...

डाकिनी मंत्र | डाकिनी सिद्धि । डाकिनी सिद्धि मंत्र | भूत प्रेत सिद्धि | भूत सिद्धि | प्रेत सिद्धि मंत्र | पिशाच सिद्धि | Dakini Mantra | Dakini Devi Mantra | Bhoot Siddhi | Pishach Sadhna

डाकिनी मंत्र | डाकिनी सिद्धि । डाकिनी सिद्धि मंत्र | भूत प्रेत सिद्धि | भूत सिद्धि | प्रेत सिद्धि मंत्र | पिशाच सिद्धि | Dakini Mantra | Dakini Devi Mantra | Bhoot Siddhi | Pishach Sadhna

डाकिनी मंत्र | डाकिनी सिद्धि । डाकिनी सिद्धि मंत्र | Dakini Mantra | Dakini Devi Mantra


डं डां डिं डीं द्रीं धूं धूं चालिनि मालिनि डाकिनि
सर्वसिद्धिं प्रयच्छ हुँ फट् स्वाहा। शाल्मलीतरौ स्थित्वा
ऊर्ध्वबाहुना रात्रौ जपेत् । एवं षड्वर्षेण सिद्धिः ।

लगातार छः वर्ष तक रात्रि के समय सेमल के वृक्ष पर चढ़, ऊर्ध्वबाहु हो, उक्त मंत्र का जप करे, रात्रि में जप करना चाहिये । एकादिक्रम से छः वर्ष में डाकिनी सिद्ध होती है । डाकिनी सिद्ध होने पर अद्भुत् सामर्थ्य उत्पन्न होता है ।

भूत प्रेत सिद्धि साधना | भूत सिद्धि | प्रेत सिद्धि मंत्र


ओं ह्रौं क्रों क्रों कुं फट् २ त्रुट त्रुट ह्रीं ह्रीं भूत प्रेत भूतिनि
प्रेतिनि आगच्छ आगच्छ ह्रीं ह्रीं ठः ठः ।।

इस मंत्र से भूत भूतिनी, प्रेतिनी सिद्ध होती हैं ।

वटवृक्षतले रात्रौ जपेदष्टसहस्रकम् ।
धूपञ्च गुग्गुलं दत्वा पुनः रात्रौ जपेन्मनुम् ।।
अर्द्धरात्रिगते चैव साध्यश्चागच्छति ध्रुवम् ।
दद्याद् गन्धोदकेनार्घ्यं तुष्टो भवतितत्क्षणात् ।।
वरं दत्त्वा ततः सोऽपि चिरवश्यो भवेत्सदा ।।

रात्रिकाल के समय निर्जन में वट के वृक्ष (बरगद के पेड़) की जड़ में बैठकर उक्त मंत्र आठ हजार जप करे, इसके दूसरे दिन धूप और गुग्गुल द्वारा पूजा करके फिर रात्रि में जप करे । अर्द्धरात्रि व्यतीत होने पर भूत-प्रेत,भूतिनी प्रेतिनी साधक के सामने उपस्थित होंगी, तब उनकी गन्धादि और अर्ध्यादि द्वारा पूजा करने पर भूतादि प्रसन्न होकर साधक को वर प्रदान करते हैं और चिरकाल तक साधक के वशीभूत रहते हैं ।

पिशाच पिशाची सिद्धि | पिशाच सिद्धि | पिशाच मंत्र साधना


पहला मंत्र –

ओं प्रथ प्रथ फट् फट् हुँ हुँ तर्ज तर्ज विजय विजय जय
जय प्रति हत कटु कटु विसुर विसुर स्फुर स्फुर पिशाच
साधकस्य मे वशं आनय आनय पच पच चल चल स्वाहा।

दूसरा मंत्र –

ओं फट् फट् हुँ हुँ अ: भो: भो: पिशाचि भिन्द भिन्द छिन्द
छिन्द लह दह दह पच पच मर्दय मर्दय पेषय पेषय धून
धून महासुरपूजिते हुँ हुँ स्वाहा।। दशलक्ष जपात्सिद्धिः।
रात्रौ उच्छिष्टमुखेन श्मशाने जपेत् ।

प्रथम मंत्र से पिशाच और दूसरे मंत्र से पिशाची का ध्यान करना चाहिये । रात्रिकाल के समय उच्छिष्ट मुख से श्मशान में बैठकर जप करे । दश लक्ष जपने से सिद्धि प्राप्त होती है । जप काल के समय अन्य किसी के देखने पर अथवा साधक के अन्य किसी को देखने से जप निष्फल होता है । यानी उसे कोई देखे नहीं ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Seraphinite AcceleratorOptimized by Seraphinite Accelerator
Turns on site high speed to be attractive for people and search engines.