जमशेदजी नौशेरवानजी टाटा |
Jamsetji Nusserwanji Tata
हमारे देश में बड़े
से बड़े कारखाने दिखाई देते हैं। पर आज से सौ साल पहले हमारे देश में कारखाने नहीं
थे। जमशेदजी नौशेरवानजी टाटा भारत के उन गिने–चुने लोगों में से थे जिन्होंने यहां
कारखाने खोले।
उनका जन्म ३ मार्च १८३९ को बम्बई के नवसारी
में एक पारसी कुटुम्ब में हुआ था। उनके पुरखे पुरोहिती करते थे पर जमशेदजी के पिता
नौशेरवानजी का मन पुरोहिती करने में नहीं लगा, और
वे व्यापार करने लगे।
जमशेदजी की पढ़ाई-लिखाई का अच्छा इंतजाम किया
गया उन्नीस साल की उम्र में उन्होंने बम्बई के एलफिंस्टन कालेज की पढ़ाई समाप्त
की। फिर वह अपने पिता के साथ मिल कर व्यापार करने लगे। नौशेरवानजी चीन के साथ
अफ़ीम और कपास का व्यापार करते थे। उनकी कोठी की दो शाखाएं चीन के हांगकांग और
शंघाई नाम के शहरों में थी। वह इन दोनों शहरों में गए और वहां उन्होंने खूब अनुभव
प्राप्त किया।
उनके पिता ने जमशेदजी को लंदन भेजा कि वह भी
कोठी की एक शाखा खोलें तथा व्यापार विषयक नया अनुभव प्राप्त करें। परंतु उनके बैंक
को हालत बहुत बिगड़ गई और जमशेदजी बड़ी मुसीबत में पड़ गए। इस समय उन्होंने बड़ी
सूझ-बूझ और ईमानदारी
से काम लिया जिसका उनके बैकों
और महाजनों पर बड़ा अच्छा असर पड़ा। वह अपनी ही कोठी में ऋण दिलाने वाले अफसर
तैनात किए गए। विलायत से लौट कर उन्होंने एलेक्जेन्ड्रा
नाम की कपड़े की मिल खोली। दो साल बाद उन्होंने अच्छा मुनाफा पा कर एलेक्जेन्ड्रा मिल
को बेच दिया। दुबारा लंकाशायर जाकर सब बातों की जानकारी प्राप्त हो जाने के बाद
उन्हें इस बात का पक्का भरोसा हो गया कि हिन्दुस्तान में भी सूती कपड़े के कारखाने
खोले जा सकते हैं। उस समय हमारे देश में सूती कपड़े के केवल पन्द्रह कारखाने थे और
प्राय: सब के सब बम्बई या उसके आसपास ही थे। उनकी मशीनें पुरानी थीं और मजदूर आदि
अपने काम में चतुर न थे। जमशेदजी टाटा ने निश्चय किया कि वे एक आदर्श कारखाना खोलेंगे।
घूमने के बाद उन्हें मालूम हुआ कि मध्य
प्रांत की राजधानी नागपुर ऐसा शहर है, जहां
कारखाना खोला जा सकता है। नागपुर कपास पैदा करने वाले भाग में है। वहां कपास आसानी
से मिल सकती थी। पर नागपुर की जलवायु गरम और साल में आठ महने सुखा रहती है। सुखी
जलवायु में कपास से सूत अच्छा और लंबा नहीं कतता। पर टाटा ने इस बात का उपाय पहले
से ही सोच लिया था। उन्होंने एयर कंडीशनिंग से
मिल के अंदर की हवा नमी वाली करवा दी। एम्प्रेस मिल में उन्होंने नए-नए प्रयोग किए
और उन्हें सफलता भी
मिली। नागपुर में “एम्प्रेस
मिल”
खोलने के बाद उन्होंने बम्बई में “स्वदेशी मिलें”
और अहमदाबाद
में “एडवांस मिल” नाम
से कपड़े के कारखाने खोले। इन कारखानों की मशीनें, मजदूरी
और इंतजाम दूसरे कारखानों से अच्छा था। इसका नतीजा यह हुआ कि कारखानों की
उन्नति के साथ-साथ टाटा का धन भी बढ़ता गया।
जमशेदजी अपने देश में हर चीज के कारखाने
देखना चाहते थे ताकि हर चीज यहां तैयार हो सके। हिन्दुस्तान में कोई चीज बाहर
से आए,
यह उन्हें पसंद नहीं था। इंग्लैंड की
यात्राएं करने के बाद वह इन तीन नतीजों पर पहुंचे थे :-
(1) यदि किसी देश में लोहा और इस्पात
बनाने के कारखाने नहीं है, तो वह देश कभी भी कल-कारखानों
में तथा सामान बनाने में बड़ा नहीं हो सकता।
(2) विज्ञान और तकनीकी शिक्षा के
बगैर कोई भी देश धनवान नहीं हो सकता।
(3) बम्बई शहर हिन्दुस्तान के उद्योग
की नाड़ी है। वह तब तक नहीं बढ़ सकता जब तक बम्बई में बिजली की सहुलियत न हो, और
कल-कारखानों को सस्ती
बिजली न मिले।
टाटा ने इन तीनों बातों के लिए दौड़-धूप शुरू
की। वह हिन्दुस्तान में लोहा और इस्पात
का कारखाना खोलने के लिए जगह की तलाश करने लगे। जहां लोहा और कोयला मिले, उसी
जगह लोहा और इस्पात का कारखाना खुल सकता है। बहुत घूमने के बाद उन्हें
बिहार के जंगलों में साकची नामक एक गांव मिला। उस गांव के पास लोहे की खाने थी और
इस स्थान में झरिया की खानों से आसानी से कोयला आ सकता था। टाटा ने
साकची में कारखाना खोलने की योजना बनाई, पर उसके
पहले ही १३ मई १९०४ को
उनका स्वर्गवास हो गया|
उनके बाद उनके लड़कों ने भारतीय पूंजीपतियों
से रुपये लगाने को कहा। १९०७ में टाटा आयरन एंड स्टील कम्पनी खुली और १९१४ में इस
कम्पनी के कारखानों में इस्पात बनने लगा
प्रथम महायुद्ध के समय इस कारखाने की बड़ी तरक्की की।
छोटा-सा जंगली गांव साकची इस कारखाने के खुलने से एक बड़ा शहर हो गया ।
उसका नाम जमशेदजी के नाम पर जमशेदपुर पड़ा।
जमशेदपुर का लोहे का कारखाना इस समय भी भारत के बड़े लोहे के कारखानों में से एक
है। वहां रेल की पटरियां, स्लीपर, लोहे
की चादरें, रेल की लाइनों को जोड़ने वाले
पहिए,
रेल के पुर्जे, छुरी
आदि काम की चीजें, खेती
के काम में आने वाले औजार, आदि बड़ी-बड़ी चीजें और तार, कीलें, मिलों
के पूर्जे, आदि न जाने कितनी छोटी-मोटी
चीजें तैयार की जाती हैं। जमशेदपुर में एक टेक्नीकल विद्यालय भी है।
टाटा कम्पनी का ध्यान पानी से पैदा होने वाली
बिजली की तरफ भी गया था, जमशेदजी
की मृत्यु के सात साल बाद लोनावाला में बिजली के कारखाने की नींव पड़ी।
लोनावाला बिजली केंद्र से बम्बई, पूना आदि
शहरों में बिजली जाती है, रोशनी होती है और कारखाने चलते
हैं।
अब तो टाटा के द्वारा खोले हुए कारखाने खूब
तरक्की पर हैं, इन कारखानों से बहुत अधिक फायदा
हुआ और नए-नए कारखाने खोले गए। टाटा कम्पनी आज हमारे देश की सबसे बड़ी औद्योगिक
कम्पनी है। उसके पास लोहा, स्टील, तेल, साबुन, वनस्पति
घी आदि से लेकर रंग आदि रासायनिक पदार्थों के बनाने के भी कारखाने हैं। उसके बैंक
और बीमा कम्पनियां भी हैं।
टाटा ने केवल कारखाने बढ़ाने का ही काम नहीं
किया। कारखानों के चलाने के लिए कारीगर, इंजीनियर
आदि की शिक्षा के लिए उन्होंने टेक्निकल विद्यालयों को खोलने की भी योजना बनाई, पर
उनकी योजनाएं बाद में पूरी हुई। उनकी मृत्यु के सात साल बाद ही बंगलौर में “इंस्टीट्यूट
आफ साइंस” नाम
के विद्यालय की स्थापना हुई। इसके लिए टाटा ने बहुत रुपये
खर्च किए। यह विद्यालय केवल हिन्दुस्तान में ही नहीं बल्कि सारे एशिया में अपने, ढंग
का एक ही है। विज्ञान की ऊंची-से-ऊंची शिक्षा इस विद्यालय में दी जाती है। इस
विद्यालय में वे विद्यार्थी भर्ती हो सकते हैं जो किसी दूसरे विश्वविद्यालय से
एम०एससी० का परीक्षा
अच्छे अंकों से पास कर चुके हों और उन में विज्ञान के प्रति विशेष रुचि हो।