क्या हम उतने ही हैं, जितना हमारा शरीर भाग २ | Are we as much as our body Part 2

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क्‍या हम उतने ही हैं, जितना हमारा शरीर ? 

(भाग 2)  

Are we as much as our body ? 

(Part 2)


क्‍या हम उतने ही हैं, जितना हमारा शरीर ? (भाग 1) Are we as much as our body ? (Part 1) के लिए यहा क्लिक करे  

घटना ७ नवंबर १६१८ की है, तब पहला
विश्वयुद्ध चल रहा
था ।एक फ्रांसीसी लड़का टैड, जिसका पिता
फ्रांस के मोर्चे पर लड़
हे थे, खेलते-खेलते एक दम चिल्लाया – “मेरे पिता का दम
घुट
रहा है। वे एक
तंग कोठरी में बंद हो गये हैं और उन्हें कुछ भी
नहीं दिखाई दे रहा है।“ घर के लोग कुछ भी नहीं
समझ पाए। टैड
इतना कहकर बेहोश
हो गया था। कुछ देर बेहोश रहने के बाद
उसे होश आया और वह बोला – “अब वे ठीक हो
जायेंगे।“ घर के
लोगों ने टैड के
बेहोश होने से पूर्व कहे गये शब्दों और बाद में
होश आने पर कहे शब्दों से इतना ही अंदाज लगाया
कि टैड ने
 अपने पिता के संबंध में
कोई दुःस्वप्न देखा होगा। बात जहाँ की
 तहाँ
समाप्त हो गई।
प्रथम विश्वयुद्ध, जब समाप्त हुआ और
टैड के पिता घर
लौटे तो स्वजनों
को उस दिन की घटना याद आ गयी
, जब टैड  के पिता ने बताया कि ७
नवंबर को मैं मरते-मरते बचा। पूछा गया
कि क्या बात हुई थी, तो उन्होंने
बताया कि “मैं उस दिन एक गैस
चेंबर में फँस
गया था
, जिसमें मेरा दम
घुटने लगा था। मुझे
दिखायी देना भी बंद
हो गया था। तभी मैंने देखा कि टैड जैसा
एक लड़का उस युद्ध की विभीषिका में न जाने कहाँ
से आ पहुँचा
और उसने चेंबर का
मुँह खोलकर
, मुझे हाथ पकड़कर
बाहर
खींचा। तभी मेरी
यूनिट के सैनिकों की दृष्टि मुझ पर पड़ी और
उन्होंने मुझे अस्पताल पहुँचाया।“ यह विवरण
सुनकर ही घर वालों
को उस दिन टैड के
चीखने
, बेहोश होने तथा
होश में आने पर
आश्वस्त ढंग से
बात करने की घटना याद आयी।

इटली के एक पादरी अलफोन्सेस लिगाडरी के साथ २१ सितंबर १६७४ को ऐसी ही
घटना घटी। उस दिन वे ऐसी
गहरी नींद में
सोए कि जगाने की बहुत कोशिशें करने के बाद भी
 न जगाए
जा सके। यह भ्रम हुआ कि कहीं वे मर तो नहीं गये हैं।
इस भ्रम की परीक्षा के लिए, उनकी जाँच की गई
तो पता चला कि
वे पूरी तरह
जीवित हैं। कई घंटों तक वे इसी स्थिति में रहे। उन्हें
जब होश आया तो देखा कि आसपास लगभग सभी साथी
सहयोगी
खड़े हुए हैं।
उन्होंने अपने साथियों से कहा –
मैं आपको एक बहुत ही दु:खद समाचार सुना रहा हूँ कि हमारे पूजनीय
पोप का
अभी-अभी देहांत
हो गया है।
साथियों ने कहा –
“आप तो कई
घंटों से अचेत
हैं
, आपको कैसे यह
मालूम हुआ
?” लिगाडरी ने कहा –
“मैं इस देह को छोड़कर रोम गया हुआ
था और अभी-अभी
वहाँ से ही लौटा हूँ।
उनके साथियों ने समझा कि वे कोई सपना देखकर उठे हैं और सपने में ही
उन्होंने पोप की
मृत्यु देखी
होगी। चार दिन बाद ही यह खबर लगी कि पोप का
 देहांत हो गया है
और वह उसी समय हुआ
,
जब कि लिगाडरी अचेत थे तो उनके मित्र साथी चकित रह गये। 

एक स्थान पर रहते हुए भी मनुष्य अपनी आत्मा की शक्ति द्वारा दूरवर्त क्षेत्रों में संदेश पहुँचा
सकता है। उपरोक्त घटनाओं में
जाने-अनजाने
सूक्ष्म शरीर ही सक्रिय रहा है। यदि सूक्ष्म शरीर की
शक्ति को जागृत कर लिया जाए, तो उससे जब चाहें
तब मन चाहे
करतब किए जा सकते
हैं।

१६२६ में अल्जीरिया में कैप्टन दुबो के साथ ऐसी ही घटना घटी, जिससे सूक्ष्म
शरीर के अस्तित्व और
उसकी शक्तिमत्ता
का प्रमाण मिलता है। कैप्टन दुबो जब
अल्जीरिया के एक
छोटे-से गाँव से कुछ रोगियों को देखकर लौट
रहे थे, गाँव का मुखिया अब्दुल उन्हें धन्यवाद देने के
लिए उनके
साथ-साथ आया, बातों ही बातों
में अब्दुल ने कैप्टन से सूक्ष्म शरीर
के अनेक चमत्कारों का उल्लेख कर दिया। दुबो ने
अब्दुल की
बातों में कोई
रुचि नहीं दिखाई और उल्टे इसे गप्पबाजी कहा। इस
पर अब्दुल ने कहा कि मैं इसे प्रमाणित कर सकता
हूँ। कैप्टन ने
जब उसकी यह बात सुनकर
भी अविश्वास से सिर हिलाया
, तो अब्दुल कुछ देर के लिए ध्यानस्थ हुआ और फिर
आँखें खोलकर
बोला – “आप अपने
पीछे मुड़कर देखिए।“ जैसे ही उन्होंने पीछे
मुडकर देखा तो उन्होंने दीवार पर एक ऐसी
कलाकृति
टंगी पाई, जो उन्हें बहुत
प्रिय थी और इस समय वहाँ से हजारों मील दूर
पेरिस में उनके घर पर थी।

उसी दिन कैप्टन दुबो के पिता पियरे ने पेरिस की पुलिस में रिपोर्ट लिखाई कि उनके घर से १० लाख रुपये
मूल्य की अद्वितीय
कलाकृति चोरी हुई है । पुलिस कमिश्नर पियरे के अच्छे मित्र थे, उन्होंने शिकायत मिलते ही अपने सर्वश्रेष्ठ
गुप्तचर कलाकृति
की खोज में लगा
दिये। कई दिन तक लगातार खोज चली
, पर कलाकृति की खोज न की जा सकी। जिस कमरे में
कलाकृति
टंगी थी, उसमें किसी के जबरन प्रवेश करने या उँगलियों के
निशान
नहीं मिले थे।
पियरे ने इस कलाकृति की चोरी की खबर अपने पुत्र
को भी दी। तब सारी बात जानकर कैप्टन दुबो, पुलिस कमिश्  और अन्य अधिकारियों को भी
बड़ा आश्चर्य हुआ।

 इन सारी घटनाओं का
विश्लेषण किया जाए
,
तो उससे प्रेरणाएँ, दिशाएँ तथा
मंतव्य अनेक प्रकार से निकाले जा सकते हैं
, किंतु इन सबका निष्कर्ष एक ही निकलता है, वह है स्थूल शरीर
से
परे मनुष्य का एक
और भिन्न सूक्ष्म शरीर का अस्तित्व। स्थूल शरीर
की इकाई है- “प्रोटोप्लाज्म। इस सूक्ष्म
शरीर का इकाई क्‍या है
? यह अन्वेषण का विषय है, किंतु यह तथ्य
निर्विवाद है कि शरीर में
एक और शरीर है जिसे भारतीय तत्व दर्शन, सूक्ष्म शरीर”
कहता है। यह कहीं अधिक समर्थ और चमत्कारी है। सच तो
यह है कि स्थूल शरीर के सारे क्रिया-कलाप उसी
के द्वारा संचालित
होते हैं, यह सूक्ष्म शरीर
जिस प्राण स्फुलिंग के समुच्चय से बना है
, वह अपने आप में अनंत शक्तियों के स्रोत समाहित
किये हुए हैं
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