रानी चेन्नम्मा की जीवनी
Rani Chennamma Biography
रानी चेन्नम्मा की जीवनी, कित्तूर चेन्नम्मा की जीवनी
भारत में अंग्रेज़ी राज्य के विरुद्ध पहला बड़ा विस्फोट १८५७ में हुआ। अंग्रेज़ लोग उसे केवल सिपाही विद्रोह मानते थे। लेकिन भारत के लोग १८५७ के विस्फोट को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में ही याद करते हैं। १८५७ की क्रांति के नेताओं में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम सबसे पहले लिया जाता है। वास्तव में अंग्रज़ों के छक्के छुड़ाकर रानी लक्ष्मीबाई ने भारत की वीर नारियों की परंपरा निभाई थी। परंतु रानी लक्ष्मीबाई से भी पूर्व हमारे स्वतंत्रता संग्राम का एक रोमांचक अध्याय लिखा था, कित्तूर की वीर रानी चेन्नम्मा ने।
उन्नीसवीं शताब्दी में ही सत्तालोलुप अंग्रेजों को लोहे के चने चबवाने वाली सर्वप्रथम भारतीय वीरांगना चेन्नम्मा ही थी। भारत की वह सबसे पहली रानी थी, जिसने फिरंगियों को मार भगाने के लिए कमर कसी और अंग्रेज़ो के हमले से कित्तूर की रक्षा के लिए देशभक्तों की सुदृढ़ सेना खड़ी की।
संक्षिप्त विवरण(Summary)[छुपाएँ]
पूरा नाम | चेन्नम्मा |
---|---|
जन्म तारीख | २३ अक्तूबर १७७८ |
जन्म स्थान | काकती,बेलगाव(मैसूर) |
धर्म | हिन्दू |
पिता का नाम | धूलप्पा देसाई |
माता का नाम | पद्मावती |
पति का नाम | कित्तूर के राजा मल्लसर्ज |
संतान | १ पुत्र लेकिन उसकी अकाल मृत्यु |
पिता का कार्य | राजा |
माता का कार्य | रानी |
शिक्षा | राजकुल के अनुरूप, घुड़सवारी, आखेट, शास्त्रो का अभ्यास |
कार्य | अपने राज्य को बचाने के लिए अंग्रेज़ो की गुलामी स्वीकार न कर युद्ध |
आमतौर पर लिए जाने वाला नाम | रानी चेन्नम्मा, कित्तूर चेन्नम्मा |
मृत्यु तारीख | २१ फरवरी, १८२९ |
मृत्यु स्थान | बेलहोंगल, कर्नाटक |
उम्र | ५० वर्ष |
मृत्यु की वजह | अंग्रेज़ो द्वारा बंदी बनाया जाना |
भाषा | कन्नड़, उर्दू, मराठी और संस्कृत |
रानी चेन्नम्मा का जन्म २३ अक्तूबर १७७८ में काकतीय राजवंश में हुआ। उसने पिता धूलप्पा देसाई और माता पद्मावती ऐसी सुंदर कन्या को पाकर हर्ष से फूले न समाए। चेन्नुम्मा शब्द का अर्थ ही है सुंदर कन्या।
चेनम्मा की शिक्षा-दीक्षा भी राजकुल के अनुरूप ही हुई। घुड़सवारी, शास्त्रो का अभ्यास, आखेट आदि युद्ध कलाएं उसे अपने वीर पिता से उत्तराधिकार में मिली थीं। कन्नड़, उर्दू, मराठी और संस्कृत भाषाओं का चेन्नम्मा को अच्छा अध्ययन कराया गया था।
चेन्नम्मा का विवाह कित्तूर के राजा मल्लसर्ज से हुआ था, कित्तूर कर्नाटक यानी मैसूर राज्य के उत्तरी बेलगांव जिले में है। पूना से बंगलौर जाने वाली सड़क पर कित्तूर बेलगांव से ५ मील की दूरी पर स्थित है। वहां पर ७२ दुर्गों और ३५८ गांवों से संयुक्त कित्तूर का सुंदर राज्य था। उन दिनों कित्तूर का यह राज्य व्यापार का प्रसिद्ध केंद्र भी था | यहां हीरे, जवाहरात के बाजार लगते थे और दूर-दूर से व्यापारी आते थे। सुख-समृद्धि से भरपूर कित्तूर उन दिनों शांति की सांस ले रहा था। राजा प्रजावत्सल और न्यायपरायण था और प्रजा आज्ञाकारिणी तथा स्वामिभक्त थी | मल्लसर्ज कित्तूर राज्य के ग्यारहवें शासक थे। वह धीर, गंभीर, साहसी, स्वाभिमानी और कलाप्रेमी राजा थे उनकी महत्त्वाकांक्षा कित्तूर को अति संपन्न राज्य बनाने की थी, किंतु पूना के पटवर्धन ने चालाकी और मक्कारी से उनको बंदी बना लिया। अंत में बंदी के रूप में ही उनकी मृत्यु हो गई। राजा की बड़ी रानी थी रुद्रम्मा और छोटी थी चेन्नम्मा |
चेन्नम्मा अत्यंत रूपवती और गुणवती थी। उसने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन उसकी अकाल मृत्यु हो गई। राजा मल्लसर्ज की मृत्यु के बाद चेन्नम्मा ने रुद्रम्मा के पुत्र शिवलिंग रुद्रसर्ज को अपना वात्सल्य प्रदान किया और राज-काज में भरपूर पथप्रदर्शन किया।
उस समय तक भारत में अंग्रेज़ी राज्य की जड़ें दूर-दूर तक फैल चुकी थीं, जहां-जहां उनका राज्य पहुंचा था वहां-वहां अंग्रेजों का पूरा आतंक था। दक्षिण में धारवाड़ ईस्ट इंडिया कंपनी का एक प्रमुख केंद्र बना हुआ था। वहां भी अंग्रेजों का खूब दबदबा था। कंपनी सरकार के अंग्रेज़ कर्मचारी भारत में सब जगह अपने राज्य का विस्तार करने की ताक में रहते थे, अतः धारवाड़ के समीपवर्ती क्षेत्र में कित्तूर के छोटे राज्य का स्वतंत्र रहना उन्हें पसंद नही आया। वह उनकी आंख में कांटे की तरह खटकने लगा। अंग्रेजों की लालची निगाहें कित्तूर के राजकोष और राज्य की अतुल धनराशि पर लगी हुई थी। उस समय कित्तूर का शासक राजा मल्लसर्ज की बड़ी रानी के पुत्र राजा शिवलिंग रुद्रसर्ज ही था, वह अंग्रेजों का मित्र था और उसने समय-समय पर अंग्रेजों की सहायता की थी लेकिन छल-बल से अपने राज्य का विस्तार करने की इच्छा रखने वाले अंग्रेजों ने उसकी मित्रता शीघ्र ही भुला दी और ११ सितंबर १८२४ को उसकी मृत्यु होने पर उन्होंने कित्तूर राज्य को हड़पने का बड़ा अच्छा अवसर समझा। उनको एक बहुत अच्छा बहाना भी मिल गया, क्योंकि राजा निःसंतान मरा था। वैसे मृत्यु से पूर्व राजा ने अपने एक संबंधी गुरुलिंग मल्लसर्ज को गोद ले लिया था और वसीयत की थी कि राज्य का भार राजमाता चेन्नम्मा संभाले।
अंग्रेज़ उन दिनों ऐसी रियासतों को हथिया लेने की ताक में रहते थे, जिनके राजा निःसंतान मरते थे | गोद लिए हुए पुत्र को वह उत्तराधिकारी नहीं मानते थे। उस समय के गवर्नर जनरल डलहौजी की यह नीति थी। अतः शिवलिंग रुद्रसर्ज की मृत्यु होते ही धारवाड़ के कलेक्टर और राजनीतिक एजेट (प्रतिनिधि) थैकरे ने गोद लिए हुए पुत्र गुरुलिंग मल्लसर्ज को कित्तूर राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया और कित्तूर को अंग्रेज़ी राज्य में मिलाने की भरसक कोशिश करने लगा।
थैकरे ने रानी चेन्नम्मा को भांति-भांति के संदेश भेजे और प्रलोभन दिए। मगर रानी अपनी स्वाधीनता का सौदा करने पर राजी न हुई। किंतु शीघ्र ही थैकरे को अपना इरादा पूरा करने के लिए कित्तूर राज्य के यल्लप्प शेट्टी और वेंकटराव नामक दो देशद्रोही मिल गए। थैकरे ने उन्हें कित्तूर का आधा-आधा राज्य सौंप देने का लालच दिया। बदले में वे कित्तूर के सभी भेद खोलने और भरसक सहायता देने को तैयार हो गए। यल्लप्प ने थैकरे को बताया कि जब तक रानी चेन्नम्मा मौजूद है, कंपनी सरकार की दाल नहीं गल सकती। उधर रानी चेन्नम्मा अंग्रेजों के दांव-पेंच और कूटनीति का सामना करने के उपाय सोचने लगी। उसे निराशा का कोई कारण दिखाई नहीं देता था, क्योंकि यदि कित्तूर में यल्लप्प शेट्टी और वेंकटराव जैसे देशदोही निकल आए थे तो वहां गुरु सिद्दप्पा जैसे कुशल दीवान और बालर्ण्या, रायर्ण्या, गजवीर और चेन्नवासप्पा जैसे वीर योद्धा भी थे, जिनके रहते कित्तूर के लिए तुरंत कोई खतरा न था। रानी ने अपने विश्वासी दीवान से राय करके थैकरे को यह जवाब दिया कि कित्तूर राज्य के उत्तराधिकारी का प्रश्न राज्य का निजी प्रश्न है, जिसमें कम्पनी सरकार को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। कित्तूर स्वतंत्र राज्य है और स्वतंत्र ही रहेगा। इसके लिए आवश्यक हुआ तो हम युद्ध भी करेंगे, वरना हमें शांति पसंद है।
राज्य की जनता के नाम रानी चेन्नम्मा ने यह संदेश दिया कि “कंपनी सरकार हमसे कित्तूर लेना चाहती है लेकिन जब तक तुम्हारी रानी की नसों में रक्त की एक भी बूंद है, कित्तूर किसी के सामने सिर नहीं झुकाएगा। पराधीन होने से मर जाना अच्छा है, इसलिए राज्य को दासता की जंजीरों से बचाने के लिए मैं अंग्रेजों से सशस्त्र संग्राम ठानूंगी।“
कित्तूर की जनता अंग्रेजों की चाल से भली-भांति परिचित थी और तन-मन-धन से अपनी रानी चेन्नम्मा के साथ थी। २१ अक्तूबर १८२४ तक शान्ति बनी रही, किंतु अवसर देखकर अंग्रेजों ने कित्तूर राज्य के क्षेत्र में अपने सिपाही बैठा दिए। थैकरे स्वयं बड़ी सेना लेकर कित्तूर जा पहुंचा। रानी उससे हतोत्साहित नहीं हुई। उसके राज्य में पहले से ही सर्वत्र युद्ध की तैयारियां होने लगी थीं, रानी ने बड़े रणकौशल के साथ अंग्रेजों से जूझने की योजना बना रखी थी। उसने सेना की कमान बालर्ण्या, रायर्ण्या, गजवीर और चेन्नवासप्पा आदि योद्धाओं के हाथों में सौंप दी।
२३ सितंबर १८२४ का दिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्मरणीय रहेगा। उस दिन कित्तूर के किले पर अंग्रेजों का घेरा पड़ गया और उनके मदांध नेता थैकरे ने किले के बाहर से धमकी दी, तभी अचानक किले का फाटक खुला और मर्दने वेश में रानी चेन्नम्मा शेरनी की भांति अंग्रेज़ों की सेना पर टूट पड़ी। उसके पीछे दो हजार देशभकतों की जुझारू फौज थी। भयानक युद्ध हुआ। कित्तूर के सैनिक अपने प्राण हथेली पर रखकर आए थे। रानी की प्रेरणा ने उनमें बिजली की शक्ति भर दी। उनके प्रचंड वेग को अंग्रेज़ सेना न सह सकी। चेन्नम्मा की तलवार ने कहर मचा दिया, थैकरे मारा गया और अंग्रेज़ सेना भाग खड़ी हुई। देशद्रोही यल्लप्पा शेट्टी और वेंकटराव का भी काम तमाम कर दिया गया | बहुत से सैनिक और गोरे अफसर मारे और बंदी बना लिए गए। चेन्नम्मा ने अंग्रेज़ अफसरों के साथ उदारता का व्यवहार किया और उन्हें छोड़ दिया।
थोड़े ही दिनों में स्वतंत्रता की यह लपट मालप्रभा और कित्तूर के निकटवर्ती सभी इलाकों में फैल गई और मद्रास और बंबई से अंग्रेजों को बहुत बड़ी कुमुक मंगानी पड़ी। कित्तूर के किले पर अंग्रेजों का दूसरा बड़ा घेरा ३ दिसम्बर, १८२४ को पड़ा। इस बार अंग्रेजों की सेना की कमान डीकन के हाथ में थी। अंग्रेजों के पास सेना भी अधिक थी और हथियार भी अधिक थे। लेकिन कित्तूर के देशभक्तों की वीरता के सम्मुख उसे दोबारा हार माननी पड़ी। ५ दिसंबर १८२४ को अग्रेजों ने पुनः सारी शक्ति लगाकर घेरा डाला। कित्तूर की बची-खुची शक्ति इक्ट्ठी करके रानी चेन्नम्मा ने एक बार फिर अंग्रेजों के आक्रमण का सामना किया और कित्तूर के रणबांकुरों ने अपनी जान की बाजी लगाकर किले की रक्षा की मगर अंग्रेजों की सुसज्जित सेना और भारी तोपखाने का मुदट्ठी भर स्वाभिमानी देशभक्त भला कब तक सामना करते। यही नहीं, गिने-चुने देशद्रोहियों के के कामो ने कित्तूर की रही-सही शक्ति की कमर तोड़ दी। रणचंडी रानी चेन्नम्मा बंदी बना ली गई। अंग्रेजों ने कित्तूर को लूट लिया और तीन हजार घोड़े, सैंकड़ों हाथी, दो हजार ऊंट, ३६ लोहे और कांसे की तोपें, ५६०० बंदूकें, १४ लाख नकद रुपया, हीरा-मोती और स्वर्ण आभूषण उनके हाथ लगा। रानी चेन्नम्मा को बेलहोंगल के दुर्ग में कारागार में डाल दिया गया।
गुरु सिद्दप्पा सहित कित्तूर के बीस सरदारों को फांसी दे दी गई। अकेले रायर्ण्या बचकर भाग निकले। कुछ वर्षों तक वह अग्रज़ों को खूब छकाते रहे, लेकिन गुप्तचरों की सहायता से अंत में पकड़े गए। उन्हें भी फांसी पर चढ़ा दिया गया।
रानी चेन्नम्मा ने यह समाचार बेलहोंगल के बंदीगृह में सुना और २१ फरवरी, १८२९ को उनकी जीवन ज्योति भी सदा के लिए बुझ गई।
इस प्रकार स्वतंत्रता संग्राम का एक रक्तरंजित अध्याय समाप्त हो गया| कर्नाटक में आज भी कित्तूर की रानी चेन्नम्मा की वीर गाथा घर-घर सुनाई देती है।
FAQ`s
Questation : रानी चेन्नम्मा का जन्म कब हुआ था ?
Answer : रानी चेन्नम्मा का जन्म २३ अक्तूबर १७७८ को हुआ था |
Questation : रानी चेन्नम्मा का जन्म कहा हुआ था ?
Answer : रानी चेन्नम्मा का जन्म काकती,बेलगाव(मैसूर) मे हुआ था |
Questation : रानी चेन्नम्मा के पिता का क्या नाम था ?
Answer : रानी चेन्नम्मा के पिता का नाम धूलप्पा देसाई था | वे राजा थे |
Questation : रानी चेन्नम्मा के माता का क्या नाम था ?
Answer : रानी चेन्नम्मा के माता का नाम पद्मावती था |
Questation : रानी चेन्नम्मा के पति का क्या नाम था ?
Answer : रानी चेन्नम्मा के पति का नाम मल्लसर्ज था | वह कित्तूर, मैसूर राज्य, कर्नाटक के राजा थे |
Questation : रानी चेन्नम्मा के कितने बच्चे थे ?
Answer : रानी चेन्नम्मा ने एक पुत्र को जन्म दिया था, लेकिन उसकी अकाल मृत्यु हो गई। राजा मल्लसर्ज की मृत्यु के बाद चेन्नम्मा ने रुद्रम्मा(पटरानी) के पुत्र शिवलिंग रुद्रसर्ज को अपना वात्सल्य प्रदान किया और राज-काज में भरपूर पथप्रदर्शन किया।
Questation : रानी चेन्नम्मा की मृत्यु कब हुई ?
Answer : रानी चेन्नम्मा की मृत्यु २१ फरवरी, १८२९ को बेलहोंगल के बंदीगृह मे हुई |
Questation : रानी चेन्नम्मा कहाँ की रानी थी ?
Answer : रानी चेन्नम्मा कित्तूर की रानी थी | कित्तूर कर्नाटक यानी मैसूर राज्य के उत्तरी बेलगांव जिले में है। पूना से बंगलौर जाने वाली सड़क पर कित्तूर बेलगांव से ५ मील की दूरी पर स्थित है।
Questation : चेन्नम्मा का विवाह किससे हुआ था ?
Answer : चेन्नम्मा का विवाह कित्तूर के राजा मल्लसर्ज से हुआ था |
Questation : रानी चेन्नम्मा का जन्म किस घराने मे हुआ था ?
Answer : रानी चेन्नम्मा का जन्म २३ अक्तूबर १७७८ में काकतीय राजवंश में हुआ |
Questation : चेन्नम्मा शब्द का अर्थ क्या है ?
Answer : चेन्नुम्मा शब्द का अर्थ है सुंदर कन्या |
Questation : अंग्रेज़ो से संघर्ष करने वाली कित्तूर की महारानी कौन थी ?
Answer : अंग्रेज़ो से संघर्ष करने वाली कित्तूर की महारानी चेन्नुम्मा थी |