भास्कराचार्य | Bhaskaracharya

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भास्कराचार्य | Bhaskaracharya


प्राचीन भारत के महान विद्वानों में शामिल भास्कराचार्य
ने विज्ञान और गणित के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया। पृथ्वी की जिस
गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का प्रतिपादन न्यूटन ने
१६वी-१७वीं
सदी में किया था
, उसी सिद्धांत को भास्कर ने उनसे
करीब ५०० वर्ष पहले बता दिया था। भास्कर ने गणित विषय पर कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की
रचना की। उनके कई ग्रंथों को दूसरी भाषाओं में अनूदित भी किया गया।

 

प्राचीन भारत में भास्कर नाम के दो महान
विद्वान हुए है। “महाभास्करीय” और “लघुभास्करीय” नामक ग्रंथों के रचनाकार (रचनाकाल
६२९ ई.) भास्कर प्रथम के नाम से प्रसिद्ध हुए। आगे चलकर इसी नाम के एक और
वैज्ञानिक हुए
, जो “सिद्धांत शिरोमणि” (रचनाकाल
११५०ई.)
के रचनाकार के रूप में विश्वविख्यात हुए। इन्हें ही भास्कर द्वितीय और
भास्कराचार्य भी कहा जाता है ।

प्रारंभिक जीवन

भास्कराचार्य ने स्वयं अपना जन्म स्थान तत्कालीन
खान देश (वर्तमान महाराष्ट्र) में सहयाद्रि पर्वत के निकट विज्ज
विड
ग्राम लिखा है। ३६ वर्ष की आयु में ही उन्होंने “सिद्धांत शिरोमणि” नामक ग्रंथ की
रचना की। यह ग्रंथ दो भागों में विभाजित है –  गणिताध्याय और गोलाध्याय । इस ग्रथ के आधार पर
इनका जन्म सन १११४ ई. माना जाता है। ज्योतिषी महेश्वर इनके पिता होने के साथ-साथ
गुरु भी
थे, भास्कर
उज्जैन की वे
शाला
के निदेशक भी रहे ।


भास्कराचार्य की कृतियां

भास्कराचार्य ने
कई ग्रंथों की
रचना की।
जिनमें भुवन कोश
, करण कृतुहल, सिद्धांत
शिरोमणि और बीजगणित प्रमुख है।
बीजगणित नामक पुस्तक में करणी (अंडर रूड)

संख्याओ का
योग
,
वर्ग प्रकृति, एक
वर्ण और अनेक वर्ण
समीकरण वर्णित हैं। शाहजहां के समय में अताउल्लाह रशीदी ने
“बीजगणित” पुस्तक का फारसी में
अनुवाद (१६३४) किया।
इसका अग्रेजी अनुवाद कोलबुक (
१८१७) तथा स्ट्रेची (१८१३) ने
किया। जबकि “करण
कोतूहल” में ग्रहो की गणना करने की सरल
विधि
बताई गई है
, जिससे पंचांग बनाने
में सहायता मिलती है।

        

लीलावती की
रचना

भास्कराचार्य की
एक अन्य
महत्त्वपूर्ण कृति
है लीला
ती।
इस पुस्तक
का नामकरण
भास्कराचार्य
अपनी लाडली
पुत्री के
नाम
पर किया था | यह अंकगणित और
महत्त्वमापन (क्षेत्रफल, घनल)
का
अद्वीतिय ग्रंथ
है। इसमे भिन्न, ब्याज और पूर्णांक संबंधी गणनाओ
के बारे में ब
ताया
गया है।
इसको पाटीगणित भी कहते है क्योंकि उस समय गणनाएं पाटी पर या अंगुली से की जाती
थीं। इसमें पाई का मान
, त्रिभुजों और चतुर्भुजों के क्षेत्रफल, गोलों
के तल और आयतन से संबंधित अनेक प्रश्न तथा उत्तर दिए गए हैं।

अकबर के मंत्री और अबुल फजल के भाई फैजी (१५८७) ने
लीलावती का फारसी में अनुवाद किया। ज
कि
इसका अंग्रेजी अनुवाद कोलबुक ने “अलजेबरा विद अर्थमैटिक एंड मेसुरेशन आफ दि संस्कृत
ऑफ ब्रह्मगुप्त एंड भास्कर”
(लंदन, १८१७) में
किया।

गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के प्रणेता

भास्कर ने अपने “भुवन कोश” नामक ग्रंथ में लिखा
है
,
पृथ्वी क्रमानुसार चंद्र, बुध, शुक्र, रवि, मंगल, बृहस्पति
और अन्य ग्रहों की कक्षा से घिरी है। यह आधारहीन है और केवल अपनी
शक्ति से
स्थिर है।
पृथ्वी में
आकर्षण शक्ति है
, जिसकी वज
से
सब चीजों को
अपनी ओर खी
ती
है और
वह वस्तु भूमि पर
गिरती
हुई सी प्रतीत होती है।
इससे
यह पता चलता है
की
भास्कर ने पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत, न्यूटन (१६४२-१७२७) से लगभग ५००
वर्ष पूर्व ही दे दिया गया था
|
        

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