डॉ होमी जहांगीर भाभा का जीवन परिचय | होमी जहांगीर भाभा इन हिंदी | होमी जहांगीर भाभा पर निबंध | होमी जहांगीर भाभा के आविष्कार | dr homi jehangir bhabha biography in hindi | dr homi jehangir bhabha ki jivani
परमाणु ऊर्जा (Atomic Energy) के क्षेत्र में भारत की गणना आज विश्व के जाने-माने देशों में होती है । भारत में कई न्यूक्लियर रिऐक्टर तथा परमाणु विद्युत उत्पादन केन्द्र हैं । परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में ये सभी उपलब्धियां होमी जहांगीर भाभा के कारण ही संभव हो पाई हैं ।
वास्तव में देश में परमाणु ऊर्जा की नींव डालने वाले सर्वप्रथम वैज्ञानिक डॉ होमी जहांगीर भाभा ही थे । परमाणु ऊर्जा आयोग का पहला अध्यक्ष भी उन्हें ही बनाया गया था । उन्हीं के प्रयत्नों के फलस्वरूप सन् १९४८ में देश में परमाणु ऊर्जा के विकास कार्यक्रम की शुरुआत हुई ।
डॉ होमी जहांगीर भाभा का जन्म ३० अक्तूबर, १९०९ को मुंबई के एक धनी पारसी परिवार में हुआ था । उनकी प्राथमिक शिक्षा बम्बई में हुई । उनके घर पर विज्ञान पुस्तकों का एक अच्छा-खासा पुस्तकालय था । इसीलिए बालक भाभा की रुचि बचपन से ही विज्ञान की और आकर्षित हो गई ।
अपने खाली समय को वे पेंटिंग करने और कविता लिखने में बिताते थे । उन्हें पश्चिमी संगीत से भी अच्छा-खासा लगाव था ।
बम्बई के एलपिस्टन कॉलेज रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे आगे अध्ययन के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चले गये ।
उनके पिता की इच्छा थी कि वे इंजीनियर बनें लेकिन उनकी दिलचस्पी भौतिक विज्ञान में थी । सन् १९३० में उन्होंने इंजीनियर की डिग्री प्राप्त की तथा सन् १९३४ में वहीं से पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की ।
अध्ययन के दौरान उन्होंने अनेक छात्रवृत्तियां और पदक प्राप्त किए । कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में उन्हें नील्स वोर के साथ कार्य करने का मौका मिला । बाद में उन्होंने फर्मी और पौली जैसे विश्वविख्यात वैज्ञानिकों के साथ काम किया ।
सन् १९३७ में होमी जहांगीर भाभा और जर्मनी के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डब्ल्यू॰ हिटलर ने मिलकर कॉस्मिक किरणों की कई गुत्थियों को सुलझाया ।
कॉस्मिक किरणों (Cosmic Rays) के क्षेत्र की अपनी उपलब्धियों के कारण भाभा विश्वविख्यात हो गये । डॉ होमी जहांगीर भाभा ने निऑन (Neon) नामक कणों पर भी काफी कार्य किया ।
सन् १९४० में ये भारत लौट आये । भारत लौटने पर वे भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलौर में भौतिकी के रीडर तथा बाद में प्रोफेसर नियक्त किये गये । इस संस्थान में उन्होंने अंतरिक्ष किरणों पर काफी कार्य किया । सन् १९४५ में उन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना की तथा उसके निदेशक बने ।
दो वर्ष पश्चात् जब भारत आजाद हुआ तो देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा उनके विचारों को काफी प्रोत्साहन मिला । नेहरू जी देश को विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे । इसलिए उन्होंने भाभा को देश में विज्ञान के उत्थान के लिये योजनायें बनाने की खुली छूट दे दी ।
एक प्रमुख वैज्ञानिक होने के साथ-साथ वे एक कुशल प्रशासक भी थे । परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में उनके समय में देश में भारी काम हुआ ।
सन् १९४८ में परमाणु ऊर्जा आयोग बनने के बाद भारत के कुशल वैज्ञानिकों ने डॉ होमी जहांगीर भाभा की देख-रेख में परमाणु ऊर्जा के विकास पर कार्य करना आरम्भ किया तथा सन् १९४५ में देश की प्रथम परमाणु भट्टी अप्सरा (Apsara) ट्रॉम्बे (बम्बई) में चालू की गई । भाभा की ही देख-रेख में सायरस (Cirus) और जरलिना (Zerlina) नामक दो न्यूक्लीयर रिऐक्टर और लगाये गये ।
परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोगों के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रथम सम्मेलन में डॉ होमी जहांगीर भाभा अध्यक्ष के रूप में उपस्थित हुए । यह सम्मेलन जिनेवा में सन् १९५५ में हुआ ।
डॉ होमी जहांगीर भाभा पहले व्यक्ति थे जिन्होंने परमाणु ऊर्जा के प्रसार पर रोक लगाने तथा सभी देशों द्वारा परमाणु बमों को गैरकानूनी करार देने की वकालत की । उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल की सदस्यता देने का प्रस्ताव किया गया लेकिन उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया । पर वे पंडित नेहरू तथा उनके उत्तराधिकारी लाल बहादुर शास्त्री के वैज्ञानिक सलाहकार का काम करते रहे । देश का पहला परमाणु ऊर्जा से चालित विद्युत उत्पादन केन्द्र तारापुर में चालू हुआ । इसके दो वर्ष पश्चात् एक प्लूटोनियम प्लांट (Plutonium Plant) बनाया गया, जो भारत के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी ।
परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में हमारे देश की महान उपलब्धि थी, पोखरन में शांतमय कार्यों के लिए भूमिगत परमाणु बम का विस्फोट ।
इसे १८ मई, १९७४ को किया गया था । यह सफलता भाभा द्वारा डाली गई नींव का ही परिणाम था ।
डॉ होमी जहांगीर भाभा परमाणु शक्ति के शांतिपूर्ण प्रयोगों के प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय प्रधान चुने गये । सन् १९५५ में जिनेवा में हुये इस सम्मेलन में दुनिया भर के वैज्ञानिक आये थे । डॉ होमी जहांगीर भाभा सम्मेलन में सम्मिलित होने के लिए जा रहे थे । ये दुर्भाग्य की बात थी कि उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और इस महान वैज्ञानिक का देहांत हो गया । मात्र ५७ र्ष की उम्र में इस महान वैज्ञानिक की मृत्यु से समस्त राष्ट्र शोकाकुल हो उठा ।
उनके सम्मान में सन् १९६७ में परमाणु ऊर्जा संस्थान, ट्राम्बे का नाम बदलकर भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र रखा गया । उन्हीं के सम्मान में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च का नाम भाभा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च रखा गया ।
डॉ होमी जहांगीर भाभा जीवनभर अविवाहित ही रहे । वे मजाक में कहा करते थे कि मेरा विवाह तो सृजन से हुआ है । कुछ लोगों का भ्रम है कि वैज्ञानिक नीरस व्यक्ति होते हैं । कला और साहित्य में उनकी कोई रुचि नहीं होती लेकिन यह निश्चय है कि यदि कोई व्यक्ति डॉ होमी जहांगीर भाभा से मिल लेता तो उसका यह भ्रम दूर हो जाता ।
डॉ होमी जहांगीर भाभा एक बहुत ही अच्छे पेंटर थे । उनकी कुछ पेंटिंग आज भी ब्रिटिश आर्ट गैलरीज में रखी हुई हैं, जो देखने में ऐसी लगती हैं जैसे किसी महान कलाकार की कृतियां हों । उनके चित्रों का मुख्य आकर्षण विशेष रूप से भारतीय संत और बच्चे हैं ।
डॉ होमी जहांगीर भाभा का जीवन बहुत ही सरल था । अत्यधिक व्यस्तताओं के बावजूद भी वे कभी परेशान नहीं होते थे । भाभा बहुत ही उच्च कोटि के वक्ता (orator) थे । लोग उनके भाषणों से मंत्र-मुग्ध से हो जाते थे । उनके कार्य तो सुंदर थे ही वे देखने में स्वयं भी बहुत ही सुंदर थे । भारतीय दैनिक समाचार पत्र के एक संवाददाता ने उनके विषय में लिखा था, “वे स्वच्छ तथा सुंदर व्यक्ति हैं…. साधारणतया वैज्ञानिक जैसे होते हैं ठीक उसके विपरीत…. देखने में वे किसी फिल्म निर्देशक अथवा कलाकार जैसे लगते हैं । हंसने का ढंग बहुत ही सुंदर था और उनका स्वर बहुत ही मधुर था । विज्ञान के क्षेत्र में डा. भाभा के योगदानों के लिए भारत सदैव उनका ऋणी रहेगा । “