बंदा बैरागी का जीवन परिचय | Banda Bairagi History

बंदा बैरागी का जीवन परिचय | Banda Bairagi History

संसार में ऐसे महापुरुष बराबर जन्म लेते रहते हैं, जो अपने देश, जाति और धर्म के लिये काम करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर देते हैं । जाति और धर्मे के लिये प्राणबलि चढ़ाने वालों में बन्दा बैरागी का नाम सदा श्रद्धा और भक्ति से स्मरण किया जायेगा ।

बंदा बैरागी का जन्म


इस वींर बैरागी का नाम पहले लक्ष्मण देव था । बाद में यही बन्दा बैरागी के नाम से प्रसिद्ध हुआ । कातिक शुक्ल पक्ष सं० १७२७ के एक शुभ दिन का वह मुहूर्त अत्यन्त पवित्र था, जब पुव्छ की पहाड़ी रियासत के राजोर गाँव में एक राजपूत माता ने एक बच्चे को जन्म दिया, जिसका नाम लक्ष्मणदेव रखा गया । इसके पिता का नाम रामदेव था । उस समय दिल्ली के सिंहासन पर हिन्दुओं का दुश्मन सम्राट औरंगजेब विराजमान था, जिसके अत्याचारों से हिन्दू-प्रजा में त्राहि-त्राहि मची हुई थी ।

AVvXsEh3Vg0TBLMULGcdsT6u8n2mzlabjfqICQPIwmll6EAlTbx11eay4Xn4 YOMw3wUZdQ7IdrHLC ZuFf7U5PPxDXFuzz1pPaxN 5HBjswEflShKOcAHhbqD FZJWZv1QBtpwaM eE59

बंदा बैरागी का वैराग्या लेना


बालक लक्ष्मण देव को घुड़सवारी और शिकार खेलने का बहुत शौक था । वे ऐसे निपुण तीरन्दाज थे, कि उनका निशाना कभी खाली नहीं जाता था । एक दिन लक्ष्मण देव ने एक भागती हुई हरिणी पर तीर चलाया । तीर लगते ही हरिणी गिर पड़ी । लक्ष्मण ने छुरी से उसका पेट चीर डाला । वह गर्भिणी थी । पेट चीरते ही तीन बच्चे निकल पड़े । इसके बाद माता ने तड़पकर प्राण दे दिये ।

किन्तु इस घटना से लक्ष्मण पर मार्मिक प्रभाव पड़ा । उसने बहुतही शोकाकुल होकर सोचा, कि “हाय ! मैं ही इस गर्भिणी माता और उसके बच्चों की मृत्यु का कारण हूँ !” लक्ष्मण देव को उसी समय से वैराग्य सूझी । वे घर-बार छोड़ना चाहते थे । इसी बीच में उनकी भेंट जानकी दास नामक बैरागी साधु से हुई, जो उन्हें कसूर ( लाहौर ) ले गया । यहाँ लक्ष्मण देव ने साधु-वेश धारण किया, और अपना नाम माधवदास रखा । उन्होंने अब से वैराग्या सन्यास ग्रहण किया । इसके बाद वे भ्रमण करने निकले और घूमते हुए पंचवटी में पहुँचे, जहाँ त्रेता युग में श्रीरामचन्द्र जी ने निवास किया था । इस वन में रहकर माधवदास बैरागी ने तप करना आरंभ कर दिया । यहीं उनकी भेट अन्य साधु-सन्तों से भी हुई, जिनमें एक महात्मा ऐसे थे, कि माधवदास उनकी सदा सेवा करते और उनसे ज्ञानोपार्जन करते ।

यहां से माधव वैरागी गोदावरी-तट के नावेर नगर के समीप पहुँचे, जहाँ उन्होंने अपना आसन जमा दिया । उस समय उनकी आयु केवल २२ वर्ष की थी । वहाँ माधव बैरागी की बढ़ी ख्याति हुई । लोगों के समूह उनके दर्शन करने आते, और उन्हें गुरु की तरह मानतें थे । लोग समझने लगे, कि उनके अंदर कोई असाधारण ईश्वरीय शाक्ति है, और जिन्न, भूत, प्रेत आदि उनके वश में हैं । उस समय दक्षिण में औरंगजेब की सेनाओं से मराठे वींरों की लड़ाइयाँ होतीं, जिनका समाचार माधव वैरागी भी सुनते; पर उधर वे ध्यान न देते थे; क्योंकि वे संसार छोड़ चुके थे ।

इस बीच में गुरु गोविन्दसिंह भी भ्रमण करते-करते उधर जा निकले । उज्जैन में उनकी भेट दाऊद-पन्थी ने गुरु नारायणदास से हुई । नारायणदास रामेश्वर की यात्रा करके लौटे थे । गुरु गोविन्द ने उनसे पूछा,- “कि उधर आपने क्या देखा ?” नारायणदास ने कहा – और तो सब मट्टी-पत्थर थे; किन्तु नावेर में एक विचित्र वैरागी महन्त हैं; जिन्न और भूत उनके वश में है। बस, यही महापुरुष दर्शन करने के योग्य हैं।”

बन्दा बहादुर


इसके बाद गुरु गोविन्द सिंह उस वैरागी को खोजते हुए उधर जा निकले और बैरागी से जा मिले । दोनों एक दूसरे को जानते न थे; पर आत्मज्ञानी आत्माएँ एक दूसरे को पहिचान गयी । गुरु गोविन्द सिंह ने बैरागी को देश की दुरवस्था सुनायी, जिसका असर उनके दिल पर बहुत पड़ा । बैरागी को फिर एक बार ज्ञान हुआ, और उन्होने कर्मयोग के पथ पर चलना निश्चय किया । गुरु गोविन्द ने वैरागी की कीर्ति, योग्यता और क्षमता की बड़ी प्रशंसा की । बैरागी का हृदय गुरु की भक्ति से भर गया था । उन्होने विनीतभाव से कहा, -मैं तो आप का बन्दा हूँ ।” गुरु ने कहा,-“आप बन्दा हैं, तो अपनी माता की बन्दगी कर।” बैरागी ने आज्ञा मान ली । सिखो में उनका नाम “बाबा बन्दा” पड़ गया।

सिख इतिहास में उन्हें “बन्दा बहादुर” भी लिखा गया है । उस समय उनकी आयु ३६ वर्ष की थी । बैरागी की नस-नस में मातृभूमि का प्रेम बिजली की तरह व्याप्त हो गया, और वही मातृभूमि का प्रेम उन्हें पंजाब खींचकर ले आया । राह में कितने ही सिख उनके शिष्य हो गये । भरतपुर, खण्डा, नगरोटा होते हुए टोहाना पहुँचे । भिवानी में सरकारी खज़ाना छूटकर बैरागी ने सब धन अपने साथियों में बाँट दिया । इस समाचार के फैलने से बहतेरे सिख धन के लालच से आकर मिल गये ।

बंदा बैरागी का मातृभुमि के लिए युद्ध


अब बन्दा बैरागी ने यवनों से लड़ने के लिये पूर्ण रूप से सैनिक तैयारियों शुरू कर दीं । उसने वैराग-धर का मार्ग त्याग दिया । उसने सेना नायक के रूप में कई युद्ध लड़े, जिनमें सफलता हुई। कभी-कभी वह शत्रुओं से बचने के लिये पहाड़ियों में छिप जाया करतें थे । उनके युद्ध का तरीक़ा ” गुरिल्ला वारफेयर ” याने छिप-छिपकर लड़ने का था । वह अपने मुट्ठी-भर सैनिकों के साथ एकाएक शत्रु सैन्य पर छापा मारता और उन्हें लूट-मार कर चल देता । बन्दा ने अब पूर्णरूप से ज्ञात्र-धर्म अपना लिया था ।

क्षत्रिय के लिये गुरुगोविन्द सिंह की राय थी, कि – “तलवार उसका प्राण है और स्त्री उसका ईमान ।“ तदनुसार बन्दा बैरागी को विवाह भी करना पड़ा । बन्दा ने उस समय वैसा करना अपना कर्तव्य समझा । गुरु गोविन्द सिंह किसी कार्यवश दक्षिण चले गये थे । इधर सरहिन्द के नवाब ने उनकी और बन्दा की मजाक उड़ानी शुरू की ; किन्तु बन्दा मजाक का उत्तर देना जानता था । उसके पास जब बहुत सैन्य सग्रह हो गया, तो एक दिन उसने एकाएक सामना के नगर पर चढ़ाई कर दी। नगर में खूब लूट-मार हुई । तीन दिन तक सिख सैनिक लूटते रहे । सरकारी खज़ाना भी लूट लिया । यह समाचार सुनते ही हज़ारों डाकू् और लुटेरे भी आकर बन्दा के दल में मिल गये । अब बन्दा को सेना बहुत पड़ी हो गयी । इस बड़ी सेना ने अम्बाला, सीफाबाद, संवारा, दामल, कथल आदि मुसलमानी नगर लूटने आरम्भ कर दिये । इसके बाद कज्जपुर में पहुचे । यहीं के मुसलमान काजियों ने गुरु गोविन्द के बच्चों को मारने की व्यवस्था की थीं । पठानी गाँव खूब लूटे गये । इतने में ही नवाब की भारी सेना भी पहुँच गयी । किन्तु बन्दा ने भागने के बदले इस सेना का डटकर मुकाबला किया । सिखों के अचूक तीरों के निशानों से यवन सेना व्यथित हो गयी और वह मैंदान छोड़कर भाग निकली । मुसलमानों की बहुत युद्ध सामग्री बंदा के हाथ लगी ।

सिख सेना आगे बढ़ी। रास्ते में एक गाँव हटिया पड़ा । जहाँ मुसलमान लोग गौ-वध करने जा रहे थे, बन्दा के कुछ सिपाहियों ने यह देख लिया । फिर क्या था ? वे उन नीच मुसलमानो पर टूट पड़े; उन्हें मार डाला और इसके बाद आमतौर से मुसलमानो का कत्लेआम शुरू हो गया । गाव मे केवल वही मनुष्य जीवित बचा, जिसने सिर पर चोटी या गले में जनेश दिखाया । हिन्दुओं के अतिरिक्त समस्त मुसलमान मार डाले गये ।

बंदा बैरागी और मुसलमान मुखिया उस्मान खाँ


सढोरा नामका एक नगर था, जहाँ का मुसलमान मुखिया उस्मान खाँ हिन्दुओं को बहुत ही कष्ट देता था । हिन्दुओं की बहू-बेटियाँ उस पापी की कुदॄष्टि से बचने नहीं पाती थीं । उसने मन्दिर और शिवालय गिराकर मस्जिद बनवायी थीं । वीर बन्दा बैरागी ने जब मुसलमानो के अत्याचार सुने,तो क्रोध से उसके नेत्र लाल हो गये । उसने तुरन्त उस नगर पर आक्रमण कर दिया । सिखों के विषधर तीरों से मुसलमान जरा भी न ठहर सके । यहाँ भी मुसलमानो का कत्लेआम किया गया । उस्मान खाँ ने बन्दा को मारने की प्रतिज्ञा की थी; पर इस लड़ाई में उस्मान पकड़ा गया और एक वृक्ष से बाँधकर मार डाला गया । इसके बाद बन्दा ने मुखलिस गढ़ के किले पर कब्जा किया और इसका नाम लोहगढ़ रखा । इस गढ़ में बन्दा ने बहुत से अस्त्र-शस्र तथा गोले-बारूद भी जमा किये ।

इसे भी पढ़े[छुपाएँ]

अमीर खुसरो | Amir Khusro

आंडाल | Andal

आदि शंकराचार्य | Shankaracharya

आर्यभट्ट | Aryabhatt

अकबर | Akbar

अहिल्याबाई | Ahilyabai

एनी बेसेंट | Annie Besant

आशुतोष मुखर्जी | Ashutosh Mukherjee

बसव जीवनी | Basava

बुद्ध | Buddha

बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय | Bankim Chandra Chattopadhyay

बदरुद्दीन तैयबजी | Badruddin Tyabji

बाल गंगाधर तिलक | Bal Gangadhar Tilak

चैतन्य महाप्रभु | Chaitanya Mahaprabhu

चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य | Chandragupta II

चाणक्य | Chanakya

संत ज्ञानेश्वर | Gyaneshwar

गोपाल कृष्ण गोखले | Gopal Krishna Gokhale

जयदेव | Jayadeva

जमशेदजी नौशेरवानजी टाटा |Jamsetji Nusserwanji Tata

बन्दा बैरागी का दबदा सारे इलाके में फैल गया । हिन्दुओ ने तो समझा, कि उनकी रक्षा के लिये साक्षात ईश्वर ने बन्दा का रूप लिया है । बहुत से हिन्दू युवक बन्दा की सेना में आ मिले । मुसलमान लोग जो सदा हिन्दुओं को डराया करते थे, अब स्वयं डरने लगे । बहुत से मुसलमान भी बन्दा के दल में आ मिले । पर इनके दिल साफ न थे और वे विश्वासघात करने आये थे । यह भेद मुसलमानो की ही एक चिट्ठी से प्रकट हुआ जो उन्होंने सरहिन्द के नवाब के पास भेजने की कोशिश की थी । जब यह चिट्टी बन्दा के हाथ लगी, तब उसने मुसलमानों से पूछा । मुसलमान बहुत घबराये और क्षमा-प्रार्थना करने लगे । पर अब बैरागी उन्हें क्षमा करने वाला नहीं था । उसने उन सबको कत्ल करवा दीया । फिर बंदा बैरागी ने निश्चय कर लिया, कि अब मुसलमानो का कभी विश्वास न किया जाये; क्योंकि वे सदा कपट करते हैं ।

बंदा बैरागी और सरहिन्द का युद्ध


एक गाँव के कुछ हिंदू और कुछ ब्राम्हण बंदा बैरागी पास आकर रोने लगे । उन्होंने कहा – “महाराज की जय हो ! मुसलमानो के अत्याचारों से नाक में दम है । वे हमारी बहू-बेटियाँ उड़ा ले जाते हैं । गौ मारकर उनका लाश कुओ में डाल देते हैं । अब आप ही हमारी रक्षा कीजिये ।” बैरागी ने एक हुङ्कारके साथ कहा – “ब्राह्मण देवता ! घबराइये नहीं, अत्याचारियों से बदला लिया जायेगा ।” इसके बाद वैरागी की सेना ने मुसलमानों पर धावा बोल दिया । प्रायः सभी मुसलमान और बड़े बड़े खान मार डाले गये । सरहिन्द के सूबेदार ने अपनी पाँच हज़ार सेना और दो तोपे भेजीं । रोपड़ में उनका पराजय हुआ और उनका सब गोला-बारूद सिख सेना के हाथ लगा । किन्तु पीछे से मुसलमानों की एक और भारी सेना पहुँच गयी । अब एक बहुत बड़े प्रान्त के नवाब की सेना का मुकाबला था । किन्तु वीर बन्दा बैरागी ज़रा भी विचलित न हुआ । उसके पास आठ हज़ार पैदल और चार हज़ार घुड़सवार थे । सरहिन्द वही स्थान था,जहाँ गुरु गोविन्दसिंह के दो लड़के दीवारों में चुन दिये गये थे । यह याद करके बैरागी का खून खौल उठा । उसने गुरु के दो शहीद पुत्रों के नाम पर सिख सेना को युद्ध करने के लिये उत्साहित किया ।

अन्त में ज्येष्ठ संवत १७६५ में दोनों ओर की सेनाएँ डट गयीं । मुसलमानो के तोपों की आवाज सब दिशाओ मे होने लगीं । तुमुल युद्ध आरम्भ हुआ । खनकी नदियाँ बहने लगीं । उस समय वैरागी तीन कोस की दूरी पर खड़ा हुआ युद्ध का भीषण दृश्य देख रहा था । इतने में सिख सेना पीछे हटी; पर इसी समय वीर बंदा बैरागी घोड़े पर सवार होकर बाण-वर्षा करता हुआ आया । उसके ठीक लक्ष्य से मुसलमान गोलन्दाज़ गिरने लगे । बैरागी का असीम साहस देख कर सिख सेना फिर पलटी, और इस बार मुसलमानों पर ऐसा प्रबल आक्रमण किया, कि उसके पैर उखड़ गये । वरागी के नाम से मुसलमान सैनिक कॉपते थे । उनका घोर पराजय हुआ, और मुसलमान सूबेदार वजीर खाँ भी गिरफ्तार किया गया । इसके बाद सिख सेना मुसलमानी नगर में घुसकर कतलेआम करने लगी । गलियों और मुहल्लों में खून की नदियाँ बहने लगीं । बैरागी ने किले के अन्दर विजयी के रूप में प्रवेश किया । वज़ीर खाँ का सपरिवार वध किया गया । सात दिन तक वैरागी के सैनिक नगर में मकान गिराते रहे; समस्त मस्जिद और मकबरे नष्ट कर दिये गये ।

हिन्दू राज्य की स्थापना


चौदह ज्येष्ठ संवत् १७६५ को वैरागी ने एक बड़ा दरबार किया । सारे इलाके से मुसलमान अधिकारी हटाकर उनकी जगह हिन्दूओ को स्थान दिया गया । इसके बाद वींर बंदा बैरागी ने दुआबे की ओर मुख किया, ओर मुसलमानों से अनेक नगर जीते ! सूरसिंह पट्टी, झापाल, अलगँव, खेमकर्णी और चूड़िया सब उसके अधीन हो गये । व्यास और रावीं के बीच का प्रदेश बिना युद्ध किये ही वैरागी के हाथ में आ गया । बैरागी ने ढिढोरा पिटवा दिया, कि हिन्दू राज्य स्थापित हो गया है; अब कोई मनुष्य दिल्ली के बादशाह को कर न दे । इसके बाद वैरागी ने सतलज और यमुना नदियों के बीच का प्रदेश भी दखल कर लिया । वहाँ के मुसलमान नवाब वैरागी की हुकार से ही भाग गये । करनाल से तलबंडी, हिसार, मॉसी, तरावडी, कैथल, झींद, सरसा, फिरोजपुर, चूनिया, कसूर, जालन्धर, दोआबा, माझा, पठानकोट और कॉगडा तक समस्त प्रदेश बंदा बैरागी के अधीन हो गये । दिल्ली और लाहौर के रास्त बन्द कर दिये गये । इस प्रकार बावन लाख के इलाके पर हिन्दुओं का अधिकार हो गया । बीर बैरागी का सम्मान इतना बढ़ा, किं लोग इसे गुरु गोविन्द के बाद ग्यारहवाँ गुरु मानने लगे । मुसलमान उसे साक्षात् यमराज समझते थे ।

बन्दा वैरागी यद्यपि साधु-प्रकृति का मनुष्य था, पर हिन्दुओ पर मुसलमानों के अत्याचार सुनकर उसका खून उबल उठता था । साधु के रूपमें ऐसा नेता भारत में पहले कभी नहीं हुआ था । दो वर्ष के भीतर ही इस साधु के बाहु-बल से बहुत बड़ा प्रान्त उसके अधीन हो गया, जिसकी सीमा एक ओर यमुना और दूसरी ओर रावी थी । इतनी बड़ी विजय करने पर भी बन्दा ने अपना साधु वेश न छोड़ा था । युद्ध में वह उसी समय जाता, जब ज़रूरत होती, नहीं तो उधर युद्ध हो रहा है और इधर बन्दा भक्ति में लवलीन रहता है ।

बंदा बैरागी और बहादुर शाह


सम्राट् औरंगजेब की मृत्यु हो चुकी थी और उसका बेटा बहादुर शाह राज-सिंहासन पर बैठा था । उसने भी वैरागी के दमन का प्रयत्न किया; पर सफलता न मिली । बैरागी ने अपने जीवन में एक भारी भूल की, जिसके कारण अन्त में पंजाब को ही कष्ट भोगना पड़ा । बैरागी जब विजय करता, तब राजशक्ति अपने हाथ में न रख कर सिख सरदारो को दे दिया करता था और स्वयं जंगलों में जाकर तपस्या करता था । किन्तु जब वह जंगल जाता, तब इधर मुसलमानो के दल फिर उपद्रव करते; बैरागी को फिर आना पड़ता और मुसलमानो को परास्त करके फिर वह चला जाता । यदि ऐसा न करके वैरागी स्वयं ही शासक या राजा बन जाता, तो निश्चय ही शिवाजी की तरह वह पंजाब में सिखों का शक्तिशाली राज्य स्थापित कर देता; पर ऐसा न करके वैरागी ने अपना और हिन्दुओं का भी नाश किया ।

बंदा बैरागी और शाह फरुखसियर


बहादुरशाह की मृत्यु के बाद शाह फरुखसियर राज सिंहासन पर बैठा । उसने बंदा बैरागी को नाश करने का उपाय सोचा । उस समय गुरु गोविन्दसिंह की दो स्त्रियां दिल्ली में रहती थीं, जिनमें से एक का नाम था माता सुन्दरी और दूसरी का साहब देवी । बादशाह ने एक हिन्दू मन्त्री रामदयाल को सिखा कर इन हिंदू स्त्रियों के पास भेजा । रामदयाल ने इन भोली-भली स्त्रियो को धन की भेंट देकर फॅसा लिया । इन स्त्रियों ने वैरागो बन्दा को एक चिट्ठी भेजी, जिसमें लिखा था – “तुम गुरु के सब शिष्य हो ! तुमने पन्थ को डुबने से के बचाया है पर अब बादशाह जागीर देने के लिये के राजी है । यह जागीर तुम स्वीकार कर लो और लूट-मार बन्द कर दो ।” इस पर बन्दा बहुत असन्तुष्ट हुआ उत्तर में में उसने लिखा,-“आपका इस तरह मुझे पत्र लिखना व्यर्थ है । मुझ पर आपका क्या अधिकार है ? मैं वैरागी साधु हूँ । मैं कभी गुरु का शिष्य नहीं रहा । न मैं किसी की जागीर लेना चाहता हूँ, और न किसी का उपकार मानता हूँ । आप मुझे मुसलमानो के अधीन कराना चाहती है ? आप भले ही भूल जाये, पर मेरे हृदय में जब तक गुरु-पुत्रों की स्मृति रहेगी,तब तक मैं अपना निश्चय न बदलूँगा, याने मुसलमानों से लड़ना न छोड़गा ।”

दिल्ली में गुरु की स्त्रियो का वास स्थान हुआ । बादशाह के हिन्दू मन्त्री रामदयाल ने अब भेद-नीति से काम लिया । जो कुछ सिखाया गया, उसके अनुसार उन्होंने सिख सरदारों और पन्थ को एक चिट्ठी लिखी, कि ‘”आप में से जो कोई भी गुरू गोविन्द सिंह का शिष्य हो, वह बन्दा बैरागी का साथ न दे, क्योंकि वह दुष्ट अपने आपको सिख नहीं मानता । इस आदेश-पत्र से सिखों में खलबली मच गयी, और सचमुच बैरागी का साथ छोड़ना शुरू किया । सिख-दलो में फुट का बीज बो दिया गया था । यही फुट सदा इस देश के नाश का कारण बना । बैरागी अकेला हो गया; केवल कुछ भक्त सिखों के अतिरिक्त शेष सबने उसका साथ छोड़ दिया । पर हिन्दू उसके साथ थे । इन्ही हिन्दुओं की सेना बना कर बन्दा अब भी मुसलमानो के सामने उठा था । अवसर देखकर दिल्ली से शाही फ़ौज आयी । नैनाकोट के निकट हिन्दू सेना और शाही सेना में युद्ध हुआ । अन्त शाही सेना भाग खड़ी हुई । अब बादशाह को बडी घबराहट हुई ।

बादशाह की ओर से एक चिट्ठी पंजाब के सिख खालसा को लिखी गयी, जिसमें सिखों को बहुत तरह से प्रलोभन दिये गये । सीधे-साधे सिख उन प्रलोभनों में फँस गये । बादशाह ने सिखों को माफी ज़मीने दी । बहुसंख्यक सिख बैरागी के विरुद्ध लाहोर की सेना में मिलकर काम करने लगे । लाहौर के सूबेदार इस्लाम खां के पास दस हज़ार सेना थी, और अब पाँच हजार के लगभग सिख सेना भी आ मिली । अन्त में बैरागी की हिन्दू सेना से सूबेदार की मुसलमानी सेना का युद्ध हुआ, जिसमें मुसलमानी सेना परास्त हो गयी । यह देख कर सूबेदार ने खालसा सेना को आज्ञा दि । सिखों को आगे बढ़ते देख, वैरागी का दिल टूट गया । बैरागी ने अपनी सेना को मुँह मोड़ने की आज्ञा दी; यह सेना युद्धत्षेत्र से हटकर गुरुदासपुर की ओर चली गयी । इसके बाद वैरागी हताश हो गया, तो भी उसने एक चेतावनी का पत्र खालसा के पास भेजा, जिसमें लिखा – “आप लोग धोखे में आ गये हैं । गुरु गोविन्द सिंह के उपदेशों को आपने मिट्टी में मिला दिया है । हमारे शत्र फूट फलाकर हमें नष्ट करने के कार्यो में लगे हैं। सोचो ! यह समय फिर नहीं लौटेगा । मै तो साधु हूँ, मेरा क्या ? तुर्क तुम्हें और तुम्हारे धर्म को नष्ट कर डालेंगे। अब भी सभल जाओ और शत्रु का साथ छोड़ दो । आओ, हम सब आपस में एकता करके पहले तुर्क शत्रु से निपट लें; फिर आपस की लड़ाई का फैसला कर लेंगे।”

बंदा बैरागी का पकड़ा जाना


इस चिट्टी से सिखों में खलबली मच गयी । पर जो मूर्ख थे, उन्होंने नहीं समझा और फिर सिखो ने वैरागी का साथ त्याग देना ही निश्चय किया । उनका यह रुख देखकर बैरागी ने कहा, -“अच्छा ! मैंने तो क्षत्राणी के पेट से जन्म लिया है । मैं अकेले ही अपनी तलवार अब सँभालूगा ।” इसके बाद वीर वैरागी ने कलनौर पर चढ़ाई की और वहाँ के नवाव को परास्त किया । बैरागी की विजय से दिल्ली के बादशाह को चैन नहीं थी । उसने अब ३० हज़ार सैनिकों की सेना भेजी; और इसके अतिरिक्त लाहोर तथा जालन्धर से भी सेनाएँ आ गयी थीं । वैरागी उस समय गुरुदासपुर में था । शाही सेना ने गुरुदासपुर घेर लिया । घेरे में पड़े-पड़े वैरागी की सेना भूखी मरने लगी । उन दिनों में वैरागी भी कुछ नहीं खाता था । बाहर से शाही सेना ने आज्ञा दी, कि-“हथियार डाल दो ।” अन्त मे कोई उपाय न देखकर किले के फाटक खोल दिये गये । बैरागी अनशन के कारण बहुत दुबले थे, मुसलमान सैनिकों ने पहुँचकर उस सूखे सिंह को गिरफ्तार किया । बैरागी को मोटी लोहे की जंज़ीरों से बाँध लिया । यह समाचार सुनते ही मुसलमानों के घरों में खुशियाँ मनायी जाने लगीं पर हिन्दू लोग रोने लगे । हिन्दू स्त्रियाँ फूट-फूटकर रोती और कहती थीं, कि “आज हमारा एक मात्र सहायक चला गया ।“

दिल्ली में अपूर्व बलिदान का दृश्य उपस्थित था । एक सच्चा त्यागी, एक योद्धा तपस्वी साधु लोहे की जंजीरो में जकड़कर दिल्ली लाया गया । वीर बन्दा बैरागी जंजीरों में बिलकुल शान्त था । उसके सात सौ चालीस साथी भी लाये गये थे । इन सबको काली भेडों की खालें पहनायी गयीं, और गधो पर सवार कराया गया । बैरागी का मुँह काला करके उसे सब गली-कूचों में फिराया गया । क़ाज़ियों के सामने साथियों सहित बन्दा वैरागी पेश किया गया । काज़ियों ने उससे कहा, -“यदि तुम दीन इस्लाम स्वीकार करो, तो निश्चय जानों, कि तुम्हारे प्राण नहीं लिये जायेंगे ।” बन्दा ने इस पर घृणा प्रकट करते हुए कहा,-“अरे, प्राण-हरण करना या प्राण देना क्या तेरे अधिकार में है ?” इस पर काज़ियों ने निर्देयता-पूर्वक उन सबको कत्ल करने की आज्ञा दे दी । दण्ड-आज्ञा सुनकर बन्दा प्रसन्नता से फूल उठा था । जिस कठोर आज्ञा को साधारण बुद्धि के लोग दण्ड समझते हैं, उसे शहीद पुरस्कार समझता है । इन वींरो के आनन्द का अनुमान एक सोलह वर्ष के बालक के दृष्टान्त से लगाया जा सकता है । यह बालक भी बन्दा के सैनिकों के साथ कैद करके लाया गया था । बालक की वृद्धा माता रोती-पीटती जल्लादों के पास पहुँची, और पुत्र की ओर से क्षमा प्रार्थना करने लगी । पर बालक ने माता को हट जाने के लिये कहा, और प्रसन्न चित्तसे बोला,-‘मेरे लिये क्यों विलम्ब किया जाता है ? मैं शीघ्र ही स्वर्ग जाना चाहता हूँ। अरी माता ! तू बड़ी हत्यारी है, जो मुझे स्वर्ग से निकालकर नरक में ढकेलना चाहती है !”

बंदा बैरागी की मृत्यु


माता रोती हुई चली गयी । सौ-सौ आदमियों के सिर रोज कटते थे । अन्त में आठवें दिन बन्दा बैरागी की बारी आयो । बन्दा बैरागी के चारो ओर भालों की पंक्तियाँ खड़ी थीं, जिन पर बन्दा बैरागी के साथियों के सिर टँगे थे । पहले बैरागी का एक छोटा बालक वहाँ काटा गया, और उसका कलेजा निकालकर बैरागी की छाती पर फेंका गया । इसके बाद लोहे की गर्म सलाखों से बैरागी को जल्लादों ने मारना शुरू किया । तपे हुए लाल चिमटों से उसके शरीर के मांस के लोथडे खीच-खींच कर निकाले गये; यहाँ तक कि उसके शरीर की हड्डियाँ भी दिखने लगीं । पर बीर बैरागी के मुख से आह तक न निकली । निजामुद्दौला ने उससे पूछा,- “इतने कष्ट मिलने पर भी तुम प्रसन्न क्यों हो ? ” बैरागी ने शान्ति से उत्तर दिया,-“जिसे आत्मा का ज्ञान है, वह जानता है, कि आत्मा सुख-दुख से रहित है।”

यह माना जाता है की बंदा बैरागी को हाथी के पाँव तले कुचलवा कर मार डाला गया ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *