कर्नल जिम कॉर्बेट | जिम कॉर्बेट का इतिहास | जिम कॉर्बेट कौन थे | Jim Corbett | Jim Corbett Tiger

कर्नल जिम कॉर्बेट | जिम कॉर्बेट का इतिहास | जिम कॉर्बेट कौन थे | Jim Corbett | Jim Corbett Tiger

अगर कभी आप चिड़ियाघर जाएं और बाघ के पिंजरे के पास खड़े होकर इस बेहतरीन और सर्वश्रेष्ठ शिकारी पशु को शान से चलते हुए देखें, या फिर आप इसे अपने पिछले पैरों को हलकी-सी हरकत देकर उछाल लेते हुए देखें, तो निश्चित है कि आप इस बात को लेकर निश्चिंत होंगे कि आपके इलाके में कोई नरभक्षी बाघ घूम रहा है ।

भारत अनगिनत बाघों का बसेरा है । यहां मौजूद बाघों में से कोई एक कभी-कभार नरभक्षी बन जाता है । बाघ के नरभक्षी बनने के कारणों के पीछे किसी हादसे में उसके जबड़े या पिछली टांगों के जख्मी हो जाने की एक अहम भूमिका होती है, फिर इसी वजह से वह भैंसे एवं हिरन जैसे अपने प्राकृतिक आहार से विमुख हो जाता है । हादसे का कारण जो भी हो, परंतु यह तय है कि ऐसे हादसों के बाद बाघ अपनी स्वाभाविक शैली में आक्रमण, छलांग एवं शिकार को मारने के लिए अपने दांतों का प्रयोग नहीं कर पाता । लंगड़ा अथवा घायल बाघ इस तरह कमजोर एवं आसान शिकार मनुष्य की तरफ आकर्षित होने लगता है ।

एक नरभक्षी बाघ का आतंक कई सौ किलोमीटर के दायरे में फैल सकता है । वह जिस-जिस इलाके से गुजरता है, वहां-वहां वह अपना आधिपत्य स्थापित करता जाता है । कहीं किसी आदमी को नोचा, तो कहीं किसी औरत को, या फिर कहीं किसी बच्चे को ।

बीतते समय के साथ-साथ इस नरभक्षी बाघ के हौसले और भी बुलंद होते जाते हैं । दिन हो या रात, इसके शिकार का सिलसिला थमता नजर नहीं आता । अपने इस खतरनाक अभियान के समय इसकी फुर्ती एवं इसको पकड़ने के लिए बिछाए गए जालों से अपने बचाव एवं मानव शिकारियों से छिपते-छिपाते अपने कारनामों को अंजाम देने की इसकी शैली बेहतरीन नजर आती है ।

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ऐसे आदमखोर दैत्यों का शिकार करने के लिए जंगल के जोखिम भरे नियम सीखने पड़ते हैं । उसे पक्का निशानेबाज एवं तुरंत निर्णयशील बनना पड़ता है । इसके साथ ही साथ उसमें इलाके की धैर्यपूर्ण पहचान लेने की गज़ब की क्षमता होनी चाहिए । इन सभी खूबियों से लैस ऐसी ही एक शख्सियत थे – कर्नल जिम कॉर्बेट (colonel jim corbett) । उन्हें उत्तरी भारत के जंगलों एवं वहां के भू-भाग की संपूर्ण जानकारी थी । उनका यह ज्ञान इतना सटीक था, जैसे किसी व्यक्ति को अपने बाग या बगीचे का होता है । वह बाघ के ऐसे पद-चिह्न, जिन्हें हम और आप शायद ही देख पाएं, को देखकर बता देते थे कि वहां से होकर गुजरने वाला वो बाघ जवान या बुढ़ा, नर था या मादा, घायल था या तंदुरुस्त | जंगल से गुजरने वाले किसी बाघ के रास्ते का पता जंगल में मौजूद हिरनों, बंदरों एवं चिड़ियों की चहचहाहट से लगा लेते थे और तो और वह जंगल में कुचली हुई घास को देखकर यहां तक बता देते थे कि मिनटों पहले कोई बाघ वहां से होकर गुजरा था ।

एक और खूबी इन सबसे विलक्षण थी, वह थी अतींद्रिय पूर्वाभास की शक्ति । यह वह शक्ति थी, जो कर्नल को आने वाले खतरों का पूर्वाभास करा देती थी ।

एक दिन जब वह जंगल की एक राह से होकर अपने शिकार (बाघ) की तलाश में गुजर रहे थे कि तभी उनकी अतींद्रिय शक्ति ने मानो उन्हें चेतावनी सी दी । कर्नल जिम तुरंत संभल गए, क्योंकि वह जान गए थे कि कहीं-न-कहीं छिपा हुआ उनका शिकार आदमखोर बाघ उन पर नजरें गड़ाए था । खतरे की गंभीरता को समझते हुए जिम एकदम अविचल, स्थिर हो गए और अपने आस-पास की जगह का मुआयना करने लगे । जिम के सामने की तरफ एक टीला था, जिसके नीचे की तरफ का इलाका एक घाटी था । घाटी भारतीय वन्य पशुओं एवं वन्य संपदा से भरपूर थी । इस टीले के दूसरी तरफ एक फर्न (एक जंगली झाड़ी) की आड़ में एक भैंस का कंकालनुमा शव पड़ा था । यह जिम की तलाश का आखिरी सिरा था, क्योंकि जिस आदमखोर बाघ की वह हफ्तों से तलाश कर रहे थे, उसने बीती रात ही न सिर्फ एक भैंस का शिकार ही किया था, वरन वह उसे खींच कर यहां तक ले आया था । बाघ द्वारा मारी गई वह भैंस इस बात की प्रमाण थी कि शिकार करने वाला वह आदमखोर भी आस-पास ही कहीं था । यही वह खतरा था, जिसका पूर्वानुमान जिम की अतींद्रिय शक्ति ने करवा दिया था ।

अगले कुछ ही क्षणों बाद झाड़ियां खड़खड़ाई और फिर उनमें से वह आदमखोर बाहर निकला । बाघ अब टीले के ऊपर चढ़ रहा था । जिम ने बिना कोई देरी किए अपनी राइफल संभाली और तुरंत निशाना साधकर गोली चला दी । एक धमाका हुआ और बाघ पीछे की तरफ लुढ़कने लगा । लुढ़कते एवं गुर्राते हुए बाघ को देखकर जिम इस बात के बारे में सोच रहे थे कि थोड़ा संभलने के बाद उसी नरभक्षी का अगला कदम क्या होगा ? क्या होगा, जब वह दैत्य लुढ़कना बंद करके अपने पैरों पर खड़ा होगा ?

तभी जिम ने देखा कि आदमखोर टीले की आधी ढलान तक लुढ़कने के बाद संभल गया । उसका गुर्राना बंद हो चुका था । ऐसा लग रहा था, मानो उसे कुछ हुआ ही न था । देखते ही देखते आदमखोर टीले पर चढ़ जिम की नजरों से ओझल हो गया । जिम को बाद में पता चला कि उनके द्वारा चलाई गोली आदमखोर की एक टांग के मांस को उधेड़ती हुई पास की एक चट्टान से टकरा कर पुनः उसके जबड़े को घायल करती हुई निकल गई थी । इस सारी मशक्कत में बाघ को कोई विशेष नुकसान न हुआ था । खैर, घटना के समय तो जिम ने यह अंदाजा लगाया था कि घाव छोटा ही होगा और बाघ घाटी की तरफ निकल गया होगा । इस तरह नरभक्षी की कहानी को खत्म करने का मौका हाथ से निकल गया ।

अगली सुबह जिम ने एक बार फिर उस भैंस के शव का मुआयना किया, क्योंकि ऐसा करके वह उस आदमखोर का सुराग पा सकते थे । जिम को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि भैंस के शव के आस-पास बाघ के आने एवं जाने को इंगित करने वाले अनेक पद्चिह्न थे । यही नहीं, शव को खाए जाने के निशान भी स्पष्ट दिख रहे थे । यह वाकई आश्चर्यजनक बात थी कि घायल बाघ अपने घावों से बेखबर एक बार पुनः उस स्थान पर आकर अपने मृत शिकार को चबा गया था । जिम को अहसास हो गया कि आदमखोर वाकई बड़ा खतरनाक था ।

जिम ने अब एक ऐसी चाल चलने का निश्चय किया, जो तकरीबन आधी जिंदगी जंगलों में गुजारने के बाद सीखी थी । उन्होंने अपने अनुभवों से सीखा था कि एक घायल एवं जख्मी बाघ किसी दूसरे बाघ की दहाड़ सुनने पर अवश्य ही उसके जवाब में दहाड़ता है । हालांकि जिम नहीं जानते थे कि ऐसा क्यों होता था ? परंतु अनुभवों ने इस बात को सच साबित किया था । अपनी बंदूक संभाले जिम ने अब इसी तरीके से काम लेने का फैसला किया । अपने फेफड़ों में पूरी हवा भरने के बाद जिम ने बाघ की आवाज की हूबहू नकल करते हुए एक जोरदार दहाड़ मारी । अगले ही पल टीलों की तरफ से आदमखोर ने दहाड़ का जवाब अपनी दहाड़ से दिया । जिम ने एक और दहाड़ मारी । दहाड़ इतनी तेज थी कि सुनने वाला कोई भी इस बात को मान सकता था कि उसने किसी बाघ की शानदार एवं चुनौती भरी दहाड़ सुनी थी । एक बार फिर आदमखोर ने जिम की दहाड़ का उत्तर अपनी दहाड़ से दिया । इस तरह से दहाड़-दर-दहाड़ वे दोनों (जिम और आदमखोर (बाघ) एक-दूसरे को जवाब देते रहे, परंतु इतना सब होने के बाद भी आदमखोर अपने छिपने के स्थान से बाहर नहीं आया । जिम ने अंदाजा लगाया कि शायद वह दिन के भरपूर उजाले में सामने नहीं आना चाहता था । लिहाजा उन्हें कुछ और सोचना पड़ेगा ।

गोली से घायल होने के बावजूद बाघ अपने मृत शिकार तक आया था । जिम ने सोचा कि शायद वह एक बार फिर ऐसा ही करे यह जिम के लिए कोई नई बात न होती । अकसर ऐसा होता कि जिम मृत शिकार के पास स्थित किसी पेड़ पर चढ़कर संबंधित शिकारी के रात में आने का इंतजार करता । बाघ के शिकार का यह तरीका पढ़ने-सुनने में आसान लगता होगा, पर जानने वाली बात तो यह है कि ऐसे तरीके किसी भी लिहाज से आसान नहीं होते । ऐसे मौकों पर अकसर शिकारी अकेला ही होता है ।

दो व्यक्तियों के होने से ज्यादा शोरगुल होने और एक-दूसरे को देखकर ज्यादा बेचैन होने की आशंका होती । खैर पहले तो जिम को एक पेड़ ढूंढ़ना था । काफी कोशिशों के बाद भी जिम को ऐसा कोई पेड़ नजर नहीं आया कि जहां से उसे वह मृत भैंस स्पष्ट नजर आ सके । आखिर उन्हें एक ऐसे पेड़ से संतुष्ट होना पड़ा, जहां से वह उस छोटी-सी घाटी के मुहाने को देख सकते थे और जिसके बारे में जिम को पूर्ण विश्वास था कि हो-न-हो आदमखोर रात में वहीं से आएगा । मौका मुआयना करने के बाद जिम रात की सभी तैयारियों को पूर्ण रूप देने के उद्देश्य से पास ही स्थित गांव की ओर रवाना हो गया । रात के इंतजामों में अपने लोगों को सभी संभावित बातें बताने के अलावा वे जिम को अगली सुबह किस तरह से इशारा करेंगे यह सब शामिल था ।

उस शाम जैसे ही सूर्य अस्त होने के कगार पर पहुंचा, जिम पेड़ की एक शाखा पर जा बैठे । यह शाखा जमीन से दो मीटर की ऊंचाई पर थी । अभी जिम उस डाल पर बैठे ही थे कि लंगूर प्रजाति का एक बंदर खतरे की सूचना देने के अंदाज में चीख उठा । जिम ने लंगूर की उपस्थिति को चिह्नित करने के उद्देश्य से अपनी नजरें घाटी में मौजूद पेड़ों पर दौड़ानी शुरू की । लंगूर अब भी चीखे जा रहा था । शीघ्र ही जिम को वह लंगूर एक पेड़ की ऊपरी शाखा पर बैठा नजर आ गया । ऐसा लग रहा था, मानों लंगूर सीधे जिम को ही घूर रहा हो । अवश्य ही लंगूर ने उन्हें कोई चीता समझ लिया था, क्योंकि लंगूरों के लिए तो चीते साक्षात मौत का ही पैगाम होते हैं । लंगूर फिर रात को पूर्ण अंधेरा होने तक चीखता ही रहा ।

जिम अंधकार में इंतजार करते रहे । इंतजार का आंखों और कानों पर दबाव बढ़ता ही जा रहा था । कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, सिवाए तारों के, कुछ सुनाई नहीं दे रहा था, सिवाए जंगल की भिनभिनाहट के, जो अकसर रात के जंगल में एक अजीब से संगीत के समान सुनाई देती हैं ।

फिर अचानक ही जिम की चेतना ने जैसे काम करना शुरू कर दिया । इंद्रियां चुस्त हो गईं और दिल धड़कने लगा था । टीले की ऊंचाई से लुढ़कता हुआ एक पत्थर उस पेड़ के तने से आ लगा, जिस पर जिम बैठे थे । कुछ ही क्षणों बाद एक नर्म, किंतु वजनी धप्प की आवाज आई । बाघ आ चुका था, परंतु उसके आने का रास्ता वह न था, जो जिम ने सोचा था । आदमखोर टीले से नीचे उतरता हुआ सीधे उस पेड़ की तरफ आ रहा था, जिस पर जिम बैठे हुए थे । कानों में एक गहरी एवं गुस्सैल गुरहिट गूंज उठी ।

परिस्थितियों ने एक खतरनाक मोड़ ले लिया था । उस लंगूर का चीखना जिम की समझ में आ गया था । वस्तुतः उनके लंगूर की नजर पूरे समय उस बाघ पर ही थी और खासकर उस समय जब बाघ जिम को पेड़ पर चढ़ते हुए देख रहा था । यह बाघ आदमखोर था । एक ऐसा दैत्य जिसके दिलो दिमाग से लोगों अर्थात् इनसानों का डर जाता रहा था । यह वह बाघ था, जो एक दिन पहले जख्मी हो गया था और अब गुस्से में उस पेड़ की तरफ बढ़ रहा था । अब जिम की बारी थी । जमीन से दो मीटर की ऊंचाई पर बैठे जिम जानते थे कि वहां बैठा रहना किसी भी तरह से सुरक्षित नहीं था । बाघ अपने पिछले पैरों पर खड़ा होकर उनके टखनों में अपने दांत गड़ा कर एक दर्दनाक मौत की तरफ खींच सकता था । जिम ऐसे गुस्सैल बाघों पर इतनी पास से गोली मारने के खतरनाक परिणामों से परिचित थे ।

कई अच्छे शिकारी अंधेरे में इस तरह गोली दागने के परिणाम स्वरूप उन खतरनाक जानवरों के खूंखार पंजों एवं दांतों की बदौलत मारे जा चुके थे, परंतु फिर भी यह संभव नहीं था कि वह वहां बैठकर आदमखोर का इंतजार करें कि कब वह आए और टखनों में अपने दांत गड़ा दे । अतः जिम ने अपनी बंदूक पर मौजूद सेफ्टी कैच को खोल दिया । और बंदूक घुमाकर अपनी बांह और पसलियों के बीच कर ली । अब यदि बाघ ऊपर ऊंचाई पर पहुंचता भी, तो पहले उसकी मुलाकात बंदूक की उस नाल से होती । जिम अभी अपने अंदाज में जम कर बैठे ही थे कि नीचे से एक दिल दहला देने वाली गुराहट गूंज उठी ।

दोनों ही अब इंतजार कर रहे थे, बाघ और आदमी, जैसे बिल्ली और चूहा | बाघ कभी कुछ क्षणों के लिए चुप्पी साध लेता, तो कभी वह पेड़ के नजदीक आकर खून जमा देने वाली गुर्राहट में गुर्रा उठता । अंततः जिम ने तब राहत की सांस ली, जब उसने मजबूत जबड़ों की शक्ति के आगे टूटती हड्डियों की आवाजें सुनीं । ये आवाजें इस बात का प्रमाण थीं कि बाघ अब अपने मृत शिकार (भैंस का शव) को नोच रहा था । जिम अपने स्थान पर बैठा चुपचाप सुनते और इंतजार करते रहे ।

दूर आकाश हलकी लालिमा लिए हुए प्रकाशमान होने लगा । रात-भर के इंतजार और थकान से भरे जिम के लिए यह सुबह वाकई सुहानी थी । नजदीक स्थित टीले पर से आदमियों ने उनके बताए तरीके से आवाज दी । इस आवाज को सुनकर उस बाघ का ध्यान भंग हुआ और वह अपना भक्ष्य छोड़कर भाग खड़ा हुआ । यही वह क्षण था, जब जिम ने उसकी एक झलक देखी । बाघ टीले की तरफ भागा जा रहा था । रात-भर की मशक्कत से सुन्न हुए पैरों को संभालते हुए जिम ने थकी आंखों से राइफल का निशान साधा और घोड़ा दबा दिया । गोली के धमाके ने बाघ को बता दिया कि मामला कुछ गड़बड़ था । वह एक जोरदार दहाड़ मारी और सीधा उस पेड़ की तरफ बढ़ने लगा जिस पर जिम बैठे थे । अपनी खूंखार निगाहों से जिम को देखते हुए उसने एक और दहाड़ मारी और फिर उसने जिम की तरफ छलांग लगा दी । मौत जिम से क्षणिक दूरी पर ही थी । यही वह पल था, जब एक शांत दिमाग एवं सटीक निशाना जिंदगी एवं मौत के बीच की परिस्थितियां बदल सकता था । जिम की राइफल से एक और गोली निकली और इस बार बाघ के सीने को चीरती हुई उसमें समा गई ।

बाघ की छलांग अधूरी ही रह गई और वह गोली के वेग से घूमता हुआ पेड़ के तने से टकराकर जिम के पैरों के नीचे लुढ़क गया । पेड़ की टक्कर से वह नीचे घाटी की तरफ लुढ़क गया । जिम ने नीचे से आती हुई पानी की आवाज सुनी । स्पष्ट था कि बाघ नीचे किसी जंगली नाले में जा गिरा था । घाटी से तोड़-फोड़ और पानी के छपाकों की आवाजें आ रही थीं, फिर कुछ क्षणों बाद सभी आवाजें आनी बंद हो गईं । जिम ने नाले के पानी में लाल रंग को देखा । जिम पेड़ से नीचे उतर आए । उन्होंने अपने सुन्न पड़ चुके पैरों को थोड़ा सहलाया और फिर बाघ के छोड़े निशानों के पीछे-पीछे घाटी की तरफ निकल पड़े । उनके आदमी भी तब तक वहां आ गए थे । वे सभी जिम के कपड़ों पर मौजूद खून के धब्बों को देखकर डर गए, परंतु जिम ने हंसते हुए उन्हें अपने पीछे आने को कहा । वहां से थोड़ी ही दूर घाटी में वह भयानक आदमखोर मृत पड़ा था ।

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