गाय के शुभ लक्षण | गाय क्यों पूजनीय है | Importance of Cow

गाय के शुभ लक्षण | गाय क्यों पूजनीय है | Importance of Cow

गाय का इतना महत्त्वपूर्ण स्थान इसी बात से अवगत होता है कि समस्त प्राणियों को धारण करने के लिए पृथ्वी गोरूप ही धारण करती है । जब-जब पृथ्वी पर असुरों का भार बढ़ता है, तब-तब वह देवताओं के साथ श्रीमन्नारायण की शरण में गौरूप ही धारण करके जाती है, वह यह अनुभव करती है –

गिरि सरि सिन्धु भार नहिं मोही ।
जस मोहि गरुअ एक पर द्रोही ।।

उसकी इस व्यथा को जानकर भगवान उसके भार को दूर करने के लिए विविध अवतार धारण करते हैं । भगवान मर्यादापुरुषोत्तम रामचन्द्र का अवतार सूर्यवंश में, त्रेतायुग में हुआ था, उनके पूर्वज राजा दिलीप को वंशावरोध का संकट आ पड़ा था ।

Importance%2Bof%2BCow

रघुवंश के साथ गाय का संबंध


महाकवि कालिदास ने अपने रघुवंश महाकाव्य में राजा दिलीप का वर्णन किया है । देवासुर संग्राम में देवराज इन्द्र के निमन्त्रण पर राजा दिलीप ने देवों को विजय दिलायी थी । वे जब इस सहयोग से निवृत्त हुए, तब उन्हें स्मरण हुआ कि गृहस्थ धर्म के नियमानुसार उन्हें ऋतुस्नाता धर्मपत्नी के सामने जाना चाहिए । राजा दिलीप शीघ्रता से राजधानी अयोध्या की ओर आने लगे । रास्ते में कल्पवृक्ष के नीचे खड़ी कामधेनु को देख न पाने से प्रणाम न कर सके। कामधेनु ने कहा “जिस लिये मेरी अनदेखी कर पूज्य-व्यतिक्रम तुम कर रहे हो, उस फल की प्राप्ति मेरी संतति की सेवा किए बिना नहीं होगी ।“

आकाशगर्जना की ध्वनि के कारण यह भी दिलीप सुन न सके । बहुत दिन व्यतीत हो जाने पर जब उन्हे चिन्ता हुई, तब उन्होंने अपने कुलगुरु महर्षि वसिष्ठ से, उनके आश्रम पर जाकर निवेदन किया | तब वसिष्ठ जी ने श्राप वाली बात बतायी और कहा –“कामधेनु तो इस समय लोकपाल वरुण के यहाँ दीर्घकालीन यज्ञ में गयी है । उसकी कन्या नन्दिनी आश्रम में है, उसकी सेवा से तुम्हारा अभीष्ट सिद्ध होगा ।“

राजा दिलीप ने गुरु वसिष्ठ जी के बताये नियमानुसार सेवा की। सेवा से प्रसन्न हुए नन्दिनी से वर प्राप्त किया, फलस्वरूप एक बालक हुआ, जिसका नाम “रघु” रखा । रघु के कारण ही सूर्यवंश “रघुवंश” नाम से प्रसिद्ध हुआ । रघु के बाद अज, अज के बाद दशरथ और दशरथ के चार पुत्र – राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न हुए ।

कृष्णावतार के साथ गाय का संबंध


कृष्णावतार में कृष्ण ने इन्द्र की पूजा न करके गोवर्धन की पूजा गोपी से करवायी, तो इन्द्र ने क्रोध के वशीभूत होकर प्रलयकालीन मेघों से वर्षा करवायी, पर श्रीकृष्ण के प्रभाव से वह वर्षा कुछ बिगाड़ न सकी । श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को ही छत्रवत् धारण कर लिया । उस समय कामधेनु आयी । उसने श्रीकृष्ण का अपने थनों से निकलने वाली दुग्धधारा से अभिषेक किया और कहा कि – “जिस प्रकार देवों के राजा देवेन्द्र हैं, उसी प्रकार आप हमारे राजा “गोविन्द” हैं ।“

इन दो पूर्णावतारों में गाय का सम्बन्ध प्रमुख रूप से सिद्ध होता है ।

हिन्दू धर्म मे गाय का महत्व


सनातन धर्म के शास्त्रीय विधानों में सर्वत्र गाय का प्रथम स्थान है । भूमि पूजन के योग्य तभी मानी जाती है जब वह गोबर से लीपी गयी हो । यज्ञ-कुण्ड और स्थण्डिल आदि अग्नि-स्थापन के स्थान पञ्चभू-संस्कारों से संस्कृत किये जाते हैं, जिनमें “गोमयेनोपलिप्य” वाक्य आया हुआ है गौ का पञ्चगव्य आयुर्वेद की दृष्टि से तथा शास्त्रीय दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी है ।

रक्षाबन्धन के दिन ब्राह्मणगण श्रावणीकर्म करते हैं, उस दिन हेमाद्रिकृत स्नान-संकल्प करते हैं । उसमें पञ्चगव्य-प्राशन भी अनिवार्य रूप से होता है । पञ्चगव्य-प्राशन द्विजातिगण समन्त्रक करते हैं और द्विजाति से भिन्न लोग अमन्त्रक ।

गौमूत्र का महत्व


आयुर्वेदिक दृष्टि से शरीर-शोधन में उदरगत विकारों के प्रशमन के लिए यह निरापद प्रयोग है गाय का मूत्र औषधियों के शोधन में प्रयुक्त होता है। गोमूत्र का प्रयोग ग्रामों में सामान्यजन भी किया करते हैं। लीवर, तिल्ली, पाचन-यन्त्रों में विकार होने पर इनके सुधार के लिए गोमूत्र का प्रयोग सफलता देता है।

गाय के गोबर का वैज्ञानिक महत्व


गाय के गोबर की क्षमता आज के वैज्ञानिकों ने भी पहचानी है । गाय के गोबर में आणविक दष्परिणामों को अवरुद्ध करने की शक्ति है । ये दुष्परिणाम गोबर से लिपे पुते मकानों में अन्य स्थानों की तुलना में कम होते हैं। शास्त्रों को देखें तो, गाय की महिमा के विषय में एक पूरा ग्रन्थ ही बन जायेगा । अत: आवश्यकता है इसके वैज्ञानिक महत्व को समझने की । इस दिशा में समस्त वैज्ञानिक एकमत कहते हैं कि पर्यावरण के संरक्षण की दृष्टि से गाय का कोई विकल्प नहीं है। गाय अपने श्वांस-प्रश्वास के द्वारा अनगिनत कीटाणुओं से क्षेत्र को शुद्ध करती है । धार्मिक दृष्टिकोण से भी कई ऐसे उपपातक हैं, जिनके प्रायश्चित्त में पञ्चगव्य-प्राशन का विधान किया गया है मन्त्र की जागृति के लिए पुरश्चरण के योग्य भूमि में गोशाला (गोष्ठ) को लिया गया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *