कोपन बौद्ध मठ का प्रमुख लामा थुबटेन येशे | Lama Thubten Yeshe Head of Kopan Buddhist Monastery

Lama Thubten Yeshe

Lama Thubten Yeshe

मारिया बहुत खुश थी उस दिन | उसके चेहरे पर अनोखी चमक थी । मारिया के पति पाको टोरेस ने उसे विशेष रूप से प्रसन्न देखकर पूछा, क्या बात है मारिया, आज बहुत प्रसन्न नजर आ रही हो ?

हाँ, आज रात मैंने एक स्वप्न देखा है । मारिया चहकते हुए बोली ।

कैसा स्वप्न ?

स्वप्न में मुझे लामा थुबटेन येशे दिखाई दिये थे । उन्होंने मुझे आशीर्वाद भी दिया ।

क्या लामा ? टोरेस ने चौंककर पूछा ।

हाँ-हाँ, लामा थुबटेन येशे । विश्वास नहीं हो रहा क्या ? मारिया बोली ।

बात यह है कि मुझे भी कुछ दिनों से उनकी बहुत याद आ रही है । तुम्हें स्वप्न में लामा यशी ने दर्शन दिये, यह बड़ी शुभ बात है । टोरेस ने बताया ।

मारिया और टोरेस लामा थुबटेन येशे शिष्य थे । मारिया लामा यशी से बहुत अधिक प्रभावित थी । कुछ समय पूर्व लामा यशी उनके पास आये थे । वे काफी समय से बीमार थे और बहुत कमजोर दिखाई दे रहे थे । टोरेस ने उनके स्वास्थ्य के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए उनसे वहाँ कुछ दिन ठहरने का आग्रह किया था । लेकिन लामा यशी उन दिनों बहुत व्यस्त थे । धार्मिक प्रवचन के सिलसिले में उन्हें विभिन्न स्थानों पर जाना पड़ता था ।

अपने स्वास्थ्य के प्रति उन्हें कोई मोह नहीं था । लामा यशी की बातों से मारिया को यह आभास हुआ था कि शायद लामा यशी से उसकी यह अंतिम भेंट हो । उन्हें विदा करते उसकी आँखें नम हो गयी थीं । लामा यशी अपनी शिष्या की मनोदशा भाँप गये थे । उन्होंने उसके सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए कहा था, मारिया, मैं तुम्हारे घर जरूर जाऊँगा ।

इस भेंट के कुछ समय बाद ही लामा थुबटेन येशे परलोक सिधार गये । उनकी मौत से उनके हजारों शिष्य शोक में डूब गये थे ।

बौदध धर्म के कई मत है जिनके एक मत गेलुपा है इसी मत के मध्यवर्गीय किसान परिवार में थुबटेन येशे का जन्म सन् १९३५ में हुआ था । थुबटेन येशे के माता-पिता परम धार्मिक थे । वे ल्हासा के समीप तोलुंग नामक गाँव में रहते थे । थुबटेन येशे बचपन में ही धार्मिक क्रियाकलाप में रुचि दिखाने लगे थे । वह खेलने की अपेक्षा डमरू बजाते, या माला फेरते ।

धुब्तेन यशी ने सात वर्ष की आयु में ही धार्मिक शिक्षा आरंभ कर दी थी । १३ वर्ष तक धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन के बाद थुबटेन येशे गेलुपा मत के धर्माचार्य बन गये ।

सन् १९५६ से वे प्रमुख लामा के रूप में शिक्षक का कार्य करने लगे थे । तिब्बत छोड़ने पर वे काफी समय तक बक्सा मठ (पश्चिम बंगाल) में रहे । यहाँ उन्होंने धर्मग्रन्थों का अध्ययन करने के साथ-साथ काव्य, व्याकरण, कला और लेखन में गहरी रुचि ली ।

लामा थुबटेन येशे और लामा जोपा ने ‘गेलुपा’ मत के प्रचार-प्रसार के लिए नेपाल में काठमांडू के निकट ‘कोपन बौद्ध मठ’ की स्थापना की । इस मठ में विदेशों से सैकड़ों युवक-युवतियाँ आध्यात्मिक ज्ञान और शांति पाने के लिए आने लगे ।

लामा थुबटेन येशे तथा लामा जोपा ने कोपन बौद्ध मठ में विदेशी शिष्यों के आग्रह पर बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए एफ पी एम टी (फाउण्डेशन फार दि प्रिजर्वेशन आफ दि महायान ट्रेडिशन) संस्था की स्थापना की । इस संस्था की शाखाएँ आस्ट्रेलिया, इंगलैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, हालैण्ड, हांगकांग, भारत, इटली, न्यूजीलैण्ड, नॉर्दर्न आयरलैण्ड, स्पेन और अमेरिका आदि में हैं । लामा थुबटेन येशे तथा लामा जोपा वर्ष में छ: माह विदेशों में स्थापित अपने ३५ केन्द्रों का दौरा कर अपने शिष्यों का मार्गदर्शन करते थे । स्पेन के तुवियोन ग्रनाडा स्थित ओ सेल लिंग स्ट्रीट में टोरेस और उसकी पत्नी मारिया बौद्ध धर्म में दीक्षित होकर वहाँ प्रचार कार्य करते थे ।

लामा थुबटेन येशे का स्वास्थ्य सन् १९७० के बाद गिरने लगा था । उनके हृदय के दो वाल्ब हो गये थे । १९७४ में उनका इलाज कर रहे पश्चिमी चिकित्सकों की रिपोर्ट में इस बात पर आश्चर्य प्रकट किया गया था कि लामा थुबटेन येशे अब तक जीवित कैसे हैं ? इस बारे में स्वयं लामा यशी ने १९७४ में कहा था कि वे चिकित्सा साधनों से नहीं, मंत्रशक्ति द्वारा जीवित हैं ।

उन्होंने उस समय यह तथ्य उद्घाटित कर कि वे दस वर्ष और जीवित रहेंगे, सबको आश्चर्य में डाल दिया था । पश्चिमी चिकित्सकों के लिए यह बात चमत्कार से कम नहीं थी, क्योंकि उनकी नजर में लामा यशी किसी भी दिन दिवंगत हो सकते थे । लेकिन लामा थुबटेन येशे की भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई । पूरे दस वर्ष बाद ३ मार्च, १९८४ को तिब्बती नये वर्ष के शुरू होने के साथ सूर्योदय से बीस मिनट पूर्व सेनफ्रांसिसको के अस्पताल में उनका देहांत हो गया । इससे पूर्व दिल्ली में भी उनका इलाज होता रहा था ।

बौद्ध धर्म में यह विश्वास मान्य है कि अपने शिष्यों तथा अनुयायियों के मार्गदर्शन और कल्याण के लिए धर्मगुरु तथा धर्माचार्य पुनः जन्म लेते रहते हैं और कुछ विशेष चिह्नों से युक्त होने के कारण अल्पायु में ढूँढ़ भी लिए जाते हैं । तिब्बतियों के सर्वोच्च धर्मगुरु महामना दलाई लामा १४वें ने अपनी आत्मकथा “मेरा देश मेरे देशवासी” में लिखा है –

“हम विश्वास करते हैं कि विभिन्न रूपों में प्रत्येक प्राणी मृत्यु के बाद फिर जन्म लेते हैं । प्रत्येक जीवन में, जो सुख और दुःख वे भोगते हैं, उसका अनुपात उनके जन्म में किये गये अच्छे और बुरे कर्मों द्वारा निश्चित होता है । वे अपने वर्तमान जीवन में अपने प्रयासों द्वारा अनुपात में कुछ परिवर्तन भी कर सकते हैं । इसे कर्म का नियम कहते हैं । प्राणी कर्म के क्षेत्र में ऊपर या नीचे हो सकते हैं । उदाहरण के लिए, पशु जीवन से मनुष्य जीवन में, या मनुष्य जीवन से पशु जीवन में आ-जा सकते हैं । अंततः के प्रभाव से जब उनका पुनर्जन्म बंद हो जाता है, तब उन्हें निर्वाण मिल जाता है । निर्वाण में ज्ञान की सीढ़ियाँ हैं । सबसे ऊँची सीढ़ी बौद्धत्व है । अवतार वे प्राणी हैं, जिन्होंने या तो निर्वाण की विभिन्न श्रेणियों को प्राप्त कर लिया है, या निर्वाण से नीचे की पीढ़ी अर्हत प्राप्त कर ली है । वे दूसरे लोगों को निर्वाण की ओर उठाने में सहायता करने के लिए पुनः अवतरित होते हैं ।“

पुनरावतार केवल दूसरों की सहायता करने के लिए होता है । पुनरावतार जब कभी परिस्थितियाँ उपयुक्त होती हैं, तभी होते हैं । ऐसे अवतारी पुरुष प्रत्येक जीवन में अपनी स्वयं की इच्छाओं द्वारा अपने पुनर्जन्म के स्थान और समय के विषय में प्रभाव डाल सकते हैं और प्रत्येक जन्म के बाद उनको अपने पूर्वजीवन की स्मृति रहती है, जिसके द्वारा दूसरे उन्हें पहचान लेते हैं ।

लामा थुबटेन येशे की मौत के बाद कोपन मठ में लामा जोपा अस्थायी तौर पर मठ का संचालन करने लगे । साथ ही लामा थुबटेन येशे के अवतार की खोज भी शुरू हो गयी । बौद्ध धर्माचार्यों को इस बात का पूर्वाभास हो जाता है कि भावी लामा कब और कहाँ अवतरित होंगे । यही नहीं, उनमें अलौकिक शक्ति के द्वारा यह जानने की क्षमता रहती है कि अमुक गाँव या कस्बे में अमुक नाम या शक्ल का नवजात शिशु ही उनका अगला धर्मप्रमुख होगा ।

लामा थुबटेन येशे के पुनरावतार का आभास जोपा तथा लामा यशी के एक अन्य शिष्य सोवा को आध्यात्मिक शक्ति द्वारा हो गया था ।

उधर स्पेन में मारिया को स्वप्न में लामा यशी दिखाई दिये थे । टोरेस और मारिया इस स्वप्न से प्रसन्न अवश्य हुए, पर वे स्वप्न की गहराई में न गये थे । इस स्वप्न के बाद मारिया को एक रोज फिर स्वप्न में लामा थुबटेन येशे दिखाई दिये । उन्होंने मारिया को पुनः आशीर्वाद देते हुए कहा कि उससे जन्म लेने वाला बालक कोपन मठ का प्रमुख लामा होगा । उस समय लामा थुबटेन येशे के आशीर्वाद स्वरूप उठे हाथ से प्रकाश की तेज किरणें भी निकली थीं । हालाँकि मारिया उस समय गर्भवती न थी, पर इस स्वप्न के बाद उसे गर्भ रह गया था । १२ फरवरी, १९८५ को मारिया ने ओजल इजा टोरेस को जन्म दिया ।

शिशु के चेहरे पर अनोखा तेज था । जो भी बालक को देखता, नजर न हटा पाता । बालक में कुछ ऐसा सम्मोहन था कि धीरे-धीरे बालक की चर्चा दूर-दूर तक फैल गयी । उसे देखने के लिए हजारों लोग उत्सुक हो उठे । यों ओजल इजा टोरेस ने बचपन से ही धर्म में रुचि दिखानी शुरू कर दी थी । अन्य बच्चों के विपरीत, वह घण्टों अपने स्थान पर ध्यान मुद्रा में बैठे रहते ।

ज्यों-ज्यों ओजल इजा टोरेस बढ़ने लगा, उसमें विशेष लक्षण दिखाई देने लगे । अक्सर वह लामा यशी के चित्र को देर तक निहारता रहता । मारिया को बार-बार स्वप्न में लामा यशी आशीर्वाद देते दिखायी देते । मारिया के स्वप्न की चर्चा कोपन मठ के लामाओं तक भी पहुँची । उन्हें मारिया के स्वप्न में सत्यता नजर आयी, क्योंकि उन्हें जो संकेत आध्यात्मिक शक्ति द्वारा प्राप्त हुए थे, उसमें लामा यशी का अवतार हजारों मील दूर होना था । मारिया की बातों की सच्चाई परखने के लिए उसे तथा ओजल इजा टोरेस को ५ मई १९८६ को मकलोडगंज (धर्मशाला) बुलाया गया, जहाँ लामा थुबटेन येशे से संबंधित कई चीजें रखी थीं ।

उस रोज मकलोडगंज की तुशिता रिट्रीट में विचित्र दृश्य था । कई छोटे-छोटे तिब्बती बच्चे, जो ओजल की आयु के थे, वहाँ लाये गये थे । उनमें ओजल को भी शामिल किया गया था । लामा यशी के प्रतीक चिह्नों माला, डमरू, पूजा की घण्टी आदि को बीच रख दिया गया था । मन लुभाने वाले कई खिलौने भी वहाँ पड़े थे । अन्य बच्चे जबकि खिलौना तथा दूसरी आकर्षक चीजों की ओर लपक रहे थे, ओजल इजा टोरेस लामा थुबटेन येशे के प्रतीक चिह्नों – उनकी माला, डमरू, घण्टी आदि को निकाल कर अलग रखने लगा था । यही नहीं, ओजल इजा टोरेस ने लामा थुबटेन येशे के बड़े भाई जशेतरिंग को भी पहचान लिया और उनकी गोद में जा बैठा । जशेतरिंग नन्हें ओजल इजा टोरेस को अपने भाई के रूप में पाकर निहाल हो उठे । लामा थुबटेन येशे के रूप में ओजल इजा टोरेस अवतरित प्रमाणित हो गया था । फिर उसे स्पेन वापस भेज दिया गया । उसे कोपन बौद्ध मठ के प्रमुख लामा थुबटेन येशे की गद्दी पर बिठाने के लिए बौद्ध ज्योतिषियों ने १२ मार्च, १९८७ का दिन निश्चित किया ।

बालक ओजल इजा टोरेस को फरवरी १९८७ के प्रथम सप्ताह में स्पेन से दिल्ली लाया गया, जहाँ उसका भव्य स्वागत किया गया । दूरदर्शन की समाचार बुलेटिन में इस अद्भुत बालक को विशेष रूप से दिखाया गया । दिल्ली से ओजल को बोधगया ले जाया गया, जहाँ उसका महाचक्र पर अभिषेक होना था । फिर १२ मार्च, १९८७ को कोपन बौद्ध मठ में एक भव्य समारोह के बीच ओजल इजा टोरेस को लामा थुबटेन येशे की गद्दी पर बिठाया गया । इस समारोह में एफ पी एम टी के ३५ केंद्रों से सैकड़ों शिष्य कोपन मठ पधारे | ओजल इजा टोरेस की शिक्षा पाँच वर्ष बाद शुरू होगी । तब तक उसके माता-पिता और भाई-बहन उसके साथ ही रहेंगे । यह पहली बार हुआ है कि एक लामा का पुनर्जन्म अपने देश से हजारों मील दूर एक विदेशी शिष्य के घर हुआ ।

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