जन्नत का अर्थ | Jannat Ka Matlab

Jannat Ka Matlab

जन्नत का अर्थ | Jannat Ka Matlab

मनुष्य का यह जन्म सर्वप्रथम और अन्तिम है । इस जन्म में फल-भोग सम्भव नहीं । मरने पर पुण्यात्मा स्वर्ग को, पापी नर्क को, और किसी-किसी के मत में, दोनों की समानतावाला, ‘एराफ’ (इअराफ़) को जाता है । जिस प्रकार पुराणों में अनेक प्रकार के सुख-भोगों से परिपूर्ण स्वर्ग लोक वर्णित है, वैसा ही कुरान में जन्नत भी है । जैसे वहाँ नन्दन-कानन को सौन्दर्य की परिपूर्ण अप्सराएँ अलंकृत करती हैं, वैसे ही ‘जन्नत’ के उद्यान को ‘हूर’ आनन्दमय बनाती हैं ।

‘क़ुरान’ में मुसल्मानों को उनके शुभ-कर्म के फलस्वरूप जन्नत का अत्यधिक वर्णन है । उसमें से थोड़ा-सा यहाँ बताया गया है—

१– शुभ-कर्म करने वाले विश्वासियों को शुभ-संदेश सुना- उनके लिये उद्यान (बाग) है, उसके नीचे नहरें बहती हैं, सारे अच्छे फल वहाँ लाये गये हैं। जन्नत वाले उन लोगों को, जैसा कि पहिले वैसा ही यह उपहार दिया है । उसमें उनके लिये सुन्दर स्त्रियाँ हैं, और वह पुण्यात्मा लोग सर्वद वहाँ के निवासी होंगे । ” (२:३:५)

२– उस दिन जन्नत वाले कार्य में आसक्त संलाप करते हैं । वह और उनकी स्त्रियाँ छाया में तकिया लगाये तख्तों पर बैठी होंगी । वहाँ उनके लिये अच्छे फल और जो कुछ वह चाहतें हैं (३६:४:५-७)

३ – जन्नत के ऐश्वर्यों में तख्तों पर आमने सामने बैठे हैं, लड़के सुन्दर शराब के प्यालों के लिये घूमते हैं । वह शराब श्वेत वर्ण और पीने वालों के लिये सुस्वाद है । उससे सिर नहीं चकराता और न उससे मतवाले होते हैं । उनके पास नीचे को दृष्टि रखने वाली विशालनेत्रा स्त्रियाँ हैं । उनके नेत्र मानो छिपे अंडे हैं। (३७:२:२०–२६)

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४ – उन विश्वासियों के लिये खुले द्वारवाला, रहने का बाग है । बहुत प्रकार के स्वाद फल और शराब उनके पास लाते हैं । उनके पास नीचे दृष्टिवाली समान-वयस्का स्त्रियाँ हैं। (४८:४:१२-१४)

५- तुम और तुम्हारी पत्नियाँ सादर उद्यान में प्रवेश करो । उन स्वर्गीयों के पास सुनहली थाली (तस्तरी) और प्याले (लिये लड़के घूमते हैं), वहाँ सब कुछ है-जो कुछ चाहिए और जो कुछ नेत्रों को अच्छा प्रतीत होता है, तुम लोग सर्वदा वहाँ के वासी रहोगे । यह वही उद्यान है, जिसे तुमने उसके बदले पाया है, जो कुछ कि तुम करते थे । तुम्हारे लिये वहाँ बहुत से स्वाद फल हैं, उनमें से खाओ।” (४३:७:३-६)

६ – उद्यान का वृत्तान्त जो उनके लिये प्रतिज्ञात है, वहाँ दुर्गन्धरहित जल की नहरें दूध की नहरें हैं, जिनका स्वाद नहीं बदलता; शराब की नहरें जो पीनेवालों को स्वादिष्ट हैं; फेन-रहित मधु की नहरें हैं; उनके लिये वहाँ बहुत से स्वादिष्ट फल हैं। (२६:२:४)

७—यथेच्छ खाओ, पिओ, यह उसी के लिये है जो कि तुम करते थे । पाँती से रखे हुए तख्तों पर वह बैठे हैं हमने उन्हें विशालनेत्रा, गोरियों के साथ ब्याह दिया, और हमने इच्छानुकूल मांस और सुन्दर फलों से उपकृत किया । प्याले खींचते हैं, उसमें न पाप की ओर प्रेरणा है न नशा । उनमें सीप में रक्खे मोतियों के समान बालक घूमते हैं। (५२:१:१६-२०,२२-२४)

८ – सरहदवाली बेर(वृक्ष) के पास, वहाँ वासोद्यान है । ( ५३ : १ : १५, १६)

९ – प्रभु के विरोध में खड़े होने से डरने वालों के लिये दो बाग हैं । फिर हे नास्तिको, मनुष्य और जिन्नो तुम कौन कौन से भगवान् के प्रसादों को झुठलाओगे ? जहा बहुत सी शाखाएँ हैं ।

१० – उस ऐश्वर्यशाली उद्यान में ! आमने सामने तकिया लगाये बैठे हैं । उनमें घूमते हैं सदा बसने वाले बालक, तस्तरी पियालों और घड़ों के साथ । न सिर चकराती है न उसमें नशा है । इच्छानुकूल अच्छे अच्छे फल । उड़ते हुए पक्षियों के रुच्यनुकूल मांस । सीप में रखे मुक्ता-फल सदृश, विशालनेत्रा गोरियाँ । वहाँ झूठ और चुगुली सुनने में नहीं आती, किन्तु ‘सलाम’, ‘सलाम’ (शान्ति,शान्ति ) । दक्षिण की ओर रहने वाले दक्षिणी कैसे हैं, कण्टक रहित बेर के वृक्ष के नीचे। नीचे ऊपर केला है । फैली छाया है । एक आयुवाली उन कुमारियों को मैंने दाहिनी तरफ वालों के लिये बनाया है। (५६:१ :१२, १५-२३, २४-३१, ३२-३८)

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