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यहाँ धूमावती साधन के मंत्र, जाप, ध्यान, यंत्र, जप-होम और कवच आदि का वर्णन किया जाता है ।
धूमावती-मंत्र
धूं धूं धूमावती स्वाहा ।
इस मंत्र से धूमावती की आराधना, पूजा, जपादि करें ।
धूमावती ध्यान
विवर्णा चञ्चला रुष्टा दीर्घा च मलिनाम्बरा ।
विवर्णकुन्तला रूक्षा विधवा विरलद्विजा ।।
काकध्वजरथारूढा विलम्बितपयोधरा ।
सूर्यहस्तातिरूक्षाक्षी धृतहस्ता वरान्विता ।।
प्रवृद्धघोणा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा ।
क्षुत्पिपासार्दिता नित्यं भयदा कलहप्रिया ।।
टीका - धूमावती देवी विवर्णा, चंचला, रुष्टा और दीर्घागी तथा मलिन (मैले) वस्त्र धारण करने वाली हैं, इनके केश विवर्ण और रूक्ष (रूखे) हैं, यह विधवारूपधारिणी संपूर्ण दाँत छिदे (बिखरे हुए) और दोनों स्तन लम्बे हैं, तथा ये काकध्वजवाले रथ में विराजमान हैं, देवी के दोनों नेत्र रूक्ष हैं । इनके एक हाथ में सूर्य और दूसरे हाथ में वरमुद्रा है । नासिका बड़ी और देह तथा नेत्र कुटिल हैं । यह भूख-प्यास से व्याकुल हैं । इसके अलावा यह भयंकर मुखवाली और कलह में तत्पर हैं ।
धूमावती पूजन का यन्त्र
धूमावती पूजन के यंत्र की कोई व्यवस्था नहीं की गई है । इसके लिये साधक को काली पूजन के यंत्र का प्रयोग करना चाहिये ।
धूमावती मंत्र का जप होम
एक लक्ष (एक लाख) मंत्र जपने से इसका पुरश्चरण होता है तथा गिलोय (गुर्च) की समिधाओं से उसका दशांश होम करे ।
धूमावती-स्तव
भद्रकाली महाकाली डमरूवाद्यकारिणी ।
स्फारितनयना चैव टकटंकितहासिनी ।।
धूमावती जगत्कर्त्री शूर्पहस्ता तथैव च ।
अष्टनामात्मकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिसंयुतः ।।
तस्य सर्वार्थसिद्धिः स्यात्सत्यं सत्यं हि पार्वति ।।
टीका - १. भद्रकाली, २. महाकाली, ३. डमरू बाजा बजानेवाली, ४. स्फुरित नयन खोले हुए नेत्रवाली, ५. टंकित हासिनी, ६. धूमावती, ७. जगत्कर्त्री, ८. शूर्पहस्ता, छाज हाथ में लिये,
धूमावती का यह अष्टनामात्मक स्तोत्र पढ़ने से सभी कार्यों की सिद्धि होती है ।
धूमावती-कवच
धूमावती मुखं पातु धूं धूं स्वाहास्वरूपिणी ।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्यसुंदरी ॥
टीका - धूं धूं स्वाहास्वरूपिणी धूमावती मेरे मुख और नित्यसुन्दरी मालिनी और विजया मेरे ललाट की रक्षा करें ।
कल्याणी हृदयं पातु हसरीं नाभिदेशके ।
सर्वांगं पातु देवेशी निष्कला भगमालिनी ।।
टीका - कल्याणी हृदय की, हसरीं नाभि की और निष्कला भगमालिनी देवी मेरे सर्वांग की रक्षा करें ।
सुपुण्यं कवचं दिव्यं यः पठेद्भक्तिसंयुतः ।
सौभाग्यमतुलं प्राप्य चांते देवीपुरं ययौ ।।
इस पवित्र दिव्य कवच को श्रद्धा-भक्ति पूर्वक पाठ करने से साधक इस लोक में अतुल सुख-भोग करके अन्त समय में देवी-पुर में जाता है ।
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