जॉन हैनिंग स्पीके और रिचर्ड बर्टन | John Hanning Speke And Richard Burton

जॉन हैनिंग स्पीके और रिचर्ड बर्टन

जॉन हैनिंग स्पीके और रिचर्ड बर्टन | John Hanning Speke And Richard Burton

नील नदी अफ्रीका की ही नहीं बल्कि विश्व की सबसे लंबी नदी है । यह उत्तर की ओर बहती है और पूर्वी अफ्रीका से होती हुई भूमध्य सागर में जाकर गिरती है । आज इस नदी के विषय में हमारे पास अनेक जानकारियां उपलब्ध हैं, लेकिन हजारों वर्ष तक विश्व के लोगों को इसके उद्गम स्रोत का पता नहीं था । इस नदी के उद्गम स्रोत का पता लगाने का श्रेय जॉन हैनिंग स्पीके और रिचर्ड बर्टन को जाता है जिन्होंने सन् १८५७ में अफ्रीका की एक यात्रा की और नील नदी के स्रोत का पता लगाने का प्रयास किया ।

इन दोनों खोज-यात्रियों की यात्रा बड़ी ही जटिल थी क्योंकि आरंभ से ही इन दोनों के विचारों में मतभेद था । वे सारे रास्ते एक-दूसरे से गर्मा-गर्मी ही करते रहे ।

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१९ मार्च, १८२१ को जन्मा रिचर्ड बर्टन खोज-यात्राओं का बड़ा शौकीन था । उसे सन् १८४२ में ऑक्सफोर्ड से निकाल दिया गया । उसने अगले आठ वर्ष भारत में बिताये । सन् १८५३ में वह यूरोपियन पूर्वी अफ्रीका के शहर हरार (आज का इथियोपिया) में प्रवेश कर गया । नील नदी के उद्गम स्रोत का पता लगाने के लिए इसने दो असफल यात्राएं कीं । एक सन् १८५५ में और दूसरी सन् १८५७-५८ में ।

जॉन स्पेक, जिसका जन्म ३ मई, १८२७ को हुआ था, सन् १८४४ में ब्रिटिश इंडियन आर्मी में नौकरी कर रहा था । वह पंजाब से हिमालय और तिब्बत तक गया । अप्रैल, १८५५ में जब स्पेक, रिचर्ड बर्टन की पार्टी में सुमालिया की खोज पर जा रहा था तो वह बुरी तरह घायल हो गया और इस कारण यात्रा रद्द हो गयी ।

इन दोनों की ही दिली इच्छा एक विशाल झील को खोजने की थी जो दिसंबर, १८५६ में पूरी हुई | पूर्वी अफ्रीका के किनारों को छह महीने तक खोजने के बाद इन्होंने सघन उत्तम रास्ता चुना । दोनों ही यात्री अफ्रीका की जमीन पर यात्रा करते रहे और फरवरी, १८५८ में लेक टेंगेयिका (Tanganyika) पर प्रथम यूरोपीयों के रूप में पहुंचने का श्रेय प्राप्त किया ।

जब ये दोनों इस यात्रा से लौट रहे थे तो स्पेक ने बर्टन का साथ छोड़ दिया और अकेला ही उत्तर की ओर चल पड़ा । ३० जुलाई को वह एक विशाल झील पर पहुंचा जिसका नाम उसने, महारानी विक्टोरिया को सम्मान देने के लिए विक्टोरिया झील रखा । स्पेक का निष्कर्ष था कि यही झील नील नदी का उद्गम स्रोत है । उसके इस कथन को बर्टन ने निराधार बताया लेकिन रायल जीओग्रैफिकल सोसायटी (Royal Geographical Society) ने उसके इस निष्कर्ष को सही माना ।

सन् १८६० में स्पेक ने जेम्स ग्रांट (James Grant) के साथ एक दूसरी यात्रा की । वे ताबोरा (Tabora) नामक स्थान तक अपने पुराने रास्ते पर ही चले लेकिन वहां से वे पश्चिम की ओर लेक विक्टोरिया की तरफ चल दिये । उन्होंने लेक विक्टोरिया का मानचित्र बनाया । २८ जुलाई, १८६२ को उन्होंने इसी झील से नील नदी को निकलते देखा । इस स्थान का नाम उन्होंने रिपन फाल्स (Ripon Falls) रखा । उसके पश्चात् वे नदी के साथ-साथ चल पड़े लेकिन रास्ते में वहां के आदिवासियों से लड़ाई हो जाने के कारण उन्हें अपना रास्ता बदलना पड़ा ।

फरवरी १८६३ को वे दक्षिणी सूडान के गोंडाकोरो (Gondokoro) नामक स्थान पर पहुंचे । वहीं पर उनकी मुलाकात नील नदी के खोजी सेमुअल (Samuel) और फ्लॉरेंस बेकर (Florence Baker) से हुई । स्पेक और ग्रांट ने उन्हें एक दूसरी झील के विषय में बताया जो लेक विक्टोरिया के पश्चिम में स्थित थी । इस सूचना से बेकर को नील नदी का उद्गम स्रोत पता करने में काफी सहायता मिली । यह स्रोत लेक एल्बर्ट (Lake Albert) थी ।

स्पेक का यह दावा कि उसने नील नदी का उद्गम स्रोत खोज लिया है, इंग्लैंड में फिर से चुनौती का विषय बन गया । यह चुनौती रिचर्ड बर्टन ने दी थी । जिस दिन इस विषय पर रिचर्ड बर्टन से जनता के सामने तर्क-वितर्क होना था, उसी दिन दुर्भाग्यवश अपनी ही बंदूक से निशानेबाजी की एक दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गयी । उसकी यात्राओं के विवरण सन् १८६३ और १८६४ में प्रकाशित हुए और नील नदी के, उसके द्वारा खोजे गये उद्गम स्रोत को सही माना गया । मध्य अफ्रीका का यह महान खोज-यात्री इतिहास में अमर हो गया ।

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