द्विजेन्द्रलाल राय | Dwijendralal Rai
नाटक देखना सबको अच्छा लगता है। जो नाटक अच्छे लिखते हैं, वे भी सबको अच्छे लगते है। उनका नाम अमर हो जाता है। द्विजेंद्रलाल राय एक ऐसा ही नाम है।
द्विजेन्द्रलाल राय का जन्म
द्विजेंद्रलाल राय बंगाल के रहने वालें थे। उनका जन्म १९ जुलाई १८६३ में कृष्णनगर के एक उच्च कुल में हुआ था, बचपन से ही उनको कविता करने का शौक था, लेकिन उनका स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं था। कभी भी अच्छा नहीं रहा। बार-बार कठिन रोगों से उन्हें लड़ना पड़ता था, इसीलिए वह ज्यादा दिन जीवित भी नहीं रहे। कुल पचास वर्ष की आयु में वह थे, लेकिन इस पचास वर्ष के समय में ही उन्होंने बहुत काम किया।
द्विजेन्द्रलाल राय की शिक्षा
अपने विद्यार्थी जीवन में ही वह अपनी वाक्शक्ति और अंग्रेज़ी भाषा पर अद्भुत अधिकार हो जाने के कारण प्रसिद्ध हो गए। एम.ए. की परीक्षा पास करने के बाद वह बिहार में प्रधानाध्यापक बने, लेकिन कुछ ही महीनों के बाद इंग्लैंड चले गए। वहां वह खेतीबारी के संबंध में शिक्षा प्राप्त करने के लिए गए थे | उनको राज्य की ओर से छात्वृत्ति मिली थी। तीन वर्ष वह वहां रहे और उन्होंने कई ऊंची-ऊंची उपाधियां प्राप्त की, लेकिन इसी बीच उनके माता-पिता का देहांत हो गया।
द्विजेन्द्रलाल राय के कार्य
वह डिप्टी मजिस्ट्रेट बने, उसके बाद उन्होंने कृषि विभाग में कई पदों पर काम किया। इन पदो पर काम करते हुए उन्हें इधर-उधर बहुत घूमना पड़ता था, बिहार के बहुत से जिलों में उन्होंने काम किया। जिस समय वह डिप्टी मजिस्ट्रेट थे तभी उनका विवाह हुआ, उनकी पत्नी का नाम सुरबाला था | लेकिन यहां भी दुर्भाग्य ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। उनका विवाह १८८७ में हुआ और १९०३ में ही उनकी पत्नी का देहावसान हो गया।
साहित्य परिषद की स्थापना
वह बहुत ही दुखी हुए। उन्होंने छुट्टी के लिए प्रार्थना की, लेकिन छुट्टी नहीं मिल सकी। उस समय वह एक्साइज विभाग में काम करते थे, उसे छोड़कर वह फिर डिप्टी मजिस्ट्रेट बन गए और कलकत्ता में रहने लगे। उनके मित्रों ने दूसरी बार विवाह करने का उनसे बहुत आग्रह किया, लेकिन वह नहीं माने। अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद वह केवल दस वर्ष जीवित रहे और इस सारे समय में वह साहित्य सेवा में ही लगे रहे। उन्होंने कलकत्ता में रहते हुए एक “साहित्य परिषद” की स्थापना की। उसका नाम रखा था “पूर्णिमा मिलन” | हर पूर्णिमा को उसकी बैठक होती थी।
द्विजेन्द्रलाल राय के साहित्य
इन दिनों बंगाल में स्वदेशी आंदोलन का जोर था। द्विजेंद्र बाबू उस आंदोलन से बहुत प्रभावित हुए। लेकिन सरकारी नौकर थे, वह उसमें भाग नहीं ले सकते थे। फिर भी इस आंदोलन से उन्हें बहुत प्रेरणा मिली और उन्होंने देशभक्ति के अनेक गीत लिखे। उनके कई गीत आज भी बहुत लोकप्रिय हैं, जैसे-“बंग आमार जननी आमार, धात्री आमार आमार देश। अर्थात्, हमारा बंगाल हमारी मां है, हमारी धाय है, हमारा देश है। उनका यह गीत बहुत ही लोकप्रिय हुआ। उनके ऐसे और भी बहुत से गीत है, लेकिन अधिकतर गीत उन्होंने नष्ट कर डाले थे।
कलकत्ता भी वह बहुत दिन नहीं रह सके। भिन्न-भिन्न स्थानों पर उनकी बदली होती रही और उनका स्वास्थ्य बिगड़ता रहा। द्विजेंद्रलाल राय ने बंगला भाषा के सुप्रसिद्ध मासिक पत्र “भारतवर्ष” के प्रथम अंक के लिए अपना सुप्रसिद्ध गीत लिखा | लेकिन दुर्भाग्यवश अंक प्रकाशित होने के पहले ही उनकी मृत्यु हो गई ।
“बंगीय साहित्य परिषद” के उद्घाटन के अवसर पर भी उनसे एक गीत लिखने की प्रार्थना की गई थी।
वह सचमुच बहुत बड़े कविं थे। कुछ लोग तो यह मानते हैं कि यदि रवींद्रनाथ ठाकुर न होते तो द्विजेंद्र बाबू ही सबसे बड़े कवि माने जाते। उनके देशप्रेम के गीतों ने तो बंगाल को मतवाला कर दिया था। उनका एक गीत “आमार देश” है |
द्विजेंद्रलाल राय ने देशप्रेम के गीत लिखे, हंसी के गीत भी लिखे, लेकिन उनकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा और सबसे ठोस आधार है, उनके नाटक। जिस समय उनका जन्म हुआ, उस समय बंगाल में गिरीश घोष का नाम गूंज रहा था | उन्हीं के समय में द्विजेंद्रलाल राय ने अपने प्रसिद्ध नाटक “मेवाड़ पतन” तथा “शाहजहां” लिखे और वह मंच पर भी खेले गए।
द्विजेंद्र बाबू ने प्राचीन भारत के गौरव और मध्ययुग की वीरगाथाओं को लेकर नाटक लिखे। उनके सामने केवल बंगाल नहीं था, समूचा भारतवर्ष था, इसीलिए उन्होंने सीता, दुर्गादास, चंद्रगुप्त, शाहजहां, जैसे प्रसिद्ध व्यक्तियों को लेकर नाटक लिखे। उनके पौराणिक नाटकों में ‘सीता’ सबसे सुंदर नाटक है | ऐतिहासिक नाटकों में शाहजहां सबसे अच्छा माना जाता है। यह नाटक जितना खेला गया, उतना शायद ही कोई और नाटक खेला गया हो। उन्होंने प्राचीन भारत की देशभक्ति से भरी हुई घटनाओं को लेकर नाटक लिखे जिससे देश में राष्ट्रभक्ति जागृत हो। अपने अंतिम दिनों में उन्होंने सामाजिक नाटक लिखने की भी कोशिश की। “परपारे” और “बंगनारी” ऐसे ही दो नाटक हैं। उनके “चंद्रगुप्त” नाटक में प्रसिद्ध अभिनेता गिरीश घोष स्वयं चंद्रगुप्त के रूप में अभिनय करने वाले थे, लेकिन स्वास्थ्य ने साथ नहीं दिया। फिर “चंद्रगुप्त” नाटक उस समय इतना प्रसिद्ध हुआ कि हर कॉलेज में खेला गया| पहली बार यह २२ जुलाई १९११ को खेला गया था।
द्विजेन्द्रलाल राय की मृत्यु
उसके लगभग दो वर्ष १७ मई १९१३ को द्विजेंद्रलाल राय की मृत्यु हो गई। अपने साहित्यिक जीवन के पच्चीस वर्षों में उन्होंने जो कुछ भी लिखा वह उच्च कोटि का था। उन्होंने अंग्रेजी में भी कविता की और प्रहसन भी लिखे। वास्तव में उनकी बहुमुखी थी। उनके मित्रों की संख्या बहुत बड़ी थी। शरतचंद्र के वह बहुत बड़े प्रशंसक थे।