गुग्लिल्मो मार्कोनी | guglielmo marconi in hindi

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गुग्लिल्मो मार्कोनी | guglielmo marconi in hindi

आज हम अपने रेडियो द्वारा विश्व के किसी भी हिस्से के समाचार पल भर में प्राप्त कर लेते हैं । दूरस्थ स्थानों से रेडियो सम्पर्क स्थापित करने का आविष्कार विश्व प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री गुग्लिल्मो मार्कोनी ने अनेक प्रयोगों द्वारा स्थापित किया था ।

वास्तव में गुग्लिल्मो मार्कोनी को बेतार के तार का जन्मदाता कहा जाता है । इसी आविष्कार के लिए इन्हें सन १९०९ का भौतिकी नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था ।

इटली में २५ अप्रैल १८७४ को जन्मा यह वैज्ञानिक बचपन से ही विज्ञान के प्रयोगों में लगा रहता था । इनका मकान बहुत बड़ा था । वे मकान के ऊपर वाले कमरे में अपने प्रयोग करते रहते थे । इनके पिता इनके कार्यकलापों से खुश नहीं थे लेकिन इनकी मां का सहयोग सदा ही रहता था । गुग्लिल्मो मार्कोनी अपने कार्यों में इतने व्यस्त रहते थे कि वे खाना खाने भी कमरे से नीचे नहीं आते थे । इनकी मां इन्हें खाना इनकी प्रयोगशाला में ही देकर आती थीं ।

गुग्लिल्मो मार्कोनी की उम्र जब लगभग २० वर्ष की थी तब उन्हें हीनरिख हर्ट्ज द्वारा खोजी गई रेडियो तरंगों के विषय में जानकारी प्राप्त हुई । उनका विचार था कि इन तरंगों को संदेश ले जाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है । उस समय संदेशों को तार की सहायता से मोर्स कोड (Morse Code) प्रयोग में लाकर भेजा जाता था । गुग्लिल्मो मार्कोनी ने इसी दिशा में काम आरम्भ किया ।

दिसम्बर, १८९४ में एक रात की बात है कि गुग्लिल्मो मार्कोनी अपने कमरे से नीचे आए और अपनी सोई हुई मां सिनोरा मारकोनी को जगाया । उन्होंने अपनी मां से प्रयोगशाला वाले कमरे में चलने के लिए आग्रह किया । वे अपनी मां को कुछ महत्त्वपूर्ण वस्तु दिखाना चाहते थे । सिनोरा मारकोनी चूंकि नींद में थी इसलिए पहले तो कुछ बड़बड़ाई किन्तु अपने पुत्र के साथ ऊपर कमरे में चली गई । उस कमरे में पहुंच कर गुग्लिल्मो मार्कोनी ने अपनी मां को एक घंटी दिखाई जो कुछ उपकरणों के बीच लगी हुई थी । वे स्वयं कमरे के दूसरे कोने में गए और वहां जाकर उन्होंने एक मोर्स कुंजी को दबाया । चिंगारियों की चटचट हुई और तीस फट पर रखी हुई घंटी बज उठी । बीच में बिना किसी तार के इतनी दूरी पर रखी घंटी का रेडियो तरंगों से बजना एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी । नींद में ऊंघती हुई उनकी मां ने इस प्रयोग के लिए उत्साह तो दिखाया लेकिन वह यह नहीं समझ सकी कि बिजली की इस घंटी को बनाना क्या इतनी बड़ी चीज थी कि इसके लिए उनकी रात की नींद खराब की जाए ।

यह बात उस महिला की समझ में तभी आई जब गुग्लिल्मो मार्कोनी ने बेतार द्वारा अपने संदेशों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा । जब आदमी को किसी काम में सफलता मिलती है तो उसका हौसला बढ़ जाता है । यही बात गुग्लिल्मो मार्कोनी के साथ हुई । उन्होंने अपने छोटे भाई की सहायता से अपने संकेतों को भेजने और प्राप्त करने की दूरी अपनी कोठी के बाग के आर पार तक कर ली । एक दिन की बात है कि गुग्लिल्मो मार्कोनी ने अपने बनाए हुए ट्रांसमीटर को पहाड़ी के एक ओर रखा और रिसीवर को दूसरी ओर । रिसीवर के पास संदेश ग्रहण करने के लिए उनका भाई खड़ा था । जब भाई को संदेश प्राप्त होने लगे तो वह खुशी के मारे पहाड़ी पर चढ़कर नाचने लगा । उसकी इस खुशी को देखकर गुग्लिल्मो मार्कोनी को यह विश्वास हो गया कि उसका यंत्र काम कर रहा है ।

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अब क्या था गुग्लिल्मो मार्कोनी जहाज पर सवार होकर इंग्लैण्ड के लिए रवाना हो गए। वहां सन् १८९६-९७ के बीच उन्होंने अपने द्वारा निर्मित उपकरण से बेतार के तार से सम्बन्धित कई सफल प्रदर्शन किए । लन्दन के प्रधान डाकघर के मुख्य इंजीनियर सर विलियम प्रींस ने उनके प्रयोगों में काफी दिलचस्पी दिखाई । सन् १८९७ में वे बारह मील की दूरी तक रेडियो संदेश भेजने में सफल हुए । इससे सारे यूरोप में गुग्लिल्मो मार्कोनी के नाम की धूम मच गई । बिना तार के संदेश भेजने का मानव का चिरसंचित स्वप्न पूरा हो गया । इसी साल गुग्लिल्मो मार्कोनी ने अपनी कंपनी आरम्भ की।

सन् १८९८ की बात है कि इंग्लैण्ड का युवराज एक द्वीप के पास अपने छोटे से जहाज में बीमार पड़ गया । उन दिनों रानी विक्टोरिया भी उसी द्वीप में रह रही थी । गुग्लिल्मो मार्कोनी ने रानी को अपने पुत्र के स्वास्थ्य के विषय में जानकारी देने के लिए बेतार के तार द्वारा दोनों स्थानों को जोड़ दिया । १६ दिन की अवधि में दोनों स्थानों से १५० र भेजे गए। सन् १८९९ में वे इंग्लिश चैनल के आर-पार ३१ मील की दूरी तक रेडियो संदेश भेजने में सफल हुए । सन् १८९९ में ही गुग्लिल्मो मार्कोनी ने अमरीका के दो जलयानों पर रेडियो उपकरण लगाए, जो नौका दौड़ के विषय में समाचार पत्रों को सूचना दे सकते थे ।

१२ दिसम्बर, १९०१ को गुग्लिल्मो मार्कोनी ने एक महान धमाका किया। पहली बार अंग्रेजी के एस (S) अक्षर को मोर्स कोड द्वारा अटलांटिक सागर के आर-पार भेजने में सफलता प्राप्त की । इससे विश्व भर में उनकी प्रसिद्धि का डंका बज गया ।

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३३ वर्ष की छोटी सी आयु में सन् १९०९ में गुग्लिल्मो मार्कोनी को भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया लेकिन इस सफलता के कारण उनसे बहुत से लोग ईर्ष्या करने लगे । उन पर यह आरोप लगाया गया कि वह सारे संसार में अपने ही यंत्र बेचना चाहते हैं लेकिन यह आरोप असत्य था ।

सन् १९१५ में गुग्लिल्मो मार्कोनी ने रेडियो से सम्बन्धित परीक्षण आरम्भ किए। सन् १९२० के आरम्भ में उन्होंने अपनी नौका पर अपने मित्रों को एक भोज पर निमंत्रित किया । नौका पर संगीत का कार्यक्रम भी आयोजित किया गया था । वह कार्यक्रम लन्दन रेडियो से प्रसारित किया जा रहा था। गुग्लिल्मो मार्कोनी अपने अनुसंधानों में लगे रहे और अन्ततः उन्हीं के द्वारा बनाए गए यंत्रों से इंग्लैण्ड में १४ फरवरी, १९२२ को रेडियो प्रसारण सेवा आरम्भ हुई ।

सन् १९३० में गुग्लिल्मो मार्कोनीको रायल इटैलियन अकादमी का प्रेसीडेंट चुना गया । गुग्लिल्मो मार्कोनी लगभग ६३ वर्ष की उम्र तक जीवित रहे और उन्होंने उन सभी महान परिवर्तन को अपनी आंखों से देखा, जिन्हें लाने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा था ।

२० जुलाई, १९३७ में जब उनका देहान्त हुआ तो टेलीविजन के विकास का युग आरम्भ हो चुका था । आधुनिक युग को रेडियो संचार का आधार प्रदान करने वाले इस वैज्ञानिक को हम कभी भी नहीं भुला सकते ।

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