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आंवला नवमी की कथा | Amla Navami Katha

आंवला नवमी की कथा | Amla Navami Katha

एक साहूकार हो बीक सात बेटा हा । डोकरी क नेम हो कि रोज ब्राह्मण न जीमार १०८ सोना का आंवला देवती । आंवला क झाड क फेरी देती । यान करतां करतां सातों बेटा परणीज गया । सात बवां आयगी ६ बवां की बोलती कोनी ज्यान सासू बोलती व्यान ही होवतो सातवां बेटा की बहु आयी बा बोलो सासूजी यान दे देर खतम कर देवो तो म्हे कांई करां ? टाबरां को घर हैं सोनो मूंगो घणो हैं । रोज रोज सोनो दियाऊँ पूर कोनी। सासू लाण चांदी का आंवला देवणू शुरु कर दी ।

बहु बोली सासूजी रोज रोज चांदी का दीयाऊँ भी पूर कोनी| टाबरां को घर हैं। लाण सासू ताम्बो पीतल का आंवला देणू शुरु कर दी। बहु बोली ताम्बो पीतल भी बहुत महंगो होयग्यो बी का भी पूर कोनी। जणा लाण सासू बाजारसूं हरा हरा आंवला मंगाती और ब्राह्मणां न जीमार दे देती। थोडा दिनां क बाद बह बोली सासूजी हरा आंवलां भी घणा मूंगा होयग्या बे भी पूर कोंनी । जणा डोकरी आपका धणी न बोली कि आपांक सातवी बहु चोखी कोनी आई । ६ बवां आज तक भी कांई बोली कोनी सातवी आंवता ही मना करण लागगी |

धणी-लुगाई घर छोड़र चलेग्या । जंगल म रेबा लाग्या |एक दिन निकल्गयो दो दिन निकल्या एक दिन भूखा रहया दो दिन भूखा रहया । तीजे दिन भगवान सपना में आया और बोल्या डोकरी सुती ह कि जगे है । डोकरी बोली महाराज नीन्द केंकी आव चिन्ता म सूती हूँ। म्हारो नेम निभ्यो कोनी भगवान बोल्या डोकरी ऊठर देख थारे बारण आंवला को झाड लाग्यो हैं डोकरी ऊठर देखी तो हरा हरा आंवला लाग्या हा ।

धणी न उठाई। धणी उठयो न्हायो धोयो १०८ अंवला तोडया फेरी दे दिवी कहाणी कहया। आंवला को खटरस भोजन बणायो नमक मिर्च लाया तीन पत्तल पूरसी जीमण न बैठया तो ढोकरी बोली अठ जंगल म कोई ब्राह्मण कोनी आपान अकेला जीमणू पडी। इत्ता म भगवान ब्राम्हण को रुप धर कर आया बोल्या डोकरी माई भूख लागी हैं । डोकरी बोली आवो महाराज म्हे थान ही उडीका हां बो तीनू पत्तलां जीम लीवी डोकरी बोली यो भी आपांक ज्यान भूखो है पाणी पीर सोयग्या दूजे दिन देख्या तो सोना का आंवला को झाड होयग्यो धणी उठाई बोली आपांक तो भगवान जंगल म ही मंगल कर दिया।

धणी उठयो न्हायो धोयो फेरी दी १०८ आंवला तोडयो थोडा सा आंवला बाजार म लेजार बेचया लाखी रुपया । आयेग्या अठ आंवला नगरी बसाली। बेपार धन्धा कारखाना खोल दिया। आवे जिकान दूणी मजूरी देव और नौकरी राख लेव। अठीन बेटा बवां क खावण रोटी पेरण न कपडो रयो नहीं घाटा लागग्या । जणा बेटा बोल्या स्वदेशी चोरी परदेशी भीख पराया गांव म जार नौकरी करां धन्दो कराँ अठ गांव का वासिंदा रेयग्या । नौकरी करता चोखा लागां कोनी सातू ही बैटा और बवां आँवला नगरी [आज को आसम] म चलेग्या| डोकरी बैठी बैठी पिछाण लिवी ओ हैं तो म्हारो ही परिवार । मुनीम गुमास्तां न बुलार बोली बुलार लावो। बेटा न काम धन्धो दे दियो। कोई न रोकडया कोई न मुनीम कोई न गुमास्ता राख्या। बवां न कोई चौको परीन्डो, बिलोवणो यान अलग-अलग धन्दो भोला दियो।

सातवी बहु न आपकी सेवा करण न राखली बा सासूजी की पूजा की तैयारी कर माथो नुहाव, पग दाब और सब सेवा कर देव । एक दिव डोकरी मथो न्हायी आ पीठ मसलबा लागी तो देखी कि डोकरी क सोना का केस हा । पीठ पर मस्सो हो बहु क गरम-गरम आंसू आयग्या । जणा डोकरी पूछी कि बाई तू क्यूं रोई बा बोली थ्हाके ज्यान म्हारे भी सासूजी हा थाकि ज्यान ही आंवलां देंवता, ब्राह्मणा भोजन करावता होम आदि म्हाके भी चालू रेवतो ।

६ बवां की बोलती कोनी म्हे आवता ही मना कर दी। आज म्हनै म्हारी सासू की याद आयगी । राम जाणे वे जीवता हैं कि मरया हैं ? डोकरी बोली म्ह ही बा सासू हूँ थांको धरम था के कने म्हारो धरम म्हारे कन । या बात सगला बेटा बवां न मालूम पडगी। सगना डोकरी क पगां पडया । घरदार बेटा बवां न सौपया और आप भगवान का भजन करण लागग्या । बा आपको धरम-पुण्य, ब्राह्मणा भोजन यज्ञ कर । भगवान का घर को विमाण आयो दोनो धणी लुगाई विमान व बैठर बैकुण्ठ चलेग्या ।

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