दुर्गा बाड़ी, वाराणसी | Durga Bari Varanasi

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दुर्गा बाड़ी, वाराणसी

Durga Bari Varanasi

वाराणसी/काशी जिसे शिव की नगरी भी कहा जाता हैं, दुनिया के प्राचीन शहरों में से एक है जो भारत के उत्तर प्रदेश में स्थित हैं।

हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार इसे सर्वाधिक पवित्र स्थानों में से एक माना जाता हैं। वैसे तो शिव की नगरी काशी अपने आप में ही एक चमत्कार का केंद्र है, जिससे कोई अछूता नहीं है, लेकिन यहां आज भी ऐसी कई चमत्कारिक शक्ति स्थल है, जिनकी शक्ति का वर्णन करना इस ज्ञान-विज्ञान के दौर में सहज नहीं है। और इसी शक्ति स्थलों में से एक है वाराणसी का प्राचीन दुर्गा बाड़ी । जहां की दुर्गा प्रतिमा किसी चमत्कार से कम नहीं है।

Durga Bari Varanasi

दुर्गा बाड़ी का इतिहास


वाराणसी के मदनापुरा के बंगाली टोला मुहल्ले में स्थित दुर्गा बाड़ी में दुर्गा माता की यह प्रतिमा लगभग २५३ वर्ष पूर्व सन १७६७ में एक बंगाली (मुखर्जी) परिवार द्वारा नवरात्र मे स्थापित की गई थी । नौ दिनों की पूजा अर्चना के बाद जब विजयादशमी के दिन लोगो द्वारा विसर्जन के लिए प्रतिमा को उठाना चाहा तो प्रतिमा अपने स्थल से हिली ही नहीं। बहुत कोशिशों के बाद भी लोगो द्वारा इस प्रतिमा को विसर्जन करने का प्रयास असफल रहा, और तब से लेकर अब तक मां की प्रतिमा उसी जगह स्थापित है ।

बंगाली (मुखर्जी) परिवार को स्वप्न में दर्शन


प्रतिमा स्थापित करने वाले मुखर्जी परिवार का कहना है कि जब २५३ वर्ष पूर्व माता की प्रतिमा को विसर्जित नहीं किया जा सका तो उसी रात मुखर्जी परिवार के मुखिया को मां ने स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि “मै तुम्हारी भक्ति से इतनी प्रसन्न हू, मै यही वास करूंगी, मुझे विसर्जित मत करो” और तब से लेकर आज तक माता की माटी की मूर्ति यही विराजमान है।

दुर्गा बाड़ी की प्रतिमा जस की तस मूर्ति


बांस के फ्रेम में माटी पुआल से बनी मां की प्रतिमा २५३ सालो में भी जस के तस हैं। यहां तक कि मिट्टी भी नहीं झड़ी । हर साल नवरात्र में मां के वस्त्र बदले जाते है और कुछ साल के अंतराल में प्रतिमा को कलर किया जाता हैं।

इस चमत्कार को देखने के लिए लोग दूर-दूर से वाराणसी आते है और हर साल नवरात्र में दुर्गाबाड़ी का द्वार आम लोगों के लिए खोल दिया जाता हैं ।

दुर्गा बाड़ी की प्रतिमा की विशेषता


मां की इस प्रतिमा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह बंगाली मूर्ति की तरह एकचाल में यानी एक सांचे में है । तैलीय रंगों से गढ़ी मां की प्रतिमा के साथ गणेश, लक्ष्मी, सरस्वती, कार्तिकेय और महिषासुर भी है ।

दुर्गा बाड़ी की प्रतिमा से विज्ञान भी है हैरान


वैज्ञानिक भी हैरान है कि आमतौर पर मिट्टी, पुआल, बांस से बनी प्रतिमा बहुत दिनों तक नहीं रह सकती हैं। क्षरण रोकने के लिए न रासायनिक लेपन है और न ही कुछ और प्रबंध | फिर भी पांच फुट की प्रतिमा जैसे पहले थी वैसे आज भी है, यह शोध का विषय है ।

“मां के चमत्कार के आगे सब नतमस्तक है ।”

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