दीपावली पर निबंध | diwali par nibandh | दिवाली पूजा विधि | diwali puja vidhi | दिवाली की पौराणिक कथा | diwali katha in hindi
कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली का पर्व पूरे देश में बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है । इसे रोशनी का पर्व भी कहना ठीक लगता है । जिस प्रकार रक्षा बंधन ब्राह्मणों का, दशहरा क्षत्रियों का, होली शूद्रों का त्यौहार है उसी प्रकार दीपावली वैश्यों का त्यौहार माना जाता है । इसका अर्थ यह नहीं है कि इन पर्वों को उपरोक्त वर्ण के व्यक्ति ही मनाते हैं अपितु सब वर्गों के लोग मिलकर इन त्यौहारों को मनाते हैं ।
इस दिन लक्ष्मीजी को प्रसन्न करने के लिए पहले से ही घरों में पुताई करके साफ-सुथरा कर लिया जाता है । कहा जाता है कि कार्तिक अमावस्या को भगवान श्री रामचन्द्रजी चौदह वर्ष का वनवास काटकर और रावण को मारकर अयोधय लौटे थे | अयोध्यावासियों ने श्री रामचन्द्र जी के लौटने की खुशी में दीपमालाएँ जलाकर महोत्सव मनाया था । इस दिन उज्जैन सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक भी हुआ था । विक्रमी संवत् का आरम्भ तभी से माना जाता है अतः नव वर्षा का प्रथम दिन है |
आज के दिन व्यापारी अपने बहीखाते बदलते हैं तथा लाभ-हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं । दीपावली पर जुआ खेलने की भी प्रथा है । इसका प्रधान लक्ष्य वर्ष भर में भाग्य की परीक्षा करना है । वैसे इस द्यूत क्रीड़ा को राष्ट्रीय दर्गुण ही कहा जाएगा ।
दिवाली पूजा विधि | diwali puja vidhi
बाजार में आजकल दीपावली के पोस्टर पूजा हेतु मिलते हैं । इन्हें दीवार पर चिपका लेते हैं या दीवार पर गेरुआ रंग से गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति बनाकर पूजन करते हैं । गणेश-लक्ष्मी की मिट्टी की प्रतिमा या चाँदी की प्रतिमा बाजार से लाकर दीवार पर बने लक्ष्मी-गणेश के चित्र के सामने रखते हैं । इस दिन धन के देवता कुबेर, विघ्नविनाशक गणेशजी, इन्द्रदेव तथा समस्त मनोरथों को पूरा करने वाले विष्णु भगवान, बुद्धिदाता सरस्वती तथा लक्ष्मीजी की पूजा साथ-साथ करते हैं ।
दीपावली के दिन दीपकों की पूजा का विशेष महत्व है । इसके लिए दो थालों में दीपक रखें । छः चौमुखे दीपक दोनों थालो में रखें । छब्बीस छोटे दीपक भी दोनों थालों में सजाएँ । इन सब दीपकों को प्रज्जवलित करके जल, रोली, खील, बताशे, चावल, गुड़, अबीर गुलाल, धूप आदि से पूजन करें और टीका लगाएँ । व्यापारी लोग दुकान की गद्दी पर गणेश लक्ष्मी की प्रतिमा रखकर पूजा करें ।
इसके बाद घर आकर पूजन करें । पहले पुरुष फिर स्त्रियाँ पूजन करें । स्त्रियाँ चावलों का बायना निकालकर उस पर रुपये रखकर अपनी सास के चरण-स्पर्श करके उन्हें दे दें तथा आशीर्वाद प्राप्त करें । पूजा करने के बाद दीपकों को घर में जगह-जगह पर रखें । एक चौमुखा और छः छोटे दीपक गणेश लक्ष्मीजी के पास रख चौमुखा दीपक का काजल सब बड़े-बूढ़े और बच्चे अपनी आँखों में डालें । दूसरे दिन प्रात: चार बजे पुराने छाज में कूड़ा रखकर कूड़े को दें । दूर फेंकने के लिए ले जाते हुए कहते हैं – लक्ष्मी, लक्ष्मी ! आओ,दरिद्रा दरिद्र जाओ ।
दिवाली की पौराणिक कथा | diwali katha in hindi
एक साहूकार था । उसकी बेटी प्रतिदिन पीपल पर जल चढ़ाने जाती थी । पीपल पर लक्ष्मीजी का वास था । एक दिन लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से कहा कि तुम मेरी सहेली बन जाओ उसने लक्ष्मीजी से कहा – मैं कल अपने पिता से पूछकर उत्तर दूंगी ।
पिता को जब बेटी ने बताया कि पीपल पर एक स्त्री मुझे अपनी सहेली बनाना चाहती है तो पिता ने हाँ कर दी । दूसरे दिन साहूकार की बेटी ने सहेली बनना स्वीकार कर लिया । एक दिन लक्ष्मीजी साहूकार की बेटी को अपने घर ले गई । लक्ष्मीजी ने उसे ओढ़ने के लिए शाल-दुशाला दिया तथा सोने की बनी चौकी पर बैठाया । सोने की थाली में उसे अनेक प्रकार के व्यंजन खाने को दिए । जब साहूकार की बेटी खा-पीकर अपने घर को लौटने लगी तो लक्ष्मीजी बोलीं – तुम मुझे अपने घर कब बुला रही हो ? पहले तो सेठ की पुत्री ने आना- कानी की, परंतु फिर तैयार हो गयी | घर जाकर वह रुठकर बैठ गई | सेठ बोला तुम लक्ष्मीजी को घर आने का निमंत्रण दे आई हो और उदास बैठे हो, तब उसके बेटी बोली – लक्ष्मीजी ने तो मुझे इतना दिया ओर बहुत सुंदर भोजन कराया | मै उन्हे किस प्रकार खिलाऊगी, हमारे घर मे तो उनकी अपेक्षा कुछ भी नहीं है, तब सेठ ने कहा जो अपने से बनेगा वही खातिर कर देगे तू फौरन गोबर और मिट्टी से चोका लगाकर सफाई कर दे | चोमुखी दीपक बनाकर लक्ष्मीजी का नाम लेकर बैठ जा | उसी समय एक चील कीसी रानी का नौलखा हार उसके पास डाल गई | साहूकार की बेटी ने उस हार को बेचकर सोने की चोकी, सोने का थाल-साल दुसला और अनेक प्रकार के भोजन की तैयारी कर ली |
थोड़ी देर बाद गणेश जी और लक्ष्मीजी उसके घर पा आ गए | साहुकार की बेटी ने बैठने के लिए सोने की चोकी दी, लक्ष्मीजी ने बैठने को बहुत मना किया और कहा की इस पर तो राजा-रानी बैठते है तब सेठ की बेटी ने लक्ष्मीजी को जबरदस्ती चौकी पर बैठा दिया | लक्ष्मी जी उससे बहुत ही प्रसन्न हुई और साहूकार बहुत अमीर बन गया |
हे लक्ष्मी देवी ! जैसे तुमने साहूकार की बेटी की चौकी स्वीकार की और बहुत सा धन दिया है, वैसे सबको देना |