गोवत्स द्वादशी का महत्व | गोवत्स द्वादशी कथा | गोवत्स द्वादशी की कहानी | Govatsa Dwadashi Katha in Hindi | Govatsa Dwadashi Vrat
गोवत्स द्वादशी का महत्व | Govatsa Dwadashi Katha in Hindi
कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की द्वादशी गोवत्स (गाय बछड़े) के रूप मे मनाई जाती है इस दिन बछड़े को पूजने का विधान है पूजने के बाद उन्हें गेहूँ से बने पदार्थ खाने को देना चाहिए | इस दिन गाय का दूध व गेहूँ के बने पदार्थों का प्रयोग वर्जित है । कटे फल का सेवन नहीं करना चाहिए । गोवत्स कहानी सुनकर ब्राह्मणों को फल देने चाहिए ।
गोवत्स द्वादशी कथा | गोवत्स द्वादशी की कहानी
बहुत समय हुआ सुवर्णपुर नगर में देवदानी राजा का राज्य था । राजा के सीता और गीता दो रानियाँ थी । राजा ने एक भैंस तथा एक गाय और बछड़ा पाल रखा था । सीता भैंस की देखभाल करती थी तथा गीता गाय और बछड़े की देखभाल करती थी । गीता बछड़े पर पुत्र के समान रस बरसाती थी ।
एक दिन भैंस ने चुगली कर दी कि गीता रानी मुझसे ईर्ष्या करती है । ऐसा सुनकर सीता ने गाय के बछड़े को मारकर गेहूँ के ढेर में छुपा दिया । राजा जब भोजन करने बैठा तब माँस की वर्षा होने लगी । महल के अन्दर चारों ओर रक्त और माँस दिखाई देने लगा । भोजन की थाली में मल-मूत्र हो गया । राजा की समझ में कुछ नहीं आया ।
तभी आकाशवाणी हुई कि – हे राजन् ! तुम्हारी रानी सीता ने गाय के बछड़े को मारकर गेहूं के ढेर मे छिपा दिया है कल गोवत्स द्वादशी है । तुम भैंस को राज्य से बाहर करके गोवत्स की पूजा करो । तुम्हारे तप से बछड़ा जिंदा हो जाएगा । राजा ने ऐसा ही किया ।
जैसे ही राजा ने मन से बछड़े को याद किया वैसे ही बछड़ा गेहूँ के ढेर से निकल आया । यह देख राजा प्रसन्न हो गया । उसी समय से राजा ने अपने राज्य में आदेश दिया कि सभी लोग गोवत्स द्वादशी का व्रत करें ।