फर्डीनेंड मैगलन | फ़र्दिनान्द मैगलन | मैगलन ने पृथ्वी का चक्कर कब लगाया | मैगलन अभियान | Ferdinand Magellan in Hindi | Ferdinand Magellan History

फर्डीनेंड मैगलन

फर्डीनेंड मैगलन | फ़र्दिनान्द मैगलन | मैगलन ने पृथ्वी का चक्कर कब लगाया | मैगलन अभियान | Ferdinand Magellan in Hindi | Ferdinand Magellan History

फर्डीनेंड मैगलन (फ़र्दिनान्द मैगलन) एक साहसी नाविक और खोज-यात्री था । उसका जीवनकाल सन् १४७० से १५२१ के बीच रहा । पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले प्रथम यात्री दल के नेता के रूप में मैगेलन को आज भी लोग याद करते हैं ।

वास्तव में फर्डीनेंड मैगलन (फ़र्दिनान्द मैगलन) यह यात्रा पूरी नहीं कर सका क्योंकि कई अन्य नाविकों की भांति कठिनाई युक्त रास्तों में एक झगड़े में उसकी बीच में ही मृत्यु हो गयी थी ।

फर्डीनेंड मैगलन (फ़र्दिनान्द मैगलन) का जन्म पुर्तगाल में हुआ था । आरंभ की जिंदगी में उसने ईस्ट इंडीज में नौकरी की । उसके बाद वह मोरक्को (Morocco) में एक युद्ध के दौरान जख्मी हो गया और अपनी एक टांग गंवा बैठा । बाद में उस पर एक चोरी का अभियोग लगाया गया, जिससे अत्यंत क्रोधित होकर उसने पुर्तगाल की राष्ट्रीयता छोड़ दी और स्पेन के राजा चार्ल्स प्रथम (Charles I) की सेवा में चला गया ।

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फर्डीनेंड मैगलन (फ़र्दिनान्द मैगलन) एक साहसी नाविक था । स्पेन के राजा ने उसे अटलांटिक से प्रशांत महासागर होते हुए भारत जाने का आदेश दिया और वहां से जहाजों को मसालों से भर कर लाने के लिए कहा । चार्ल्स के साथ एक समझौते पर दस्तखत किये गये ।

चार्ल्स ने उसके साथ पांच जहाजों पर २५० के लगभग यात्री भेजे । इन यात्रियों में पुर्तगाली, स्पेनी, इटलीवासी, अंग्रेज, जर्मन, यूनानी, नीग्रो और फ्रांस के लोग थे । यह साहसी नाविक इस बेड़े के साथ २० सितंबर, १५१९ को स्पेन के एक बंदरगाह से पश्चिम की ओर रवाना हुआ । तीन महीने तक यात्रा करने के बाद यह छोटा सा जहाजी बेड़ा दक्षिण अमरीका पहुंचा । वहां से यह रियो द जेनीरो (Rio de Jeneiro) की खाड़ी में खाद्य सामग्री और जहाजों की मरम्मत के लिए कुछ दिन रुका । दिसंबर, १५१९ में उसने इस खाड़ी को छोड़ दिया और आगे चल पड़ा । तीन महीने तक उसका जहाजी बेड़ा दक्षिणी अमरीका के नीचे की ओर चलता रहा ।

अप्रैल, १९२० में तीन जहाजों के यात्रियों और नेताओं ने मैगलन के विरुद्ध विद्रोह खड़ा कर दिया । मैगेलन ने किसी तरह विद्रोह को दबा दिया, लेकिन उनका एक जहाज रेत में फंस कर टूट गया । रास्ते की कठिनाइयों को झेलते हुए उसके शेष चार जहाज आगे बढ़ते रहे । तेज तूफानों ने उसके जहाजों को सांताक्रूज (Santa Cruz Islands) की तरफ धकेल दिया । इस स्थान पर इस बेड़े को दो महीने रुकना पड़ा । उसके आगे दक्षिण की ओर मुड़ने पर जलडमरूमध्य था, जहां से प्रशांत महासागर में प्रवेश होता था ।

जलडमरूमध्य में तीन महीने तक जहाजी बेड़ा टक्करें मारता रहा । यात्रियों का राशन समाप्त हो चला था । मौसम तूफानी था और यात्रियों का भय बढ़ता चला जा रहा था । नवंबर, १५२० को इनका जहाजी बेड़ा अथाह प्रशांत महासागर में प्रवेश कर गया । बेड़े का एक जहाज स्पेन वापस लौट गया था । केवल तीन जहाज रह गये थे । ९८ दिन तक प्रशांत महासागर में वे यात्रा करते रहे । बहुत से साथी स्कर्वी (Scurvy) रोग से रास्ते में ही मर गये । राशन समाप्त हो जाने के कारण यात्रियों को जहाजों में से चूहे ढूंढ-ढूंढकर खाने पड़े । स्थिति यहां तक पहुंच गयी कि उन्हें लकड़ी का बुरादा और चमड़ा तक चबाना पड़ा ।

कई दिन तक यात्रा करने के पश्चात् तीन जहाजों का यह बेड़ा फिलिपीन टापू (Philippine Islands) पर पहुंचा । वहां के आदिवासियों के साथ मैगेलन व उसके साथियों का झगड़ा हो गया । मैगेलन व उसके कई साथी इस लड़ाई में मारे गये ।

२५० आदमियों में से केवल ११४ बचे थे । मैगेलन के न होने पर भी जहाजी बेड़ा आगे बढ़ता रहा और वे मसालों के टापू पर जा पहुंचे । दो जहाजों को उन्होंने मसालों से भर लिया और स्पेन की ओर वापस चल पड़े । ३ साल की कठिन यात्रा के बाद यह जहाजी बेड़ा ६ सितंबर, १५२२ को स्पेन वापस पहुंचा ।

फर्डीनेंड मैगलन (फ़र्दिनान्द मैगलन) द्वारा आरंभ की गयी यह संपूर्ण पृथ्वी की प्रथम परिक्रमा थी । यद्यपि मैगेलन की मृत्यु यात्रा के बीच में ही हो गयी लेकिन फिर भी सर्वप्रथम विश्व परिक्रमा का श्रेय इस साहसी नागरिक को ही जाता है क्योंकि वही उस यात्री दल का अगुआ था ।

प्रश्न उठता है कि क्या मैगेलन इस यात्रा से अपने उद्देश्यों की पूर्ति कर सका । इस विषय में यही कहा जा सकता है कि व्यापार के दृष्टिकोण से यह यात्रा अधिक सफल न रही, लेकिन मसालों से भरे जहाज, उनकी यात्रा पर किये गये व्यय से कुछ अधिक ही थे । इसके अलावा इस यात्रा से मसालों वाले द्वीपसमूहों के लिए किसी आसान रास्ते का आविष्कार भी नहीं हो सका । यात्रा केवल इतना ही सिद्ध कर पायी कि इन द्वीपसमूहों पर पश्चिम से होते हुए कठिन और लंबी यात्रा द्वारा ही पहुंचा जा सकता है । खोज के दृष्टिकोण से यह यात्रा संतोषजनक रही ।

इससे यह भी सिद्ध हो गया कि पृथ्वी गोल है । साथ ही साथ नयी धरती और सागरों की भी खोज हुई, जिससे दुनिया के विषय में हमारे ज्ञान की महान वृद्धि हुई ।

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