ब्रीटलिंग ऑर्बिटर 3 | Breitling Orbiter 3
ब्रिटेन में विकसित एक गुब्बारा ब्रीटलिंग ऑर्बिटर 3 (Breitling Orbiter 3) पीसा की मीनार जितना ऊंचा था और इतना बड़ा कि उसमें ओलंपिक के सात मैदान समा जाएं, इसने हवाई यात्रा के इतिहास में एक नया वीरतापूर्ण अध्याय जोड़ा ।
ब्रिटेन के ५१ वर्षीय ब्रियन जॉस (Brian Jones ) और स्विटरलैंड के ११ वर्षीय बर्टेण्ड पिकर्ड (Bertrand Piccard ) इस विशाल ५५ मीटर ऊंचे गुब्बारे में सवार थे । यह टीम इस गुब्बारे से ४६,७५९ किलोमीटर लंबी विश्व-यात्रा मात्र १९ दिनों में पूरी करने का रिकार्ड बनाकर मिस्र के रेगिस्तान में स्थित एक नखलिस्तान के पास उतरी थी । दरअसल वे अपने इस गुब्बारे को मिस्र के पिरामिडों के पास उतारना चाहते थे | किंतु हवाएं उन्हें उनकी मंजिल से दक्षिण-पश्चिम की ओर उड़ा ले गईं । इस उड़ान का नियंत्रण और इसकी निगरानी जेनेवा स्थित इसके नियंत्रण केंद्र से की जा रही थी । नियंत्रण केंद्र में बैठे सदस्यों ने जब देखा कि यात्रा सफलता पूर्वक पूरी हो गई है, तो वे झट शैम्पेन की बोतलें खोलकर बैठ गए । सारी दुनिया से बधाई के संदेश आने लगे, जिनमें महारानी एलिजावेथ द्वितीय, ड्यूक ऑफ एडिनबरा और प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर के भी शामिल थे ।
नखलिस्तान में गुब्बारे के उतरने के कुछ घंटे बाद चालक सदस्यों को मिस्र के एक हेलीकाप्टर ने मट नामक शहर की सैर कराई, जहां इनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया ।
मौसम अच्छा होने से गुब्बारे को जमीन पर उतारने में उन्हें कोई परेशानी तो नहीं हुई, लेकिन जमीन छूते ही न जाने क्या हो गया कि ब्रीटलिंग ऑर्बिटर 3 (Breitling Orbiter 3) धरती पर लेट गया, जबकि हवाओं ने उसे उठाना शुरू कर दिया, जिससे गुब्बारे के चारों ओर दौड़कर चाकू से छेद करने पड़े, नहीं तो यह न जाने किस रेगिस्तान में घिसटता हुआ कहां तक चला जाता ।
बाद में वहां से दोनों चालकों को विमान से ४८० किलोमीटर दर काहिरा ले जाया गया, वहां भी उनका जोरदार स्वागत हुआ । काहिरा से वे जेनेवा के लिए विमान में सवार हुए, जहां बतौर हीरो स्वागत करने के लिए इंतजार किया जा रहा था । यहां उन्होंने पत्रकारों को अपनी रोमांचक यात्रा की कहानी सुनाई । जोंस के सामने एक भावुक क्षण भी उपस्थित हो गया । उसकी ४५ वर्षीया पत्नी जोआना सामने आकर खड़ी हो गई । जोआना भी बैलूनिस्ट है । जेनेवा के नियंत्रण कक्ष में बैठकर वह पति का मार्गदर्शन कर रही थी ।
१ मार्च १९९९ को स्विट्जरलैंड की एल्पस पर्वत (Alps Parvat) मालाओं में स्थित एक गांव “शैतो द ईम्स” से अपने जीवन की जमीनी सच्चाइयों से जुडने में इन दोनों चालकों को कुछ समय लगा । लेकिन जोंस ने यह भी महसूस किया कि कोई अदृश्य शक्ति थी, जो गुब्बारे को सबसे कठिन क्षणों में से भी बेदाग निकाल देती थी । यह कुछ वैसे ही था, जैसे कोई अदृश्य हाथ हमारी मदद कर रहा हो । खासतौर से यह बात तब अनुभव हुई, जब हम प्योरिटोरिको को छोड़ रहे थे ।
जोंस ने बताया कि उस समय उनको लगा कि गुब्बारे में भरा ईंधन खत्म होने को है और नहीं लगता है कि वे अटलांटिक महासागर को पार कर पाएंगे । “हमने अटलांटिक आधा ही पार किया था और हम बड़ी बेचैनी से ईंधन का हिसाब लगा रहे थे कि कितना बचा है । और क्या हम अफ्रीकी समुद्र तट तक पहुंच सकेंगे । पहुंच भी गए, तो क्या हम अपनी यात्रा की आखिरी सीमा से परे निकल सकेंगे ? जब वह हिसाब-किताब और उधेड़-बुन में लगा था और अपने सिर के ऊपर के जी पी एस प्रणाली को पढ़कर यह जानने की कोशिश कर रहा था कि पृथ्वी पर हमारी वास्तविक स्थिति कहां है, रफ्तार कैसी है, तब क्या देखता है कि अचानक रफ्तार तेज होने लगी, बड़ी तेजी से ५० से ६० से ७०, ८०,९०,१०० यह कहते हुए जोंस का गला भर गया । वह बोला, बस, मैंने गणनाएं पूरी कर डाली और समझ गया कि अब हमें गुब्बारे को ऊपर चढ़ाने की जरूरत नहीं, क्योंकि उससे भी ऊंचा कोई और है, जो अपना करतब दिखा रहा है । हम लोग २४० किलोमीटर प्रति घंटा की गति से उड़ रहे थे और विश्वास कीजिए कि गुब्बारे के लिए यह रफ्तार बहुत तेज मानी जाती है ।
जॉस के सहचालक बट्रेण्ड पिकर्ड ने भी इस बात की पुष्टि की । पिकर्ड मनोविज्ञान में योग्यता प्राप्त तीन बच्चों के पिता हैं । उसने बताया कि उसे भी यह लगा कि इस ऐतिहासिक उड़ान को जैसे कोई अदृश्य शक्ति बढ़ा रही है । नहीं तो प्रशांत महासागर के ऊपर उठते प्रचंड तूफानों में से हम इस तरह सुरक्षित कैसे निकल पाते ! कभी तूफान दाएं से तो कभी बाएं से गुजर जाता था, लेकिन अभी कोई बवंडर ठीक हमारे सामने नहीं आया ।
दोनो चालक ब्रीटलिंग ऑर्बिटर 3 (Breitling Orbiter 3) गुब्बारा उड़ाते हुए उत्तरी अफ्रीका, सउदी अरब, भारत, चीन, प्रशांत महासागर, मैक्सिको और अटलांटिक के ऊपर उड़ाते हुए अंत में मिस्र ले गए, जहां उन्होंने अपनी इस विश्व यात्रा का समापन किया । हालांकि वे जहां उतरना चाहते थे, वहां नहीं उतर पाए, क्योंकि दक्षिण-पश्चिमी हवाएं उन्हें मंजिल से दूर उड़ा ले गई थीं ।
इस साहसिक यात्रा पर जाने के पहले गुब्बारे की विधिवत जांच की गई थी । चालक ब्रियन जोंस तथा बट्रेण्ड पिकर्ड की भी यह जानने के लिए कठोर परीक्षा ली गई थी कि उनमें कितनी हिम्मत और कितना धीरज है । वास्तव में इस गुब्बारे में अनेक तकनीकी खूबियां थीं । गुब्बारा तथा उससे जुड़े उपकरण पश्चिम इंग्लैंड में ब्रिस्टल स्थित कैमरून बैलून कंपनी (Cameron Balloons) ने बनाए थे ।
विश्व रिकार्ड बनाने वाले इस गुब्बारे के दोनों चालकों के बैठने के स्थान का निर्माण ब्रिटेन की एक अन्य कंपनी डब्लू एंड जे टॉड लिमिटेड ने किया था । निर्माण के बाद इसकी कड़ी परीक्षा की गई । इस कंपनी ने गुब्बारे की सुरक्षित उड़ान और लेंडिंग को नया आयाम देकर एयरोनॉरिक इंजीनियरिंग का विश्व रिकार्ड बनाया ।
इस बैलून गाथा के पीछे इतनी तैयारी और इतने लोग रहे कि सबका ब्योरा देना मुश्किल है । इस ऐतिहासिक यात्रा के बारे में जोंस ने उन सभी विशेषज्ञों के प्रति आभार व्यक्त किया, जिनके कारण यह अभियान संभव हो पाया । जोंस स्वयं गुब्बारे का गंडोला (बैठने वाला भाग) बनाने में शामिल थे ।
जेनेवा के हवाई अड्डे पर विमान खड़े करने के हैंगर स्थल पर संपन्न इनके स्वागत समारोह में पत्रकार-लॉबी खचाखच भरी हुई थी । जोंस ने पत्रकारों को बताया, “जमीन पर हमारी निगरानी में लगे लोगों और मौसम विशेषज्ञ की मदद के बगैर यह उड़ान सफल नहीं होती ।”
उड़ान भरने के चार दिन बाद ही पिकर्ड को गुब्बारे के बाहर आकर उसके कुछ भाग पर जमा बर्फ के लंबे-लंबे टुकड़े हटाने पड़े ।
इससे भी अधिक जोखिम भरा अनुभव उस समय हुआ, जब वे दक्षिण अमेरिका पर ११ किलोमीटर ही अंदर आए थे कि हलके से बवंडर में घिर गए । हवा एकदम ठंडी हो गई और उन्हें थोड़ी देर के लिए सांस लेने में कठिनाई होने लगी, लेकिन उनका प्रशिक्षण और उपकरण दोनों ही यहां काम आए और इस कठिनाई को भी पार कर गए ।
गुब्बारे में चालकों के लिए ऐसी व्यवस्था की गई थी कि उसकी नियंत्रण प्रणालियों को बारी-बारी से दोनों चालक संभालें और छह-छह घंटे की पारी में काम करें । इस तरह चालक दल के सदस्यों में से हर एक को रात की पारी में हाथ बंटाने का बराबर मौका मिला था ।