मैडम क्यूरी का जीवन परिचय | मैडम क्यूरी पर निबंध | madame curie biography in hindi
आधुनिक भौतिक विज्ञान के विकास में फ्रांस के क्यूरी परिवार की दो पीढ़ियों का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है । विश्व में अभी तक कोई ऐसा परिवार नहीं हुआ, जिसकी दो पीढ़ियों में से पांच ने नोबेल पुरस्कार प्राप्त किए हों ।
क्यूरी परिवार में दो बार मैडम क्यूरी को, एक बार इनके पति पियरे क्यूरी को और एक बार इनकी पुत्री आइरेन क्यूरी (Irene Curie) और उसके पति फ्रैंकरिक जूलियट को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।
इस तथ्य से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस परिवार के लोग कितने विद्वान थे और विज्ञान में उनकी कितनी रूचि थी ।
मैडम क्यूरी का जन्म ७ नवम्बर १८६७, वारसा(पोलेंड) मे उन दिनों हुआ जब पश्चिमी देशों में भी स्त्रियों को उच्च शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार न था । इस महिला ने प्रयास करके पुरुषों के समान उच्च शिक्षा ग्रहण की ।
इन्होंने रेडियम का आविष्कार करके इतनी ख्याति प्राप्त की जितनी शायद ही किसी और ने की हो ।
पोलैण्ड की राजधानी वारसा में जन्मी इस महिला के बचपन का नाम मैरी स्कलोदोवस्का (Marie Sklodowska) था । परन्तु बाद में पियरे क्यूरी नामक वैज्ञानिक से विवाह कर लेने के पश्चात् ये मैडम क्यूरी के नाम से प्रसिद्ध हो गई ।
मैडम क्यूरी के माता-पिता अध्यापक थे । इसलिए इनका बचपन शिक्षा के वातावरण में बीता । इन्होंने १६ वर्ष की आयु में हाईस्कूल की परीक्षा पास की, जिसमें असाधारण योग्यता प्रदर्शन करने के लिए इन्हें स्वर्ण पदक प्रदान किया गया । अब मैरी की इच्छा थी कि वह विज्ञान का विषय लेकर विश्वविद्यालय में अध्ययन करे लेकिन महिला होने के कारण उन्हें दाखिला नहीं मिला ।
उन दिनों वारसा विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा के लिए महिलाओं के लिए दरवाजे बंद थे । उनके पिता ने उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए उन्हें पेरिस भेजा । साखान विश्वविद्यालय से इन्होंने विज्ञान में स्नातकोत्तर परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया ।
परीक्षा पास करने के बाद इनके एक मित्र ने इनकी भेंट प्रसिद्ध वैज्ञानिक पियरे क्यरी से कराई । पहली मुलाकात में ही वे दोनों एक-दूसरे से बहुत प्रभावित हुए । दोनों में गहरी मित्रता हो गई और बाद में दोनों विवाह के बन्धन में बंध गए ।
इसी विश्वविद्यालय में मैरी ने रेडियोधर्मिता के आविष्कारक प्रोफेसर बैकरैल की सहायिका के रूप में कार्य आरम्भ किया । बैकरैल ने कई वर्षों से कुछ यूरेनियम के टुकड़ों को एक मेज की दराज में रख छोड़ा था । एक दिन मैरी ने उनमें से कुछ टुकड़े निकाले और उनका उपयोग फोटो प्लेटों को तोलने के लिए किया । जब इन प्लेटों को विकसित किया तो इन पर विचित्र सा जाल फैला दिखाई दिया । मैरी को संदेह हुआ कि निश्चय ही यूरेनियम में से कुछ ऐसी किरणें निकली हैं जिन्होंने इन प्लेटों पर यह जाल सा बिछा दिया है ।
इन किरणों के रहस्यमय स्रोत को खोज निकालने का दृढ़ निश्चय करके मैरी ने प्रोफेसर बैकरैल की सहायिका के रूप में अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया । एक रात उसने अपने पति के साथ बैठकर यूरोप का मानचित्र देखा और संदर्भ ग्रन्थों से पता लगाया कि बोहीमिया के एक छोटे से नगर में यूरेनियम का एक खनिज पिचंब्लैंड मिलता है । क्यूरी दम्पत्ति ने वहां की सरकार को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने १० हजार किलोग्राम पिचब्लैंड बिना मूल्य प्राप्त करने के लिए प्रार्थना की थी । वहां की सरकार ने यह अनुरोध स्वीकार कर लिया और उन्हें पिचब्लैंड प्राप्त हो गया ।
अपनी प्रयोगशाला में महीनों तक वे दोनों पति-पत्नी बड़ी बाल्टियों में पिचब्लैंड डालकर और उसमें पानी मिलाकर बड़े-बड़े बांसों से चलाते रहने का घोर परिश्रम करते रहे । उनकी प्रयोगशाला पर पक्की छत न थी केवल एक टूटा हुआ छप्पर था, जिसमें से बरसात का पानी टपकता रहता था । इन दोनों ने इन सब कठिनाइयों के बावजूद भी अनुसंधान कार्य जारी रखा ।
नवम्बर, १८९८ की एक रात को पिचब्लैंड से प्राप्त पदार्थ को उन्होंने एक परखनल में रख छोड़ा था । कुछ देर सोने के बाद जब उन्होंने अपनी प्रयोगशाला का दरवाजा खोल तो देखा कि अंधेरे कमरे में एक कोने से उनकी उस परखनली से हल्का नीला सा रहस्यमय प्रकाश निकल रहा है । जैसे ही उन्होंने मोमबत्ती जलायी प्रकाश की वह चमक लुप्त हो गई । उन्होंने इस तत्व का नाम रेडियम रखा ।
कार्य के लिए इन दोनों पति-पत्नी को और बैकरैल को सन् १९०३ का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया ।
सन १९११ में मैरी क्यूरी को रेडियम और पोलोनियम प्राप्त करने तथा तत्वों अध्ययन के लिए रसायन विज्ञान का दूसरा नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया ।
शादी के दो वर्ष पश्चात् इस दम्पत्ति के एक कन्या हुई, जिसका नाम आइरेन क्यू रखा । यह कन्या भी अपनी मां की भांति ही विज्ञान में असाधारण प्रतिभा वाली थी । इसका विवाह जूलियट क्यूरी से हुआ । इन्होंने सर्वप्रथम कृत्रिम रेडियोधर्मी तत्व बनाने आविष्कार किया । इसके लिए इन पति-पत्नी को संयुक्त रूप से सन् १९३५ का रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार दिया गया ।
सन् १९०६ में इनके पति पियरे क्यूरी की सड़क पार करते हुए मोटर दुर्घटना से मृत्यु हो गई । इससे मैडम क्यूरी को बहुत बड़ा आघात पहुंचा । मैडम क्यूरी ने पेरिस में क्यूरी इन्स्टीट्यूट ऑफ रेडियम की स्थापना की । इन्हीं के नाम पर रेडियोधर्मिता की इकाई का नाम क्यूरी रखा गया । क्यूरी को सम्मान प्रदान करने के लिए एक तत्व का नाम क्यूरियम रखा गया ।
मैरी हृदय की बड़ी दयालु थीं । इन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में घायलों की बड़ी सेवा की । इस उपलक्ष्य में अमरीका की सरकार ने मैरी को कई सम्मान प्रदान किए । मैरी जीवन भर रेडियोधर्मी पदार्थों के सम्पर्क में रहीं । इससे इनकी आंखें खराब हो गई थीं । इन्हीं विकिरणों से उन्हें रक्त का कैंसर हो गया था । विज्ञान की यह साधिका ४ जुलाई, १९३४ को संसार से सदा के लिए विदा हो गई । इस महिला ने रेडियम की खोज करके मानवता का जो उपकार किया है, उसे निश्चय ही कभी भी भुलाया नहीं जा सकता ।