राजा विक्रम देव की कथा | स्वामिभक्त से श्रेष्ठ कर्तव्य | King Vikramaditya in Hindi

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राजा विक्रम देव की कथा | स्वामिभक्त से श्रेष्ठ कर्तव्य | King Vikramaditya in Hindi

विक्रम बेताल से बोला – “तुम्हारे हंसने का कारण क्या है ? मैंने ऐसा क्या किया है जो तुम हंस रहे हो ?”

इस पर बेताल बोला—” हे राजा विक्रम ! मैं तुम्हारी बात पर नहीं, वरन् दुनिया के लोगों पर हंसा हूं । इसका अपना एक कारण है । सुनो, एक कहानी सुनाता हूं । तुम न्याय की बात करना।”

राजा विक्रम हमेशा की भांति खामोश रहा और बेताल उसे कहानी सुनाने लगा । बेताल बोला –

मलयदेश का राजा समरजीत बड़ा वीर और विद्वान था । उसके राज्य में चन्द्रमणि नामक एक महासेठ रहता था । एक दिन एक दरबारी ने आकर राजा से कहा -‘एक बात निवेदन करूं। ‘महाराज ! हुक्म हो तो

‘कहो।” राजा बोला ।

‘अन्नदाता हमारे राज्य के महासेठ चन्द्रमणि की पुत्री मणिमाला अत्यन्त रूपवती है । उसके समान शायद और नहीं है । वह विवाह योग्य हो गई है । मेरा खयाल है, आप रनिवास की शोभा बढ़ाएं।”

सुनकर राजा समरजीत ने अपनी सम्मति दी – “अगर वह वास्तव में अनुपम सुन्दरी है, तो जरूर रानी बना लेंगे।”

दरबारी के जाने के बाद राजा समरजीत ने अपनी विश्वस्त सेविका को बुलाया और कहा – “सुनो ! तुम हमारी सबसे विश्वस्त सेविका हो । हमें एक सत्य का पता लगाकर खबर दो।”

आज्ञा करें महाराज।” देवकी बोली ।

“हमारे महासेठ चन्द्रमणि की कन्या मणिमाला अत्यन्त रूपवती है । क्या वह हमारे अन्तःपुर के योग्य है या नहीं ? पता करके सूचना देना।” राजा ने कहा ।

“सुना तो मैंने भी है, पर देखा नहीं।”

“अब देखकर पता करो।”

दासी राजा की आज्ञा शिरोधार्य कर चल पड़ी । वह महासेठ चन्द्रमणि के निवास पर आई । उसने मणिमाला को देखा । हे राजा विक्रम ! जब दासी ने मणिमाला को देखा तो देखती रह गई । जैसा उसने सुना था, उससे कहीं अधिक रूपवती थी वह । उसका रूप देखकर वह हैरान रह गई । राजा समरजीत के अन्तःपुर की प्रत्येक रानी उसके आगे फीकी थी । मणिमाला को देखकर वह लौट आई ।

उसने मणिमाला का रूप-रंग देखकर निर्णय किया कि यदि वह अपने कर्त्तव्य का पालन करेगी । अगर वह सत्य राजा से कह देगी तो राजा मणिमाला को अन्तः पुर में ले आएगा । फिर वह भोग-विलास और राग-रंग में बेतरह डूब जाएगा । सारा राजकाज चौपट हो जाएगा । परम सुन्दरी मणिमाला के पास से वह एक पल के लिए न हटेगा ।

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उसने वापस आकर राजा समरजीत से मुलाकात की ।

“देख आई ?”

“हां, महाराज।” उसने कहा ।

‘कैसी है ?”

अपराध क्षमा हो महाराज । आपके अन्तःपुर की अनेक रानियां उससे अच्छी हैं।”

“तब रहने दो।”

राजा ने अपना विचार बदल दिया ।

इस बीच सेठ चन्द्रमणि को इस बात का पता चला कि राजा ने उसकी कन्या देखने अपनी विशेष सेविका को भेजा था । वह राजा के पास गया और उनको सहर्ष अपनी कन्या देने को प्रस्तुत हो गया, पर राजा ने इन्कार कर दिया । महासेठ चन्द्रमणि निराश दुखी होकर लौट आया ।

तब उसने अपनी कन्या का विवाह राजा के दरबारी कृष्णानन्द से कर दिया । कृष्णानंद उसको अपनी पत्नी बना सुखपूर्वक रहने लगा ।

हे राजा विक्रम ! कुछ समय बाद राजा समरजीत नगर भ्रमण को निकला । जब वह कृष्णानंद के महल के सामने से निकला तो दूसरी मंजिल की खिड़की पर एक अत्यन्त रूपवती स्त्री को देखकर वहीं खड़ा रह गया । उसे विश्वास न हो रहा था कि वह मानवी है । यही लग रहा था कि वह कोई अप्सरा या देवकन्या है । घोड़े पर सवार राजा उसे देखता रह गया । उसका रूप देखकर वह बेचैन हो गया ।

वह राजमहल वापस आया और उसे चैन न पड़ रहा था । उसने अपने सिपाहियों से पूछा-“वह स्त्री कौन थी ?”

सिपाहियों ने पता कर बतलाया कि वह कृष्णानंद की पत्नी है । राजा समरजीत अपना कलेजा थामकर रह गया ।जब कृष्णानंद को इसका पता चला कि राजा ने उसकी पत्नी के बारे में पूछताछ की है, तो वह सीधे राजा समरजीत के पास आया ।

राजा समरजीत ने पूछा-“क्या वह तुम्हारी पत्नी है।”

“हां, अन्नदाता।”

समरजीत होंठ काटने लगा । कृष्णानंद बोला -“महाराज ! वह महासेठ चन्द्रमणि की बेटी है।”

राजा चौंक गया—”क्या कहा।”

“हां, महाराज ! जब आपने उससे विवाह करने से इन्कार कर दिया तो मैंने कर लिया।” राजा हैरान रह गया । उसने तत्काल उसी सेविका को बुलाया ।

तुमने झूठ क्यों बोला ”

सेविका नम्रतापूर्वक बोली – “अन्नदाता । अगर मैं सत्य कहती तो आप उससे विवाह कर लेते और राग-रंग से सारा राजकाज धरा रह जाता । अपने इस कर्तव्य के आगे मैंने स्वामिभक्ति का परिचय नही दिया ?

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राजा आग-बबूला हो गया । उसने तुरन्त सेविका को मौत के घाट उतारने का आदेश दिया । कृष्णानंद वह बोला -“अन्नदाता ! इसे आप सजा न दें । मैं मणिमाला आपको देने के लिए तैयार हूं।”

“मैं परायी स्त्री को हाथ नहीं लगाता।” राजा ने कहा ।

सेविका के गिड़गिड़ाने पर राजा समरजीत ने उसे देश निकाला दे दिया ।

विक्रम बेताल के सवाल जवाब

बेताल के सवाल :

अब बोलो राजा विक्रम, क्या इसमें सचमुच सेविका का दोष था ? क्या उसने पाप नहीं किया ?”

राजा विक्रमादित्य के जवाब :

राजा विक्रम बोला – “स्वामिभक्ति से कर्त्तव्य बड़ा है । सेविका ने स्वामिभक्ति का परिचय न देकर अपराध जरूर किया, यह अपराध उसने कर्त्तव्य पालन देखते हुए किया है । इस कारण राजा समरजीत ने देवकी को देश निकाला देकर अपराध किया है।”

विक्रम की बात सुनकर बेताल अट्टहास कर उठा । बोला- “तुम्हारा कहना ठीक है विक्रम, मगर मैं चला।” वह कंधे से कूद गया । कूद कर भागा । सीधे उसी पेड़ पर जाकर लटक गया । राजा विक्रम फिर आया । उसे उठाकर कंधे पर रखकर ले चला । विक्रम का गुस्सा अब सातवें आसमान पर जा पहुंचा था । बेताल की बार-बार भाग जाने की आदत से वह तंग आ गया था । यदि उसने योगी को वचन न दिया होता तो वह बेताल की हत्या कर डालता, पर वह विवश था ।

बेताल बोला, “राजा विक्रम ! चित्रकूट नाम का एक नगर है वहां का राजा रूपदत्त एक दिन अकेला अपने घोड़े पर सवार हो शिकार को गया । वह भटककर महावन में जा निकला । वहां जाकर देखा कि एक बहुत बड़े तालाब के पास बड़े-बड़े वृक्ष हैं, चारों ओर पेड़ों की छाया थी । राजा को गर्मी के मारे पसीने आ रहे थे । वह फौरन घोड़े को छोड़कर पेड़ों की छाया में लेट गया । वह लेटा ही था कि इतने में ऋषि की एक कन्या वहां पर आई और उसको देखकर उस पर मोहित हो गई । ऋषि खुद भी वहां आ गए, राजा ने ऋषि से हाथ जोड़कर प्रणाम किया । ऋषि ने आशीर्वाद देकर पूछा-“यहां कैसे आए।” राजा ने “महाराज मैं शिकार खेलने आया हूं।”

यह बात सुन ऋषि प्रसन्न हुए और बोले –“बच्चा, क्या मांगता है ?”

राजा ने कहा—“महाराज अपनी कन्या मुझे दे दो।”

ऋषि ने अपनी पुत्री का विवाह राजा से कर दिया ।

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अब राजा और रानी दोनों घोड़े पर चढ़कर चल दिए । रास्ते में धूप के कारण परेशान होकर वे एक पेड़ के नीचे सो गए ।

थोड़ी देर बाद एक राक्षस वहां आया और राजा से बोला -“मैं तुम्हारी स्त्री को खाऊंगा।”

राजा ने कहा—“आखिर तुम चाहते क्या हो ? मेरी स्त्री ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ?”

तब राक्षस ने कहा -“या तो मुझे सात वर्ष का ब्राह्मण का पुत्र चाहिए या तुम्हारी स्त्री ।”

तब राजा ने कहा कि तुम चार दिन बाद मेरे राज्य में आ जाना । मैं सात वर्ष का लड़का दे दूंगा । यह सुन राक्षस और राजा दोनों अपनी राह चले गए ।

शीघ्र ही तीन दिन गुजर गए । चौथे दिन यथासमय राक्षस आ पहुंचा और राजा से वचन पूरा करने को कहा । राजा ने एक लड़के को बुलाया जिसे उसने एक गरीब ब्राह्मण दम्पति से खरीदा था, और हाथ में खड्ग लेकर बलि देने को तैयार हुआ कि इतने में लड़का हंसा और फिर रोया ।

विक्रम बेताल के सवाल जवाब

बेताल के सवाल :

तभी राजा ने खड्ग मारा तो उसका सर अलग हो गया । इतनी कथा कह बेताल बोला – हे राजा ! वह मरते वक्त क्यों हंसा और क्यों रोया ? इसका मतलब क्या है ?”

राजा विक्रमादित्य के जवाब :

यह सुन राजा बोला —“बालक ने सोचा कि बालकपन में माता पालती है, बड़ा होने पर पिता, परन्तु आज उन्हीं माता-पिता ने केवल धन के लालच में मेरे गले पर छुरी चलवा दी । उस समय मैं अपनी फरियाद किससे करता यह सोचकर तो वह रोया और यह सोचकर हंसा कि उसके एक त्याग से उसके भाई-बहनों का जीवन सुधर जाएगा।”

“तुम धन्य हो विक्रम ! तुमने बिल्कुल ठीक उत्तर दिया है, मगर तुम मेरी शर्त भूल गए । इसलिए मैं चला।” इतना कहकर बेताल हवा में उड़ता चला गया ।

विक्रम अपनी तलवार संभाले एक बार फिर उसके पीछे भागा ।

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