लूत की कथा । Lut Ki Kahani
ईश्वर के दूत जब ‘लूत’ के पास गये, तो वह डरा । उसके आस्वाभाविक व्यभिचारशील जातिवाले उनके पास दौड़ आये । लूत ने उनसे कहा कि भाई, यह स्पर्शरहित मेरी लड़कियाँ मौजूद हैं, इनसे अपनी इच्छा पूर्ण करो । ईश्वर से डरो और मुझे अपने अतिथियों में बदनाम न करो ।
उन्होंने कहा – “हमें तेरी लड़कियों से कोई मतलब नहीं, हम क्या चाहते हैं, यह तू जानता ही है । अतिथितों ने लूत को भयभीत दुख कहा – “लूत ! हम ईंश्वर के दूत हैं, तू डर मत । आज रात में ही घर छोड़ निकल जा, और पीछे फिर कर देखना नहीं । तेरी स्त्री अभाग्य की मारी पीछे मुड़कर देखेगी और जो पड़ना हैं, उस पर पड़ेगा ।“
दूसरे दिन प्रभु का कोप हुआ और दूतों ने उस बस्ती को पलट (तर का ऊपर) कर दिया, तथा उस पर पत्थर बरसाया ।” (११:७:१०-१४)
दूर से स्थान पर यही वर्णेन इस प्रकार आया है –
“लूत ने अपनी जाति को कहा – “क्या ऐसी निरलज्जता करते हो जिसे तुमसे पहिले संसार में किसी ने न किया । तुम कामातुर हो, स्त्रियों को छोड़ मर्दो पर दौड़ते हो । जातिवालों ने कहा – “निकालो इनको, यह बड़े पुण्यात्मा बनना चाहते है । भगवान ने एक स्त्री के अतिरिक्त जो पीछे रह गई थी; सारे कुटुम्ब को बचा लिया ।” (२७:४:११)
एक और स्थान पर लूत का उपदेश इन शब्दों में है –
उनके भाई लूत ने कहा – “मैं तुम्हारे लिये विश्वासपात्र प्रभु प्रेरित हू । सो प्रभु को डरो और मेरा कहा मानो । क्या तुम संसार के मर्दो पर दौड़ते हो, और तुम्हारे ईश्वर ने जिन्हे तुम्हारे लिये बनाया, उन अपनी स्त्रियों को छोड़ते हो; तुम मर्यादा के उल्लंघन करने वाले हो ।” (२६:६:३,७)
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