सेती प्रथम की पुजारिन । Seti I

सेती प्रथम की पुजारिन । Seti I

क्या वास्तव में आत्मा अजर अमर है, जो कभी भी नष्ट नहीं हो सकती है ? क्या आत्मा दूसरे शरीर में प्रवेश कर सकती है ? क्या पुनर्जन्म होता है ? ये सभी विषय भले ही विज्ञान द्वारा प्रमाणित नहीं हों, परन्तु समय-समय पर ऐसी घटनाएं घटती रहती हैं, जो यह मानने पर मजबूर करती हैं कि कुछ विषय विज्ञान से भी परे है, जिसे जानना अभी शेष है ।

सन् १९०३ में लंदन में एक धनी परिवार में डोरोथी एडी नामक लड़की ने जन्म लिया । यह लड़की अन्य बच्चों की तरह ही नटखट तथा शरारती थी । एक बार बचपन में ही डोरोथी अचानक सीढ़ियों से फिसलकर बेहोश हो गई । डॉक्टर कुछ विलम्ब से आया तथा जांच करने के उपरान्त उसने डोरोथी को मृत घोषित कर दिया । इसके बाद डॉक्टर दूसरे कमरे में नर्स को बुलाने चला गया । जब दोनों उस कमरे में वापस लौटे, तो आश्चर्यचकित रह गए । डोरोथी मरी नहीं थी, बल्कि जिन्दा और होशो-हवास में थी ।

Seti%20I

इस हादसे के कुछ दिनों के बाद डोरोथी के स्वभाव में विचित्र परिवर्तन हुआ । वह अकसर मेज के नीचे तथा फर्नीचर के पीछे छिपी रहती । अपने माता-पिता से अपने घर जाने जिद करती । माता-पिता समझ नहीं पाते कि आखिर डोरोथी किसके घर जाने की जिद करती है ।

एक बार डोरोथी अपने माता-पिता के साथ ब्रिटिश म्यूजियम देखने गई । जब वे सब म्यूजियम के उस हिस्से में पहुंचे, जहां प्राचीन मिश्र के इतिहास से संबंधित वस्तु रखी थीं, तो अचानक डोरोथी को न जाने क्या हो गया । वह पागलों की तरह इधर-उधर दौड़ने लगी । कभी वह इस मूर्ति के पैर चूमती, तो कभी उस मूर्ति के । कभी किसी ममी से लिपटकर रोती, तो कभी चीख-बीख कर कहती कि उसे अपने लोगों के पास जाने दिया जाए । उसकी आवाज भी बदल गई थी । जब वह चीखती, तो उसकी आवाज किसी वृद्ध औरत जैसी लगती थी । माता-पिता बहुत मुश्किल से उसे संभालकर घर ले गए ।

इस घटना के कुछ दिनों उपरान्त किसी ने डोरोथी को प्राचीन मिश्रा के राजा सेती प्रथम द्वारा बनाए गए मिस्री देवता ओसिरिस के एक मंदिर की तस्वीर दिखाई । डोरोथी उस तस्वीर पर झपट पड़ी । वह तुरन्त उसे अपने पिता के पास ले गई तथा उन्हें वह तस्वीर दिखाकर वोली कि वह मंदिर ही उसका असली घर है । डोरोथी ने यह दावा किया कि वह सेती प्रथम को जानती थी तथा उसके अनुसार सेती प्रथम बहुत दयालु इनसान था जैसे-जैसे डोरोथी को विश्वास होता गया कि उसका असली घर मिश्र में ही है, उसने वहां जाने की तैयारियां शुरू कर दी । उसने लंदन में प्राचीन मिस्री भाषा भी सीखनी शुरू कर दी । जिस फुर्ती तथा आसानी से उसने उस कठिन भाषा पर अधिकार पा लिया, उससे उसके अध्यापक भी चकित रह गए थे उसने अपनी इस उपलब्धि को यह कहकर टाल दिया कि वह उसके लिए कोई नई भाषा नहीं थी, बल्कि वह मात्र अपनी पुरानी यादों को ताजा कर रही थी ।

फिर सन् १९३० में डोरोथी ने मिश्र के एक निवासी से शादी की । उसने अपने एकमात्र पुत्र का नाम ‘सेती’ रखा तथा अपना नाम डोरोथी से बदल कर ‘उम सेती’ रख लिया। मिश्री भाषा में इस नाम का अर्थ होता है – सेती की मां ।

२० वर्ष तक उसने मिश्र के पुरातत्वीय सहयोगी शोधकर्ता के रूप में काम किया । १९५२ में वह पहली बार अबायदौस के लिए तीर्थयात्रा पर निकली । अबायदौस में प्राचीन मिस्र के सम्राट सेती प्रथम ने मिस्र के देवता ओसिरिस के लिए मंदिर बनवाया था । जब वह अबायदौस पहुंची, तो उसने महसूस किया कि आखिरकार वह अपने घर पहुंच ही गई । दो साल बाद वह फिर दोबारा अबायदौस गई । इस बार हमेशा के लिए उसने उस मंदिर के खंडहर को अपना घर बना लिया । वह अपना समय मंदिर की देखभाल तथा देवता ओसिरिस की पूजा अर्चना करने में व्यतीत करती ।

१९७३ में उसने मिस्र के पुरातत्व विभाग से यह भी इजाजत ले ली कि जब वह मृत्यु को प्राप्त हो, तो उसे उस मंदिर के आंगन में ही दफनाया जाय, जिसे वह अपना घर कहती थी । इस प्रकार डोरोथी की कहानी पर काया प्रवेश से संबंधित अनेक घटनाओं से जुड़ गई ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *