कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन उत्सव मनाया जाता है । इस दिन बलि पूजा, अन्नकूट, मार्गपाली आदि उत्सव गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई |
गोवर्धन पूजा विधि | govardhan puja vidhi
गाय, बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर फूलमाला, धूप, चन्दन आदि से उनका पूजन किया जाता है । गायों को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है तथा प्रदक्षिणा की जाती है । गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर जल, मौली, रोली, चावल, फूल तथा तेल का दीपक जलाकर पूजा करते हैं तथा परिक्रमा करते हैं ।
गोवर्धन पूजा की कहानी
एक बार श्रीकृष्ण गोप-गोपियों के साथ गाय चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुँचे । वहाँ उन्होंने देखा कि हजारों गोपियाँ गोवर्धन पर्वत के पास छप्पन प्रकार के भोजन रखकर बड़े उत्साह से नाच-गाकर उत्सव मना रही हैं ।
श्रीकृष्ण के पूछने पर गोपियों ने बताया कि मेघों के स्वामी इन्द्र को प्रसन्न रखने के लिए प्रतिवर्ष यह उत्सव होता है । कृष्ण बोले – यदि देवता प्रत्यक्ष आकर भोग लगाएँ तब तो इस उत्सव की कुछ कीमत है । गोपियाँ बोलीं – तुम्हें इन्द्र की निंदा नहीं करनी चाहिए । इन्द्र की कृपा से ही वर्षा होती है । श्रीकृष्ण बोले – वर्षा तो गोवर्धन पर्वत के कारण होती है । हमें इन्द्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए ।
सभी गोप-ग्वाल अपने-अपने घरों से पकवान ला-लाकर श्रीकृष्ण की बताई विधि से गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे । इन्द्र को जब पता चला कि इस वर्ष मेरा पूजा न कर गोवर्धन की जा रही है तो वह बहुत कुपित हुए और मेघों को आज्ञा दी की गोकुल मे जाकर इतना पानी बरसाए की वहा प्रलय की स्थिति उत्पन्न हो जाए |
मेघ इन्द्र की आज्ञा से मूसलाधार वर्षा करने लगे । श्री कृष्ण ने सब गोप-गोपियों को आदेश दिया कि सब अपने-अपने गाय और बछड़ों को लेकर, गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुंच जाएँ । गोवर्धन ही मेघों से रक्षा करेंगे ।
सब गोप-गोपियाँ अपने-अपने गाय, बछड़ों और बैलों को लेकर गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुँच गए । श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठ (सबसे छोटी) ऊंगली पर धारण कर छाता सा तान दिया । बस ब्रजवासी सात दिन तक गोवर्धन पर्वत की शरण में रहे । सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर एक जल की बूँद भी नहीं पड़ी ।
ब्रह्माजी ने इन्द्र को बताया कि पृथ्वी पर श्रीकृष्ण ने जन्म ले लिया है । उनसे तुम्हारा बैर लेना उचित नहीं है । श्रीकृष्ण अवतार की बात जानकर इन्द्रदेव अपनी मूर्खता पर बहुत लज्जित हुए तथा भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा-याचना करने लगे ।
श्रीकृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रखकर ब्रजवासियों से कहा कि अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो । तभी से यह पर्व के रूप में प्रचलित हो गया ।