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भगवान महावीर के जीवन और उपदेश | महावीर के जीवन और शिक्षाओं की विवेचना | Mahavir Swamiji

महावीर – Mahaveer


ज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले की बात है | जहा आज उत्तर बिहार है, वहा कभी
लिच्छवियो का पंचायती गणराज्य था | यह नेपाल की घाटी 
से गंगा तक और कोसी से राप्ती तक फैला हुआ था | इस संघ की
राजधानी वैशाली थी, जिसे आजकल बसाढ कहते है | पटना से यह कोई २७ मील दूर उत्तर की तरफ है
|

वैशाली नगर के तीन भाग थे | ब्राम्हणों की बस्ती मुख्य वैशाली दक्षिण-पूर्व में थी | पश्चिम में
वाणिज्य ग्राम था | तीसरा भाग 
उत्तर पूर्व मे कुन्डग्राम के नाम से था | आजकल
उस जगह पर बसुकुंड गाव है, जो मुजफ्फरपुर जिले में है |

जैन धर्मं के २४वे तीर्थकर महावीर का जन्म कुन्डग्राम के एक क्षत्रिय कुल में हुआ था | इनके पिता का नाम राजा सिद्धार्थ
और माता का त्रिशला था |

मान्यता है की महावीर जब गर्भ में थे, तब उनकी माता त्रिशला ने चौदह स्वप्न
देखे | स्वप्न सुनकर ज्योतिष ने बताया की यह लड़का 
दीपक-सा, मुकुट-सा, झंडे-सा और
छायादार पेड़-सा होगा, इसके सभी लक्षण उत्तम होंगे, सभी अंग सुदर होंगे, यह सभी
विधाओ का जानकार होगा, जो भी काम हाथ में लेगा पूरा करेगा | यह महापराक्रमी होगा,
जनता का नायक होगा और संसार में इसकी जय-जयकार होगी, अर्थात लड़का या तो 
ज्ञानी महात्मा होगा या चकवर्ती
राजा होगा |

नौ महीने साढ़े सात दिन के
बाद, 
उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में चैत सुदी तेरस के दिन महावीर का जन्म हुआ था | राजा
सिद्धार्थ में यह शुभ सन्देश लाने वाली दासी को अपने सारे गहने दे डाले और उसे दासता के मुक्त कर दिया |

महावीर के जन्म की खुशी में सिद्धार्थ ने राज्य में सभी कैदी को
छोड़ दिए और सभी कर्ज व कर माफ़ कर दिए | दस दिन तक खूब धूमधाम से उत्सव मनाया गया | चारो
ओर गाने बजाने, नाच-रंग और खान-पान की धूम मची रही | तीसरे दिन बालक को चाँद सूरज
दिखाए गए | माता पिता में छठी की रात जागकर बीताई और बारहवे दिन सभी सगे-सम्बन्धीयो और दास-दासियों को भोज दिया गया |

बच्चे का नाम वर्धमान रखा
गया |
      

             

वर्धमान के बड़ा भाई का नाम नन्दिवर्धन और बड़ी बहन सुदर्शना थी | तीनो का पालन-पोषण बड़े लाड प्यार से होने लगा
| वर्धमान लड़कपन से ही स्वस्थ, बलवान और निडर थे | एक बार वह बाग़ में पेड़ो पर खेल रहे थे | वह जिस पेड़ पर चढ़े थे उसी पर एक जहरीला साप चढ़ गया | वर्धमान को संकट
में देख कर सभी लड़के घबरा गए पर वर्धमान सांप के तरफ बढ़ते हुए उसे पकड़कर दूर फेक
दिया, जैनियों का विश्वास है की वह सांप कोई देवता था, जो उनके साहस की परीक्षा
लेने आया था |

ऐसी ही एक और कहानी कही
जाती है की वर्धमान गधा-सवारी का खेल खेल रहे थे इसमे हारने वाला लड़का गधा बनता है
और जितने वाले लड़के को कुछ दूरी तक अपनी पीठ पर ढोता है | एक देवता भी रूप बदलकर
खेल में शामिल हो गए और जान-बुझकर हार गए | वर्धमान उनकी पीठ पर चढ़े और वह उन्हें
ले भागा, पर वर्धमान बिना डरे उन्हें ऐसा मुक्का मारा कि वह औधे मुह गिर पड़ा, फिर
उसने माफी मांगकर कहा की तुम तो महावीर हो | इसी तरह की और भी कहानीया प्रचलित है
|

जब वर्धमान युवा हुए तब बसंतपुर के राजा ने उनसे अपनी बेटी का विवाह करना चाहा | उन्होंने राजा सिद्धार्थ के पास संदेशा भेजा | वर्धमान विवाह नहीं करना चाहते थे | पर माँ की जिद के कारण वर्धमान ने विवाह की बात मान ली | बसंतपुर
के राजा समरवीर और रानी पद्मावती की बेटी यशोदा से उनका विवाह हो गया और कुछ दिन
बाद उनकी एक लडकी हुई, मान्यता यह भी है की महावीर बल-ब्रम्हचारी ही बने रहे और
उन्होंने विवाह नहीं किया |

वह स्वाभाव से मिलनसार और सीधे सादे थे | घर गृहस्थी के कामो में
वर्धमान पड़े चुस्त थे | जो बात मुह से निकलते, उसे जरूर निभाते थे | वह बड़ो का आदर करते और दयालु स्वभाव के थे, पर वह
परिवार के माया मोह से बचते रहते थे | उन्हें सच्चा ज्ञान पाने ही चिंता हमेशा
रहती थी |

जब वह अट्टहाइस वर्ष के थे
तब उनके माता पिता का देहांत हो गया | वर्धमान को अब साधू होने की पुरी छुट थी | लेकिन
बड़े भाई नन्दिवर्धन ने लघभग २ वर्ष के लिए रोक लिया |  साधू होना उन्होंने २ वर्ष ले लिए टाल दिया
लेकिन वो घर पर ही साधू की तरह रहने लगे | वह सोचते थे की “लोग सुख के पीछे दौडते
है, परन्तु ये दौड ही दुःख का कारण बन जाती है, इससे हिंसा होती है और आदमी सच्चे
सुख से तरफ नहीं बढ़ पाते है, इसलिए सुख के पीछे न दौडना ही सच्चा सुख है “

यही विचार बाद में वर्धमान
के जीवन का आधार बना | जिस प्रकार अज्ञान को मिटाना वेदान्त धर्मं और लोभ मोह को
मिटाना बौद्ध धर्मं का मूल मंत्र है वैसे ही हिंसा को मिटाना जैन धर्मं का मूल
मंत्र है |

वर्धमान ने अपनी सम्पति दान
कर २ वर्ष बाद ३० वर्ष की आयु में सन्यासी बने | घुतिपलाश उद्यान में यह समारोह हजारो नर नारी के बीच बड़े ठाठ-बाठ से मनाया
गया | वर्धमान ने अपने सारे दाढी-मुछ और सिर के बाल उखाड़ बड़े बुढो का आशीर्वाद
लेकर अकेले ही झुटपुटा होते हुए गंगा पार कर कुम्मार गाव पहुचे जो अब कसमार के नाम
से जाना जाता है |

साधू होने के बाद वह चुप
रहने लगे, हाथ में ही भीख लेकर खाने लगे और ध्यान के लिए एक अच्छी जगह चुनी |

वहा से चलकर वर्धमान अस्थिक
नामक गाव में गए | वहा उन्होंने लोगो के मन से भूत-प्रेत के भ्रम को दूर किया और
चौमासा वही बिताया | और वहा से मौराक जाकर तंत्र मंत्र के पाखण्ड को दूर किया | इसी
तरह घूमते हुए वर्धमान नालंदा पहुचे और दुसरा चौमासा वहा बिताया, वहा उनकी भेट गोसाल
से हुई | गोसाल उस युग के धर्मं सुधारको में से एक थे वर्धमान की तरह वह भी नए
साधू बने थे और चौमासा बिताने वहा आए थे, दोनों एक दुसरे के आकर्षित होकर छ: वर्ष
तक साथ साथ घुमे |

घूमते फिरते ये दोनों एक दिन चोरक पहुचे | उस
दिन दोनों के मौन रहने का दिन था
| सुनसान जगह मे दोनों
ध्यान लगाए बैठे थे
| नगर के कोतवाल ने देखा तो समझा की
दोनों दुश्मन के जासूस है
| पूछताछ करने पर जब ये दोनों ना
बोले तब कोतवाल ने दोनों को रस्सी से बांधकर कुए मे लटकाया और पानी के दुबकिया
खिलानी शुरू की
| इसे देखकर भीड़ जुट गई और इस भीड़ मे सोमा और
जयंती नामक दो साध्वी थी
| वह पहचान गई की इनमे से एक तो राजा
सिद्धार्थ के पुत्र वर्धमान है |
उन्होने कह सुनकर उन्हे छुडवाया
|

इस प्रकार घूमते हुए महावीर ने अपने बारह वर्ष के साधू जीवन
मे अनेक कष्ट झेले
| उन्हे नंगा देखकर बच्चे उन पर पत्थर फेकते थे | पर वह प्रायः मौन रहते और सब कुछ सह लेते थे | उन्होने
ठंडे पानी और हरे पत्ते तक का त्याग कर दिया था
| शरीर को
इतना साध लिया था की खुजली होने पर भी वह खुजलाते न थे और धूल लग जाने पर पोछने की
कोशिश भी नही करते थे
| उजाड़ खंडहरो,
प्याऊघरो
, लुहार-बढ़ई आदि की दुकानों,
जंगल के पेड़ो तले एकांतवास किया करते थे
| इस तरह बारह वर्ष
तक वह सुख की नींद कभी न सोए
| नींद आते ही वह झट से उठ
बैठते थे और टहलने हुए ध्यान करने लगते थे
| जाड़ो मे खुली जगह
पर दोनों बाहे फैलाए ठंड को झलते थे
|

तप जीवन मे उन्होने दूर दूर तक भ्रमण किया | बिहार
से राजगृह
, भागलपुर, मुंगेर, बसाढ, जनकपुर आदि प्रदेशों मे घूमे, पूर्वी उत्तर प्रदेशों मे बनारस, कोशाम्बी, अयोध्या, सहेट-महेट आदि जगहो पर गए और बंगाल मे राढ़
आदि प्रदेशों मे भ्रमण किया
| सबसे अधिक कष्ट उन्हे राढ़ मे
ही झेलने पड़े
| यह प्रदेश श्रमण धरम का कट्टर विरोधी था | यहा के लोग महावीर पर कुत्ते छूडते थे | लाठीयों, मुक्को, ढेलो और भालो से उन पर हमले करते थे | उनके शरीर से मांस काट काट कर धूल मे फेकते थे | उन्हे
उछाल उछाल कर पटकते थे
| गड्ढे मे लटकाते और अनेक प्रकार के
कष्ट देते थे
|

बारह वर्ष की कठोर साधना के बाद महावीर ने जंभिय नाम के गाव
मे
ऋजुवालिका नदी के तट पर वैसाख
सुदी दशमी के दिन केवल-दर्शन (बोध) प्राप्त किया
|
       

    

बारह वर्ष तक सब प्रकार के कष्ट सहते हुए और हर प्रकार की
सांसरिक मोह माया से बचते हुए उन्होने ऐसी लगन से तपस्या की थी की उन्हे “महावीर”
कहा जाने लगा
| इंद्रियो के जीत लेने के कारण उन्हे “जिन” भी कहा जाने लगा |

ज्ञान पाने पर महावीर ने उपदेश देने शुरू किए | अपापा
नगरी मे ग्यारह पंडित उनसे बहस करने आए
| भगवान महावीर ने एक
एक कर सबकी शंकाए दूर कर दी
| इससे प्रभावित होकर वह अपना
अभिमान भुलकर उनके शिष्य बन गए
| इसके बाद तो उनके उपदेशो का
ताता ही लग गया
|

अपापा मे काफी दिन रहने के बाद महावीर राजगृह आए | राजगृह
मगध की राजधानी थी
| महावीर के प्रभाव मे आकर मगध के राजा
बिंबिसार जैन बन गए
| यही राजा चेटक की छोटी बेटी, सुज्येष्ठा भी साध्वी बन गई | महावीर ने उसे दीक्षा
देकर चन्दना की देख रेख मे सौप दिया
| महावीर जनता के साथ
सीधी-सादी भाषा मे बाते करते कहानिया एवं दृष्टांत सुनाकर अपनी बाते समझाते थे
| कहानिया भी ऐसी सुनाते, जो जनता को पसंद आती | मगध मे इन उपदेशो के प्रभाव से बहुत से लोग जैन साधू बन गए | उनमे राजा बिंबिसार का बेटा मेघकुमार भी था | पाँच
“अणुव्रतो” और सात “शिक्षाव्रतो” वाला यही उपदेश आज तक गृहस्थों के जैन धर्मो मूल
मंत्र है
| जैन धर्म के पाँच उपव्रत ये है : गृहस्थी के लिए
जो जरूरी न हो ऐसी हिंसा न करना
, झूठ न बोलना व बुलवाना, चोरी न करना, एक पत्नी व्रती होना, अपनी इक्छाओ पर नियंत्रण रखना | सात शिक्षाव्रतो मे
भी बताया गया है की क्या काम अच्छे है और क्या काम नही करने चाहिए
|

राजगृह से महावीर वैशाली गए | उनसे मिलकर उनके सगे
समबंधी बहूत खुश हुए
|
क्षत्रियो के मुहल्ले मे महावीर ने अपने दामाद जामालि को भी दीक्षा दी | उनकी
पत्नी प्रियदर्शना महावीर की ही बेटी थी
| उसने भी दीक्षा ले
ली और चन्दना की देख रेख मे रहने लगी
| उसके साथ वैशाली की
एक हजार और स्त्रियो ने भी दीक्षा ली
| जामालि को बाद मे
भगवान ने पाँच सौ जैन मुनियो का आचार्य बना दिया
|

यहाँ से महावीर कोशाम्बी गए
और वहा राजा उदयन की बहन जयन्ती को दीक्षा देकर संघ में ले लिया | वहा से वे कोशल
गए जहा सुमनोभद्र और सुप्रतिष्ठ नाम के दो शिष्य बनाए | आगे चल कर ये दोनों बड़े
नामी जैन मुनी हुए |

चम्पा से श्रावस्ती जाने पर
भगवान महावीर की गोसाल से आख़री भेट हुई | 
गोसाल वही एक विधवा कुम्हारिन के साथ रहता था | दोनों धर्मं नेताओं में कुछ
खटपट हो गयी | कथा है की गोसाल ने अपने तपोबल से महावीर के कट्टर चेलो को जला डाला
और महावीर को  श्राप दिया की तुम छह माह
में पर जाओगे | यह श्राप उलटा हो गया और गोसाल छह माह में मर गया | साधुओ के
संप्रदाय में इस तरह की लडाईया उन दिनों प्रायः हो जाती थी | इस घटना के बाद
महावीर सोलह साल और जिए |

इस समय तक उनके कई प्रिय
शिष्य मर चुके थे | कड़ी तपस्या और बीमारी से उनकी देह भी जर्जर हो चुकी थी |
राजगृह से पावापुरी जाकर महावीर अपने जीवन का आख़री चौमासा बिता रहे थे | अपनी हालत
देखकर उन्हें विश्वास हो गया था की वह अब नहीं बचेंगे | उपदेश देने का कार्य आख़री
रात तक जारी रहा | पाप से बारे में पचपन, पुण्य के बारे में पचपन और बिना पूछे गए
सवालों के बारे में छत्तीस, इस तरह कुल मिलाकर एक सौ छ्यालीस उपदेश महावीर ने
उन्ही दिनों दिए | दिवाली की रात को छह दिन के उपवास से बाद भगवान ने इहलीला
समाप्त की | 

निर्वाण के बाद महावीर के
उपदेशो का संग्रह किया गया | उन्हें बारह सूत्रों में संकलित किया गया | महावीर से
पहले जैन धर्मं के चार याम (व्रत) थे : अहिन्सा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना) और
अपरिग्रह (दान न लेना) | महावीर ने इसमें ब्रम्चार्य का एक याम और मिला दिया | संघ
में उन्होंने एक नया नियम “प्रतिक्रमण” का चलाया | इसका तात्पर्य यह है की साधू से
कभी कोई दोष हुआ हो या नहीं, फिर भी वह नित्य प्रतिक्रमण करे अर्थात् अपने दोष
मानने और उनके प्राश्चित करने की विधि में भाग ले |

जैन धर्मं को नन्द वंश के
राजाओ और चन्द्रगुप्त मौर्य में बहुत फैलाया था | चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्य में
जैन धर्मं लगभग सारे भारत में फ़ैल गया था | लेकिन बाद में चन्द्रगुप्त मौर्य के
पोते सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्मं अपनाया और उसके राज्य में बौद्ध धर्मं, जैन धर्मं
से कही अधिक शक्तिशाली हो गया | फिर अशोक के पोते ने गुजरात और काठियावाड़ में इस
धर्मं का प्रचार किया | दक्षिण में प्रारम्भिक चालुक्य और पल्लव राजाओ ने भी जैन
धर्मं को काफी बढ़ाया |

महावीर के लगभग ६०० वर्ष
बाद जैन धर्मं दो शाखाओ में बट गया : श्वेताम्बर और दिगंबर | श्वेताम्बर जैन सफ़ेद
कपडे पहनते है और दिगंबर जैन कपडे नहीं पहनते | जैन धर्मं की ये दोनों शाखाए आज भी
है |
                

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