पाइथागोरस का जीवन परिचय | पाइथागोरस का गणित में योगदान | पाइथागोरस का फार्मूला | pythagoras theorem in hindi | pythagoras biography in hindi
पाइथागोरस उस समय पैदा हुए, जब गणित अपनी काफी प्रारम्भिक अवस्था में था | लेकिन अपनी विद्वता के कारण इस व्यक्ति ने एक ऐसी प्रमेय का सूत्रपात किया जो विश्व भर में प्राथमिक कक्षाओं में ही विद्यार्थियों को पढ़ा दी जाती है । इस प्रमेय का उपयोग गणित में बहुत अधिक होता है ।
पाइथागोरस का फार्मूला
इस प्रमेय के अनुसार किसी समकोण त्रिभुज में दो भुजाओ के वर्गों का योग तीसरी भुजा (कर्ण) के वर्ग के बराबर होता है ।
यदि किसी समकोण त्रिभुज में एक भुजा की लम्बाई तीन सेमी हो और दूसरी भुजा की लम्बाई चार सेमी. हो तो तीसरी भुजा यानि कर्ण की लम्बाई पांच सेमी होगी । इसका मतलब यह हुआ कि तीन सेमी की भुजा में एक-एक सेमी के नौ वर्ग होंगे और चार सेमी. की भुजा में एक-एक सेमी के सोलह वर्ग होंगे । इन दोनों का योग पच्चीस हुआ ।
इस प्रकार सबसे लम्बी भुजा में पच्चीस वर्ग होंगे अर्थात उस भुजा की लम्बाई पांच सेमी. होगी ।
पाइथागोरस का जन्म
इस महान गणितज्ञ और दार्शनिक का जन्म आज से २५०० वर्ष से भी अधिक पहले यूनान के पास सामोस नामक टापू में हुआ था । दुर्भाग्यवश उन्होंने अपने कार्यों के कोई लिखित प्रमाण नहीं छोड़े क्योंकि उस समय लिखने के साधनों का विकास नहीं हुआ था । कागज तो दूर की बात है उस समय तक पार्चमैण्ट या भोजपत्र पर लिखना भी प्रचलन में नहीं था । उनके विषय में जो भी जानकारी आज उपलब्ध है वह बाद के लेखकों द्वारा लिखी गई है । इसलिए उनके विषय में सभी तथ्य काफी कुछ जनश्रुतियों पर आधारित हैं । कुछ लेखक तो यहां उन्हें वैज्ञानिकों की श्रेणी में रखने के पक्ष में हैं ।
पाइथागोरस की शिक्षा
ईसा पूर्व छठी शताब्दी में यूनानी बहुत ही धनी और अत्यधिक सभ्य थे । सामोस टापू यूनानियों का एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र था । बालक पाइथागोरस एक धनी नागरिक का बेटा था, अतः इसमें संदेह नहीं कि उसे बहुत अच्छी शिक्षा दी गई थी ।
बचपन से ही पाइथागोरस बहुत प्रतिभाशाली थे । कहा जाता है कि १६ वर्ष की उम्र में ही इस बालक की प्रतिभा इतनी विकसित हो गई थी कि अध्यापक इसके प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पाते थे । अतः उन्हें थेल्स ऑफ मिलेटस (Thales of Miletus) की देखरेख में अध्ययन के लिए भेजा गया । उन्हीं के साथ पाइथागोरस ने अपनी विश्वविख्यात प्रमेय का सूत्रपात किया और इस प्रमेय का प्रयोगात्मक प्रदर्शन भी किया । वास्तविकता तो यह है कि पाइथागोरस ही पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ज्यामिती की प्रमेयों के लिए उप्पत्ति प्रणाली की नींव डाली ।
पाइथागोरस का ज्ञान की तलाश
यह भी कहा जाता है कि पाइथागोरस ने यह भी सिद्ध करके दिखाया कि किसी भी त्रिभुज के तीनों अंतःकोणों का योग दो समकोणों के बराबर होता है । उन दिनों अध्ययन के लिए चूंकि पुस्तकें उपलब्ध नहीं थी, इसलिए विद्यार्थियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाकर विद्वानों से सम्पर्क करना पड़ता था । कहा जाता है कि ज्ञान की तलाश में ३० वर्षों तक पाइथागोरस ने फारिस, बेबीलोन, अरेबिया और यहां तक कि भारत तक का भ्रमण किया ।
उस समय गौतमबुद्ध अपने नए धर्म की स्थापना कर रहे थे । पाइथागोरस ने कई वर्ष मिस्र में गुजारे, जहां उन्होंने संगीत और गणित के बीच में सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास किया । कई लेखों में ऐसे प्रमाण मिलते हैं जहां उन्होंने स्वर ग्रामों (Musical Scales) पर काम किया ।
पचास वर्ष की अवस्था तक इस गणितज्ञ ने बहुत कुछ सीख लिया था । अब वह एक ऐसे स्कूल की स्थापना करना चाहते थे, जहां वे लोगों को कुछ पढ़ा सकें ।
पाइथागोरस द्वारा स्कूल की स्थापना
ईसा से ५३२ वर्ष पूर्व उन्हें सामोस के अत्याचारी शासन से छुटकारा पाने के लिए इटली भागना पड़ा । वहां उन्होंने ईसा पूर्व ५२९ में क्रोटोने (Crotonay) में एक स्कूल की स्थापना की । जल्दी ही इस स्कूल में ३०० के लगभग युवा छात्रों ने दाखिला ले लिया । यह स्कूल वास्तव में एक धार्मिक संस्थान था, जहां लोगों को एक दूसरे को समझने का अवसर दिया जाता था । इस स्कूल में मुख्य रूप से चार विषय पढ़ाए जाते थे । ये विषय थे – अंकगणित, ज्यामिति, संगीत और ज्योतिष विज्ञान |
साथ में यहां यूनानी दर्शन की शिक्षा भी दी जाती थी । पाइथागोरस का विचार था कि मनुष्य को पवित्र जीवन बिताना चाहिए । उनका विश्वास था कि पवित्र जीवन द्वारा ही आत्मा को शरीर के बन्धनों से मुक्त किया जा सकता है ।
पाइथागोरस ने अंकों के सिद्धांत पर काम किया । उन्हें पिरामिड, घन आदि आकृतियां बनाने का ज्ञान था । इनका विचार था कि तारे वक्र गति में घूमते हैं । इन्होंने दिन और रात होने के विषय में यह बताया था कि धरती किसी केन्द्रीय फायर के चारों ओर घूमती है । इसके अतिरिक्त इन्होंने संगीत और गणित के बीच में भी सम्बन्ध स्थापित किये ।
पाइथागोरस को देश निकाला देना
दुर्भाग्यवश पाइथागोरस विचारों के अनुयायी राजनीति में कूद पड़े । उन्हें जहां भी मौका मिलता था वे अपना अधिकार जमाने की कोशिश करते थे । इससे उनका पतन हो गया और लोग उनके विरोधी हो गये । इसी आधार पर पाइथागोरस को देश निकाला दे दिया गया ।
पाइथागोरस की मृत्यु
८० वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई । मृत्यु के बाद भी प्लेटो जैसे महान दार्शनिकों तक पर भी उनके विचारों का अत्यधिक प्रभाव रहा ।
उनकी मृत्यु के २०० वर्ष बाद पाइथागोरस की रोम के सिनेट (Senete) में विशाल मूर्ति बनवाई और इस महान गणितज्ञ को यूनान के महानतम बुद्धिमान व्यक्ति का सम्मान दिया गया ।