गुरु हरकृष्ण साहिब जी | गुरु हरकृष्ण साहिब जी की कहानी | Guru Harkrishan Sahib Ji Story

गुरु हरकृष्ण साहिब जी | गुरु हरकृष्ण साहिब जी की कहानी | Guru Harkrishan Sahib Ji Story

‘पवित्र हर कृष्ण का चिन्तन करो, इससे सभी दुःख दूर हो जाते हैं।”

गुरु हर राय जी के दो पुत्र थे । रामराय तथा हर कृष्ण । उन्होंने अपने छोटे पुत्र हर कृष्ण, जिनका जन्म ७ जुलाई १६५६ को हुआ था, को गुरु-गद्दी सौंपी । जब छोटे भाई हरकृष्ण को करतारपुर में गुरु-गद्दी सौंपी गई, तो बड़ा भाई रामराय उस समय दिल्ली में सम्राट् के दरबार में था । अतः रामराय ने बहुत निन्दा करके सम्राट के पास अपने पिता के निर्णय के विरुद्ध शिकायत की, तथा यह कहा कि उसका छोटा भाई अपने पूर्वजों के समस्त कार्य को नष्ट कर देगा ।

सम्राट् ने अम्बेर (जयपुर) के राजा रामसिंह के द्वारा शिशु गुरु को दिल्ली बुला भेजा । राजा ने अपने उच्चाधिकारी भेजे ताकि गुरु जी को बड़ी धूमधाम के साथ शाही राजधानी लाया जा सके । दिल्ली जाते हुए गुरु जी अम्बाला के निकट पंजोखरा गाँव में रुके । दिल्ली पहुँचने पर राजा जयसिंह उनके स्वागत के लिए आया । बड़ी संख्या में सिख उनके दर्शन करने तथा उनसे आध्यात्मिक प्रेरणा प्राप्त करने के लिए आए ।

उस समय दिल्ली में चेचक फैली हुई थी । गुरु जी ने रोगियों के स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना की और उनमें से अनेक बच गए । कुछ समय के पश्चात् गुरु जी स्वयं चेचक से पीड़ित हो गए । उनकी आंखें लाल हो गईं तथा श्वास की गति तीव्र हो गई ।

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बीमारी के समय उनके पास उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति को ग्रन्थ साहिब के पदों का जाप करने का आदेश दिया गया । गुरु जी कई दिन बीमार रहे और अन्ततः उनको स्थिति गम्भीर हो गई और उन्होंने संवत् १७२१ (तदनुसार ईस्वी १६६४) के चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को शनिवार के दिन अपना शरीर त्याग दिया । उन्होंने शोक मनाने का निषेध कर दिया । वे प्रसन्नता से इस संसार से विदा हुए ।

यमुना के पश्चिमी तट पर दक्षिण दिल्ली में तिलोखारी नामक स्थान पर उनका दाह-संस्कार किया गया । वहां गुरुद्वारा बाला साहिब बना हुआ है । दिल्ली में अपने निवास के समय गुरु जी जहां ठहरे वहां भी बाद में एक गुरुद्वारा बनाया गया जो गुरुद्वारा बंगला साहिब के नाम से प्रसिद्ध है ।

उनके काल में मसंदों की प्रणाली काफी ढीली पड़ गई । गुरु हरकृष्ण ने अपनी मृत्यु-शय्या पर पड़े हुए गद्दी की मुहर अपने दादा के छोटे भाई तेग बहादुर के पास भिजवा दी, वह व्यास के तट पर गोइन्दवाल के निकट बकाला गांव में रहते थे ।

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