इंद्रजाल – एक अनोखी कहानी – भाग ४ | तांत्रिक की कहानी – भाग ४ | Indrajal – A Unique Story – Part 4 | Story of Tantrik – Part 4
मुझे हैरत हुई – “यह आप क्या कह रहे हैं, ब्रजेन बाबू ? ” मैंने कहा ।“
” सुना तो यही है, भाई।”
ब्रजेन राय बोले, “पूरे लालपुल गांव में इसी अद्भुत नाकाबिले-यकीन प्रसंग की चर्चा हो रही है । राजा नेमी गोपाल के देहांत का शोक भूलकर सब लोग विमला के साथ घटे इंद्रजाल पर ही बहस मुबाहसा कर रहे हैं ।“
मधुसूदन हालदार तब भी मेरी स्मृतियों से ओझल नहीं हो पाए थे । प्रसंग बदलकर मैंने कहा, बताइये तो, रायल बेंगाल टाइगर के नाखून का मधुसूदन बाबू के पास क्या उपयोग हो सकता है ? “
“उनके पास और भी ऊल-जलूल वस्तुएं हैं, डॉ. नारद । वे बोले, ‘जैसे बिल्ली की खोपड़ी, ऊदबिलाव की पूंछ, चीनी भाषा में लिखा कोई पुराना भोजपत्र, तांबे की एक गुड़िया, जो रबड़ जैसे लचीली हो जाती है…” और फिर बातचीत का विषय बदलकर वे बोले, “रामगोपाल असाटी के यहां नहीं चलेंगे ?”
“कौन रामगोपाल असाटी ?” मैंने पूछा और तभी वह नाम दिमाग में एकाएक कौंधा ।
फिर सहसा ही कहा, “अच्छा, अच्छा विमला के पिता की बात कर रहे हैं, जरूर चलूंगा । लेकिन शाम को । जरा मैं भी तो देखूं, अभागी किस अभिशाप का शिकार हो गयी है ।
लिखने-पढ़ने के अपने काम से निवृत्त हो जाऊं, शाम को जरूर ही चलूंगा ।
सूरज डूबते ही ब्रजेन राय मुझे विमला के घर पर ले गये । रामगोपाल असाटी संपन्न व्यक्ति हैं । यह उनके रहने के ढंग से ही पता लग जाता था । गांव में पक्की, सबसे ऊंची, तिमंजिली कोठी उन्हीं की थी ।
बालाघाट में मैगनीज की खदान थी उनकी । रामयामली में पोहा की मिल भी थी । लालपुल में चालीस एकड़ जमीन के मालिक थे वे । विमला उनकी अकेली संतान थी | बेहद लाडली और दुलारी।
रामगोपाल असाटी का चेहरा उतरा हुआ था । लगभग पूरा गांव उनके दरवाजे पर उमड़ आया था । मैं लेखक और पत्रकार हूं । यह जानकर रामगोपाल असाटी मुझे अपने घर के भीतर ले गये ।
आस-पड़ोस की औरतें उस युवती को घेरकर बैठी हुई थीं । हमें आता, देखकर वे एक किनारे हो गयीं । वे सब-की-सब किसी दुश्चिंता से घिरी नजर आती थीं ।
विमला २३-२४ वर्ष की एक सुंदर युवती थी । रंग गोरा था । चेहरा सलोना । लेकिन उस वक्त कुम्हलाया हुआ था । उसके काले, लंबे बाल बिखरे हुए थे । अपनी सूनी नजरों से वह दीवार की तरफ देख रही थी । उसकी आंखें बुझी हुई थीं । निष्प्रभ ।
“विमला, देखो कौन आये हैं, ” उसकी मां ने कहा ।
“विमला गुमसुम बैठी रही। “इसे कुछ खिलाइये।” मैंने विमला की मां से आग्रह किया, ‘मुमकिन है, अब तक सब ठीक हो गया हो ।
एक थाली में भात और कटोरी में दाल लाई गयी । उसकी मां ने भात-दाल सानकर उसका ग्रास विमला के मुंह में डाला ।
होठों से अन्न का स्पर्श होते ही विमला का चेहरा विवर्ण हो गया ।
उल्टी करने के अंदाज में ‘ओ…ओ…’ किया उसने और तत्काल ही भात और दाल का वह ग्रास उसने जमीन पर थूक दिया ।
खून में लिथड़े, हड्डियों के छोटे-छोटे टुकड़े विमला के मुंह से निकले थे । बदबू फैल गयी थी वहां ।
हम अवाक् से यह अकल्पनीय नजारा देखते रहे ।
रामगोपाल असाटी लगभग रुआंसे स्वर में बोले, “इस अभागिन की कल रात से यही हालत है । न जाने किसने क्या टोटका कर दिया है इस पर । “
तभी शोर सुनाई दिया, “दादू आ गये… दादू आ गये ।”
दादू के आने की खबर सुनकर रामगोपाल असाटी बाहर की तरफ भागे ।
पूछने पर पता लगा, दादू झाड़-फूंक कर विनाशक शक्तियों का शमन करते हैं । अरसे से अपनी विद्या द्वारा वे लालपुल और आसपास के गांवों में दैवी आपदाओं का निदान कर रहे हैं । यहां के निवासी उन पर बड़ी श्रद्धा रखते हैं ।
दादू के बारे में जानकर मुझे भी कौतूहल हुआ । मुझे लगा, उनके दर्शन करने चाहिए | रामगोपाल असाटी कमरे में दाखिल हुए । उनके पीछे दादू । कुछ और भी लोग भीतर चले आये थे । दादू उस छोटी-सी भीड़ में घिर गये थे जैसे ।
कमरे में बिछे तख्त पर जब दादू बैठे तो उन पर मेरी निगाह पड़ी । उन्हें देखकर मैं चौंका । ब्रजेन राय को भी उन्हें देखकर हैरत हुई । इसी दौरान दादू ने भी हम दोनों को देख लिया था और वे भी विस्मित थे ।
“डॉ. नारद आप ? ” दादू बोले, “और ब्रजेन बाबू आप भी…अच्छा हुआ, आप भी इस अनोखी घटना को देखने आ गये ।
वे मधुसूदन हालदार थे । बंदर का पंजा और तोते के मुंहवाला लैंप उन्हीं ने दिखाया था हमें । लेकिन आधि भौतिक आपदाओं का शमन वे करते हैं, यह जानना मेरे लिए नितांत चौंकाने वाला था । जाहिर था, बिल्ली का सिर और रायल बेंगाल टाइगर का नाखून उनकी इसी विद्या के उपादान थे । उन सबको लेकर अब मुझे ज्यादा सिर खपाने की जरूरत कतई नहीं थी । वे विमला को शाप मुक्त करने आये थे ।
“सारी घटना मैं सुन चुका हूं, ” मधुसूदन हालदार बोले, “मुझे तुम सिर्फ इतना बतलाओ, रामगोपाल कि विमला कभी कुंडाली गयी थी क्या…बगैर पैरवाले वे पिशाच विमला से कुंडाली का जिक्र क्यों कर रहे थे ? “
विमला ने कुंडाली कभी देखा भी नहीं, दादू ।” विमला के पिता दोनों हाथ जोड़कर बोले, “वह तो इस गांव को जानती भी नहीं । तभी, विमला की मां ने फुसफुसाकर अपने पति से कुछ कहा ।