
चार्ल्स स्पेन्सर चैप्लिन | चार्ली चैप्लिन |
Charles Spencer Chaplin | Charlie Chaplin
चार्ल्स स्पेन्सर चैप्लिन दुनिया के महानतम अभिनेता
थे। ना सिर्फ अच्छे अभिनेता बल्कि एक अच्छे
इंसान भी। १६ अप्रैल
१८८९ मे उनका जन्म हुआ
था । ब्रिटेन में पैदा हुए और अमेरिका मे जाकर
दुनियाभर में मशहुर
हुए, चार्ल्स ने
घोर गरीबी देखी। माँ-पिता को अलग होते देखा। भूख और बदलते रिश्तेदारों को देखा। घर
के लगातार बदलते पते देखे। और फिर आखिरकर अपनी माँ को इन परिस्थितियों में मानसिक
संतुलन खोते देखा। इन तमाम परिस्थितियों के बावजूद यह महान कलाकार दुखी लोगों के
होंठों पर हँसी खिलाने के लिए आभिनय करता रहा। चार्ली ने अपने दुखों की बात करते हुए
कहा भी था कि – “मुझे बारिश मैं भीगना अच्छा लगता है, क्योंकि
तब कोई भी मेरे आँसू नहीं देख सकता है । “
चार्ल्स स्टेज
पर कैसे पहुचे
चार्ल्स की माँ
गायिका थी। लगातार गाने से उनकी माँ की आवाज अक्सर खराब हो जाया करती थी। फिर
भी उन्हें थिएटर में काम करना पड़ता था। कभी तो उनकी आवाज बीच में ही अटक जाती।
सिर्फ फुसफुसाहट ही बचती थी। इसी कारण उनका नाटक कैरियर समाप्त हो गया। माँ की
आवाज बिगड़ने के कारण चार्ल्स को पाँच वर्ष की आयु मैं उनके साथ थिएटर जाना
पड़ा। उन दिनों वे एक ऐसे नाटक में काम कर रही थीं जो रंगरूटों के मनोरंजन के लिए
ही रखा गया था। एक दिन चार्ल्स स्टेज के गलियारे में खड़े थे कि
अचानक उनके कानों
में माँ की थरथराती काँपती और फिर खो जाती आवाजें आई। लोग हँसने लगे। फब्तिया कसने
लगे। दर्शकों में ज्यादातर फौजी थे। स्टेज से उतरकर उनकी माँ
उदासी और अवसाद लिए आई। तभी थिएटर के मैनेजर ने घबराहट में चार्ल्स को उनकी
जगह स्टेज पर जाने की सलाह दी। बस तभी स्टेज पर चार्ल्स का आना
हुआ। फ्लड लाइट की चमक और अनेक लोगो के सामने
चार्ल्स ने गाना
शुरू किया। इसी दौरान एक मजेदार वाक्या हुआ। स्टेज पर सिक्के फेंके जाने लगे। चार्ल्स
प्रेक्षकों को सुनाते हुए कहा कि “मैं पैसे पहले उठाऊँगा, बाद
में नाचूगा, गाऊँगा”। इस बात पर दर्शक खूब
हँसे। तभी उन्होने देखा
कि मैनेजर एक रुमाल लेकर स्टेज पर आया और सिक्के बटोरने लगा। उन्हे लगा
कि ये पैसे वह अपने पास रख लेगा । इस आशंका
के कारण वे उसके
पीछे-पीछे गए।
जब उसने पैसे माँ को दे दिए, तभी
चार्ल्स स्टेज
पर आकर गाने-नाचने लगे | दर्शकों
से बातें भी करने लगे। उनकी इस
अदा पर दर्शक खूब ठहाके लगाते रहे। चार्ल्स की माँ की नकल करते हुए उनके गीत गाना शुरू किए।
चार्ल्स की माँ
स्टेज पर लेने आई तो उनके आगमन पर प्रेक्षकों ने जोरों से तालियां बजाई।
माँ का स्टेज पर यह आखिरी कार्यक्रम था और चार्ल्स का पहला
कदम।
चार्ल्स के
दोस्त और हमसफर
सन १९१८ में चार्ली ने अपने नवनिर्मित स्टूडियो
में पहली फिल्म बनाई – “एक कुत्ते की जिंदगी” । इस फिल्म में उन्होंने यह बताने की
कोशिश की थी कि एक बेकार युवक की जिंदगी कुत्ते से भी बदतर होती है। फिल्म में एक
कुत्ता था – मॅट। मॅट चार्ली से बहुत प्यार करता था। फिल्म पूरी करने के बाद
चार्ली युद्ध कोष के लिए धन जुटाने “बॉण्ड-टूर” पर
निकल गए। मॅट चार्ली
को बहुत चाहता था तो उनके विरह में उसने खाना-पीना छोड़ दिया और प्राण त्याग दिए। उसे
स्टूडियों में दफनाया गया। लौटने पर चार्ली ने उसकी छोटी सी समाधि बनवाई।
मृत्यु-लेख की शिला पर लिखा गया – “दिल टूटने से मौत” | चार्ली
की फिल्म में यह कुत्ता अमर है। चार्ली को कुत्तो से बहुत
प्यार था। एक बार चार्ली सड़क के एक कुत्ते
की आँखों में कातरता देखकर द्रवित हो गए और उसे होटल में ले जाकर भरपेट भोजन कराया।
शायद यही वजह थी कि चार्ली कुत्ते के मुक अभिनय
में कमाल की दक्षता रखते थे, जिसकी
झलकियाँ उनकी फिल्मों में दिखाई देती है।
उनका अंदाज
अपनी खास घसीटवाँ चाल के
बारे में चार्ली ने
एक बार बताया था कि उन्होंने रुमी बिंक्स नामक आदमी
को देखकर इसे अपनाया था। रुमी उनके चाचा के पब के बाहर कोचवानों के घोड़े संभालकर
रखने का काम करता था, जिससे
उसे टिप में एकाध पेनी मिल जाती थी। वह नाटा-सा आदमी था, किसी
विशालकाय आदमी की पतलून पहनता था। उसके पाँव फूले हुए थे, जिन्हें
वह घसीटकर चलता था। चार्ली को उसकी चाल देखकर बड़ा आनंद आया। जब उसने अपनी माँ को उसकी
चाल की नकल करके दिखाई तो माँ ने कहा कि शरीर से लाचार लोगों की नकल नहीं करना
चाहिए। लेकिन खुद चार्ली को उसकी नकल करते देखकर देर रात तक माँ हँसती रही। अभ्यास
के साथ चार्ली ने यह चाल सीख ली जो उनकी पहचान बन गई।
गाँधीजी और चार्ली की मुलाकात
२३ सितम्बर १९३१ को जब गाँधीजी और चार्ली
चैप्लिन संयोग से लंदन में थे तो दोनों की मुलाकात हुई। इस मुलाकात के वक्त गाँधीजी
और चार्ली दोनों के प्रशंसकों का हुजूम रास्ते पर जमा हो गया था। बहुत भीड़ हो गई।
ऐसा कहा जाता है कि इस संक्षिप्त में गाँधीजी ने चार्ली से
कहा था कि असली आजादी तो तभी मिल सकती है जब हम गैर जरूरी चीजों से छूट सके। कहा जाता
है कि इस मुलाकात के बाद ही चार्ली ने गाँधी जी के विचारों को जाना और समझा कि वे
बढ़ते मशीनीकरण हैं। इस विषय पर बाद के वर्षों में चार्ली ने “मॉडर्न टाइम्स” मर्मस्पर्शी
फिल्म बनाई थी जो उनकी सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में है।
उनके काम
अपनी आत्मकथा में चार्ली ने
अपने कामों के बारे में लिखा है – “अब मैं बहुधंधी हो चला था। झाड़-फानूस की दुकान
का नौकर होने से लेकर बिस्कुट, साबुन और मोमबत्ती
तक बेचता था। एक डॉक्टर के यहाँ भी मैंने काम किया, जहाँ
मुझे मरीजों के पेशाब के बर्तन धोने पड़ते थे। दस-दस फुट ऊँची खिड़कियाँ भी धोना
होता था। एक दिन यह कहकर कि अभी मैं इस काम के लिए बहुत छोटा हूँ, मुझे
हटा दिया गया।“
उनका स्कूल
चार्ली हैनवेस
नामक स्कूल में दाखिल हुए और लगभग एक वर्ष तक रहे।
वहीं उन्होने अपना नाम “चैप्लिन” लिखना
सीखा और उन्हे उनके नाम
से प्यार हो गया। स्कूल उनके लिए ज्ञान का द्वार था। उन्हे इतिहास, कविता
और विज्ञान अच्छा लगता था मगर अंक गणित और उसका घटाना-जोड़ना बड़ा ही उबाऊ। इतिहास
उन्हे राजाओं
की दास्तान, हत्या और युद्धो से
भरी हुई लगी। भूगोल उन्हे केवल नक्शों का अंबार और कविता यादों की पाठन
विद्या ही लगी । कुल
मिलाकर शिक्षा उन्हे ज्ञान
और तथ्यों की एक कतार लगी, जिससे वे अचकचा
गए।