अष्टनायिका साधना | जया नायिका साधना | विजया नायिका साधना | रतिप्रिया साधना | रतिप्रिया यक्षिणी साधना | काञ्चन कुंडलिनी-सिद्धि | स्वर्णमाला-सिद्धिः | जयावती सिद्धिः | सुरंगिणि सिद्धिः | विद्राविणी सिद्धिः | Astnayika Sadhna Vidhi

अष्टनायिका साधना | जया नायिका साधना | विजया नायिका साधना | रतिप्रिया साधना | रतिप्रिया यक्षिणी साधना | काञ्चन कुंडलिनी-सिद्धि | स्वर्णमाला-सिद्धिः | जयावती सिद्धिः | सुरंगिणि सिद्धिः | विद्राविणी सिद्धिः | Astnayika Sadhna Vidhi

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जया नायिका साधना | Jaya Nayika Sadhana


ॐ ह्री ह्रीं नमो नमः जया हुं फट्

एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या तक प्रतिदिन इस मंत्र का पाँच हजार जप करे (समीप के शून्य शिवमन्दिर में बैठकर जप करना चाहिये ) । इस प्रकार जप शेष होने पर अर्द्धरात्रि के समय जयानाम्नी नायिका साधक के निकट प्रगट होकर उसकी इच्छानुसार वर प्रदान करती है ।

विजया नायिका साधना | Vijaya Nayika Sadhana


ॐ हिलिहिलि कुटीकटी तुहतुह मे वशमानय ।
विजये अः अः स्वाहा । त्रिलक्षजपेन सिद्धिः ।
नदीतीरस्थश्मशानवृक्षे स्थित्वा रात्रौ प्रजपेत् ।

नदी तीरस्थ श्मशान में जो कोई वृक्ष हो, उस वृक्ष पर चढ़कर रात्रि के समय उपरोक्त मंत्र का जप करे । तीन लक्ष जपने से सिद्धि होती है । नित्य जप करके जिस दिन लक्ष जप पूर्ण हो, उसी दिन विजयानाम्नी नायिका सन्तुष्ट होकर साधक के वशीभूत होती है ।

रतिप्रिया साधना | रतिप्रिया यक्षिणी साधना | Ratipriya Yakshini Sadhana


हुँ रतिप्रिये साधेसाधे जलजल धीरधीर आज्ञा-
पय स्वाहा ।। षण्मासात्सिद्धिः रात्रौ । नग्नो
भूत्वा हविष्याशी नाभिजले स्थित्वा जपेत् ।।

रात्रिकाल के समय नग्न हो नाभि के बराबर जल में बैठकर उक्त मंत्र का जप करे । छः महीने तक हविष्याशी होकर समस्त रात्रियों में जप करना चाहिये । इस प्रकार करने से रतिप्रिया नाम्नी नायिका वशीभूत होती है ।

काञ्चन कुंडलिनी सिद्धि


ॐ लोलजिह्वे अट्टाट्टहासिनि सुमुखि काञ्चन-
कुण्डलिनि खे चक्षे हुँ ।। सम्वत्सरेण सिद्धिः ।
गोमयपुत्तलिकां कृत्वा पाद्यादिभिः पूजयेत् ।
त्रिपथस्थवटमूले प्रजपेत् ।

गोबर की पुतली बनाकर एक वर्ष तक पाद्यादि द्वारा काञ्चन कुण्डली नाम्नी नायिका की पूजा और ऊपर लिखित मंत्र का जप करने से सिद्धि होती है । त्रिपथस्थित वट की जड़ में रात्रिकाल के समय अदृश्य भाव से जप करे ।

स्वर्णमाला सिद्धिः | Swarnamala Sadhana


ॐ जय जय सर्वदेवासुरपूजिते स्वर्णमाले हुँ हुँ
ठः ठः स्वाहा ।। ग्रीष्मे मरौ पञ्चाग्निमध्ये
स्थित्वा जपेत् । त्रिमासात्सिद्धिः ।

ग्रीष्मकाल (गर्मी के समय) में चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ इन तीनों महीनों में मरुभूमि के मध्य पञ्चाग्नि स्थापित कर, यानी चार ओर चारों अग्निकुण्ड तथा सूर्य जब मस्तक के ऊपर हो तब मंत्र जपने से स्वर्णमाला की सिद्धि होती है ।

जयावती सिद्धिः | Jayavati Siddhi


ॐ ह्रीं क्लीं स्त्रीं हुँ हुँ ब्लुॅ जयावती यमनिकृन्तनि क्लीं
क्लीं ठः । । आषाढादित्रिमासानविरलं काननस्थसरसि
स्थित्वा रात्रौ जपेत् ।।

आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, इन तीन महीनों में निर्जन स्थान, वन में, सरोवर के जल में रात्रि के समय बैठकर उक्त मन्त्र का जप करने से जयावती सिद्ध होती है ।

सुरंगिणि सिद्धिः | Surangani Siddhi


ॐ ॐ हुँ हुँ हुँ शीघ्रं सिद्धिं प्रयच्छ सुर-
सुरंगिणि महामाये साधकप्रिये ह्रीं ह्रीं स्वाहा।
षड्वर्षेण सिद्धिः । प्रत्यहं रात्रौ शय्यायामुपविश्य
सहस्रं जपेत् ।

छः वर्ष तक लगातार नित्य रात्रिकाल के समय शय्या से उठकर उक्त मंत्र एक हजार बार जपने से सिद्धि होती है ।।

विद्राविणी सिद्धिः


हंयंरंलंवंदेवि रुद्रप्रिये विद्राविणि ज्वल ज्वल साधय
साधय कुलेश्वरि स्वाहा ।। रणमृतास्थीनि गले धृत्वा
प्रान्तरे जपेत् । द्वादशलक्षजपेन सिद्धिः ।।

युद्ध में मरे हुए मनुष्य की अस्थि (हड्डी) गले में बाँधकर प्रान्त में रात्रि समय बैठकर उक्त मंत्र का जप करना चाहिये । जिस दिन बारह लक्ष जप समाप्त होता है, उसी दिन सिद्धि होती है ।

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