चन्द्रगुप्त मौर्य
महावीर और बुद्ध के समय
में भारत छोटे छोटे राज्यों में बटा हुआ था | वे आपस में लड़ते भिड़ते रहते थे | बहुत
समय तक ऐसा कोई प्रतापी राजा नहीं हुआ जो इन छोटे छोटे राज्यों को मिला कर एक बडा
राज्य स्थापित कर सकता था | जिस राजा ने यह काम पूरा किया, उसका नाम था
चन्द्रगुप्त मौर्य |
भारत में पहली बार इतना बडा
साम्राज्य स्थापित करने के कारण चन्द्रगुप्त मौर्य भारत के पहले एतिहासिक सम्राट
माने जाते है | उन्ही के समय से भारत का क्रमबद्ध इतिहास मिलना शुरू होता है |
चन्द्रगुप्त मौर्य की कहानी
भारतीय इतिहास के उस युग की कहानी है जब उत्तर और एक सीमा तक दक्षिण भारत पहली बार
एक संगठित और शक्तिशाली साम्राज्य के अंग बने | चन्द्रगुप्त मौर्य की कहानी भारत के
राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक एकता की कहानी है |
चन्द्रगुप्त मोरियवंशी
क्षत्रिय था | मोरिय क्षत्रिय उस शाक्य वंश के क्षत्रियो की एक शाखा थे जिसमे
भगवान् बुद्ध ने जन्म लिया था | चन्द्रगुप्त के पिता मोरिय क्षत्रियो के सरदार थे
| कहा जाता है कि जब चन्द्रगुप्त अपनी माता के गर्भ में था, तभी उनके पिता एक लडाई
में मार डाले गए | उनको सहारा देने वाला कोई नहीं रह गया |
कोई और चारा न देखकर चन्द्रगुप्त
के मामा अपनी बहन को मगध राज्य की राजधानी पाटलीपुत्र ले आए | यही चन्द्रगुप्त का
जन्म हुआ | ऐसा कहा जाता है की बच्चे को पालने के भार के कारण उसकी माँ ने किसी
भले और अमीर आदमी के गायो के बाड़े में उसे छोड़ दिया | सौभाग्य से उन गायो का मालिक
चन्द्रगुप्त को अपने बच्चे की तरह पालने लगा | जब चन्द्रगुप्त कुछ बड़ा हुआ तब उस
व्यक्ति ने उसे एक शिकारी के हाथो बेच दिया | शिकारी के चन्द्रगुप्त को अपने मवेशी
चराने का काम सौप दिया |
चन्द्रगुप्त में बचपन से ही
नेतृत्व के गुण दिखाई पड़ने लगे | वह दुसरे लडको के साथ गाव के बाहर ढोर चराने जाते थे| जब ढोर चरने में लग जाते तब वह लड़के राजा और प्रजा का खेल खेलते थे | ऐसे खेलो
में चन्द्रगुप्त राजा बनकर ठाठ से एक उचे टीले पर बैठ जाते | बाकी लड़के उसके चारो
तरफ दरबारी बनकर बैठ जाते |
यु तो शायद चन्द्रगुप्त
जीवन भर गाव में गाय भैस ही चरते रहता, लेकिन भाग्य को तो कुछ और ही स्वीकार था |
एक दिन जब वह अपने साथियो के साथ राजा प्रजा का खेल, खेल रहे थे, तब उसी समय उधर
से चाणक्य गुजरे | उन्होने बच्चो को खेलता देखा तो रूक गए | | उनकी पैनी दृष्टि
में एक मिनट में चंद्रगुप्त की सारी छीपी हुई योग्यता और प्रतिभा परख ली | जब खेल
ख़त्म हो गया, तब चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को साथ लेकर उनके मालिक उसी शिकारी के पास
गए, जिसकी मवेशी चन्द्रगुप्त चरते थे | उस शिकारी को चाणक्य ने एक हजार कार्षापण (मुद्रा) देकर
चन्द्रगुप्त को खरीद लिया और अपने साथ पाटलिपुत्र से तक्षशिला ले गए | तक्षशिला
में चाणक्य ने उसे अपनी देखरेख में साथ-आठ वर्ष तक शस्त्र और युद्ध विद्धया सिखाई
साथ ही शास्त्रों का भी अध्यन कराया |
चाणक्य और चन्द्रगुप्त की
यह भेट एक ऐसी घटना है जिसने इन दोनों व्यक्तियो के जीवन की ही नहीं, बल्कि भारत
के इतिहास की भी धारा बदल दी | इस घटना के महत्त्व को ठीक से समझने के लिए यह
जरूरी है की हम उस समय के भारत की राजनीतिक दशा पर भी निगाह डाले | ऐसा अनुमान है
की जिस समय चन्द्रगुप्त तक्षशिला में चाणक्य के पास रह कर विद्या अध्यन कर रहे थे | उसी समय प्रसिद्द यूनानी विजेता सिकंदर का भारत पर हमला हुआ | सिकंदर के हमले के
समय भारत का पश्चिमी भाग छोटे छोटे राज्यों में बटा हुआ था |
चन्द्रगुप्त और चाणक्य
दोनों ही सिकंदर के हमले के समय तक्षशिला में थे | उन्होंने देखा की विदेशी सिकंदर
ने भारतीय राजाओ की फूट और कमजोरी का लाभ उठा कर किस तरह पश्चिमी भारत को गुलामी
की जंजीरों में जकड दिया था | दोनों के दिलो में युनानियो के हाथो होने वाली पराजय
काँटों की तरह खटक रही थी | सिकंदर जब भारत में रहा, तब तक वो दोनों चुप रहे,
किन्तु सिकंदर के मुह फेरते ही चाणक्य और चन्द्रगुप्त ने अपने देश को विदेशी शासन
से मुक्त कराने और भारत भूमि को यूनानी शासन का नमो-निशान मिटा देने के लिए जी तोड़
महनत शुरू की |
चन्द्रगुप्त अत्यंत वीर और
साहसी नौजवान था | चाणक्य के पास रहकर उसने युद्ध विद्धया का विशेष रूप से अध्ययन
किया था | यही नहीं, उसने सिकंदर जैसे योग्य सेनापति की युद्ध संचालन कला को भी
बड़ा-देखा समझा था | भारतीय और यूनानियो के बीच जो युद्ध हुए, उनमे उसे यूनानी
युद्ध कला की विशेषताए और भारतीयों के लड़ने के तरीको की कमजोरिया देखने का अवसर
मिला | उसने इन सब से जो सबक सिखा, उसका उसने अवसर मिलने पर पूरा-पूरा लाभ उठाया |
यूनानी इतिहासकारों ने लिखा है की चन्द्रगुप्त सिकंदर से भी मिला था | सिकंदर उससे
बहुत प्रभावित हुआ और उसने भविष्यवाणी की कि यह युवक आगे चलकर बहुत बड़े काम करेगा
|
चाणक्य ने यूनानियो को भारत
से भगाने की एक योजना बनाई और इस योजना को पूरा करने का भार उन्होंने चन्द्रगुप्त
पर डाला | इसके लिए एक बड़ी सेना भी जरूरी थी |
दोनों ने घूम घूम कर पंजाब
की जनता को विदेशी शासन के विरूद्ध उठ खडा होने को प्रेरित किया | धीरे धीरे चन्द्रगुप्त
को अपनी सेना के लिए सैनिक मिलने लगे |
चन्द्रगुप्त ने फौज में
शामिल होने वाले युवाओ को युद्ध कला की शिक्षा देकर उन्हें बढ़िया सैनिक बना दिया |
इसके बाद उसने यूनानियो के खिलाफ खुली लड़ाई छेड दी | नतीजा यह हुआ की सिकंदर के
जाने के तीन वर्ष के भीतर ही चन्द्रगुप्त ने भारत को यूनानियो से खाली कर दिया और
विदेशी शासन के चिन्ह तक मिटा डाले |
पश्चिमी भारत को विदेशियों
से मुक्त कर चन्द्रगुप्त का ध्यान मगध की ओर गया | मगध पर हमला करने में बहुत सोच
विचार की जरूरत थी | मगध का राजा बड़ा शक्तिशाली था और उसके पास सेना भी बहुत बड़ी
थी | चन्द्रगुप्त समझता था की उसके पास जो सेना है, वह मगध को जितने के लिए काफी
नहीं है | लेकिन दो बाते उसके पक्ष में थी | पहली यह की चाणक्य जैसा कुशल और
तीव्रबुद्धि कूटनीतिज्ञ उनके सहायक थे | दुसरे, मगध का शासक धनानन्द अपनी प्रजा
में बड़ा ही अप्रिय था | लोग उससे बहुत असंतुष्ट थे |
चन्द्रगुप्त को मगध जीतने मे जितनी मदद अपने फौज से मिली, उससे कही
अधिक मदद चाणक्य की कूटनीति से मिली | मगध के सेना बहुत बड़ी थी
| इतनी बड़ी सेना से आमने सामने लड़कर हराना मुश्किल नही असंभव
था | लेकिन राजा की असली ताकत उसकी जनता की खुशी होती है | नन्द की प्रजा उससे बहुत नाराज थी | उधर चाणक्य ने अपनी
कूटनीति से नन्द के बहुत से अधिकारीयो को अपनी ओर मिला लिया था | चन्द्रगुप्त ने मगध की सेना को युद्ध मे हरा दिया और मगध पर अधिकार कर लिया
| पंजाब को तो वह पहले ही जीत चुका था | अब मगध साम्राज्य भी उसके अधिकार मे था |
मगध, पंजाब और सीमा प्रांत पर अधिकार करके चन्द्रगुप्त
अन्य दिशाओ की ओर मुडा | चन्द्रगुप्त ने ऐसा केवल साम्राज्य लालच
के कारण नही किया बल्कि उसने देख लिया था की जब तक देश मे छोटे छोटे राज्य रहेंगे, उनमे फूट पैदा हो सकती है और विदेशी उससे लाभ उठा सकते है |
चंद्रगुप्त ने ६ लाख सैनिको की एक बहुत बड़ी सेना इकट्ठी की और
विजय यात्रा पर निकाल पड़ा | जिस राजा ने उसका मुक़ाबला किया वही बुरी तरह
हारा |
लेकिन एक और विपत्ति अभी बाकी थी | सिकंदर
के मरने के बाद उनके सेनापतियो मे बंदर बाँट हुई और उनमे आपस मे संघर्ष छिड़ गया | इस संघर्ष मे सेल्यूकस नामक एक सेनापति विजयी हुआ | सेल्यूकस
ने सिकंदर द्वारा जीते गए उन भारतीय प्रदेशो को फिर जीतने की ठानी, जिस पर अब चन्द्रगुप्त ने अधिकार कर लिया था | वह बड़ी
भारी सेना लेकर आया | इस बार यूनानियों को आम्भी जैसे विश्वासघात
से नही, बल्कि चन्द्रगुप्त के समर्थ नेतृत्व मे संगठित भारत
के साथ लोहा लेना पड़ा | चन्द्रगुप्त ने सेल्यूकस को बुरी तरह
हराया | सेल्यूकस ने चन्द्रगुप्त के साथ संधि कर ली और अपनी कन्या
का विवाह चन्द्रगुप्त से कर दिया और हिरात, कंधार, काबुल की घाटी और बलूचिस्तान के प्रदेश भी चन्द्रगुप्त को सौप दिया | यही नही, मेगस्थनीज़ नामक अपना एक दूत उसकी राज्य सभा
मे भेजा | चन्द्रगुप्त ने भी सेल्यूकस को हाथी भेट किए |
इस प्रकार धीरे धीरे चन्द्रगुप्त के राज्य का विस्तार पूर्व
मे बंगाल से लेकर पश्चिम मे अफगानिस्तान तक और उत्तर मे हिमालय से लेकर नर्मदा नदी
तक हो गया | चन्द्रगुप्त का राज्य दूर दूर तक फैला हुआ था | इतने बड़े साम्राज्य का प्रबंध करना कोई आसान काम नही था |
साम्राज्य का प्रधान स्वयं सम्राट चंद्रगुप्त था | सेना, न्याय आदि मे उनका निर्णय अंतिम होता था | युद्ध मे
वह खुद सेनाओ को युद्धभूमि मे ले जाते थे | प्रजा के आवेदन पत्रो
पर वह स्वयं विचार करते थे | मेगस्थनीज़ ने तो यहा तक लिखा है
की सम्राट जिस समय अपने महल मे मालिश कराते
थे प्रजा उस समय भी उनसे मिल सकती थी | साम्राज्य के ऊचे ऊचे
अधिकारियो को सम्राट स्वयं नियुक्त करते थे | देश का शासन चलाने
के लिए चन्द्रगुप्त की एक मंत्री परिषद थी |
शासन की सुविधा के लिए सारा साम्राज्य कई प्रांतो मे बंटा हुआ
था | मगध और उसके आस पास के प्रदेशो पर सम्राट स्वयं सीधा शासन करता था | गाव का शासन ग्राम सभा करती थी, जिसमे गाव के वृद्ध
लोग सदस्य होते थे |
ग्राम सभा को बहुत से अधिकार प्राप्त थे | मामूली झगडो के फैसले
ग्राम सभा ही करती थी और वह अपराधियो को दंड
भी दे सकती थी |
चन्द्रगुप्त ने सेना मे ६ लाख पैदल, तीस हजार
घोड़े, नौ हजार हाथी और आठ हजार रथ थे |
इसके लिए भी चन्द्रगुप्त मे अलग विभाग बनाया | चन्द्रगुप्त ने
अपनी सेना का प्रबंध इस कुशलता से किया था की उसके शासन काल मे किसी को भारत पर आक्रमण
करने का साहस नही हुआ | राज्य के भीतर जनता की रक्षा के लिए एक
विभाग अलग से था |
चन्द्रगुप्त की दंडनीति बड़ी कठोर थी | राज्य
मे बहुत कम अपराध होते थे और प्रजा सुख चैन से रहती थी |
चन्द्रगुप्त ने भूमि की सिचाई की ओर बहुत ध्यान दिया | सौराष्ट
मे जूनागढ़ के एक शिलालेख से पता चलता है की उसने एक पहाड़ी नदी के जल को बांधकर “सुदर्शन
झील” नामक एक बड़े जलाशय का भी निर्माण किया था जिससे सिंचाई के लिए नहरे निकाली गई | चन्द्रगुप्त ने प्रजा के हित का सदा ध्यान रखा | उसने
तालाब और नहरे ख़ुदवाई, सड़के बनवाई और सडको पर दूरी बताने के चिन्ह
भी लगवाए | उसने पेशावर से पाटलिपुत्र तक लगभग बारह सौ मील लंबी
एक बहुत बड़ी सड़क बनवाई थी | अपने २४ वर्षो के राज्य काल मे उन्होने
पूरी योग्यता से शासन काल चलाया |