कपटी न्यायाधीश | Kahani In Hindi For Kids

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Table of Contents (संक्षिप्त विवरण)

कपटी न्यायाधीश | Kahani In Hindi For Kids

एक बहुत बड़े और घने पीपल के पेड़ के तले एक तीतर ने अपना घोंसला बनाया। उस पीपल के इर्द-गिर्द और भी अनेक छोटे-बड़े पशु-पक्षी रहते थे । उन सभी से तीतर की अच्छी मित्रता थी ।

एक दिन वह तीतर अपने घोंसले से खाने की तलाश में निकल पड़ा । बहुत दूर जाने के बाद वह एक मक्के के खेत में जा पहुंचा । मक्के की फसल पक चुकी थी। यह तीतर का मन-भाता भोजन था।

दानों की भरमार देखकर तीतर उसी खेत में रुक गया और जी-भर कर मक्का खाता रहा। वहां उसने दूसरी बहुत सी चिड़ियों से मित्रता कर ली और उनके साथ अपना समय मजे से बिताने लगा। उस दिन वह घर वापस नहीं आया । दूसरे दिन भी नहीं लौटा । और इस तरह वह कई दिन तक उसी खेत में रुका रहा ।

जिन दिनों तीतर बाहर था, उस समय कहीं से एक खरगोश उस पीपल के नीचे आ पहुंचा। उसके रहने का कोई ठौर-ठिकाना नहीं था । जब उसने तीतर का खाली घोंसला देखा, तो उसी में रहने लगा । कुछ दिन बाद जब तीतर लौटा तो अपने घर में एक खरगोश को रहते देखा। वह बड़ा नाराज हुआ । उसने खरगोश से पूछा, “तुम यहां क्या कर रहे हो ? यह तो मेरा घर है।

खरगोश ने कहा, “तुम्हारा जब था तब था । अब तो यह मेरा घर है। मैं यहां एक दो दिन से नहीं कई दिन से रह रहा हूं ।”

तीतर ने कहा, “लेकिन तुम यहां कैसे रह सकते हो ? यह घोंसला मैंने अपने लिए खुद बनाया है। मैं हमेशा से इसी घर में रहा हूँ। अगर विश्वास न हो तो किसी भी पड़ोसी से पुछ लो।”

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खरगोश ने कहा, “मैं क्यों पूछू । मैं जब यहां आया था, तब यह बिलकुल खाली पड़ा था। तभी से मैं इसमें रहने लगा । जिस घर में जो रहता है वह उसी का हो जाता है। अब तो यह घर मेरा है।”

तीतर बिगड़कर बोला, “यह सब झूठ है। मैं कुछ दिनों के लिए बाहर चला गया था अब मैं वापस आ गया हूं। मेरा घोंसला अभी खाली करो और यहां से निकल जाओ ।”

खरगोश ने कहा, “यह तो नहीं हो सकता । यह मेरा मकान है और मैं इसी में रहूंगा।”

इस तरह तीतर और खरगोश लड़ने लगे। उनकी तू-तु मैं-मैं सुनकर अन्य कई पशु-पक्षी जमा हो गये । उन्होंने तीतर की बात सुनी और खरगोश की भी । मगर कोई भी यह तय नहीं कर सका कि घर किसका होना चाहिए । तब उन्होंने सुझाया कि यह मामला कानून तय होना चाहिए । इस पर तीतर और खरगोश ने अपना मामला किसी न्यायाधीश के सामने रखने का निश्चय किया ।

मगर ऐसे झगड़े तय करने के लिए कोई योग्य न्यायाधीश की जरूरत थी, जो आसानी से मिलना कठिन था। इस खोज में वे दोनों घंटों इधर-उधर भटकते रहे । अन्त में वे गंगा तट पर पहुंचे । नदी किनारे कुछ दूरी पर एक बिलौटा दिखाई दिया । उस बिलौटे को देखते ही वे दोनों डर गये। उन्हें जान का खतरा था । बिलौटा बड़ा ही धूर्त था । खरगोश और तीतर को इस ओर आते देख उसने चट आंखें मूंद लीं। हाथ में माला ले ली और पिछले पैरों पर खड़े होकर राम नाम का जाप शुरू कर दिया।

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तीतर और खरगोश ने बिलौटे का पूजा-पाठ देखा तो चक्कर में पड़ गये । ऐसा अच्छा बिलौटा उन्होंने पहली बार ही देखा था । उन्होंने मन ही मन सोचा यह कितना अच्छा है जो भगवान का नाम जप रहा है।

खरगोश ने कहा, “मेरी समझ में इसी बलौटे को पंच बनाना चाहिए।”

तीतर ने कहा, “मैं भी यही सोच रहा हूं । लेकिन हमें जरा संभलकर रहना होगा । यह हमारा जन्म का दुश्मन भी तो है।”

बिलौटे का पूजा-पाठ खत्म होने तक दोनों चुपचाप खड़े रहे । पूजा खत्म कर विलौटे ने आंखें खोली और उन दोनों की ओर देखा ।

तीतर ने बिलौटे से कहा, “श्रीमान् जी, मेरे और इस खरगोश के बीच एक छोटा-सा झगड़ा उठ खड़ा हुआ है। मगर मामला कानूनी है। आप कृपाकर इस झगड़े का निपटारा कर दीजिये। हम में से जो भी गलती पर होगा उसे आप सजा दे सकते हैं।”

बिलौटे ने कहा, “राम-राम ! कैसी बातें करते हो भाई ? भगवान का नाम लो । ऐसी बातें न बोलो । मैं तो दूसरों का दुःख देख भी नहीं सकता हूं और तुम कहते हो ‘हम में से एक को सजा दे देना ।’ हरे कृष्ण, हरे राम। जो दूसरों को दुख देता है वह भगवान के कोप का भाजन बनता है। जाने दो इन बातों को । अपने झगड़े का किस्सा कह डालो । मैं बता दूँगा कि गलती किसकी है ।”

तीतर ने कहा, “किस्सा यों है कि मैं कुछ दिन बाहर रहने के बाद जब घर लौटा तो देखता क्या हूं कि इस खरगोश ने मेरे घोंसले पर कब्जा कर लिया है ।”

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खरगोश ने चिल्लाकर कहा, “तुम्हारा घर कैसा ? वह घर तो मेरा है ।”

बिलौटे ने नरमी से कहा, “शान्ति, शान्ति ! जरा मुझे पूरा किस्सा तो सुन लेने दो ।”

पहले तो तीतर ने अपनी बात कही। फिर खरगोश ने अपनी ।

दोनों की बात सूनकर बिलौटा कुछ देर मौन रहा फिर कहने लगा, “क्या बताऊं भई, मैं अब बूढ़ा हो गया हूं। मुझे न तो ठीक दिखाई देता है और न सुनाई देता है। मैं तुम्हारा मामला पूरी तरह से समझ ही न सका । तुम दोनों जरा नज़दीक आकर बात करो तो अच्छी तरह से समझ आये।”

अब तक खरगोश और तीतर दोनों ही बिलौटे का डर भूल गये थे । उन्होंने बिलोटे पर पूरा-पूरा विश्वास हो गया था। वे दोनों नजदीक खिसक आये ।

तभी बिलौटे ने उन पर तेजी से झपट्टा मारा और एक ही झपट्टे में दोनों का काम तमाम कर दिया। बिलौटा चटपट खरगोश और तीतर को चट कर गया।

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