सिकंदर यूनान का
रहने वाला महान विजेता था | वह यूनान से आरम्भ करके अनेक देशो को जीतता हुआ भारत
तक चला आया था | जब हम सिकंदर का नाम लेते है तो साथ ही हमें एक वीर भारतीय योद्धा
की याद आ जाती है | वह वीर योद्धा था राजा पुरू जिसे यूनानियो ने पोरस कहा |
वह जान हथेली में
रखकर लड़ा, पर आपस में एकता न होने के कारण वह भारत भूमि को शत्रुओ द्वारा पद दलित
होने से बचा न सका | फिर भी उस युग में उसने जो साहस और वीरता दिखाई, उससे इतिहास
में उसका नाम अमर रहेगा |
छठी शताब्दी ई.पू.
से लेकर चन्द्रगुप्त मौर्य के पहले तक पश्चिमोत्तर सीमान्त, पंजाब, सिंध तथा इनके
पास का प्रदेश छोटे-छोटे राज्यों में बटा हुआ था | कुछ में राजा थे और कुछ में गण
राज्य या पंचायती राज था| इनकी परस्पर खटपट चलती रहती थी | चारो और छल, कपट, फूट, शत्रुता,
स्वार्थी दाव पेंच का बोल बाला था|
यही कारण था की जब
सिकंदर देशो को जीतता हुआ भारत की सीमा पर पहुचा, तो कुछ स्वार्थी राजाओ ने सिकंदर
का स्वागत किया | इनकी सूची में तक्षशिला नरेश आम्भी का नाम सबसे ऊपर है | पुरू और
अभिसार के राजा की मित्रता तक्षशिला नरेश को नहीं भाती थी | इसी कारण उन्हें नीचा
दिखने के लिए उसने सिकंदर का स्वागत किया | कहते है की सिकंदर ने धनलोलुप तक्षशिला
नरेश को अड़तालीस लाख रूपए दिए और उससे मित्रता कर ली | उसमे बदले में सिकंदर को
५००० सैनिक दिए | इस समझौते में उसका एक स्वार्थ था – पुरू को नीचा दिखलाना |
सिकंदर ने भारत पर
धावा बोल दिया | अधिकांश राजा चाहते तो यही थे की सिकंदर को घुसने न दिया जाए | वे
उससे लडे भी पर अलग अलग | विश्व विजयी सिकंदर की अनुभवी सेना के साथ इन छोटे-छोटे
राजाओ का क्या मुकाबला था | उससे वे एक एक करके हारते गए | इतना ही नहीं तक्षशिला
के आम्भी, पुष्कतावती के संजय, काबुल के कोफायस, अश्वजित तथा शाशिगुप्त ने सिकंदर
को विशेष रूप से न्योता ही नहीं भेजा बल्कि अपने पास-पडोस के राजाओ की पराजय पर
उन्होंने तालिया पीटी |
पुरू एक वीर राजा था
| वह यह नहीं सह सकता था की कोई विदेशी हमला करने वाला उसके राज्य को पद दलित करे
| वह जानता था की सब पडोसी राजा उसके विरुद्ध है, यहाँ तक की उसके मित्र अभिसार
नरेश ने भी उससे धोखा किया | कहते है की जब सिकंदर तक्षशिला में था, तब अभिसार नरेश
ने उसे चोरी चोरी उपहार भेजे, पर पुरू अपने को अकेला पाकर भी अपने निश्चय से
विचलित नहीं हुआ, और उसने सिकंदर से लोहा लेने के लिए कमर कस ली | सिकंदर आंधी की
तरह आगे बढ़ता आ रहा था | कपिशा और तक्षशिला के बीच स्वतंत्रता प्रिय जातियों ने
सिकंदर का डटकर मुकाबला किया | पर आखिर में उनकी हार हुई | जब सिकंदर सिन्धु नदी
पर पहुचा, तब आम्भी ने उनकी सहायता के लिए ७०० घुड़सवार भेजे, और राजधानी तक्षशिला
उनके सुपुर्द कर दी | सिकंदर सिन्धु पार कर तक्षशिला जा पहुचा |
तक्षशिला में आम्भी ने सिकंदर और उसकी सेना का जोरदार स्वागत किया | आम्भी तो पुरू को एक बार
नीचा दिखाना चाहता था | तक्षशिला में बैठकर सिकंदर ने पूर्वी प्रदेशो पर आक्रमण
करने की पुरी तैयारी कर ली | आम्भी ने उसकी पुरी-पुरी सहायता की |
जब सिकंदर ने तक्षशिला
से राजा पुरू को संदेशा भेजा की यहाँ आकर मेरी अधीनता स्वीकार करे | तब पुरू ने
उत्तर दिया की सिकंदर से मैं युद्धभूमि में ही मिलूंगा |
यह उत्तर सुनकर
सिकंदर के क्रोध की सीमा नहीं रही | बस,सिकंदर ने अपनी सेना तथा आम्भी के ५०००
सिपाहियों को लेकर कुच कर दिया और जेहलम नदी के पश्चिमी किनारे पर आ पहुचा | इधर
पूर्वी किनारे पर पुरू की सेना भी आ डटी | नदी उफान पर थी और वर्षा के कारण जेहलम
को पार करना आसान नहीं था | नदी के उस पार पुरू की विशाल सेना में ३०००० पैदल, ४०००
घुड़सवार, ३०० रथ और २०० हाथी थे | यह सब देखकर सिकंदर की सेना घबराने लगी |
सिकंदर की सेना को
डर का भय था की एक तो नदी पार करना खतरे से खाली नहीं था और नदी पार करते भी तो पुरू
की सेना उसपर आक्रमण कर देती | इसलिए कई हप्तो तक दोनो सेना नदी के दोनों किनारे
में डटी रही | पर एक रात जब मुसलाधार वर्षा हो रही थी और पुरू की सेना बेखबर थी,
सिकंदर ने ११०० सिपाहियो के साथ झेलम के किनारे किनारे लगभग १७ मील दूर जाकर चुपचाप
नदी को पार कर लिया | सिकंदर की सेना और पुरू की सेना के बीच में एक छोटी से पहाडी
पड़ती थी, जिसके कारण पुरू को शत्रु सेना को नदी पार करने की आहट ही नहीं मिली | परन्तु
जब कुछ देर बाद पुरू को पता चला की सिकंदर की सेना नदी पार करके आ रही है, फ़ौरन
उसने अपने बेटे को २००० घुड़सवार और १२० रथ देकर उसका रास्ता रोकने को भेजा | पर तब
तक सिकंदर की सारी सेना नदी पार कर चुकी थी |
मुठभेड में पुरू का
बेटा और ४०० सैनिक भी युद्धक्षेत्र में मारे
गए | जब पुरू को इसकी खबर लगी, तो वह अधिकांश सेना साथ लेकर सिकंदर का
सामना करने निकला | उधर सामने से सिकंदर भी बढ़ता चला आ रहा था | पुरू की सेना की
व्यूह रचना देखकर वह कुछ समय के लिए रूक गया | जब सिकंदर अपनी योजना के मुताबिक़
हमला किया, तब पुरू के घुड़सवार दोनों तरफ से पिसने लगे | इससे उसकी सेना में भगदड
मच गई और उधर सिकंदर का हमला तेज होता गया | तभी उसे सामने आम्भी आता हुआ दिखाई
दिया उसे देखकर पुरू का खून खौल उठा, उसने आम्भी पर वार किया पर आम्भी बच गया और
भाग खड़ा हुआ |
इस समय तक पुरू की सारी
सेना तीतर-बितर हो चुकी थी, पर पुरू ने साहस नहीं छोड़ा | सिकंदर इस भारतीय सपूत की
वीरता और रण-कौशल देखकर दंग रह गया | उसने पुरू को कहला भेजा की हथियार डाल दो | पर
पुरू स्वाभिमानी था | उसने एक ना सूनी और बराबर लड़ता रहा | आखिर सिकंदर ने पुरू के
एक पुराने मित्र को भेजा | पुरू अब तक प्यास और थकावट से बेहाल हो चुका था | हाथी
से उतर कर उसने पानी का एक घुट पीया और सिकंदर के पास चला | सिकंदर पुरू के
प्रभावशाली व्यक्तित्व को देखकर बड़ा प्रभावित हुआ | पुरू सीना तान कर चला आ रहा था
| सिकंदर में उदारता से पूछा – पुरू ! तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जाए ?
पुरू ने सर उंचा
करके गर्व से कहा – जैसा की एक राजा दुसरे राजा के साथ करता है | यह उत्तर सुनकर
सिकंदर गदगद हो गया | सिकंदर स्वयं वीर था | वह वीरता का मूल्य आकने में पीछे नहीं
रहा | उसने पुरू को उसका राज्य वापस लौटाकर उससे मित्रता कर ली |
यह है कहानी उस वीर
सेनानी की जिसने अपने प्राणों पर खेलकर विदेशी तूफ़ान को रोकने का प्रयत्न किया |