कि वह नौवीं शताब्दी में हुए थे।

कंबन के जीवन के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं मिलती।
उनका असली नाम क्या था यह अभी तक पता नहीं चला। कंबन उनका उपनाम था। उनकी माता-पिता
बचपन में ही स्वर्ग सिधार गए और बालक कंबन अनाथ हो गए। कंबन के रिश्तेदारों में
बालक कंबन का पालन पोषण करने वाला कोई नहीं था। इनके वन्नलुर नामक एक रिश्तेदार
बालक कंबन को तिरवेण्णै नल्लूर(यह जगह दक्षिण भारत में दक्षिण अर्काट जिले में
हैं) के रहने वाले सडेयप्प वल्लल के मकान के पास छोड़ कर चले गए।

सडेयप्प वल्लल  बड़े
दानी पुरुष थे। वह अच्छे और अमीर किसान थे। इनके दादा-परदादा पांडिचेरी बंदरगाह के
मार्ग से अपना व्यापार किया करते थे।

जब सडेयप्प वल्लल अपने मकान के बाहर है तो बालक कंबन को
अपने दरवाजे के पास खड़ा देखा। सडेयप्प वल्लल कम्बन को हाथ पकड़ कर तुरंत अंदर ले
गए। उस दिन से कंबन सडेयप्प वल्लल के घर में ही रहने लगे। कंबन
, सडेयप्प वल्लल के
पुत्रों के साथ साथ आया जाया करते और उनकी देख-रेख भी करते थे।

सडेयप्प वल्लल के पुत्रों के साथ साथ कंबन भी पढ़ने लिखने
लगे। बचपन से ही वह पढ़ने लिखने में होशियार थे। कम्बन के विद्या प्रेम को देखकर
सडेयप्प वल्लल अपने बालकों के साथ-साथ कम्बन को भी पढ़ाने लगे। कुछ वर्ष बाद कंबन
पढ़ लिखकर विद्वान बन गए। वह कविता भी करने लगे थे। इनकी कविता करने की प्रतिभा
देखकर सडेयप्प वल्लल इनको अपने बराबर आसन देकर बैठाने लगे।

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सडेयप्प वल्लल दक्षिण भारत के उन दिनों के चोल राजा के
दरबार में प्राय: आ
ना-जाना करते थे। कंबन भी सडेयप्प वल्लल के साथ राज
दरबार में जाते थे।
एक दिन चोर राजा ने
कंबन की कविता से प्रभावित होकर उनको अपने दरबार कवि बना दिया। उसी दिन से कंबन
चोर राजा के दरबार में रहकर अच्छी-अच्छी कविताएं रच कर दरबार की शोभा बढ़ाने लगे।

कम्बन की कविताओं से मुग्ध होकर चोल राजा और सडेयप्प वल्लल
दोनों ने कंबन से कहा कि वाल्मीकि रामायण का रूपांतर अपनी मातृभाषा तमिल में करें।
उन्होंने राजा को कहना मान कर तमिल भाषा में रामायण की कथा लिख डाली। कम्बन की
लिखी हुई रामायण के पद्य करीब
बारह हजार हैं।

कवि कंबन ने रामायण के अलावा और भी कई अच्छे-अच्छे ग्रंथ
लिखे हैं
, लेकिन रामायण की रचना से ही इनकी प्रसिद्धि
चारों ओर फैलने लगी। विद्वानों व महाराजाओं ने इनको कवि सम्राट की पदवी दी।

कंबन आखिर तक बचपन के अपने पृष्ठ पोषक सडैयप्प वल्लल को
नहीं भूले। अंत समय में भी उन्होंने सडैयप्प वल्लल की प्रशंसा करते हुए ही देह
त्याग दें।

गोस्वामी तुलसीदास जी और कवि सम्राट कंबन दोनों ने रामायण
के द्वारा ही भारतीय संस्कृति
,  मनुष्य के कर्तव्य,  भाई-भाई के कर्तव्य, राजा-प्रजा के
कर्तव्य
और पति-पत्नी के
कर्तव्य की व्याख्या की हैं
|

कंबन वैष्णव संप्रदाय के मानने वाले संत नम्मालवार के भक्त
थे। उनकी रामायण और वाल्मीकि की रामायण में काफी स्थानों पर अंतर है। कंबन ने अपनी
रामायण में तमिल (द्रविड़ )सभ्यता का विशेष रूप से वर्णन किया है।

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कहां जाता है की कंबन ने रामायण के अतिरिक्त ग्यारह और पुस्तके लिखी थी, जिनमें से शडगोपर अन्दादी, सरस्वती अन्दादी,  ऐर एलुपत,  शिलै एलुपत आदि मुख्य हैं। परंतु उन्हें अमर
बनाने वाली पुस्तक उनकी रामायण ही हैं।

तमिल साहित्य में कंबन का वही स्थान है जो संस्कृत साहित्य
में वाल्मीकि का। तमिल भाषियों को ही नहीं
|

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