वीर मुरली मनोहर । Vir Murli Manohar

वीर मुरली मनोहर । Vir Murli Manohar

वीर हक़ीक़तराय की मृत्यु को हालाँकि एक ज़माना गुज़र चुका था; लेकिन हिन्दुओं का चोट खाया हुआ दिल अभी भी वैसा ही था । पंजाब के रहने वालों की आँखों से अभी आँसुओं का दरिया रूका ही न था, कि कन्दहार से खबर आयी “बहादुर मुरली मनोहर गोलियों का निशाना बना दिया गया !” लोगों ने सुना, कि वीर मुरली मनोहर हिन्दू-धर्म की बलिवेदी पर हसते-हसते कुर्बान हो गया ।

कन्दहार के खूखार पठानों ने दीन-इस्लाम के अन्धे उपासकों ने उस वीरात्मा को तीन गोलियों से मृत्यु के घाट उतार दिया !

बहादुर मुरली मनोहर क़न्दहार का रहने वाला था । उसके बाप-दादे हिन्दुस्तान से जाकर व्यापार के लिये वहाँ बस गये थे । उसका जन्म कपूर खत्रियों के कुल में हुआ था । उस की नसों में आर्य-जाति का खून बह रहा था । वह कृष्ण का सञ्चा भक्त था । उसने बाल्यकाल में ही गीता के सारे श्लोक कण्ठस्त कर लिये थे । प्रात:काल उठकर नित्य-कर्म से निपटकर, उसका सबसे पहला काम होता था, गीता-पाठ ! उसकी आत्मा में, रग-रग में कृष्ण का उपदेश भर गया था । वह जिस तरह बाहर से सुर्ख और खूबसूरत था, वैसा ही अन्दर से भी सुन्दर और भक्ति के रंग में रंगा हुआ था ।

धीरे-धीरे बचपन का जमाना गुज़र गया । माँ, बाप ने देखा, कि मुरली मनोहर अब उनका हाथ बँटाने के क़ाबिल हो गया है । शहर में ही एक छोटी-सी दूकान खुलवा दी और वह भक्ति के साथ-साथ साँसारिक कर्मक्षेत्र में उतर पड़ा । मुरली मनोहर अपनी उम्र में तेईस गरमियाँ और सदियाँ देख चुका था । वह खूबसुरत, शुद्ध आचरण और तन्दुरुस्त था । मां-बाप को शादी की फिक्र हुई; लेकिन अफगानिस्तान में एक तो हिन्दुओं की आबादी ही बहुत कम थी; दूसरे ढाई और चार घर का झगड़ा । फिर भी ऐसे होनहार नौनिहाल को कौन न चाहेगा ? हर एक की यही ख्वाहिश थी, कि यह मेरा जमाई बने, और इसे अपनी लड़की देने का फक्र हासिल हो । चारों तरफ से विवाह के पैगाम आने लगे । माँ-बाप अभी तय कर ही रहे थे, कि कहाँ और किसके यहाँ विवाह किया जाये, कि इतने में ही एक ऐसी घटना घटी जिसने सारी इक्छा खाक मे मिला दि ।

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मुरली मनोहर रोज़ की तरह आज भी सुबह उठकर नहाने घाट गया । सवेरा हो चुका था । सूर्य भगवान की सुर्ख किरणें पानी के साथ रँगरेलियाँ करने लगी थीं । कुछ मुसलमान पठान भी वहाँ नहा रहे थे । मुरलीमनोहर ने आसनी और धोती किनारे पर रखी और कमर तक पानी में जा, इष्टदेव का स्मरण कर तीन ग़ोते लगाये । वह भगवान् सूर्य की ओर मुँह करके जप करने लगा । बदमाश पठानों ने छेड़ने की गरज से पानी उछालना आरम्भ किया । पहले तो वह बेचारा सहन करता रहा । यहाँ तक, कि जप पूरा करना भी उसके लिये मुश्किल हो गया । आखिर न रहा गया, उसने एतराज किया । वहाँ तो गरज़ ही छेड़ने की थी । बातों-ही-बातों में तकरार शुरू हो गयी बढ़ते बढ़ते गाली- गलौज तक की नौबत आ पहुँची । पठानों ने मुरली मनोहर के रिश्तेदारों को गालियों देनी शुरू कीं । और शैतानों ने उसके मुँह पर थूक दिया और लगे उसके देवी-देवताओं को गालियाँ देने । मुरलीमनोहर सब कुछ बरदाश्त कर सकता था; लेकिन यह आखिरी शब्द उसकी सहन-शक्ति के बाहर था । वह भला कब तक गालियाँ, वह भी अपने देवी-देवताओं के प्रति-सहन करता ? उसने मुसलमानों के हुजूम की परवाह न की; क्योंकि वह भी तो क़न्दहार की आबो हवा में पला था । उसने उनके साथ वही सलूक किया, जो उन्होंने किया था ।

मुसलमानों ने देखा, कि यह काफिर यूँ न मानेगा । उस वक्त तो वे वहाँ से चले गये; लेकिन दूसरे दिन उन्होंने एक भारी भीड़ सामने खड़ी कर दी । अभी मुरली मनोहर घाट से आकर कपड़े भी बदल न पाया था, कि मकान के चारों तरफ अफगानी सिपाहियों ने घेरा डाल दिया । मुरली मनोहर को बाहर निकलने के लिये मजबूर होना पड़ा; क्योंकि अगर वह मकान के बाहर न निकलता, तो सिपाही घर के अन्दर घुस पढ़ते और जनान खाने में पहुँचकर औरतों तक को अपमानित करते । बाहर आते ही मुरलीमनोहर गिरफ्तार कर लिया गया और सैकडों अफगानियों की तलवार के जोर से शहर के हाकीम के सामने पेश किया गया । इस घटना को हुए आज करीब १०० वर्षे से अधिक गुज़र चुके हैं । उस वक्त शायद काबुल की गद्दी पर अमीर अमानुल्लाह के पिता अमीर हबीबुल्ला खां साहब राज करते थे । मगर वह ज़माना कुछ और था । इस्लाम धर्मे की कट्टरता और मज़हबी जोश का जोर इस क़दर बढ़ा-चढ़ा था, कि खुद अमीर भी उसके खिलाफ ज़रा भी चूँ न कर सकते थे । कहने के लिये तो वह थे, बादशाह-मुल्क; लेकिन सच तो यह, कि वह मौलवी और मुलाओ का ज़माना था । अफगानिस्तान में पूरब से पश्चिम तक और उत्तर से दक्षिण तक अमीर उनके हाथ की कठपुतली थे । मुरलीमनोहर को कन्दहार के गोवर्नर के सामने लाया गया, तब कचहरी के बाहर हज़ारों पठान खड़े शोरोगुल मचा रहे थे और चाहते थे, कि मुरली मनोहर का फौरन क़त्ल कर दिया जाये । पठानों की आंखों से आग की चिनगारियाँ निकल रही थीं और वे उस नौजवान के खून के प्यासे हो रहे थे । हाकिम ने देखा, हालत बहुत नाजुक हो चुकी है। अगर इस वक्त काज़ी के फ़तवो के मुताबिक फैसला न दिया गया, तो कोई ताज्जुब नहीं, कि बगाबात हो जाये ।

मुकदमे की जाँच शुरू हुई । मुरलीमनोहर पर इल्ज़ाम लगाया गया, कि उसने पीर को गालियाँ दी हैं । अब गवाहों की बयानात शुरू हुए । सफ़ाई में गवाहों ने बतलाया, कि गाली-गलौज का सिलसिला पहले मुसलमानों की तरफ़ से आरम्भ हुआ और मुरलीमनोहर ने सिर्फ उनकी बातों को दुहराया भर था । लेकिन शरारत चाहे जिधर से शुरू की गयी थी, झगड़े की शुरूआत चाहे जिसकी तरफ से हुई हो; वहाँ सवाल तो यह था, कि मुरलीमनोहर की हिम्मत कैसे हुई, कि उसने पीर को गालियाँ दे डाली ? यह जुर्म ऐसा नहीं, कि वह ज़िन्दा रखा जाये या उसकी रिहाई हो सके । हाकिम ने तमाम गवाहों की गवाहियाँ क़लम-बन्द कीं और एक बार मुरलीमनोहर के खूबसूरत, लाजबाब नूरानी चेहरे की ओर देखा । उसके दिलमें तूफान मच रहा था । इस्लामी क़ानून कहता था, कि उसे फौरन फाँसी के तख्ते पर लटका दिया जाये । हालात कहते थे, कि इसका कोई क़सूर नहीं, उसकी नौजवानी अपनी मासूमियत जाहिर करती थी और उसके चेहरे का जलाल उसे बेगुनाह साबित करने की कोशिश कर रहा था । गवर्नर सोच रहा था, कि क्या कर इस नौजवान की जान बख्शी जाये ? आखिर बहुत गौर करने पर एक ही तरकीब ध्यान में आयी, जिससे उसका छुटकारा हो सकता था और वह तरकीब थीं, इस्लामधर्म कबूल कर लेना । उसने मुरलीमनोहर के चेहरे की तरफ देखा – मुरलीमनोहर के चेहरे पर शान्ति थी; और थी हिन्दू-धर्म की कटृटरता !

गवर्नर ने सन्नाटे का आलम तोड़ते हुए आहिस्ता-आहिस्ता कहना आरम्भ किया – “मुरलीमनोहर ! जो क़सूर तुमने किया है, वह काबिले रहम नहीं । खुदा की शान में जो अलफाज़ तुमने इस्तेमाल किये हैं, वह किसी तरह भी बर्दाश्त नहीं किये जा सकते । लेकिन तुम्हारी कमसिनी और जवानी पर तरल खाकर सिर्फ इतना ही किया जा सकता है, कि अगर तुम अपने गुनाहां की माफी माँगते हुए दीन-इस्लाम कबूल कर लो, तो तुम्हें रिहाई मिल सकती है और साथ ही किसी ऊचे ओहदे पर बिठाये भी जा सकते हो । बस ! अगर तुम जिन्दा रहना चाहते हो और अपनो वकाया जिन्दगी के दिन ऐशो-इशरत से गुज़ारने की ख्वाहिश रखते हो, तो इस्लाम धर्म की ख़िदमत करने के लिये तैयार हो जाओ ।”

फैसला सुनते ही तमाम लोगों की आँखें मुरलीमनोहर की तरफ उठ गयीं और सब उसका मुँह ताकने लगे ; लेकिन मुरलीमनोहर की भुजाओं पर बल भी न आया । उसकी आँखों चमकने लगीं । चेहरा तमतमा उठा । उसने घृर्णा सूचक हॅसी हुसकर मुंह फेर लिया ! उसको खामोश देखकर गवर्नर ने कहा, -‘क्यों ! क्या इरादा है ?”

मुरलीमनोहर ने हस कर जवाब दिया, – “हुजूर! मैं हिन्दू हूँ, भगवद्गीता का पाठ करता हूँ; श्री कृष्ण का परम भक्त वैष्णव हू । मैं भला मुसलमान कैसे हो सकता हूँ ? जिस मोहिनी मुर्ति ने मेरे दिल पर कब्जा कर लिया है, उसे अत् इस सिंहासन से कैसे उतार सकता हूँ ? “

गवर्नर,- बेवकूफ ! किस वहम में पड़ा है ? दीने-इस्लाम कबूल कर लेने से ज़िन्दगी रहती है । और ज़िन्दगी रहने से इशरत और बहिश्त दोनों मिलते हैं ।”

मुरलीमनोहर – “मेरा धर्म तो यह कहता है, कि जो जैसा कर्म करता है, उसे वैसा फल मिलता है, दोज़ख या बहिश्त किसी के दिये से नहीं मिलते।”

गवर्नर,-“मालूम होता है, कि कुफ्र ने तुम्हारे दिल पर पूरा सिक्का जमा लिया है । तुम्हारी आखों मे मुरख का काला परदा पड़ा हुआ है । इसलिये अब तुम्हारे लिये मौत के सिवाय और कोई दूसरी सज़़ा नहीं दिखाई देती ।”

मूरलीमनोहर – “हुजूर ! जो पैदा हुआ है, वह एक दिन मरेगा । फर्क सिर्फ इतना ही है, कि कोई आगे मरता है, कोई पीछे । इसलिये आगे-पीछे का क्या भरोसा ? अगर आप मुझे मौत की सज़ा न दें, तो क्या मुझे मौत न आयेगी ? या अगर मेरी ज़िन्दगी है, तो क्या आप मुझे मरवा सकते हैं ? हाँ, यह ज़रूर है, कि इस तरह आज मरता हूँ और यों चन्द साल बाद मरूगा । तो फिर आप ही बतलाइये, कि मौत से घबराना क्यो ? क्या नादानी नहीं, दानाई है ? इस चार दिन की ज़िन्दगी में, अपना धर्म छोड़कर गैर-मज़हब कबूल करू और इस लोक के साथ-साथ परलोक भी बिगाडू ?”

गवर्नर -“तुम गलती कर रहे हो ! ख़ैर आज के दिन तुम्हें मुहलत देता हूँ । इस दरम्यान में खूब सोच लो, गौर कर लो और कल फिर हाज़िर होकर जवाब देना । याद रखो, तुम्हारे उस जवाब पर तुम्हारी जिंदगी का आखिरी फौसला होगा । आज रात की रात गौर कर लो !”

इतना कहकर हाकिम उठ गया और अदालत बरखास्त हो गयी । मुरली मनोहर बेड़ियों की झन्कार के साथ आहिस्ता-आहिस्ता अदालत की सीढ़ियों से नीचे उतरा । सिपाहियों की हिरासत में जिस वक्त मुरली मनोहर जेलखाने की बन्द गाड़ी में सवार होने लगा, पठानों का दिल चिल्ला उठा,-“कत्लकर दो ! फौरन क़त्लकर दो !!” शाम होते-न-होते मुरली मनोहर जेलखाने पहुँचा ।

उस रात को उसने कुछ न खाया और सारी रात गीता का पाठ करता रहा। गीता के श्लोक मीठी और सुरीली आवाज़ में गाते-गाते मुरली मनोहर को ऐसा मालूम होने लगा, की खुद कृष्ण भगवान् उसे उपदेश दे रहे हों ! उसने भगवान के चरणों में शीश नवाकर भक्ति-भाव से हाथ जोड़, प्रार्थना की-‘प्रभू ! बल दो, हृदय में शक्ति दो । इस शअन्याय के सम्मुख छाती तानकर खड़े होने तथा हिन्दू धर्म की सम्मान-रक्षा के लिये हसते-हसते फाँसी के तख्ते पर चढ़ जाने की शक्ति दो ।“ इसी आनन्द में रात्रि व्यतीत हो गयी ।

सबेरा होते ही मुरली मनोहर ने नित्यकर्म से निपटकर स्नान किया और एकाग्र मन से भगवान श्रीकृष्ण की उपासना में लीन हो गया । आज उसके हृदय में एक नयी स्फूरटी थी-चेहरा चमक रहा था । इतने में उसके माता-पिता तथा भाई-बहन जेल के दरवाज़े पर पहुँच गये । उनके रोने-चिन्लाने की आवाज़ सुनकर मुरली मनोहर जेल के दरवाज़ पर आ गया । लेकिन मुरली मनोहर, मे ज़राभी परेशानी पर बल नही आया !

चेहरे का चमक जरा भी कम नहीं, लेकिन उस के सीने में एक छोटा सा दिल था । मा का रोना, बाप का तड़पना और बहन की आहोज़ारी देखकर आँखें नम हो ही गयीं । लड़के की आँखों में आँसू देखकर माँने कहा, -बेटा क्या हुआ, कि हम एक ही घर में एक साथ न रह सकेंगे; लेकिन तू जिन्दा तो रहेगा ? कभी-कभी तुझे देख तो लिया करूगी ? कलेजा तो ठण्डा हो जाया करेगा ? बेटा ! काजी की बात मान ले ।”

मुरली मनोहर,-“माँ ! मोह और ममताने तुमको यह कहने पर मजबूर किया है । अगर इस आखिरी वक्त में मुझे यह भी उपदेश देना था, फिर मुझे हिन्दू धर्म का यह अमृत क्यों पिलाया था ? मेरे हृदय में धर्म की ज्योति क्यों जगायी थी ? भगवान् श्रीकृष्ण की भक्ति क्यों उपजायी थी ? मुझे सांसारिक भोगों की ओर क्यों न लगाया था ? फिर तो मैं संसार के मिथ्या-भोंगों पर धर्म, ईमान, भक्ति और माता-पिता सब कुछ निछावर कर देता । परन्तु अब तो मेरे दिल पर गीता के पवित्र प्रवचन छप चुके हैं । भगवान् कृष्ण की वह मोहिनी मुर्ति हृदय मन्दिर में विराजमान हो चुकी है । इंसान कई बार मरता है और कई वार जीता है । लेकिन धर्म ही एक ऐसी वस्तु है, जो साथ जाती है । संसार की धन-वैभव-ये सारे ऐशो-आराम के साज़ो सामान एक भी वस्तु साथ नहीं जाती है । फिर अब तुम्हीं बतलाओ, कि नाशवान वस्तु को ग्रहण कर धर्म को, जो परलोक तक साथ देगा, क्यों कर छोड़ दे ? अन्तिम समय में मुझे गन्दी नालियों में मत फेको, मुझे खुशी से मरने दो । मुझे भगवान के चरणों में अपने को अर्पण करने दो । काज़ी मेरे जिस्म को काटेगा, तुम मेरी आत्मा को न काटो ।”

मुरलीमनोहर की यह बाते माता-पिता ने सुनीं, और आगे सुनने की जरूरत न कर सके । मुरली-मनोहर के चहरे पर चमक था । उसके ज्योति-पूर्ण चेहरे की ओर ताकने का किसी को साहस नहीं हुआ । अब किसी की आँख में आँसू न था । सब खामोश हो गए ।

जब जेल के अफ़सरों को मालूम हुआ, कि मुरली मनोहर मुलमान होने के लिये तैयार नहीं है, तो उन्होंने उसी वक्त गवर्नर को खबर दी, कि हुजूर ! काफिर मुरलीमनोहर से जब पूछा गया, कि उसने कल की रात बिताकर करके अपनी जिन्दगी के लिए क्या फैसला किया, तो उसने बड़ी बे-खौफी और गुस्ताखाना तरीक़ से जवाब दिया, कि मेरी नसों में हिन्दू-जाति का रक्त प्रवाहित हो रहा है, मुझे मुसलमान बनाने का ख्याल अपने दिमाग़ में लाना महज़ बेवकूफ़ी और अपनी बुज़दिलो का सवूत देना है । गवर्नर ने तेश में आकर फ़ौरन आखिरी हुक्म सुनाया,-“आज ही दोपहर को उसे क़त्ल कर दो !!”

एक चौड़े मैदान में इलाक़े भर के लोग जमा हो गये । दोपहर तक हज़ारों की तादाद में लोग जमा हुए। पठानों को यही शौक़ था, कि आज अपनी ऑँखों से एक काफिर को मौत के घाट उतारे जाते हुए देखेंगे । मुरलीमनोहर को ऊँची जगह पर खड़ा कर दिया गया और गवर्नर के आने का इन्तज़ार किया जाने लगा । वक्त पर गवर्नर आया और हक्म दिया,- “सर ऊँचा करो ! “

मुरली मनोहर ने हुक्म की तामील की ।

गवर्नर ने पूछा,- “क्या तैयार हो ?” मुरली मनोहर ने उत्तर दिया,- तैयार हूँ मैं धर्म पर बेखौफ मरने के लिये तैयार हूँ, मैं इस के दुनियामें उभरनेके लिये तैयार हूँ, मैं खाक में ही फिर से मिलनेके लिये, बीज बोता हूँ जहां में फिर से खिलनेके लिये ॥ भगवन् ! तुम्हारी शरण में आता हूँ । इधर मुरलीमनोहर की ज़बान से यह शब्द निकले और उधर बन्दूक की तीन गोलियाँ सीने के पार हो गयीं !! गवर्नर ने लाश पर एक हसरत-भरी निगाह डाली और चल दिया ।

ज़ालिम पठानों ने मुरली मनोहर की लाश को पत्थर मार-मारकर टुकड़े टुकड़े कर दिया । हिन्दू-जनता बेबस थी, उसने देखा और सब कुछ देखा; लेकिन हाथ मलकर रह गयी । ज़बान खामोश थी ; लेकिन दिल रो रहा था ।

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