...

कालिदास का जीवन परिचय | कालिदास की रचना | कालिदास कौन है | kalidas ki rachnaye | kalidas ka jivan parichay

कालिदास

 – Kalidas

आपने संस्कृत के महाकवि
कालिदास का नाम
तो अवश्य सुना होगा | उनके
लिखे हुए नाटक “अभिज्ञान शाकुंतल” “मालविकाग्निमित्र” और “विक्रमोर्वशी” न केवल
हमारे देश में, बल्कि संसार में प्रसिद्द है | “अभिज्ञान शाकुंतल” के बारे में यह
युक्ति प्रसिद्द है की काव्यो में नाटक रम्य है और नाटको में शकुन्तला नाटक |

कालिदास ने ‘मेघदूत’,
‘कुमारसंभव’ और ‘रघुवंश’ नाम के काव्य ग्रन्थ भी लिखे | कुछ लोग यह मानते है की
“ॠतु संहार” नाम का काव्य ग्रन्थ भी कालिदास ने ही लिखा | कालिदास का अद्वितीय
काव्य प्रतिभा के कारण ही उन्हें “सकल कवि शिरोमणी” और “कविकुल गुरु” की उपाधि से
विभूषित किया गया है |

कालिदास की कविता की सबसे
पहली विशेषता यह है की उन्होंने उस समय तक प्रचलित सभी शैलियों में सफलतापूर्वक
कविता लिखी | उन्होंने “अभिज्ञान शाकुंतल” जैसे नाटक भी लिखे, “रघुवंश” और
“कुमारसंभव” जैसे महाकाव्य भी लिखे और “मेघदूत” जैसे खंड काव्य भी लिखे |

कालिदास की दूसरी विशेषता
उनकी सहज, सुन्दर और सरल भाषा है | संस्कृत में आम तौर पर कठिन समास वाले शब्द आने
से भाषा की मधुरता नष्ट हो जाती है | कालिदास ने ऐसी शब्दावली से अपनी भाषा को
बचाया | उन्होंने सूक्ष्म विषय या भाव को भी सरल और रोचक भाषा में लिखा |

कालिदास की तीसरी विशेषता
यह है की उन्होंने प्रायः सभी रसो का सफलतापूर्वक वर्णन किया है | श्रृंगार रस का
वर्णन करने में तो वो माहिर है ही, पर उनकी कविता में करून और वीर रस का भी अच्छा
वर्णन है |

कालिदास की रचनाओं से घटना
और वस्तु का वर्णन भी बहुत उच्च कोटी का हुआ है उनके वर्णन को देखकर ऐसा लगता है जैसे
किसी घटना का एकदम सच्चा और सही चित्र सामने आ गया हो |

भारत के भूगोल, पशु-पक्षी,
वृक्ष-वनस्पति, फूल-फल आदि का बड़ा सूक्ष्म और सही वर्णन कालिदास की कविता में
मिलता है | अपने समय के शासन और सामाजिक व्यवस्था का भी कालिदास ने विस्तारपूर्वक
वर्णन किया है | ललित कलाओं में भी
कवि कालिदास पारंगत मालूम होते
है | कालिदास ने संगीत, नृत्य, चित्रकला आदि की चर्चा जहा कही भी आई है, उसका
सफलतापूर्वक वर्णन प्रस्तुत किया है | कालिदास धर्म, दर्शन और
आध्यात्मिक विचारधारा से भी पूर्णतया परिचित थे |

कविकुलगुरु कालिदास के जीवन
के विषय में अधिक जानकारी नहीं मिलती | कुछ लोगो के मत से वह राजा भोज के दरबार
में नवरत्नों में से एक रत्न थे | कुछ
ज्ञानी लोग उन्हें चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के समय में (४-५ ई) उनके दरबाद
के नवरत्नों में मानते है | कुछ लोग उनका जन्म स्थान मध्यप्रदेश में रामटेक नामक
स्थान को मानते है, कुछ लोग उज्जैन या अवन्ती को और कुछ लोग कश्मीर को उनका जन्म
स्थान मानते है | कुछ लोग उन्हें बंगाल का था कुछ दक्षिण का बताते है | पर वह भारत
के ही थे |

कालिदास के बारे में कई
कथाए भी प्रचलित है पर यह कथाए सच हो ऐसा जरूरी नहीं है |

कहा जाता है की कालिदास का
जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था | उन्हें कोई भी शिक्षा-दीक्षा नहीं मिल पाई थी
| एक बार वह एक जंगल में एक पेड़ पर चढ़े हुए उसी डाल को काट रहे थे | उसी समय वहा
से कुछ पंडित गुजरे | ये वो पंडित थे जो पास के नगर में विद्दोत्तमा नामक एक
विदुषी राजकुमारी से शास्त्रार्थ में हार कर लौटे थे | ईष्र्यावश उन्होंने सोचा की
इस मूर्ख लकड़हारे को ले जाकर उस कुमारी को नीचा दिखाया जाए | बस, उन्होंने कालिदास
को नीचे उतरने को कहा फिर उन्हें समझाया की जैसा वे कहे, वैसा करने पर वे उसे
मालामाल कर देंगे | कालिदास उन पंडितो की बात मान गए | पंडितो ने कहा – तुम नगर
में पहुचकर अपना मुह बंद रखना | सब बांते इशारों से करना |

नगर में पहुंचकर पंडितो ने
विद्दोत्तमा से, जिससे वे शास्त्रार्थ में हार चुके थे, कहा – यह बड़े विद्द्वान
पुरूष है | पर इन्होने मौन धारण कर रखा है | इसलिए यह इशारों से आपके सवालों का
जवाब देंगे |

विद्दोत्तमा ने यह बात मान
ली और एक उंगली ऊपर उठाई, जिसका अर्थ यह था की ईश्वर एक है |  लेकिन कालिदास में समझा की वह उंगली उठाकर उनका
आँख फोड़ना चाहती है | बस, फिर क्या था ? तुरंत कालिदास ने दो उंगली दिखाई, जिसका
अर्थ था की वह दोनों आँख फोड़ देगा | लेकिन पंडितो ने यह अर्थ किया की ईश्वर एक
होते हुए भी उसके निर्गुण और सगुण दो रूप है | तब विद्दोत्तमा ने पांच उंगलीया
दिखाई | उसका मतलब यह था की संसार में पाच तत्व है | पर कालिदास ने समझा की उन्हें
तमाचा मरने को पांच उंगलिया उठाई गयी है | अत: उन्होंने घुसा
तान कर दिखाया | पंडितो में उसका अर्थ यह किया की संसार में तो
पांच तत्व है, पर उनके मिलने से ही संसार बना है | इस प्रकार विद्दोत्तमा को शर्त
के अनुसार कालिदास से विवाह करना पडा क्योकी अगर वह शास्त्रार्थ में जिससे
हारेगी उससे विवाह कर लेगी | रात हुई कालिदास और विद्दोत्तमा
ने मकान के बाहर एक ऊट को बोलते हुए सूना | विद्दोत्तमा ने पुछा,
यह किस पशु की आवाज है ? कालिदास में उत्तर में कहा, “उट्र”
अर्थात ऊंट | ऊंट के लिए सही संस्कृत शब्द “उष्ट्र” होता है | कालिदास के अज्ञान
को देखकर विद्दोत्तमा को पंडितो का षड्यंत्र समझ में आ गया | उसने कालिदास को यह
कह कर घर से निकाल दिया की जब तक आप मुझसे अधिक विद्धवान बनकर न लौटेंगे, तब तक
आपको मेरे घर में रहने का कोई हक़ नहीं होगा |

यह कहा जाता है की इस अपमान
से पीड़ित होकर कालिदास ने काली के मंदिर में कठोर तपस्या की | उनकी तपस्या से खुश
होकर काली ने उन्हें विद्धया प्रदान की | तभी से उन्होंने अपना नाम कालिदास रख
लिया | विद्धया का वरदान पाकर कालिदास वापस लौटे और उनका खुब स्वागत हुआ| इस कथा का
तात्पर्य यह हो सकता है की कालिदास बहुत मेधावी थे, परन्तु अब तक पढने लिखने का न
तो अवसर मिला था और न ही प्रेरणा | अब प्रेरणा मिल जाने से अवसर भी मिल गया और वह
बहुत जल्दी पढ़ लिख लिए |

कालिदास से नाटको और काव्य
ग्रंथो का अनुवाद विश्व की अनेक भाषाओं में हो चुका है | जर्मनी के प्रसिद्द
महाकवि
गेटे ने कालिदास की प्रसंशा भी की थी |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Seraphinite AcceleratorOptimized by Seraphinite Accelerator
Turns on site high speed to be attractive for people and search engines.