मदनलाल ढींगरा की जीवनी | Madan Lal Dhingra

मदनलाल ढींगरा की जीवनी | Madan Lal Dhingra

आज हम स्वतंत्र है और हमारा देश प्रभुसत्ता संपन्न गणतंत्र है, किंतु गुलामी की जंजीरों को तोड़ने में हजारों और लाखों नवयुवकों ने अपना बलिदान दिया। मदनलाल ढींगरा (Madan Lal Dhingra) उन्हीं नौजवानों में है, जिन्होंने देश को आजाद करने के प्रयत्न में अपने को अर्पित कर दिया। भारतीय देशभक्तों के साथ किए जाने वाले अमानुषिक व्यवहार का बदला लेने के लिए उन्होंने १९०९ में ब्रिटेन में एक अंग्रेज अधिकारी की हत्या करके, यह चेतावनी दी, कि अब अंग्रेज अपने को अपने ही देश में सुरक्षित न समझे। उस समय तक किसी भी भारतीय नवयुवक ने ब्रिटेन में किसी भी अंग्रेज अधिकारी की हत्या नहीं की थी। मदनलाल की अद्भुत वीरता, अनुपम देशभक्ति और आत्मिक शक्ति की प्रशंसा अंग्रेजों तक ने की थी।

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मदनलाल ढींगरा का जन्म


मदनलाल का जन्म, अमृतसर में एक राजभक्त धनवान खत्री घराने में १८ सितंबर १८८३ को हुआ था। उनके पिता रायसाहब डाक्टर दितामल ढीगरा सहायक शल्य चिकित्सक थे और उनके सात पुत्रों में, मदनलाल का छठा स्थान था।

मदनलाल ढींगरा की शिक्षा


मदनलाल ने अमृतसर के म्युनिसिपल कालेज से आर्ट्स मे प्रथम वर्ष पास किया और आगे पढ़ने के लिए लाहौर के गवर्मेंट कालेज में भर्ती हो गए। वहां कुछ ही महीने पढ़े होंगे कि अमृतसर वापस बुला लिए गए और घर के व्यापार में लगा दिए गए। दुकान पर वह ज्यादा बैठ न सके और उन्होंने एक दो और दफ्तरों में नौकरियां कीं।

इंजीनियरिंग पढ़ने के लिए मदनलाल को मई १९०६ में ब्रिटेन भेजा गया था उनके भाइयों के अनुसार, उस समय तक राजनीति से उनका दूर का भी संबंध नहीं था। (मोहनलाल ढींगरा और बिहारीलाल ढीगरा द्वारा ७ जुलाई १९०९ को वाइसराय को भेजे गए पत्र के अनुसार।) मदनलाल के सबसे बड़े भाई कुंदनलाल अपने व्यापार के संबंध में उन दिनों लंदन में ही थे, दोनों भाई कुछ समय तक साथ रहे और मदनलाल ने १९ अक्तूबर से लंदन के यूनिवर्सिटी कालेज आफ इंजीनियरिंग में पढ़ना शुरू कर दिया। वह जून १९०९ के अंतिम दिन तक कालेज गए।

मदनलाल ढींगरा का राजनीतिक जीवन


वर्तमान शताब्दी के प्रथम दशक में, लंदन में भारतीय क्रांतिकारियों का बहुत ही सक्रिय केंद्र था। भारतीय क्रांतिकारियों के पितामह श्यामजी कृष्ण वर्मा और विनायक दामोदर सावरकर इन गतिविधियों का संचालन कर रहे थे। श्यामजी कृष्ण वर्मा ने १८ फरवरी १९०५ को भारत के लिए होमरूल प्राप्त करने के उद्देश्य से, इंडियन होमरूल सोसाइटी स्थापित की थी। बाद में एक लाख रुपये से अधिक खर्च करके उन्होंने, क्रामवेल एवेन्यू हाईगेट में मकान नं. ६५ खरीदकर उसे इंडिया हाउस बनाया था। इस हाउस में ब्रिटेन में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों के रहने की व्यवस्था की गई और हर रविवार को उनकी बैठकें करके छात्रों को राजनीति में प्रशिक्षित किया जाने लगा।

विनायक दामोदर सावरकर ने सक्रिय भारतीय छात्रों को लेकर, अभिनव भारत सोसाइटी गठित की। यह ब्रिटेन में क्रांतिकारी कार्यों के अड्डे थे।

मदनलाल ने लंदन पहुंचने पर, प्रारंभ में, अपने को इंडिया हाउस के राजनीतिक कार्यों में अलग रखा। यद्यपि वह उसी वर्ष इंडिया हाउस में कुछ समय तक ठहरे थे। १९०८ में, मार्च-अप्रैल से लगभग ६ मास तक और १९०९ के आरंभ में एक मास के लिए मदनलाल इंडिया हाउस में रहे। ब्रिटिश गुप्तचर संस्था स्काटलैंड यार्ड ने २९ फरवरी १९०९ को अपनी रिपोर्ट में पहली बार, मदनलाल का उल्लेख करते हुए लिखा कि वह इंडिया हाउस में रविवार २४ जनवरी १९०९ को हुई बैठक में उपस्थित थे।

सरकारी दस्तावेजों के अनुसार इसके बाद वह नियमित रूप से इंडिया हाउस की बैठकों में सम्मिलित हुए। किंतु उन्होंने किसी बैठक में कभी कोई भाषण दिया हो, अथवा विवाद में भाग लिया हो, इसका कहीं उल्लेख नहीं मिलता। मदनलाल, अप्रैल में इंडिया हाउस छोड़कर १०८ लेडबरी, बेजवाटर में रहने लगे और अंत तक वहीं रहे। अंग्रेज अधिकारी की हत्या करने के बाद, उनके निवास स्थान पर दो पिक्चर पोस्ट कार्ड पाए गए। एक पोस्टकार्ड में न्यूयार्क के फ्री हिंदुस्तान के एक अंक में प्रकाशित उस चित्र की नकल थी जिसमें भारतीय विद्रोहियों को तोपों के सामने खड़ाकर के उड़ाते हुए दिखाया गया था। दूसरे पोस्टकार्ड में कर्जन के चित्र पर पेंसिल से लिखा था-“बेईमान कुत्ता”।

मदनलाल के राजनीतिक रूप सें जागृत हो जाने पर, विनायक दामोदर सावरकर ने उन्हें अभिनव भारत का सदस्य बनाया। उनसे भारत सचिव के राजनीतिक आदेशों को परिपालन करने वाले अग्रेज अधिकारी, कर्नल विलियम कर्जन वायली की हत्या करने को कहा गया। कर्जन वायली भारतीय सेना का अवकाश प्राप्त अधिकारी था। उसका कार्य ब्रिटेन में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों की कठिनाइयां दूर करना था। किंतु वास्तव में वह छात्रों को परेशान करता था और जासूसी करता था। इंडिया हाउस में आने-जाने वाले छात्रों पर उसकी कड़ी नजर थी। उसके इन्हीं कार्यों से भारतीय छात्र उसे साम्राज्यवादी अत्याचार का सजीव प्रतीक मानकर, उससे घृणा करने लगे थे।

मदनलाल ढींगरा द्वारा कर्जन वायली की हत्या


मदनलाल व्यक्तिगत रूप से भी कर्जन वायली से असंतुष्ट थे, क्योंकि उसने उनके पिता के अनुरोध पर, उन्हें इंडिया हाउस के प्रभाव से दूर रहने की सलाह दी थी। मदनलाल के छोटे भाई भजनलाल उन दिनों कानून पढ़ने के लिए लंदन में ही थे और वह अपने पिता को अपने बड़े भाई की गतिविधियों के बारे में नियमित रूप से जानकारी देते रहते थे। कर्जन वायली की हत्या के निश्चय के बाद, मदनलाल ने चांदमारी का अभ्यास शुरू कर दिया और कुछ ही समय में वह रिवाल्वर चलाने में सिद्धहस्त हो गए। ऐन हत्या के दिन तक उन्होंने, चांदमारी का अभ्यास करके ११ शाट मारे थे।

कर्जन वायली को १ जुलाई १९०९ को लंदन के इम्मीरियल इंस्टीट्यूट के जहांगीर हाल में एक समारोह में भाग लेना था। उसी दिन उनकी हत्या करने का निश्चय किया गया। मदनलाल जेब में छः चेम्बर का रिवाल्वर लेकर समारोह में सम्मिलित हुए। संगीत कार्यक्रम के अंत में जब कर्जन वायली चलने को हुए तब मदनलाल ने उनकी ओर बढ़कर, अत्यंत निकट से, लगातार पांच गोलियां चलाई जिससे कर्जन वायली फौरन ही मर गया। एक पारसी डाक्टर कावस ललकाका ने मदनलाल को पकड़ना चाहा, किंतु छठी गोली उनको मार दी गई। वह कुछ दिनों के बाद मर गए। कर्जन वायली की हत्या से हाल में खलबली मच गई। मदनलाल के रिवाल्वर फेंकते ही उन्हें पकड़ लिया गया था।

उस समय घटना स्थल पर एक और डाक्टर उपस्थित था। उसने मुकदमें के दौरान यह स्वीकार किया कि हत्या के बाद जब हाल में प्रत्येक व्यक्ति का दम फूल रहा था, मदनलाल शांत एवं अक्षुब्ध थे, जैसे कुछ हुआ ही न हो। इस प्रकार मदनलाल ने कर्जन वायली की हत्या करके ब्रिटिश अधिकारियों को सचेत कर दिया कि खुदीराम बसु (१८८९-१९०८), कन्हाई लाल दत्त (१८८७-१९०८) और सत्येंद्रनाथ बसु को (फांसी १९०८) फांसी पर चढ़ा देने वाले ब्रिटिश अधिकारी अब अपने देश में भी सुरक्षित नहीं है। भारतीय क्रांतिकारियों ने इस घटना के पूर्व भारत में कई ब्रिटिश अत्याचारी अधिकारियों की हत्याएं की थीं, किंतु किसी भारतीय द्वारा ब्रिटेन में की गई यह पहली हत्या थी। ब्रिटेन में इसी तरह की दुसरी घटना लगभग ३१ वर्ष बाद १३ मार्च १९४० को हुई, जब उधमसिंह (१८९८-१९४०) ने जलियांवाला बाग कांड का बदला लेने के लिए पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सर माइकल ओ-डायर की लंदन के कैक्सटन हाल में हत्या की। इस कांड के बाद उधमसिंह को भी फांसी दी गई थी।

कर्जन वायली की हत्या से, ब्रिटेन और भारत में सनसनी फैल गई। मदनलाल के पिता ने, ४ जुलाई को वाइसराय के निजी सचिव को भेजे गए पत्र में लिखा कि मदनलाल मेरा लड़का नहीं है। उस मुर्ख ने मेरे मुंह पर कालिख पोत दी है। मजे की बात यह है कि घर वालों ने, मदनलाल को बचाने की अपेक्षा अदालत में अपनी राजभक्ति प्रदर्शित करने के लिए वकील नियुक्त किया। कर्जन वायली की हत्या की निंदा करने के लिए ब्रिटिश भक्तों ने कैक्सटन हाल में सभा की। ब्रिटेन में उपस्थित मदनलाल के दोनों भाइयों ने सबके सामने घटना की निंदा की। सभा में निंदा प्रस्ताव पढ़ा गया। विनायक दामोदर सावरकर ने प्रस्ताव का विरोध किया। तब पास खड़े एक अंग्रेज ने सावरकर के मुंह पर मुक्का मारा। सावरकर के मित्र एम.पी.बी.टी. आचार्य (मन्डयम प्रतिवादी थिरुमल आचार्य) पास ही खड़े थे, उन्होंने लाठी से अंग्रेज़ पर प्रहार किया। सभा में गड़बड़ी मच गई और प्रस्ताव पास न हो सका। इसके विपरीत, रविवार ४ जुलाई १९०९ को इंडिया हाउस सोसाइटी की बैठक में मदनलाल की, उनके कार्य के लिए प्रशंसा की गई।

मदनलाल ने न्यायालय के सामने जो वक्तव्य दिया था उससे भी खलबली मची थी। उस ऐतिहासिक दस्तावेज में उन्होंने एक अंग्रेज की हत्या के जुर्म को स्वीकार करते हुए कहा था कि यह कदम मैने जानबूझकर और विशेष उद्देश्य से उठाया है। भारतीय नवयुवकों को काला पानी और फांसी की अमानुषिक सजाओं के विरुद्ध यह मेरा नम विरोध है। उन्होंने अपने वक्तव्य में स्पष्ट कर दिया था कि इस विषय में उन्होंने सिवाय अपनी अंतरात्मा के किसी से मंत्रणा नहीं की, सिवाए अपने कर्तव्य के किसी के साथ षड्यंत्र नहीं किया। मुकदमें में भी यह सिद्ध न हो सका कि वायली हत्याकांड में किसी और का हाथ था।

मदनलाल ढींगरा के कोर्ट को दिए गए बयान


मदनलाल ने आपने वक्तव्य में कहा था – “मेरी धारणा है कि जिस राष्ट्र को उसकी इच्छा के विरुद्ध विदेशी भालों की सहायता से गुलाम बनाया जाता है वह सदा ही युद्ध की अवस्था में रहता है। मेरे लिए खुली लड़ाई संभव न थी। इसलिए मैंने एकाएक प्रहार किया। मुझे तोप न मिली, रिवाल्वर निकाला और गोली मार दी।“

“हिंदू होने के कारण मैं अनुभव करता हूं कि मेरे राष्ट्र का दासत्व मेरे परमात्मा का अपमान है। मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए किया गया कार्य कृष्ण की सेवा है। मैं न धनी हूं न ही योग्य। इसलिए मैरे जैसा गरीब बेटा माता की मुक्ति की वेदी पर अपने रक्त को छोड़कर अन्य कुछ भेंट नहीं कर सकता। इस कारण मैं अपने को बलि देने के विचार पर प्रसन्न हो रहा हूँ।“

“आत्मा अमर है। यदि मेरे देशवासियों में से हर एक मरने से पूर्व कम से कम दो अंग्रेजों की जान ले ले तो माता की मुक्ति एक दिन का काम है|”

“जब तक हमारा देश स्वतंत्र नहीं हो जाता-श्रीकृष्ण इन शब्दों के द्वारा हमें प्रबोधित करते ही रहेंगे-यदि तुम युद्ध करते हुए मर जाते हो तो तुम्हें स्वर्ग प्राप्त होगा, यदि सफल होते हो तो पृथ्वीतल पर राज्य करोगे।“

“मेरी हार्दिक प्रार्थना है-मैं अपनी माता से फिर जन्म लूं और फिर इसी पुनीत कार्य के लिए मरू, जब तक कि मेरा उद्देश्य पूरा न हो जाए और मातृभूमि, मानवता के हित तथा परमात्मा के गौरव के लिए, मुक्त न हो जाए।“

मदनलाल ढींगरा की फांसी


२ जुलाई को मैजिस्ट्रेट के सामने पेश किए जाने पर उन्हें एक सप्ताह के लिए पुलिस हिरासत में दे दिया गया। तत्पश्चात् ओल्ड बैली की सेशन अदालत में उन पर मुकदमा चला। मुकदमे के निर्णय के बारे में किसी को संदेह नहीं था। उन दिनों लंदन में ही दीवारों पर लगे पोस्टरों में कहा गया था कि “ढीगरा को फांसी दी जाए। उन्होंने स्वयं ही इसकी इच्छा व्यक्त की है।“ न्यायालय ने भी २३ जुलाई १९०९ को फांसी की सजा सुना दी और १७ अगस्त १९०९ फांसी का दिन निश्चित कर दिया।

मदनलाल ने निर्णय के पूर्व इच्छा व्यक्त की कि उसके शरीर का दाह-संस्कार हिंदू रीति के अनुसार किया जाए। किसी अहिंदु या उनके सगे भाइयों को उसे छने न दिया जाए। संस्कार के समय वेद मंत्रों का उच्चारण किया जाए, और उनकी सभी वस्तुओं का नीलाम करके प्राप्त धन को राष्ट्र कोश में जमा कर दिया जाए। किंतु अधिकारियों ने इनमें से किसी भी इच्छा को पूरा नहीं किया। मदनलाल के यथोचित दाह-संस्कार के लिए आए निवेदन पत्रों को भी अस्वीकार कर दिया गया। निर्धारित दिन १७ अगस्त १९०९ को पेटनविले जेल में २२ वर्षीय मदनलाल ढींगरा को फांसी देकर उनके पार्थिव शरीर को चहारदीवारी में दफना दिया गया। फांसी के समय जेल अधिकारियों के अतिरिक्त केवल एक पारसी उपस्थित था।

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