नरक का रास्ता | नरक लोक | नरक की गुफा | Way of Hell | Cave of Hell

नरक का रास्ता | नरक लोक | नरक की गुफा | Way of Hell | Cave of Hell

गर्मी का मौसम प्रारंभ होते ही लोग “सेस नेग” की ओर उमड़ पड़ते हैं । दक्षिणी-पूर्वी फ्रांस का यह प्राचीन कस्बा ग्रेनेवल से चार मील की दूरी पर आल्प्स पर्वत में स्थित है । सांप की तरह बल खाने वाला फरोन दरिया उस कस्बे की भयंकरता में और वृद्धि कर देता है । सेस नेग से थोड़ी ही दूरी पर प्रसिद्ध “अंधेरी गुफाओं” का एक व्यापक सिलसिला है । वास्तव में यह गुफाएं उस भव्य और शानदार महल के भाग हैं, जो फ्रांसीसी सम्राटों ने सदियों पहले बनवाया था । यह प्रसिद्ध था कि इन प्राचीन गुफाओं में सम्राटों के खजाने दबे थे ।

नवंबर १९४६ में दो दोस्त एमास और जीन जैकोस कुछ सैलानियों के साथ इन गुफाओं को देखने गए । एक पथ-प्रदर्शक इन्हें एक तंग रास्ते से गुफा में ले गया । पथ-प्रदर्शक ने विद्युत-लैंप का प्रकाश गुफा में फैलाते हुए कहा, “आप लोग इसके निकट मत जाइए। यह नरक और भूतों की नदी की ओर जाती है । उसमें प्रवेश करने वाला इंसान कभी वापस नहीं लौटता।”

उस वर्ष तो वे दोनों दोस्त वहीं से वापस चले आए, किंतु अगले वर्ष ग्रीष्म ऋतु की छुट्टियों में ये दोनों अपने एक अन्य मित्र वर्जर के साथ उन गुफाओं के निकट पहुंचे और बिना किसी पथ-प्रदर्शक की सहायता के उसमें दाखिल हुए । जब लौटने लगे, तो बिजली का लैप लेकर चलने वाला एमास अचानक गायब हो गया । चारों ओर अंधेरा छा गया । जीन ने अपना लैंप जलाया और एमास को खोजने के लिए आगे बढ़ा । कदम रखते ही अचानक जमीन पैर के नीचे से सरक गई और वह बर्फीले पानी से भरी हुई खाई में जा गिरा, फिर फोरन संभला और चीखा, “वर्जर, रुक जाओ। आगे खाई है।”

वर्जर ने अपना लैंप जलाया और एक चट्टान का सहारा लेकर नजर दौड़ाई, तो देखा कि एमास और जीन साफ पानी के तालाब में सीने तक डूबे थे । वर्जर ने उन्हें बाहर निकाला । उनके दांत जोर-जोर से बज रहे थे ।

अब बर्जर आगे-आगे था और दोनों पीछे-पीछे । वे देर तक गुफाओं की भूलभुलैया में भटकते रहे । बाहर जाने का रास्ता नजर नहीं आ रहा था । जब थक कर हार गए, तब एक सुरंगनुमा गैलरी में बैठ गए ।

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“लगता है, अब बाहर जाने का रास्ता नहीं मिलेगा और जीवन-भर यहीं रहना पड़ेगा” जीन ने घबराई हुई आवाज में निराशा के साथ कहा ।

“निराश होने की जरूरत नहीं। अधिक-से-अधिक हमें यहां एक रात गुजारनी पड़ेगी । सवेरे जब लोग खंडहर देखने आएंगे, तो हम आवाज देकर उन्हें अपनी ओर बुला लेंगे।” वर्जर ने विश्वास के साथ जवाब दिया ।

“लेकिन इन भयानक गुफाओं में एक रात भी तो खतरे से खाली नहीं । संभव है, कोई जहरीला सांप, बिच्छू या… “

अचानक जबरदस्त फड़फड़ाहट की आवाज हुई और जीन की बोलती बंद हो गई । एक बहुत बड़ा चमगादड़ उनके ऊपर से गुजर गया । उसके पंखों का फलाव एक मीटर से भी अधिक था | चमगादड़ का डील-डील देख कर उनकी चीख निकल गई । वे फौरन संभल गए और चमगादड़ के पीछे चल पड़े । सामने एक चौकार दरवाजा दिखाई दिया । वर्जर ने लैम्प से अंदर प्रकाश किया । सैकड़ों भयानक चीखें एक साथ उठीं । असंख्य दैत्याकार चमगादड़ कमरे की छत के साथ उलटी लटकी चीख रही थीं । तीनों फौरन पीछे हट कर विपरीत दिशा में चलते हुए मुहाने पर पहुंच गए । उन्होंने खुशी का नारा लगाया । वहां से वापस जाना बेहद आसान था । दीवारों पर लिखे निर्देश पर अमल करते हुए वे जब गुफा से बाहर निकले, तो सूरज डूब चुका था । हर तरफ अंधेरा था ।

जीन और उसके साथियों ने उन अंधेरी गुफाओं की छानबीन करने का काम आधुनिक और वैज्ञानिक ढंग से आगे बढ़ाने के लिए एक क्लब की स्थापना की । पहली मई, १९५१ पूर्वी भाग सोरनन की ओर गए, जहां कीमती खजाने दबे थे । वे डेढ़ सौ मीटर की गहराई में निरंतर चार दिन तक तंग रास्तों और सुरंगों में रेंगते रहे । उन्होंने कई नई गुफाएं और सुरंगें छान मारीं, लेकिन खजानों का सुराग न मिला ।

पांचवें दिन मौसम अचानक बदल गया और उन्हें अपना कार्यक्रम स्थगित कर देना पड़ा ।

कुछ समय पश्चात् १४ जुलाई १९५२ को वे फिर सोरनन में दाखिल हुए । खाने-पीने की चीजों के अलावा अन्य जरूरी सामान पचास मीटर गहरे एक हाल जैसे कमरे में पहुंचा दिया और फिर अपने अभियान पर चल दिए ।

तालाब वाले कमरे में पहुंचे, तो देखा, कमरे की पांच मीटर ऊंची छत में एक छोटा-सा सुराख है, जिससे पानी की एक तेज धार तालाब में गिर रही थी और तालाब का पानी दूसरी ओर एक अन्य गुफा में जा रहा था ।

जीन को नाईलोन के डेढ़ सौ मीटर लंबे रस्से द्वारा नीचे उतारा गया, नब्बे मीटर की गहराई में जीन के पांव एक चट्टान पर लग गए । तालाब का पानी उसी जगह गिर कर एक छोटी-सी नदी का रूप धारण करके दूर तक चला गया था । उन्होंने सोचा कि अब इस नरक के रास्ते की खोज करने का समय आ गया है ।

दो सौ मीटर लंबे रस्से की मदद से सबसे पहले पिटल और गोटार्ड नरक के मुहाने में दाखिल हुए । लगभग डेढ़ सौ मीटर की गहराई में उनके कदम सतह से टकराए । उन्होंने देखा, उसी चट्टान पर खड़े हैं, जिस पर पिछले दिन उतरे थे ।

जीन और उसके दूसरे साथी भी थोड़ी देर में वहां पहुंच गए । वे सब एक बार फिर नदी के किनारे-किनारे झील तक जा पहुंचे । काफी थक जाने के कारण आराम करने के लिए वे झील के किनारे पत्थरों से टेक लगा कर लेट गए । अचानक एमास नींद के झोंके में सिर के साथ बंधे हुए विद्युत लैम्प सहित झील में गिर गया और देखते-ही-देखते आंखों से ओझल हो गया । जान और गोटार्ड रस्सों के सहारे झील में कूद गए और एमास को दूर तक ढूंढ़ते रहे, किंतु वह न मिला । निराश होकर वे झील से निकल आए ।

अचानक एमास का हंसता हुआ चेहरा झील से उभरा । उसके बाहर आते ही सब भावावेश में उससे लिपट गए । एमास ने बताया, “आगे रास्ता बंद नहीं है । झील का पानी बहुत बड़ी चट्टान के नीचे से गुजर कर एक बहुत बड़ी सुरंग में नदी का रूप धारण कर लेता है । मैं उस नदी के किनारे दूर तक चला गया था । एक जगह सुरंग अचानक खत्म हो गई । गौर से देखा, तो एक गहरे कुएं की मुंडेर पर खड़ा था । अगर एक कदम भी आगे बढ़ जाता, तो निश्चय ही मौत के मुंह में चला जाता । मैंने चट्टान के पास पहुंच कर दरिया में गोता मारा और चट्टान के नीचे से होता हुआ झील में आ गया ।”

इसके बाद उन्होंने अपना अभियान यहीं रोक दिया और वापस लौट आए ।

१९५४ के सेस नेग क्लब के सदस्यों ने अभियान के अगले चरण के लिए जोरदार तैयारी की | सेना ने उनके लिए वायरलेस सेट और टेलीफोन की व्यवस्था की । विभिन्न औद्योगिक कंपनियों ने खाद्य साम्रगी, वैज्ञानिक यंत्र, उपकरण, कैमरे, बिजली का सामान, नाईलोन के रस्से, दवाइयां, हवाबंद लिबास और अन्य वस्तुएं मुहैया कीं । दल में दो भूवेत्ता भी शामिल किए गए, क्योंकि अभियान का बुनियादी मकसद वैज्ञानिक अनुसंधान था । पिटल को दल का नेता चुना गया ।

१८ जुलाई १९५४ नरक के मुहाने के पास ही पहला कैंप लगा दिया गया । सवेरे बिगुल बजा | हरावल दस्ते ने वायरलैस और अन्य यंत्रों से लैस वाटरप्रूफ लिबास पहन लिए और पिटल के नेतृत्व में पहले कैंप की ओर चल दिए । वहां पहुंच कर पिटल ने दस्ते को दो भागों में बांट दिया ।

वह स्वयं जीन, ब्रथेजन और अर्नाड को साथ लेकर नरक की गुफा में उतर गया । वर्जर ने स्वचालित कैमरे की मदद से फिल्म तैयार करनी शुरू कर दी । सफेद चट्टान पर गिरता हुआ पानी विद्युत-लैंपों के प्रकाश में अजीब-सा दृश्य प्रस्तुत कर रहा था । शाम वे झील वाली बड़ी गुफा में पहुंच गए । पिटल ने वायरलैस पर दस्ते के बाकी सदस्यों को भी नरक की गुफा में उतरने की अनुमति दे दी और रात वहीं झील के किनारे बिताई ।

अगले दिन पिटल ने दूसरे दस्ते से लाइफबैल्ट और नाइलोन के दो सौ मीटर लंबे रस्सी भेजने के लिए कहा । लगभग एक घंटे बाद एमास, ब्रेजर और आलडो कंधों पर थैले लटकाए रस्सों पर प्रकट हुए । आलडो और एमास ने झील के किनारे एक चबूतरे पर टेलीफोन का स्टेशन कायम किया । हरावल दस्ता पिटल के नेतृत्व में झील में कूद गया ।

वह बड़ी चट्टान के नीचे से होता हुआ दूसरी ओर ढलवां सुरंग में पहुंच गया । थैलों के भार और बोझिल लिबास के कारण चलने में कठिनाई होने से दस्ते के सदस्य पेट के बल रेंगने लगे । अंततः वे तिरछी सुरंग तक पहुंच गए । पिटल ने बाहरी कैंप से संपर्क कायम किया, तो पता चला कि दोपहर के दो बज चुके थे ।

कुछ देर बाद दूसरे दस्ते के सदस्य उनसे आ मिले । पिटल के निर्देश के अनुसार वे अपने साथ लंबे रस्से और अन्य सामान लाए थे । वर्जर अब तक फिल्म की एक रील पूरी कर चुका था । रात के ग्यारह बजे तक उन्होंने तिरछी सुरंग में उतरने की सारी तैयारियां पूरी कर लीं ।

१६ जुलाई १९५४ को वे रेंगते हुए तिरछी सुरंग के मुहाने पर पहुंच गए थे । पिटल, अनांड और ब्रथेजन दोहरे रस्सों की मदद से सुरंग में उतर गए । वर्जर स्वचालित कैमरा लिए फोटो खींचने में मग्न था । रस्से पर सौ मीटर का निशान देख कर वह चकित हुआ । सुरंग की तह का अभी तक कुछ पता नहीं था और दूर-दूर तक अंधेरा-ही-अंधेरा था । तीस मीटर उतरने के बाद पिटल को कुछ दूर सफेद चट्टानें दिखाई पड़ीं । एक सौ चालीस मीटर पर उसके पांव एक चट्टान पर टिक गए । उसकी बांहें शिथिल हो चुकी थीं और उसे सख्त प्यास लग रही थी । उसने थर्मस से ठंडे पानी के कुछ घूंट पिए और अपने साथियों की प्रतीक्षा करने लगा । थोड़ी देर में अनांड, ब्रघेजन और वर्जर भी हांफते हुए आ पहुंचे ।

कुछ देर बाद वे तंग गुफा से निकलकर एक बहुत बड़ी गुफा में दाखिल हुए । यहां छत अपेक्षाकृत नीची थी । क्षेत्रफल की दृष्टि से यह सबसे बड़ी गुफा थी । एक झरने से पानी गिर रहा था और छोटी-सी नदी का रूप धारण करके कुछ गज की दूरी पर पंद्रह मीटर गहरी खाई में गिर रहा था । शाम तक हरावल दस्ते के सब सदस्य वहां पहुंच गए ।

सारी रात उस बड़ी गुफा में बिता कर सुबह जब वे उठे, तो दूसरा दस्ता भी वहां आ गया । वे बारी-बारी खाई में उतर गए, जो पैंतीस मीटर गहरी थी । अब वे एक तंग और ढलवां गुफा में से गुजर रहे थे । थोड़ी दूर जा कर यह गुफा पांच सौ मीटर से भी अधिक लंबी थी । लगभग तीस मीटर चौड़ी झील ने उसे दो भागों में बांट दिया । ज्यों ही पिटल ने खुली गुफा में कदम रखा, उसकी खुशी का ठिकाना न रहा ।

कुछ कदम दूर एक चबूतरे पर जवाहरात का अम्बार लगा हुआ था । हीरों से निकलती हुई किरणों से उनकी आंखें चौंधिया रही थीं । पिटल ने फौरन टेलीफोन पर अपने साथियों को अनमोल खजाना मिलने का संवाद सुना दिया । यहां पिटल ने अपने साथियों के दो दल बनाए । रबड़ की नाव में हवा भरी गई । सबसे पहले पिटल, ब्रेजल आलडो और जीन ने झील को पार किया और गुफा के दूसरे भाग में प्रवेश किया, जो आकार में बहुत अजीबोगरीब थी । उसके चारों तरफ नुकीली चट्टानें कटारों की तरह सिर उठाए खड़ी थीं । उन पर चलना खतरे से खाली न था । गुफा की छत से दूधिया गुबारे के नाजुक धागे लटक रहे थे । कई धागे तीन मीटर से भी ज्यादा लंबे थे । जीन ने फूंक मारी, तो क्षण भर में बहुत से धागे धूल में बदल कर बिखर गए । जीन काफी रात तक इन विचित्र दृश्यों को अपने कैमरे में भरने में व्यस्त रहा ।

दूसरे दिन दोपहर तक दूसरे दल के सदस्यों ने टेलीफोन के तार बिछाने का काम पूरा कर लिया । पिटल और उसके साथी दिन-भर नोकदार चट्टानों और चूने के गुबार से अटे हुए रास्ते पर चलते रहे । रात आठ बजे वे एक सौ मीटर लंबा रास्ता पार करने के बाद गुफा के आखिरी भाग में पहुंच गए । यह जगह कुछ समतल थी और झील का पानी चट्टानों में से होता हुआ दरिया के रूप में बह रहा था ।

छठे दिन तड़के ही उनका अभियान फिर शुरू हो गया । झील से निकलने वाला दरिया थोड़ी दूर जाकर चट्टानों के नीचे गायब हो गया था । वे एक दरार में से होते हुए पंद्रह मीटर गहरी खाई में उतर गए और रस्सों की मदद से रेंगते और एक सुरंग रूपी गुफा से गुजरते हुए समतल जगह पर पहुंच गए । दरिया का पानी यहां फिर झरने के रूप में प्रकट हो गया ।

अचानक बाहरी कैंप से मौसम के खराबी की सूचना मिली। बारिश शुरू हो चुकी थी । पिटल ने क्लब का निशान गुफा में अंकित कर दिया । जीन ने कुछ आखरी तस्वीरें लीं और वे पंद्रह घंटे के लगातार परिश्रम के बाद गुफा से बाहर निकल आए ।

उन्होंने १४२ घंटे गुफाओं में बिताए और ७१२ मीटर की गहराई तक गए । यह गहराई विश्व रेकार्ड से लगभग एक सौ मीटर कम थी ।

अगले साल १९५५ में बरसात के बाद फिर अभियान आरंभ हुआ । अभियान दल के सदस्य आठ भागों में बंट कर गुफा में दाखिल हुए । इस बार उनके पास आधुनिकतम यंत्र और उच्चकोटि की सामग्री थी । रस्सों के बजाए वे नाइलोन की सीढ़ियों का उपयोग कर रहे थे । पिटल और उसके साथी दिन में तीन बजे तक ७१२ मीटर गहरी गुफा में पहुंच गए, सायंकाल पांच बजे बारी-बारी एक बेहद तंग गुफा में दाखिल हो गए । यह बीस मीटर लंबी थी और दूसरी ओर दरिया के किनारे खुलती थी ।

पिटल रबर की नाव से दरिया में उतर गया । अन्य साथियों ने भी उसका अनुसरण किया । दरिया का पानी गहरा हरा था । वे सब उस रेतीले किनारे पर पहुंच गए जो ७४० मीटर गहराई पर था । यहीं उन्होंने रात बिताई । थके होने के कारण अगले दिन रविवार को भी उन्होंने विश्राम किया । कुछ अन्य सदस्य भी उनसे आ मिले । उन्होंने झील के सब-स्टेशन से दरिया तक टेलीफोन के तार बिछा दिए ।

रात को मौसम के बारे में बाहरी कैंप से कोई असाधारण सूचना नहीं मिली थी । अचानक बारिश शुरू हो गई । सब लोग परेशान हो उठे । पिटल ने बाहरी कैंप को मौसम-विभाग से संपर्क कायम करने का हुक्म दिया । थोड़ी देर बाद बारिश थम गई और तेज हवा बादलों को उड़ा ले गई । मौसम विभाग ने सूचना दी कि अब और बारिश की संभावना नहीं है ।

खतरा टलते ही पिटल और उसके साथी नावों में सवार होकर दरिया में अपने अभियान पर चल दिए । सबसे आगे पिटल की नाव थी । दरिया एक खुली गुफा में से होता हुआ बह रहा था किनारों पर काई, घोंघे और सीप अधिक थी । रेत पर बने हुए नक्श और चूने के लटकते हुए धागे बेहद आकर्षक दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे । अचानक पिटल जोर से चीखा और दरिया में कूद गया । अगले ही क्षण उसकी नाव आगे की ओर लुढ़क गई ।

बाकी साथियों ने फौरन अपनी नावें किनारे पर लगा दीं । जीन ने रस्सा फेंक कर पिटल को सहारा दिया । पिटल ने आलडो और ब्रेजल को साथ लिया और रेंगता हुआ झरने के किनारे पहुंच गया । उन्होंने ड्रील मशीन से चट्टान में सुराख किया और नाईलोन का मजबूत रस्सा उसमें से गुजार कर झरने के ऐन ऊपर पुल बना लिया । पिटल ने सहारा लेकर खाई में नजर दौड़ाई । झरने के सिवा दूर तक कुछ नजर न आया । निकट ही एक नुकीली चट्टान थी ।

पिटल ने उस पर कमंद फेंकी । नाईलोन की सीढ़ी खाई में लटकाई और बारी-बारी से खाई में उतर गए । लगभग पौन घंटे बाद उनके कदम एक पथरीली सतह पर जा लगे । सीढ़ी पर खुदा हुआ १३० मीटर का निशान चट्टान को छू रहा था । कुछ और तंग रास्तों से होकर वे एक खुली गैलरी में पहुंचे । जब पिटल ने बताया कि वे ९०३ मीटर की गहराई में पहुंच चुके हैं, तो उन सबने खुशी का जोरदार नारा लगाया । वे गहराई में उतरने का विश्व रेकार्ड तोड़ चुके थे ।

उसी वर्ष १४ अगस्त को पिटल ने अपने तीन साथियों के साथ तीन सौ तीस मीटर गहरी गुफा में फिर प्रवेश किया । उन्होंने इसका नाम ‘खुशी की गुफा’ रख दिया ।

अगले दिन १५ अगस्त को वे यहां से ११३० मीटर गहरी एक अन्य गुफा में जा पहुंचे, जो इस सिलसिले की आखरी गुफा थी । पिटल ने विभिन्न चट्टानों पर अभियान में शामिल सदस्यों के नाम और तिथि उत्कीर्ण की । जीन ने अंतिम चित्र खींचे और वर्जर ने डायरी पूरी की । भूवेत्ता पोई ने चट्टानों की आकृति और बनावट का परीक्षण किया और नमूने इकट्ठे किए ।

अगले दिन १६ अगस्त को अभियान दल के सभी सदस्य नरक की गुफा के आखिरी भाग में पहुंच गए । उन्होंने सारा दिन वहीं हर्षोल्लास में बिताया और फिर वापस चल दिए ।

२० अगस्त १९५५ की सुबह अभियान दल के सदस्य गुफा से बाहर आए । विश्व ने इस ऐतिहासिक सफलता पर उनका स्वागत किया ।

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