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गोपबंधु दास | Gopabandhu Das

गोपबंधु दास | Gopabandhu Das

आज से लगभग सौ वर्ष पूर्व उड़ीसा देश का एक अत्यंत पिछड़ा हुआ इलाका था। प्रायः हर साल बाढ़, दुर्भिक्ष और तूफान के कारण हजारों लोग काल के ग्रास बन जाते थे। शिक्षा का प्रचार नहीं के बराबर था। गांवों में तो क्या, बड़े शहरों में भी स्कूल-कालेज न थे। लोगों के विचार भी बड़े दकियानूसी थे। इन सबके कारण वहां भारी गरीबी छाई हुई थी। बहुत से उड़िया लोग कलकत्ता जाकर मजदूरी करते थे। अकाल पड़ने पर वे भीख मांगने को मजबूर हो जाते।

ऐसे समय में गोपबंधु दास ने उड़ीसा को सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ाया। वास्तव में वह आधुनिक उड़ीसा के पिता थे। इसी कारण उन्हें “उत्कल मणि” कहा जाता है।

अनुक्रम (Index)[छुपाएँ]

गोपबंधु दास की जीवनी

गोपबंधु दास का जन्म

गोपबंधु दास की शिक्षा

कर्तव्य बोधिनी समिति का संगठन

गोपबंधु नाइट स्कूल की स्थापना

गोपबंधु दास का पारिवारिक विवरण

गोपबंधु दास का सामाजिक सेवा

यूनिवर्सल एजुकेशन लीग की स्थापना

गोपबंधु दास का राजनीतिक जीवन

समाज पत्र का सम्पादन

बन्दीर आत्मकथा कविता की रचना

गोपबंधु दास की मृत्यु

गोपबंधु दास का जन्म


गोपबंधु का जन्म उत्कल (उड़ीसा) में पुरी के सुआन्दो ग्राम में ९ अक्तूबर १८७७ को एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था । उनके पिता मुख्तियार थे। उनकी मां अपने दुबले-पतले कमजोर शिशु के जन्म के कुछ दिनों बाद ही स्वर्ग सिधार गईं। बाद में भी गोपबंधु का शरीर कमजोर और रोगी ही रहा। पर इस कमजोर शरीर के दिल में फौलाद की सी ताकत और क्षमता थी। जिसने उड़ीसा की कायापलट कर दी।

गोपबंधु दास की शिक्षा


गांव में प्रारंभिक शिक्षा पाने के बाद गोपबंधु ने १८९९ में पुरी जिला स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की और फिर तेईस वर्ष की अवस्था में, रेवनशा कालेज कटक में प्रवेश किया।

कालेज में दाखिल हुए उन्हें कुछ ही दिन हुए थे, कि उनके पिता का देहांत हो गया। पर परिवार की जिम्मेदारी उनके बड़े सौतेले भाई ने संभाली और गोपबंधु की शिक्षा में कोई बाधा नहीं पड़ी।

गोपबंधु को विद्यार्थी जीवन से ही गीता आदि धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन का शौक था । साथ ही वह सभा-सोसाइटियों में भी भाग लिया करते थे यही उनके सार्वजनिक जीवन की शुरूआत थी।

कर्तव्य बोधिनी समिति का संगठन


कटक पहुंचने के कुछ समय बाद ही गोपबंधु ने “कर्तव्य बोधिनी समिति” का संगठन किया। इस समिति की बैठकों में सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक समस्याओं पर नियमित रूप से वाद-विवाद होता था, इसी दौरान गोपबंधु और उनके साथियों ने बाढ़-पीड़ितों की सहायता के लिए एक स्वयं-सेवक दल का भी गठन किया।

देश की समस्याओं की तरफ अधिक श्रम और समय लगाने के कारण गोपबंधु १९०३ की बी.ए. परीक्षा में पास न हुए। बी. ए. की असफलता और अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार उन्हें साथ ही मिले।

सन् १९०४ में बी.ए. पास करने के बाद वह कानून और एम.ए. की कक्षाओं में भर्ती होने के लिए कलकत्ता चले गए। उस समय की “बी.ए. हुए, नौकर हुए, पेंशन मिली और मर गए” की परिपाटी के विरुद्ध, गोपबंधु शिक्षा-प्राप्ति को नौकरी पाने का पासपोर्ट नहीं मानते थे, बल्कि समाज सेवा का एक साधन मानते थे | कलकत्ते में भी उन्होंने अपने आपको केवल किताबी पढ़ाई तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने देखा कि कलकत्ता आए हुए अधिकतर उड़िया लोग खाना बनाने और कुलीगीरी जैसे मामूली कामों में लगे हुए थे।

गोपबंधु नाइट स्कूल की स्थापना


गोपबंधु ने उनको ऊंचा उठाने का बीड़ा उठाया इस उद्देश्य से उन्होंने अनेक सभा-समितियों का संगठन किया | रात्रिकालीन पाठशालाएं भी चलाई। “गोपबंधु नाइट स्कूल” नामक विद्यालय आज भी कलकता में है जो कि कलकत्तावासी उड़ियाजनों के सामूहिक जीवन का आज भी केंद्र है।

कानून की पढ़ाई के दौरान ही गोपबंधु प्रसिद्ध क्रांतिकारियों, जैसे खुदीराम बोस तथा शशिभूषण के संपर्क में भी आए और उनसे देशभक्ति और राष्ट्रीय स्वतंत्रता का पाठ भी सीखा। गोपबंधु इस निश्चय पर पहुंचे कि लोगों में देशभक्ति की लौ जगाने के लिए समाज सेवा ही एकमात्र उपाय है।

गोपबंधु दास का पारिवारिक विवरण


गोपबंधु ने १९०६ में एल.एल.बी. की उपाधि प्राप्त की पर कानून की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के समाचार के साथ ही उन्हें अपनी पत्नी के निधन का संदेश भी प्राप्त हुआ | पत्नी की मृत्यु के समय गोपबंधु केवल २८ वर्ष के थे, अपने बारह वर्ष के गृहस्थ जीवन में उनकी दो पुत्रियां और तीन पुत्र पैदा हुए। तीनों बेटे तो उनकी पत्नी के मरने से पहले ही मर गए। शेष केवल दो पुत्रियां ही रह गई| उनके माता-पिता, पत्नी, और सभी बेटों की मृत्यु ने उन्हें जीवन पथ में अकेला बना दिया था। दोनों पुत्रियों को अपने बड़े भाई की देख-रेख में छोड़कर उन्होंने अपना सारा जीवन समाज की सेवा में लगा दिया।

गोपबंधु दास का सामाजिक सेवा


गोपबंधु १९०६ में कटक चले गए और वहां वकालत शुरू कर दी। उसी वर्ष अगस्त के महीने में अनेक स्थानों में भारी बाढ़ आ गई। ब्राह्मणी, वैतरणी आदि नदियों ने भारी तबाही मचा दी। बाढ़ पीढ़ितों को तत्काल तो राहत पहुंचा दी जाती पर ये उपाय हर साल आने वाली तबाहियों के लिए स्थायी उपचार नहीं थे। इसलिए गोपबंधु ने “केद्रीय उत्कल एसोसिएशन” नाम की संस्था बनाई जिसके अधिकतर सदस्य विद्यार्थी थे। इस संस्था में युवकों को शारीरिक, नैतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं साहित्यिक शिक्षा दी जाती थी | बाढ़ रोग, अकाल आदि विपदाओं के समय यह संस्था राहत कार्यों में जुट जाती थी |

उड़ीसा के विभिन्न भागों में हाई-स्कूलों में संस्था की सक्रिय शाखाएं स्थापित की गई। यह संस्था अनेक वर्षों तक विद्यार्थियों की हलचलों व कार्यकलापों का केंद्र बनी रही। इस तरह गोपबंधु उड़िया युवकों के हृदय-सम्राट बन गए।

सन् १९०९ में गोपबंधु मयूरभंज रियासत के सरकारी वकील बनकर रियासत की राजधानी बारीपाड़ चले गए थे, वह वकालत से खूब पैसा कमा सकते थे, परंतु वह वादी-प्रतिवादियों को समझा-बुझाकर उनमें मेल करा देते और मुकदमा लंबा न चलने देते। अदालतों से भ्रष्टाचार दूर करने की भी उन्होंने कोशिश की। इसी समय अपनी सामाजिक सेवाओं के कारण वह म्युनिसिपल कौंसिलर मनोनीत कर दिए गए।

शिक्षा के क्षेत्र में भी गोपबंधु दास का योगदान उल्लेखनीय है। गोपबंधु ने घोषणा की, “हर एक व्यक्ति को शिक्षा-प्राप्ति के समान अधिकार हैं, ठीक वैसे ही जैसे कि सूर्य और चंद्रमा के प्रकाश का लाभ उठाने का अधिकार सभी को समान रूप से है। केवल भवन और मेज-कुर्सियों को जमा कर देने से ही स्कूल नहीं बन जाता। उसके लिए सुरक्षित, सच्चे और लगन के पक्के, आदर्श अध्यापक भी चाहिए। आधुनिक शिक्षा पद्धति देश के नवयुवकों को जीवन संघर्ष के लिए तैयार करने में असफल रही है। उन्हें उचित कला-कौशल और जीविकोपार्जन योग्य बना सकने वाली शिक्षा की बड़ी आवश्यकता है उन्हें उद्योग और कृषि के साथ-साथ धार्मिक और नैतिक शिक्षा भी दी जानी जरूरी है।“

यूनिवर्सल एजुकेशन लीग की स्थापना


उन्होंने यूनिवर्सल एजुकेशन लीग नामक संस्था का संगठन किया और सखी गोपाल में सत्यवादी विद्यालय की स्थापना की। रवि बाबू के “शांति निकेतन” के समान ही सत्यवादी विद्यालय भी समय पाकर एक महान और प्रसिद्ध शिक्षण केंद्र बन गया। कई एम.ए. पास प्रतिभाशाली व्यक्ति केवल ३० रु. मासिक लेकर यहां पढ़ाया करते थे। दुर्भाग्यवश राष्ट्रीय आंदोलन की बाढ़ इस संस्था को भी अपने साथ बहा ले गई। परंतु इसका नाम उड़ीसा में अमर हो गया है।

सन् १९१७ में गोपबंधु बिहार-उड़ीसा लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य चुने गए। अब उन्होंने वकालत का काम छोड़ दिया। कौंसिल में उनके तर्कपूर्ण भाषणों का तथा उनकी लगन और सच्चाई का काफी प्रभाव पड़ता था। इसीलिए वह शिक्षा और समाज सेवा के कार्य में भी काफी सफल रहे। सरकार व अधिकारियों की सहायता और सहयोग भी उन्हें मिला।

गोपबंधु दास का राजनीतिक जीवन


गोपबंधु १९२१ में भारतीय कांग्रेस के असहयोग आंदोलन में कूद पड़े और तब से वह पक्के कांग्रेसी हो गए। कांग्रेस ने, लाला लाजपत राय के सभापतित्व में १९२० के कलकत्ता अधिवेशन में सरकार से पूर्ण असहयोग का प्रस्ताव पास कर दिया था। अतः उन्होंने भी उड़ीसा लेजिस्लेटिव कौसिल से त्यागपत्र दे दिया और उड़ीसा में पूरी तरह कांग्रेस के प्रचार में लग गए। उन्होंने उड़ीसा के हर जिले में कांग्रेस कमेटी का संगठन किया। उनके प्रचार और प्रयत्नों से हर जिले की हर तहसील थाने और कस्बे में कांग्रेस कमेटियां बन गई। गोपबंधु ने अपने सत्यवादी स्कूल को राष्ट्रीय स्कूल में बदल दिया जो बाद में स्वराज्य आंदोलन का गढ़ बन गया।

समाज पत्र का सम्पादन


गोपबंधु ने देखा कि उड़ीसा में कोई समाचारपत्र नहीं। इसलिए उन्होंने “समाज” नामक पत्र का प्रारंभ किया। वह पत्र सारे उड़ीसा में बहुत ही लोकप्रिय हो गया साप्ताहिक रूप में यह चलाया गया था | लेकिन आज यह दैनिक बन चुका है। इस प्रकार गोपबंधु उड़ीसा में पत्रकारिता के भी जनक थे।

बन्दीर आत्मकथा कविता की रचना


सत्याग्रह के सिलसिले में २६ जून १९२२ को मद्रक में धारा १४४ की अवज्ञा के कारण वह पकड़े गए और उन्हें दो वर्ष की कैद की सजा सुना दी गई। “बन्दीर आत्मकथा” नामक कविता इन्हीं कारावास के दिनों में लिखी गई ।

जेल में रहने के इन दो वर्षों में गोपबंधु द्वारा चालित बहुत से कार्य शिथिल पड़ गए थे। उनके प्रिय सत्यवादी स्कूल की मान्यता रद्द हो गई और अनेक विद्यार्थी और अध्यापक स्कूल छोड़कर चले गए और अंत में धन के अभाव में इसे १९२६ में बंद कर देना पड़ा।

सन् १९२५ की वर्षा ऋतु में, जून से अगस्त तीन माह तक पुरी जिले में भीषण बाढ़ आई। गोपबंधु बाढ़-पीड़ितों की सहायता के लिए गांवों में दौड़ते फिरे। उन्होंने महात्मा गांधी को उड़ीसा के इन पीड़ितों की सहायता के लिए लिखा । श्री सी. एफ. एंड्रूज भी इसी दौरान बाढ़-पीड़ितों की दशा का निरीक्षण करने उड़ीसा आए।

सन् १९२६ में कौंसिल के फिर चुनाव हुए और बहुमत के विचारों का आदर करते हुए, स्वयं कौंसिल-प्रवेश के विरुद्ध होने पर भी उन्हें इस चुनाव का संचालन करना पड़ा। चुनाव समाप्त भी न हो पाए थे कि अगस्त में फिर बाढ़ ने कटक, पुरी और बालेश्वर जिलों में आतंक और विपदा खड़ी कर दी। गोपबंधु उन दिनों अस्वस्थ रहने लगे थे। इस सबके बावजूद भी वह जी-जान से बाढ़-पीड़ितों की सेवा में लग गए। १९२७ में वैतरणी की बाढ़ से त्रस्त लोगों की सहायता के लिए भी स्वयंसेवकों का एक जत्था भेजा।

इसी बीच उनके बड़े भाई का स्वर्गवास हो गया जिन्होंने गोपबंधु को पुत्र समान पाला था। इस घटना से उन्हें बड़ा धक्का लगा। परंतु जन-सेवा के कार्य में वह जी-जान से लगे रहे। अप्रैल, १९२८ में वह सर्वेन्ट आफ दि पीपल्स सोसाइटी की वार्षिक बैठक में भाग लेने लाहौर गए। वहीं उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया। उन्हें टाइफायड हो गया। पलंग पर पड़े बीमारी की हालत में ही उन्हें समाचार मिला कि “समाज” पत्रिका के संपादक की हैसियत से उनके विरुद्ध मानहानि का एक मुकदमा चलाया गया है।

गोपबंधु दास की मृत्यु


गोपबंधु ने अपना सारा जीवन, स्वास्थ्य, संपत्ति और समय, जनता की सेवा में लगा दिया था, फिर भी उनके विरोधी उन पर अनेक बेबुनियाद आरोप लगाने से नहीं हिचके थे | यहां तक कि उन पर सार्वजनिक धन के गबन का आरोप लगाया गया। इस निर्दय आघात के केवल चार माह पश्चात् १७ जून १९२८ गोपबंधु का प्राणांत हो गया।

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