सर फ्रांसिस ड्रेक | फ्रांसिस ड्रेक का जीवन परिचय | Sir Francis Drake in Hindi | Sir Francis Drake Discover

सर फ्रांसिस ड्रेक

सर फ्रांसिस ड्रेक | फ्रांसिस ड्रेक का जीवन परिचय | Sir Francis Drake in Hindi | Sir Francis Drake Discover

सर फ्रांसिस ड्रेक एक ऐसा साहसी नाविक था, जिसने केवल नये जलमार्गों की खोज ही नही की बल्कि उसने स्पेन के जंगी बेड़े (Spanish Armada) से इंग्लैंड की रक्षा की और स्पेन को करोड़ों रुपये का नुकसान उठाना पड़ा ।

सर फ्रांसिस ड्रेक का जन्म सन् १५४० में इंग्लैंड के डेवोन (Devon) नामक नगर में हुआ । वह एक ऐसा साहसी व्यक्ति था, जिसने समस्त विश्व की जलमार्गों से यात्रा की । बचपन से ही उसे समुद्री यात्राओं का चाव था । जवानी में कदम रखते ही उसने अपनी समुद्री चतुराइयों का परिचय देना आरंभ कर दिया ।

सन् १५६० में इंग्लैंड में अनेक समुद्री बेड़े थे लेकिन सभी बेड़ों में सर फ्रांसिस ड्रेक का बेड़ा सर्वाधिक शक्तिशाली था । सर फ्रांसिस ड्रेक ने सन् १५७० में दक्षिणी अमरीका की जलयात्रा की और स्पेन के एक शहर पर हमला किया । उसने स्पेन के बेड़े को बुरी तरह परास्त किया । स्पेन के पश्चिमी तट के अनेक बंदरगाहों पर उसने लगातार हमले किये और लोगों को इतना भयभीत कर दिया कि वे उसके नाम से ही डरने लगे ।

सन् १५७७ में फ्रांसिस ड्रेक को विश्व समुद्री यात्रा का अगुवा चुना गया । यात्रा हेतु उसके पास पांच जलयान थे और वह स्वयं पेलीकन (Pelican) नामक यान में सवार था । यह यात्रा १३ दिसंबर, १५७७ को प्लाईमाउथ (Plymouth) से आरंभ हुई। यह पांचों जहाज केप वर्डे (Cape Verde) टापू पर मिले, उसके बाद दक्षिणी अमरीका की ओर यात्रा आरंभ कर दी । तीन बड़े जहाज दक्षिण की ओर मुड़ गये ।

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वे स्ट्रेट ऑफ मैगेलान (Strait of Magellan) पहुंचे और विशाल प्रशांत महासागर में यात्रा करते रहे । अपनी सफलता का जश्न मनाने के लिए सर फ्रांसिस ड्रेक ने अपने जलयान का नाम बदलकर गोल्डन हिड (Golden Hind) रखा । आगे की यात्रा उसने अकेले ही करने का निश्चय किया । अतः पांच जलयानों में से चार को वापस भेज दिया गया । अब वह अकेला गोल्डन हिड में दक्षिणी अमरीका के पश्चिमी किनारों से होता हुआ आगे बढ़ने लगा ।

उसने अपने जहाज में विशाल खजाना एकत्रित किया और वापस पश्चिम की ओर चल पड़ा । तीन साल तक यात्रा करने के बाद यह खोज-यात्री ३ नवंबर, १५८० को प्लाईमाउथ लौट आया और इस प्रकार उसने संपूर्ण विश्व की यात्रा पूरी की । यात्रा से लौटने पर महारानी एलिजाबेथ ने उसका भव्य स्वागत किया और उसे प्लाईमाउथ का मेयर (Mayor) बना दिया ।

यद्यपि उसके समकालीन लोगों को यह बहुत अच्छा नहीं लगा लेकिन फिर भी वे सभी उसकी योग्यता के प्रशंसक थे । सन् १५८५ में उसे जहाजी बेड़े का कमांड दे दिया गया । इसी जहाजी बेड़े से उसने स्पेन के जहाजी बेड़े को भारी क्षति पहुंचायी । स्पेन के बेड़े ने सन् १५८८ में जब इंग्लैंड पर हमला किया तो फ्रांसिस ड्रेक ने अपनी चतुराई से उसे परास्त कर दिया । स्पेन के बेड़े की उसने सभी सप्लाई काट दीं और उसे बुरी तरह नष्ट किया । उससे इंग्लैंड की रक्षा तो हो ही गयी साथ ही साथ स्पेन का करोड़ों पौंड का नुकसान हुआ ।

उसकी अंतिम यात्रा सन् १५९६ में स्पेन होते हुए वेस्ट इंडीज के अधिकृत क्षेत्रों की थी । उसने इस यात्रा के दौरान स्पेन के पश्चिमी तट के अनेक बंदरगाहों पर लगातार हमले किये, जिससे स्पेन वाले उसके नाम से ही डरने लगे ।

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सर फ्रांसिस ड्रेक एक चतुर नाविक होने के साथ ही साथ बहुत बहादुर भी था । अपनी बहादुरी के साक्षात प्रमाण उसने स्पेन के बेड़ों को अनेक बार हराकर दिये । वह किसी भी कठिनाई से नहीं डरते थे । किसी भी रुकावट का वह डटकर मुकाबला करते थे | सर फ्रांसिस ड्रेक के लिए उसका देश सर्वोपरि था । देश के हित के लिए वह कोई भी कार्य करने को तैयार रहते थे ।

महारानी एलिजाबेथ का उसे विशेष सहारा प्राप्त था, इसीलिए शायद उसके कार्यों में सरकार का भी बहुत कम हस्तक्षेप था । कुछ लोग फ्रांसिस ड्रेक को समुद्री लुटेरा कहते थे । इसका कारण संभवतः यह था कि वह स्पेन के बेड़ों को नष्ट करता रहा और उनका माल लूट कर अपने देश पहुंचाता रहा । वास्तव में उसकी धारणा का विश्लेषण करने से पता लगता है कि अपने देश पर वह किसी का भी आधिपत्य नहीं चाहता था और अपने देश की ओर नजर डालने वाले लोगों को नष्ट कर देना चाहता था ।

इस विषय में उसका दृष्टिकोण अत्यंत खूंखार था । गहरायी से देखने पर पता चलता है कि इंग्लैंड ने अपने बहादुर नाविकों के बूते पर ही संसार के अनेक देशों पर कब्जा कर लिया था और फ्रांसिस ड्रेक जैसे साहसी, बहादुर और चतुर नाविकों का इस क्षेत्र में महान योगदान था ।

सन् १५९६ के बेस्ट इंडीज वाले आक्रमण के दौरान यह साहसी, चतुर और खूंखार समुद्री कप्तान मारा गया । इस साहसी ब्रिटिश नाविक को कभी भी भुलाया न जा सकेगा ।

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