मैहर का मंदिर | Maihar Temple
“बंद मंदिर में जलती ज्योति का रहस्य”
युं तो मंदिर में भक्तो द्वारा दीपक (ज्योति) का जलाया जाना सामान्य सी बात है क्युंकि यह उनकी आस्था का प्रतीक हैं और बिना दीपक (ज्योति) के भगवान की पूजा अधूरी मानी जाती हैं। परंतु आज हम आपको देवी माँ के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे है, जहाँ देवी माँ के सामने दीपक स्वयं ही प्रज्वलित होती हैं।
हम बात कर रहे हैं ऊँचे पहाड़ियों के मध्य स्थित माँ के उस मंदिर की, जहाँ एक अदृश्य भक्त की भक्ति के आगे दुनिया भी नतमस्तक करती हैं।
हम बात कर रहे है मध्यप्रदेश के सतना जिले (Satna) के त्रिकुट पर्वत (Trikut Parvat) पर स्थित माँ शारदा (Maa Sharda) के एक ऐसे भव्य मंदिर की, जहाँ चमत्कार की एक अनोखी ही दास्ताँ जानी जाती है। मैहर माता मंदिर (Maihar Mata Mandir) माता शारदा को समर्पित दुनिया का एकमात्र मंदिर हैं, जिसे माँ के समस्त शक्तिपीठो में से एक माना जाता हैं।
मैहर मंदिर (Maihar Mata Mandir) माँ का ऐसा दरबार, जहाँ देश से ही नहीं बल्कि दुनिया के कोने-कोने से लोग माँ के इस अद्भुत मंदिर के दर्शन करने आते है। त्रिकुट पर्वत पर लगभग ६०० फीट की ऊचांई पर स्थित माँ के इस दरबार तक पहुँचने के लिए भक्तो द्वारा १०६३ सीढ़ियों की चढाई करनी पड़ती है। यहाँ प्रतिदिन हज़ारो की संख्या में दर्शनार्थि दर्शन करने आते है।
इस मंदिर में होने वाले चमत्कार के विषय में कहा जाता है कि यहाँ मंदिर के पट खुलते ही माँ के चरणो में ताज़े चढ़े हुए फूल मिलते है व देवी माँ के सम्मुख दीपक (ज्योति) स्वयं ही प्रज्वल्लित होती हुई दिखाई देती हैं।
इसके साथ ही साथ यह भी कहाँ जाता हैं कि जब पुजारी द्वारा मंदिर के कपाट बंद किये जाते हैं, तब मंदिर के अंदर से घंटियों की आवाज़ सुनाई देती हैं।
जी हाँ, यह बात सुनने मे थोड़ी अविश्वसनीय लगे परंतु यह सत्य है।
जलती ज्योति का रहस्य
मंदिर के अंदर से सुनाई देने वाली घंटियों की आवाज़ व स्वतः जलती ज्योति के विषय में कहाँ जाता है कि माँ शारदा के दो अनन्य भक्त आल्हा और उदल (Aalha And Udal) आज भी सर्वप्रथम माँ के दर्शन करने के लिए मंदिर आते हैं। आल्हा और उदल दो भाई थे। कहाँ जाता हैं कि दोनों भाईयो ने ही सबसे पहले जंगलो के बीच शारदा माता के इस मंदिर की खोज की थी। उसके बाद आल्हा ने माँ के इस मंदिर में १२ वर्षों तक तपस्या कर माँ को प्रसन्न किया। आल्हा की भक्ति से प्रसन्न होकर माँ ने उन्हे अमरत्व का वरदान दिया। तब से लेकर अब तक माता शारदा की भक्ति का प्रथम अवसर आल्हा को प्राप्त है और मंदिर में सर्वप्रथम आल्हा द्वारा ही देवी का श्रृंगार व पूजा अर्चना की जाती हैं। आल्हा माँ शारदा को माई कहकर पुकारते थे और तभी से इस मंदिर को शारदा माई के नाम से जाना जाने लगा ।
आल्हा और ऊदल कौन थे | Who Was Alha Udal
आल्हा उदल दोनो भाई थे। दोनो बुंदेलखंड के महोबा के वीर योद्धा थे और राजा परमार के सामंत भी थे। इन्होंने ५२ युद्धो मे विजय प्राप्त की थी। आल्हा खंड नामक रचित एक काव्य रचना में इन शूरवीरों की गाथा वर्णित है। जिसके अनुसार आखरी युद्ध इन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ किया था, जिसमे पृथ्वीराज चौहान को हार का सामना करना पड़ा था, परंतु इस युद्ध मे उदल वीरगति को प्राप्त हुए। इस युद्ध की समाप्ति के साथ ही साथ आल्हा के मन में वैराग्य की भावना आ चुकी थी और उन्होंने अपना शेष जीवन देवी माँ की तपस्या में लगा दिया।
१२ वर्षों की कठिन तपस्या के पश्चात् आल्हा को देवी माँ के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ और माँ ने आल्हा की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अमरत्व का वरदान दे दिया। लिहाज़ा आल्हा ने माँ के आदेशानुसार अपनी तलवार की नोक टेढ़ी कर माँ के चरणो मे समर्पित कर दी, जिसे आज तक कोई सीधा नही कर पाया। तब से लेकर अब तक आल्हा सर्वप्रथम एक अदृश्य भक्त के रूप मे माँ शारदा के दर्शन करने के लिए आते हैं, उसके पश्चात् ही अन्य भक्तो को माता के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होता है।
माँ के हार से बनी मैहर की कहानी | मैहर की कहानी
मैहर अर्थात् माँ का हार । हिंदू धर्म के पुराणो के अनुसार जहाँ-जहाँ माँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किये वस्त्र व आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ देवी माँ के शक्तिपीठ का आरंभ हुआ। त्रिकुट पर्वत पर विराजी माँ शारदा के मंदिर का यह इतिहास लगभग ५२२ ई. सा. पूर्व का हैं, कहा जाता हैं कि मैहर मे माता सती के गले का हार गिरा था, तभी से शारदा माँ को मैहर माता के नाम से जाना जाने लगा।
माता शारदा के शक्तिपीठ से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है, कहा जाता है कि महाराज दक्ष की पुत्री सती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी, परंतु महाराज दक्ष उनकी इस इच्छा के विरुद्ध थे। इसके पश्चात् भी माता सती ने अपने पिता की आज्ञा के विरुद्ध जाकर भगवान शंकर से विवाह कर लिया।
एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन करवाया, जिसमे उन्होंने ब्रम्हा, विष्णु, इंद्र व अन्य देवी देवताओं को भी आमंत्रित किया, परंतु भगवान शिव को आमंत्रित नही किया। भगवान शंकर के इस अपमान से दुःखी होकर माता सती ने यज्ञ अग्निकुंड मे अपने प्राणो की आहुति दे दी। भगवान शिव को जब इस समस्त घटना का पता चला तो वे क्रोधित हो उठे और क्रोध के आवेश में उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोल लिया और माता सती के शव को कंधे पर लेकर तांडव करने लगे। संपूर्ण सृष्टि को भगवान शिव के क्रोध से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर को ५२ भागों में विभाजित कर दिया। जहाँ-जहाँ माँ सती के अंग गिरे, वहाँ से शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। कहा जाता हैं कि यहाँ माँ सती का हार गिरा था, तभी से माँ शारदा के इस मंदिर को मैहर के नाम से जाना गया।
माँ शारदा की सच्चे मन से पुजा करने वाले को संपूर्ण सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है और माँ शारदा की कृपा से वह सभी प्रकार के भय व कष्टों से बचा रहता हैं।
आप भी एक बार अवश्य मैहर पधारे व माता शारदा के दर्शन करे।