वामन शिवराम आप्टे | Vaman Shivram Apte
प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री वामन शिवराम आप्टे (Vaman Shivram Apte) के पिता का नाम शिवराम और कुलनाम आप्टे था। वामन के दो ज्येष्ठ भाई थे। तीनों भाई बद्धिमान थे और पाठशाला में सभी शिक्षक और विद्यार्थी उनको पहचानते थे। वामन का जन्म १८५८ में हुआ था और जब वह सात या आठ बरस के थे, उनके पिताजी का स्वर्गवास हो गया। कुछ समय बाद उनकी माता और सबसे बड़े भाई भी चल बसे।
वामन शिवराम आप्टे की शिक्षा
पड़ोसियों ने छोटे भाइयों की अच्छी मदद की और उनको पढ़ाई में बाधा नहीं पड़ी। बंबई विद्यापीठ की १८७३ की मैट्रिक की परीक्षा में वामन ने संस्कृत में ९० प्रतिशत अंक प्राप्त किए थे और उनको जगन्नाथ शंकर शेट छात्रवृति मिल गई। उस समय उनकी उम्र १५ साल थी। अब तक इस छात्रवृति को प्राप्त करने वाले सभी विद्यार्थी कुशल अधिकारी, समर्थ प्रशासक या प्रसिद्ध शिक्षक बने थे। इसलिए आप्टे के भविष्य के बारे में लोगों को उच्च आकांक्षाएं पैदा हो गईं।
बी.ए. और एम.ए. की परीक्षाएं भी वामन ने प्रथम श्रेणी में पास की। सबसे अधिक अंक प्राप्त करने के कारण उन्हें भाऊदाजी और भगवानदास पुरस्कार मिले। उनको किसी सरकारी दफ्तर में या स्कूल-कालेज में नौकरी बड़ी आसानी से मिल जाती, पर उन दिनों वातावरण कुछ और ही था और युवकों में मातृभूमि की सेवा करने का भाव जाग उठा था। इसलिए सरकारी नौकरी करना वामन को बिलकुल पसंद नहीं आया। उनको शिक्षक बनना अधिक पसंद था। कुछ महीने मिशन स्कूल में बिताकर वामन न्यू इंगलिश स्कूल में, जो तिलक आदि ने खोला था, शिक्षक हो गए।
वामन शिवराम आप्टे के कार्य
१८८० में २२ साल की उम्र में ही वह इस स्कूल के अधीक्षक बन गए। न्यू ईंगलिश स्कूल की प्रगति इसी तेजी से हुई कि लोगों ने सरकारी हाईस्कूल में जाना बंद कर दिया। लोगों में यह भावना फैल गई कि सरकारी हाईस्कूल राष्ट्रीयता विरोधी है। फलस्वरूप न्यू इंगलिश स्कूल में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ती गई और सरकारी हाईस्कूल में कम होती गई।
इसी बीच तिलक, आगरकर आदि कालेज खोलने की व्यवस्था कर रहे थे| यह पहले से ही तय था कि वामन उसके प्रिसिंपल होंगे | १८८५ में जब फर्ग्युसन कालेज खुला, तो २७ वर्ष के श्री वामन उसके प्रिंसिपल बने। न्यू इंगलिश स्कूल में वामन को सभी चाहने लगे थे, यद्यपि उनका अनुशासन बड़ा ही कठोर था। उस समय महाराष्ट्र समाज में ही कुछ शिथिलता आ गई थी, जिससे अनुशासन की बड़ी आवश्यकता थी। न्यू इंगलिश स्कूल में अनुशासन लाने में सुपरिटेडेंट वामन को अपार कष्ट उठाने पड़े थे।
वामन की लोकप्रियता का विशेष कारण उनके पढ़ाने का न्यारा ढंग था। विद्यार्थियों के सामने जो भी कठिनाइयां आती थीं, उनको अच्छी तरह जानकर उनको दूर करने में वामन बड़ी मदद करते थे। उनके पढ़ाने का ढंग ही ऐसा था कि छात्रगण विषय को जल्दी ही समझ लेते थे और एक बार पढ़ाया हुआ पाठ वे कभी नहीं भूलते थे। वामनराव संस्कृत पढ़ाने में बड़े कुशल थे। व्याकरण हो या काव्य, नाटक या और कुछ कठिन पाठ, वामनराव के पढ़ाने के अपूर्व ढंग से छात्र बहुत प्रभावित होते थे।
वामन शिवराम आप्टे की संस्कृत निबंध
न्यू इंगलिश स्कूल से फर्ग्यूसन कालेज में पहुंचने पर वामनराव ने “स्टुडेंट्स गाइड टु संस्कृत कम्पोजीशन” अर्थात संस्कृत निबंध लेखन में छात्रों का मार्गदर्शक नामक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक के अनुवाद किए गए। गह मार्गदर्शक अंग्रेजी माध्यम के पाठकों के लिए लिखा गया था | उस समय दूसरे माध्यम का प्रश्न ही न था। इस मार्गदर्शक की किंतनी प्रतियां छपीं, कहां-कहां उसका उपयोग हुआ, इसकी गिनती नहीं हो सकती।
१९३४ तक इसके ग्यारह संस्करण निकल चुके थे। फिर दूसरी भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ। यह अपनी तरह की एक ही पुस्तक थी। शुरू से फर्ग्यूसन कालेज के प्रिंसिपल रहने के कारण आप्टे को खूब मेहनत करनी पड़ी। यह पहला स्वदेशी कालेज था, पूना में दूसरा कालेज था डेक्कन कालेज, जिसके प्रिंसिपल प्रारंभ से ही अंग्रेज रहे। उन दिनों भारतीय शिक्षक प्रिंसिपल की जिम्मेदारी सम्हालने के अयोग्य समझे जाते थे। आप्टे पढाते और छात्रगणों तथा प्राध्यापकों में अनुशासन रखते, किंतु साथ ही छात्रगणों की सुविधा के लिए, पुस्तकें लिखने में भी व्यस्त रहते
वामन शिवराम आप्टे की संस्कृत-अंग्रेजी कोश
आप्टे ने एक संस्कृत-अंग्रेजी कोश बनाया जिससे वह संसार में अपना नाम अमर कर गए। कोश की विशेषता यह है कि अर्थ के साथ-साथ उन प्राचीन ग्रंथों के उद्धरण भी दिए गए हैं, जहां वे शब्द इस्तेमाल किए गए हैं। शब्दों के कई अर्थ होने के कारण निश्चित अर्थ का संकेत करने में यह उद्धरण बहुत सहायक सिद्ध होते हैं। एक-एक शब्द के दर्जनों अर्थ देकर उनके समर्थन में उतने ही उद्धरण दिए गए हैं। इस कोश से संस्कृत साहित्य में बार-बार निर्दिष्ट होने वाले व्यक्तियों का चरित्र परिचय भी दिया गया है।
इसके अतिरिक्त तीन परिशिष्टों में छंदशास्त्र, पुराने विद्वानों का काल और पुराने भौगोलिक स्थलों की सूचना दी गई है। छात्रों की सुविधा के लिए कोश का दाम केवल सात रुपये रखा गया। बाद में उसकी उपयोगिता को देखते हुए सरकार ने केवल छः रुपये में इसके बेचने की व्यवस्था की।
इस कोश के अतिरिक्त आप्टे ने अंग्रेजी-संस्कृत कोश भी बनवाया| उन्होंने दो पुस्तकें- “प्रोग्रेसिव एक्सरसाइजेज़” और “कुसुममाला” छपवाई। संस्कृत पठन-पाठन की सुविधाएं बढ़ाने के विषय में आप्टे सदैव चिंतित रहते थे। विद्यार्थियों का इतना हित और किसी प्राध्यापक या शिक्षक ने जीवन भर अपने सामने रखा नहीं।
न्यू इंग्लिश स्कूल और फर्ग्यूसन कालेज इन दोनों शिक्षण संस्थाओं का कारोबार डेक्कन एज्यूकेशन सोसायटी के अधीन था। इस सोसायटी की स्थापना १८८४ में हुई थी। इसके संस्थापक थे – होनहार युवक बाल गंगाधर तिलक, गोपाल गणेश आगरकर, विष्णु कृष्ण चिपलूनकर, वामन शिवराम आप्टे और दो या तीन अन्य युवक। सोसायटी द्वारा संचालित दोनों संस्थाओं की जिम्मेदारी आप्टे ने संभाली। उन्होंने ही इन दोनों संस्थाओं की नींव रखी थी। आज दोनों संस्थाओं का कार्यक्षेत्र बहुत बढ़ गया है।
वामन शिवराम आप्टे की मृत्यु
आप्टे फर्ग्यूसन कालेज में केवल सात वर्ष काम कर सके। १ अगस्त १८९२ को पूना में उनका देहांत हो गया। कुछ दिन पहले उनको विषम ज्वर हो गया था। उनकी मृत्यु से महाराष्ट्र के शिक्षा क्षेत्र में बड़ी भारी क्षति हुई। आप्टे जैसा संस्कृत पंडित-प्राध्यापक अभी तक महाराष्ट्र में पैदा नहीं हुआ।