जॉन नेपियर जीवनी | जॉन नेपियर आविष्कार | जॉन नेपियर गणितज्ञ | John Napier Biography
खगोलविज्ञान, नौचालन, व्यापार, इन्जीनियरी और युद्ध आदि जैसे अनेक क्षेत्र हैं, जिनमें अनेक गणितीय गणनाएं (Mathematical Calculations) करनी पड़ती हैं । इन कठिन गणितीय गणनाओं को तीव्रता के साथ हल करने का तरीका प्रस्तुत किया था जॉन नैपीयर ने ।
जॉन नेपियर लघुगणक | john napier logarithms
इस तरीके द्वारा जटिल से जटिल गुणा-भागों को जल्दी और सही तरह से किया जा सकता है । नैपीयर द्वारा दी गई विधि को लघुगणक या लॉगरिथम (Logarithm) कहते हैं ।
लघुगणक या लॉगरिथम एक ऐसा तरीका है, जिसमें बड़ी से बड़ी गुणा की क्रिया को धनात्मक रूप में और भाग की क्रिया को ऋणात्मक रूप में व्यक्त कर लिया जाता है ।
घातांको (Exponents) वाली संख्याओं को घातांक से गुणा करके लघुगणक में वयक्त करते हैं । इसके पश्चात् मानक सारणी (Standard Tables) से संख्याओं के लघुगणक देख लिए जाता हैं और सारणी से प्राप्त मानों को जोड़-घटा के चिह्नों के अनुसार मान (Value) प्राप्त कर लिया जाता है । इस मान के अनुसार सारणी से प्रतिलघुगणक (Anti Logarithms) देखकर, दशमलव का चिह्न यथा स्थान लगाकर गणना का परिणाम प्राप्त कर लिया जाता है । लघुगणक और प्रतिलघुगणक की अलग-अलग सारणी (Tables) होती हैं ।
जॉन नेपियर का जन्म
लघुगणक के आविष्कारक जॉन नेपियर स्कॉटलैंड निवासी थे । इस महान गणितज्ञ का जन्म १ फरवरी १५५० में एडिनबरा (Edinburgh) के पास मरचिस्टन कैसल (Castle) में हुआ था । इसके जन्म के समय इनके पिता की आयु केवल १६ वर्ष थी ।
जॉन नेपियर की शिक्षा | john napier education
जॉन नेपियर ने १३ वर्ष की उम्र में सेंट एन्ड्रज विश्वविद्यालय में दाखिला लिया लेकिन वे वहां पर ज्यादा दिन नहीं रहे । उन्होंने विश्वविद्यालय को बिना डिग्री लिए ही छोड़ दिया ।
जॉन नेपियर के आरम्भिक जीवन के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है परन्तु ऐसा विश्वास किया जाता है कि उन्होंने विदेशों की यात्राये की क्योंकि वहां चली हुई एक प्रथा के अनुसार जमींदारों के पुत्रों को विदेशों की यात्रायें करना जरूरी था ।
सन् १५७१ में जॉन नेपियर घूमकर वापस स्कॉटलैंड आ गए और जीवनभर या तो मरचिस्टन में या गार्टनेस (Gartness) में रहे ।
जॉन नेपियर का विवाह
जॉन नेपियर सन् १५७२ में विवाह के बंधन में बंध गए । इनकी पत्नी की मृत्य सन् १५७९ में हो गई । अपनी पहली पत्नी के मरने के कुछ वर्ष बाद जॉन नेपियर ने पुनः विवाह कर लिया ।
जॉन नेपियर के कार्य
जॉन नेपियर जीवनभर चर्च के विरुद्ध प्रचार कार्यों में ही व्यस्त रहे । उन्होंने सन् १५९३ में रोम के चर्च के विरुद्ध एक पुस्तक भी लिखी, जिसमें उन्होंने लिखा कि चर्च के पादरी संसार को सन् १६६८ और १७०० के बीच में खत्म कर देंगे । इस पुस्तक के २१ प्रकाशित संस्करणों में से १० संस्करण लेखक के जीवनकाल के दौरान में ही छपे ।
इस पुस्तक के प्रकाशन के बाद नैपीयर युद्ध सम्बन्धी यंत्रों के अनुसंधानों में लग गए । इन्होंने दो प्रकार के आग लगाने वाले दर्पण बनाये । इन्होंने एक धातु का रथ भी बनाया, जिसमें बने छोटे छेदों से गोलियों की बौछार की जा सकती थी ।
नेपियर रोड
जॉन नेपियर को राजनैतिक और धार्मिक कार्यों से जो भी समय मिला, उसे उन्होंने गणित और विज्ञान पढ़ने में बिताया । इस पढ़ाई का नतीजा यह हुआ कि जॉन नेपियर का नाम गणित की दुनिया में अमर हो गया । इन्होंने एक यंत्र भी खोजा जिसे संख्याओं के गुणा-भाग और वर्गमूल (Square Root) लेने के लिए प्रयोग किया जाता था । इस यंत्र को नेपियर रोड (Napier Rod) कहते हैं ।
जॉन नेपियर आविष्कार | john napier invented
वास्तव में नैपीयर ने कई खोजें की लेकिन जो उनकी प्रमुख खोज थी लघुगणक । इस पर जॉन नेपियर ने सन् १५९४ में कार्य शुरू किया था । धीरे-धीरे इस तरीके को प्रयोग में लाकर उन्होंने बताया कि कैसे गुणा, भाग, वर्गमूल आदि की गणनाओं को तीव्रता से हल किया जा सकता है । इसी के आधार पर उन्होंने लघुगणक सारिणी भी विकसित की । उनका यह आविष्कार इतना महत्त्वपूर्ण और उपयोगी सिद्ध हुआ कि इसने इनके गणित संबंधी दूसरे कार्यों पर पर्दा सा डाल दिया । उन्होंने गोलीय ट्रिगनोमैट्री (Trignometry), नेपियर एनालोजी (Analogy) आदि पर भी काफी अनुसंधान किए ।
जॉन नेपियर की मृत्यु
जॉन नेपियर की 4 अप्रैल, १६१७ को मरचिस्टन में मृत्यु हो गई ।
जॉन नेपियर गणितज्ञ
नैपीयर के गणित संबंधी शोध Description of the Marvelons Canon of Logarithms TT Construction of the Marvelons Canon of Logarithms नामक दो पुस्तकों में संग्रहित हैं । इनमें से पहली पुस्तक १६१४ में और दूसरी उनके मरने के कुछ साल बाद सन् १६२० में प्रकाशित हुई थी ।
यद्यपि आज जॉन नेपियर हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके द्वारा दिया गया तरीका इस आधुनिक युग में भी प्रयोग में लाया जाता है । इस तरीके का हमारे देश में माध्यमिक कक्षाओं में ही विद्यार्थियों को समुचित ज्ञान करा दिया जाता है । यह तरीका विश्व के सभी देशों में प्रयोग किया जाता रहा है । आज के युग में कम्प्यूटरों के विकास से लघुगणक का प्रयोग कुछ कम अवश्य हो गया है लेकिन इस प्रभावशाली तरीके के महत्त्व को भुलाया नहीं जा सकता ।