मुहम्मद का जन्म | मुहम्मद का विवाह | Birth of Muhammad | Muhammad’s Marriage To Khadija

मुहम्मद का जन्म | मुहम्मद का विवाह | Birth of Muhammad | Muhammad’s Marriage To Khadija

मुहम्मद का जन्म | Birth of Muhammad


अरब के प्रधान नगर बका (मक्का) (Makkah)में, अब्दुल्मतल्लब (abdulmatallab) के पुत्र अब्दुलाह (abdullah) की पत्नी “आमना” (Aamna) के गर्भ से महात्मा मुहम्मद (Mahatma Muhammad) ६१७ विक्रम सम्वत् में उत्पन्न हुए। इनका वंश “हाशिम” (Hashim) वंश के नाम से प्रसिद्ध था।

जब वह गर्भ ही में थे, तो उनके पिता स्वर्गवासी हो गए । माता और पितामह (दादा) का बालक पर असाधारण स्नेह था। एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमने वाले बद्दू (Bedouin) लोगों की स्त्रियों को अपने बच्चों को पालने के लिये दे देना, मक्का के नागरिकों की प्रथा थी। एक समय “साद” (Saad) वंश की एक बद्दू स्त्री “हलीमा” (Halimah) मक्का में आई । उसको कोई और बच्चा नहीं मिला था, जिससे जब धनहीन आमना ने अपने पुत्र को सौंपने को कहा तो, उसने यह समझ कर स्वीकार कर लिया, कि खाली हाथ जाने से जो ही कुछ पल्ले पड़ जाय, वही अच्छा । हलीमा ने एक मास के शिशु मुहम्मद (Muhammad) को लेकर अपने डेरे को प्रस्थान किया। इस प्रकार बालक मुहम्मद ४ वर्ष तक बद्दू-गृह में पलता रहा और कुछ समय बाद वह फिर अपनी माता की गोद में आए ।

कुछ समय बाद “आमना” (Aamna) ने कुटुम्बियों से मुलाकात करने के लिये बालक मुहम्मद के साथ अपने मायके “मदीना” (Medina) को प्रस्थान किया। वहाँ से लौटने पर, मार्ग में “अब्बा”(Abba) नामक स्थान पर बालक मुहम्मद को छोड़कर “आमना” (Aamna) का स्वर्गवास हो गया । बहू और पुत्र के वियोग से परेशान पितामह “अब्दुल्मतल्लब” (abdulmatallab) ने पूर्ण हृदय से अपने पोते के पालन-पोषण का भार अपने ऊपर लिया, किन्तु भाग्य को यह स्वीकृत न था और मुहम्मद को ८ वर्ष का छोड़कर वह भी स्वर्गवासी हो गए । मरते समय उन्होंने अपने पुत्र “अबू तालिब” (Abu Talib) को बुलाकर करुण स्वर में आदेश दिया कि मातृ-पितृ-विहीन मुहम्मद को पुत्र-समान जानना।

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महात्मा मुहम्मद ने “अबू तालिब” (Abu Talib) की प्रेमपूर्ण अभिभावकता में, कभी वन में ऊँट-बकरी चराते, तथा कभी साथियों के साथ खेलते-कूदते अपने लड़कपन बिताया । जब वह १२ वर्ष के थे, तब उनके चचा व्यापार के लिये बाहर जाने वाले थे, मुहम्मद ने साथ चलने के लिये बहुत आग्रह किया। चचा ने मार्ग के कष्ट का ख्यालकर इसे स्वीकार न किया। जब चचा ऊँट लेकर घर से निकलने लगे, तो भतीजे ने ऊँट की नकेल पकड़कर रोते हुए कहा – “चाचा जी, मेरे पिता हैं न माँ। मुझे अकेले छोड़कर कहाँ जाते हो । मुझे भी साथ ले चलो ।“

इस बात से अबू तालिब (Abu Talib) का चित्त इतना द्रवित हुआ कि, वह अस्वींकार न कर सके, और साथ ही मुहम्मद को भी लेकर “शाम” (Sham) की ओर प्रस्थान किया । इसी यात्रा मे बालक मुहम्मद ने “बहेरा” (Bahera) का प्रथम दर्शन पाया ।

मुहम्मद का विवाह | मुहम्मद और खदीजा का विवाह | Muhammad’s Marriage To Khadija


लोगो मे प्रसिद्ध है कि असाधारण प्रतिभाशाली महात्मा मुहम्मद (Muhammad) आजीवन अक्षर-ज्ञान से रहित रहे। व्यवहार-चतुरता, ईमानदारी आदि अनेक सद्गुणों के कारण, कुरैश-वंश (Quraysh) की एक समृद्धिशालिनी स्त्री “खदीजा” (Khadija) ने अपना गुमाश्ता बनाकर, २५ वर्ष के नवयुवक मुहम्मद से ‘शाम’ (Sham) जाने के लिये कहा। उन्होंने इसे स्वीकार कर, वड़ी योग्यतापूर्वक अपने कर्त्तव्य का निर्वाह किया । इसके कुछ दिनों बाद “ख़दीजा” (Khadija) ने उनके साथ विवाह करने की इच्छा प्रकट की । यद्यपि “खदीजा” (Khadija) की उम्र ४० वर्ष की थी और उनके दो पति पहिले भी मर चुके थे किन्तु, उसके अनेक सद्गुणों के कारण महात्मा मुहम्मद ने इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया।

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