प्लेइंग कार्ड सूट | कार्ड के सूट | ताश के सूट कार्ड पत्ते | Details of Suit Card
इनके बाद ‘सूट कार्ड्स’, अर्थात् तलवार, प्याला, सिक्के और रॉड-चिन्हांकित पत्तो, की बारी आती है । ये चिन्हांकित पत्ते उपरोक्त बाईस पत्तों से अपेक्षाकृत कम, किन्तु गम्भीर रहस्यों से युक्त होते हैं । पहले इन पत्तों पर भी पूर्वोक्त की भांति सीधी लिखावट होती थी, आजकल के संख्यामूलक पत्तों की तरह नहीं, जिन पर दोनों ओर संख्या अंकित रहती है, इसीलिए भविष्य का अध्येता इनके सीधे या उल्टे निकलने पर अनुकूल/प्रतिकूल अर्थ बता दिया करता था ।
इस तरह पूरी तौर पर ताश के इन पत्तों का उपयोग भविष्य बताने के लिए ही किया जाता था । बाद में जब ताश के खेलों का जन्म और विकास हुआ तो पूर्वोक्त ५६ पत्तों की गड्डी में से ‘सरदार’ या ‘नाइट’ (Knight) के चारों पत्ते निकाल दिये गये और गड्डी में ५६ के स्थान पर केवल ५२ पत्ते ही शेष रह गये ।
पत्तों में इस तरह का परिवर्तन लाने का श्रेय फ्रांस को है, जहां ‘सूट-कार्ड्स’ को बदलकर तलवार, प्याला, सिक्के और राड्स के स्थान पर पान, फूल, ईंट और हुकुम कर दिया गया । अंग्रेजी में इन्हें क्रमश: Hearts, Clubs, Diamonds and Spades कहा जाता है । बाद में इंग्लैण्ड और अमेरिका ने भी फ्रांस की इसी बदली हुयी ५२ पत्तों की गड्डी एवं पद्धति को स्वीकार किया । आज जो ताश हम खेलते देखते हैं, वे उन्हीं ५२ पत्तों के विकसित रूप हैं । ताश की इस विकास-यात्रा में एक पत्ता निकाले जाने से बच गया । यह पत्ता आज की गड्डी में ५२ पत्तों से अलग होता है और फ्रांस में आज भी प्राचीन काल की भांति इस पत्ते के साथ गम्भीर तथा अनबूझ रहस्य जुड़े हुये माने जाते हैं । आजकल की प्रचलित गड्डी में हम से ‘जोकर’ के नाम से जानते हैं । इस सन्दर्भ में यह उल्लेखनीय तथ्य है कि ताश के पत्तों की संख्या २२ से ७८, ७८ से ५६ और ५६ से ५२ हो जाने के बाद भी ताश की इस विकास यात्रा में (ताश के) अध्येताओं अथवा ताश के माध्यम से भावी घटनाओं के वक्ताओं पर कोई फर्क नहीं पड़ा । वे पहले की ही तरह अपने परम्परागत ताश (५६ पत्तों की गड्डी) से लोगों के भूत, वर्तमान एवं भविष्य की बातें बताते रहे ।
नैपोलियन-काल की एक फ्रासीसी महिला-लेनार्मण्द-इस विधा की बहुत अच्छी अध्येता थी । उसकी इस कला से फ्रांस की साम्राज्ञी जोसेफाइन बेहद प्रभावित थी । लेनार्मण्द ने स्वयं अपनी गड्डी में इक्के से सत्ते तक के ही पत्ते रखे थे, शेष २४ पत्तों (अटढ़े से बादशाह तक) को उसने निकाल दिया था, फलस्वरूप लेनार्मण्द के समय में फ्रांस में, ३२ पत्तों की गड्डी का ही प्रचलन था । उल्लेखनीय है, इस गड्डी का उपयोग ‘खेल के लिए नहीं होता था, लेकिन जब से दोनों तरफ से सीधी आकृतियों अथवा संख्याओं वाले पत्तों का प्रचलन हुआ, तब से ताश-अध्येताओं के लिए कुछ सहूलियत हो गई – क्योंकि अब ताश फेंटते समय पत्तों के ‘उलट जाने’ या गड्डी से ताश खींचने पर उलटे पत्ते’ का निकलना और ‘उल्टे पत्ते के प्रतीकार्थ का कोई भी खतरा नहीं रह गया । फ्रांस और इंग्लैण्ड के ताशा की डिजाइनों में यह समस्या अब नहीं रह गयी है ।
किसी भी पत्ते को जिधर से भी देखिये, दोनों तरफ से एक ही तरह के प्रतीक चिन्ह मिलेंगे । यही स्थिति पान, फूल, ईंट या हुकुम के सभी पत्तों के साथ है ।
दोनों तरफ से सीधे दिखने वाले इन पत्तों पर, लेनार्मण्द के समय से ही अध्येता, अपनी सुविधा के लिए, कोई निशान लगा लिया करते थे जिससे ताश के उल्टे-सीधे होने की पहचान की जा सके और तद्नुसार ही प्रतीकार्थ बताये जा सकें । यह प्रक्रिया उन अध्येताओं ने अपनायी थी जो लेनार्मण्द की पद्धति के अनुयायी थे । लेकिन ताश का उपयोग जब खेलने/मनोरंजन के लिए आरम्भ हुआ तो ५२ पत्तों वाली वर्तमान ताश की गड्डी का प्रचनल तेजी से बढ़ने लगा । परिणामस्वरूप ताश के जरिये, भूत, वर्तमान और भविष्य बताने की विद्या के जानकार लोगों के सामने एक नयी समस्या आ खड़ी हुयी ।
कालान्तर में ताश-अध्येताओं ने गम्भीर प्रयास किये, समय और शक्ति खर्च की और अन्ततः समय के साथ समझौता करते हुये ५२ पत्तों की उस गड्डी को अपने ‘कार्य’ के लिए अपना लिया, जो आज वर्तमान में प्रचलित है । ताश की यही प्रचलित गड्डी, ताश के यही ५२ पत्ते, आज आपके जीवन के रहस्यों, भूत, वर्तमान और भविष्य में छुपी जानकारियों को बेबाक तरीके से उजागर करने में पूर्णतः सक्षम हैं । आगे ताश के पत्तों का जो विश्लेषण इस पुस्तक में आप पढ़ेंगे वह इसी, आज की प्रचलित गड्डी के ५२ पत्तों पर आधारित है और आपके लिए बेहद आसान भी । लेकिन इस सन्दर्भ में कुछ बातें याद रखने लायक हैं –
1. ताश के पत्तों से भविष्य, वर्तमान या भूत बताने वाले व्यक्ति/अध्येता के लिए आवश्यक है कि वह पूरे ५२ पत्तों वाली गड्डी का ही प्रयोग करे ।
2. इन पत्तों में उलटे पत्ते के निकलने और उसके द्वारा संकेतित अर्थ के उलट जाने का खतरा नहीं होता ।
3. ताश के पत्तों से भविष्य बताने की यह कला ताश के पत्ते में ही सिर्फ छुपी हुयी नहीं है, बल्कि यह तो अध्येता की दक्षता, विश्लेषण-क्षमता और विवेक पर आश्रित है ।
इसलिए इस कला का लाभ, सभी सहजता से उठा सकते हैं। आप भी ! जी हां, आप भी स्वयं अपनी ताश की गड्डी का उपयोग करके उन रहस्यों को जान सकते हैं, उस कला को जान सकते हैं, जिसका प्रयोग सदियों से घुमन्तू लोग करते आ रहे हैं। इसी कला का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया जा रहा है ताकि सभी पाठकगण ताश की इस कला का लाभ उठा सकें ।