केरल अपनी संगीत परंपरा के लिए हमेशा से प्रसिद्ध रहा है।
इसका कारण यह है कि वहां संगीत ने मनुष्यो के सामाजिक व धार्मिक जीवन में एक
महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है और इसी कारण वहां नृत्य संगीत आदि को फलने–फूलने का सहज ही अवसर प्राप्त हुआ। कला की इस
बहुमुखी उन्नति का एक कारण यह भी था कि वहां के अनेक शासक स्वयं इस कला के
विशेषज्ञ और पारखी थे। तिरूवांकुर के महाराजा स्वाति तिरुनल राम वर्मा उनमें से एक
थे।
स्वाति तिरुनल का जन्म १६ अप्रैल १८१३ को हुआ था। तेरह वर्ष की अल्पायु में ही उन्होंने मलयालम, संस्कृत, फारसी, अंग्रेजी, तेलुगू, मराठी, कन्नड़ और
हिंदुस्तानी भाषा में विशेष योग्यता प्राप्त कर ली थी। सोलह वर्ष की अवस्था में वह
राज गद्दी पर बैठे और लगभग
१८ वर्ष तक राज किया।
उन्होंने इस अल्पकाल में ही प्रजा और देश की सर्वतो मुखी
उन्नति के अनेक प्रयत्न किए। उनके शासनकाल में देश में सुख समृद्धि और शांति का
राज था। इसीलिए आज स्वाति तिरुनल न केवल एक सफल और दयालु शासक होने के नाते
प्रसिद्ध हैं और साथ ही साथ एक उच्च कोटि के
विद्वान, कलाकार और
संगीतज्ञ भी माने जाते हैं। वह वेद और पुराण के ज्ञाता थे और उच्च कोटि के कवि और
कला पारखी भी। सम्राट हर्ष व भोज के समान स्वाति तिरुनल ने भी यह सिद्ध कर दिखाया
कि एक कवि का सम्मान एक राजा से भी अधिक है। वह कर्नाटक तथा हिंदुस्तानी संगीत
पद्धति और उसकी रचनाओं को भलीभांति समझते थे। उनकी गति विभिन्न रागों में चाहे वह
कीर्तिनम् या वर्णम् हो, पदम् या तिलाना हो, ध्रुपद अथवा ख्याल हो, समान रूप से थी।
एक शताब्दी से अधिक की बात है कि इस शाही कलाकार ने हिंदुस्तानी भाषा और संगीत
दोनों पर अधिकार प्राप्त किया। उन्होंने उस समय की विभिन्न संगीतज्ञो को अपने
योगदान द्वारा बढ़ावा दिया और अपनी रचनाओं से हिंदुस्तानी संगीत को संवारा।
स्वाति तिरुनल ने लगभग ३५० गीतों की रचना की जो आज भी हमें प्राप्त हैं।
उनकी कृतियां केवल कीर्तनम् में ही नहीं, बल्कि पदम्, वर्णम् और तिलाना
में भी हैं। स्वाति तिरुनल की कर्नाटक संगीत शैली पर संत त्यागराज की रचनाओं का भी
काफी प्रभाव पड़ा। महाराजा ने सोपान गान में, जो उस समय त्रावणकोर में प्रचलित था, आमूल परिवर्तन
किए । वहां यह नवीन पद्धति आज भी मंदिरों में प्रचलित हैं। त्रावणकोर में
हिंदुस्तानी संगीत से उस समय तक लोग अपरिचित ही थे। इसको लोकप्रिय बनाने का श्रेय
महाराजा तिरुनल को ही है। उन्होंने दोनों पद्धतियों पर समानाधिकार रखते हुए
त्रावणकोर में कर्नाटक संगीत की बहुत उन्नति की। स्वाति तिरुनल ने गीतों में अपने
भावों को चुने हुए शब्दों में रखा और साथ ही उन्हें सुंदर लय और ताल में भी
बैठाया। इस प्रकार उन्होंने संगीत विद्या की अपूर्व सेवा की।
महाराजा ने किर्तनम् विशेष रूप से अपने परिवार के इष्टदेव
की प्रशंसा में रचे थे । इनमें नवरात्रि किर्तनम् और नवरत्न माला महत्वपूर्ण हैं।
नवरात्रि किर्तनम् में नौ गीत है, जों प्रतिवर्ष दशहरे के दिनों में गाए जाते है
और नवरत्न माला नौ गीतों की माला है , जिसका संबंध भागवत में उल्लेखित नवधा भक्ति से
है । इसके बाद लगभग ३५ धन किर्तनम् आते है। इन प्रसिद्ध किर्तनमो की एक विशेषता यह
है कि इनमें स्वराक्षर का प्रयोग बहुत सुंदर हुआ है। स्वाति तिरुनल के बहुत से
प्रबंधम्, वर्णम्, पदम् और तिलाना
संस्कृत, तेलुगु और मलयालम
में रचे गए हैं।
अब हम संगीत की रचनाओं की ओर आते है। इनमें से केवल ३७ का
पता चलता है और ये छप चुकी है। इनमें ध्रुपद, खयाल और टप्पा भी शामिल हैं। “नन्द नंद
ब्रज पूर्ण” धनाश्री राग तथा “चलिए कुंजन से तुम” सारंग में ये
उनके रचे दो ध्रुपद है । एक अन्य रागमाला ध्रुपद है, जिसमें विभिन्न
रागों के नाम है । इनसे यह पता चलता है कि महाराजा का कर्नाटक तथा हिन्दुस्तानी
पद्धतियों पर समान रूप से अधिकार था । उनके रचे ख्याल जो एक दर्जन के लगभग है, अपनी मधुरता के
लिए प्रसिद्ध हैं । मीरा के भजनों की पावनता एवं मधुरता भी महाराजा के भजनों
“बाजत बधाई नगरी रघुराई” तथा “रामचंद्र प्रभु” आदि में स्पष्ट
झलकती है। उन्होंने विभिन्न प्रकार के रागों में संगीत रचे हैं। उनमें से कुछ
मराठी और हिन्दुस्तानी संगीत के विशेष राग भी है। बहुत सी भारतीय भाषाओं से परिचित
होने के कारण, उन्होंने कम से
कम सात भाषाओं में अपने गीतों की रचना की है। दो तिहाई से भी अधिक कीर्तनम् संस्कृत
में है । स्वाति तिरुनाल के अनुप्रास और तुकबंदी पर एक पांडित्यपूर्ण पुस्तक भी
लिखी है।
महाराजा ने योग्य कलाकारों को आश्रय देकर कला और साहित्य की
विशेष सेवा की थी । दिल्ली, ग्वालियर और मैसूर के हिन्दुस्तानी संगीतज्ञ
उनके दरबार में स्थाई तौर पर रहते थे और प्रेरणा पाते थे। मैरू स्वामी और बड़िबेलू
जैसे संगीत विशारद उनके दरबार की शोभा बढ़ाते थे । गोविंद मरार जैसे आसाधारण
संगीतज्ञ और इरयिम्मन थम्मी जैसे गीतकार
भी उनलोगो में से थे, जिनको कि दरबारी संरक्षण प्राप्त था । उन्होंने एक संगीत
परिषद की भी स्थापना की थी ।
केवल ३४ वर्ष की आयु में ही महाराजा की अकाल मृत्यु हो गई ।
वह एक लोकप्रिय शासक थे । उन्हें जनता का स्नेह और आदर प्राप्त था ।
स्वाति तिरुनाल बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति थे । वह एक भाषाविद संगीतज्ञ और गीतकार
थे, परंतु सबसे उपर एक धार्मिक और गौरवशाली राजा थे। स्वाति
तिरूनाल की त्रावनकोर के सबसे अधिक लोकप्रिय शासको में गिनती की जा सकती हैं।